नशे में बाप ने बेटी को चोदा

हेलो दोस्तों, समझ नहीं आता की अपनी ये दास्ताँ आपको बताऊँ या नहीं. ये मेरी जिंदगी का बड़ा ही अजीब अनुभव है जिसने मुझे यह सिखा दिया कि मर्द मर्द ही होता है उसे बस औरत चाहिए ही चाहिए!
मेरी शादी हुए करीब पांच साल हो चुके हैं, मेरा एक ढाई साल का बेटा है। मैं जयपुर में ब्याही हुई हूँ जबकि मेरा मायका हिमाचल में है।

एक बार मैं अपने मायके में सावन के महीने में रहने आयी, मेरे मायके में मेरे पिताजी, बीमार माता जी और मेरा बड़ा भाई और उसकी पत्नी जो की है। मेरे पिताजी हट्टे कट्टे मर्द हैं. हम लोग अक्सर पिता जी को बाबूजी कह कर पुकारते हैं. उनकी उम्र यही करीब 63 साल रही होगी.

मेरा भाई एक सेल्स एग्जीक्यूटिव है और अक्सर महीने में वो करीब दो हफ्ते टूर पर ही रहता है। मेरी उम्र उस समय भाभी के बराबर ही थी और हम दोनों 26 -27 साल की थी।

हमारे घर में तीन कमरे हैं एक कमरे में मेरी भाभी, दूसरे में माताजी और तीसरे कमरे में मेरे पिताजी सोते हैं. माँ अक्सर बीमार रहती हैं, उन्हें इतना होश भी नहीं रहता कि कौन आ रहा है कब आ रहा है.

खैर, मुझे आये हुए सिर्फ दो दिन हुए थे. मैं अपने बेटे के साथ अलग कमरे में सोई हुई थी. रात करीब मैंने किसी चलने की आवाज सुनी जो गैलरी में से आ रही थी. फिर मैंने दरवाजे भेड़ने की आवाज सुनी जो भाभी के कमरे से आयी. वो या तो भाभी थी या पिताजी थे.

भाभी दरवाजा बंद नहीं करती थी सिर्फ पर्दा खींच देती थी. रात के करीब पौने बारह बज रहे थे तो मेरे से नहीं रहा गया और मैं चुपचाप उठी.
पहले बाथरूम में जाकर देखा तो वहाँ कोई नहीं था. फिर जल्दी से बाबूजी के कमरे की तरफ गयी, वहां माँ बेसुध पड़ी थी और उनके खर्राटों की आवाज आ रही थी पर बाबूजी नदारद थे.

मेरा दिल किसी अनजानी बात को सोच कर धड़कने लगा, मैं बिना वक़्त गंवाए तुरंत ही भाभी के कमरे के सामने जाकर खड़ी हो गयी दरार से झांक कर देखने की कोशिश की.

कमरे में एक शख्स बिस्तर के पास खड़ा था और कुछ सेकंड बाद ही वो बिस्तर पर चढ़ कर दूसरे शख्स के साथ लेट गया.

मैंने अँधेरे में देखने की काफी कोशिश की पर दो साये दिखाई दिए. बिस्तर पर उनके चेहरे साफ नहीं थे, पर यह पक्का था कि वो बाबूजी और मेरी भाभी ही थे. अंदर बहुत ही कम रोशनी थी जो शायद खिड़की से आ रही थी.

फिर कुछ देर बाद चूमने और चाटने की आवाजें आने लगी.

उस समय तक वो शख्स दूसरे वाले शख्स के साथ साइड में लेटा हुआ था. जल्दी से ये पता नहीं लग रहा था कि इनमें से भाभी कौन है.

तभी मुझे लम्बे लम्बे बाल लहराते से दिखाई दिए. अब पता चला मुझे कि मेरी वाली साइड बाबूजी थे और भाभी दूसरी तरफ थी.

बाबूजी के हाथ भाभी के बदन पर चल रहे थे. फिर कुछ देर बाद इधर वाला शख्स दूसरे के ऊपर लेटने की कोशिश करने लगा और फिर कपड़ों की सरसराहट सुनाई दी.

मुझे भाभी की साड़ी ऊपर उठती हुई दिखी. इसके बाद भाभी की एक गहरी आवाज सुनाई दी- आह …
और फिर ऊपर वाला शख्स धीरे धीरे अपने चूतड़ हिलाने लगा.

इसके बाद कमरे में उम्म्ह… अहह… हय… याह… की आवाजों का शोर बढ़ता जा रहा था. अब तस्वीर साफ हो चुकी थी मेरे बाबूजी मेरी भाभी को चोद रहे थे. दरार से अब दिखने लगा था कि बाबूजी कुछ देर बाद भाभी के हाथ दबा रहे थे. शायद भाभी पर बाबूजी भरी पड़ रहे थे.

मेरी बेचैनी इतनी बढ़ गयी थी कि मेरा मन भी बेईमान होने लगा और मुझे अपने पति की जरूरत महसूस होने लगी।

उनके आपस में चुदाई करने की आवाजें बाहर तक आ रही थी, ऐसे लग रहा था जैसे अंदर कमरे में कोई चीज़ फेंटी जा रही हो। लगातार आँख गाड़ने की वजह से अब मुझे कुछ कुछ दिखने लगा था. हालाँकि ये सब धुंधला सा ही था.

भाभी की सिसकारियां गहरी … गहरी और तेज … तेज होती जा रही थी. उनकी टाँगें ऊपर उठी हुई थी. बाबूजी पूरी जी जान से भाभी की चुदाई करने में लगे हुए थे. अचानक भाभी की एक गहरी घुटी से चीख निकली और इधर मेरी योनि से पानी टपक गया.

बाबूजी ने भाभी के दोनों पैर उनके सिर की तरफ मोड़ रखे थे और जानवर की तरह लगातार धक्के मारे जा रहे थे. यह देख कर मेरे तन बदन कामवासना में जलने लगा, सांसों का तूफान उठा हुआ था.
और फिर कुछ सेकंड के लिए ऐसा लगा कि सब कुछ थम सा गया.

फिर भाभी ने अपने पैर सीधे कर लिए और बाबूजी उनके ऊपर लेट गए. अब दोनों की सांसों की आवाजें धीरे धीरे कम होती जा रही थी।

इस सब काम में बाबूजी को लगभग 15 मिनट लगे थे, करीब दो मिनट बाद बाबूजी ने भाभी के होंठ चूमे और गाल थपथपाये और बिस्तर से उतरने लगे.

अब मुझे लगा कि बाबूजी सीधे बाहर ही आएंगे. मैंने तुरंत दरवाजे से आँख हटाई और अपने कमरे में बिस्तर पर बैठ गयी।

बस एक मिनट बाद ही भाभी के कमरे दरवाजा खुलने आयी और मैंने गैलरी में बाबूजी को जल्दी जल्दी माँ के कमरे में जाते देखा.

तो मेरा अंदाज सच था कि बाबू जी भाभी को चोद कर निकले हैं अभी।

मैं बिस्तर पर लेट कर सोचती रही कि बाबूजी तो बहुत तगड़े धसकी (ठरकी) हैं औरत के।
और गजब यह कि इस उम्र में भी बाबूजी के अंदर पूरा करेंट है.

मैं करीब करीब 15 मिनट तक इंतजार करती रही फिर मैं टोर्च लेकर भाभी के कमरे की तरफ गयी तो उनके कमरे खुला हुआ था. अंदर से कोई भी आवाज नहीं आ रही थी.

मैंने सावधानी से टोर्च की ररोशनी इधर उधर डाली ताकि भाभी जगी हो तो पूछ लें कि ‘अरे रमा इतनी रात क्या ढूंढ रही हो?’
फिर मैंने बिस्तर पर नजर डाली भाभी बेखबर करवट ले कर सोई हुई थी, उनकी गांड मेरी तरफ थी और उनका दायाँ घुटना आगे मुड़ा हुआ था और बायीं जांघ सीधी थी.

भाभी की चूत काफी उभरी हुई थी और फटी हुई चूत से गाढ़ा गाढ़ा सफ़ेद वीर्य निकल कर उनकी गोरी जांघ पर फैला हुआ था. लग रहा था कि भाभी की अच्छी तरह रगड़ाई हुई है. तभी थक कर सोई हुई हैं. उनके बाल बिखरे थे और गाल पर हल्के से दांतों के निशान बने हुए थे.

यह मेरे लिए बहुत ही कौतुहल का विषय था कि मेरा बाप अपनी ही बहू (पुत्रवधू) को चोद रहा था और मेरे सिवा किसी को भनक तक नहीं लगी.

मेरी फुद्दी इस काण्ड को देख कर मचलने लगी थी. मैंने नीचे हाथ लगाया तो पूरी दरार गीली हो चुकी थी. मैंने एक नजर अपने बेटे पर डाली, वो गहरी नींद में सोया हुआ था.

मैंने अपनी उंगली छेद में घुसेड़ दी और काफी तेजी से 35-40 बार चलायी और झड़ गयी.
बाबूजी ने भाभी की चीखें निकलवा दी थी. ऐसा तो मेरा पति भी नहीं कर सका था. मेरा पति रमेश कुछ ही मिनट में पसर जाता था.
और इधर बाबूजी ने भाभी को बिस्तर पर चित कर रखा था.

इसके बाद मुझे भी नींद आ गयी.

सुबह सब घर के काम में ऐसे लगे हुए थे जैसे कुछ हुआ ही न हो!
भाभी भी मेरे पिताजी को आवाज दे रही थी- पापा जी … चाय पी लो!

यह देख कर मेरा सिर चकरा गया कि ‘अरे कैसी बहू है जो रात भर ससुर के नीचे चुदती, कराहती रही और आज इतने प्यार से उन्हें चाय के लिए बोल रही है.’

अगली रात मैं इंतजार करती रही पर बेकार … यह नजारा मुझे देखने को नहीं मिला.
पर मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी थी.

तीसरे दिन रात को फिर वो ही घटनाक्रम … बाबूजी ने दरवाजा भेड़ा, मैं उठी और दोनों ने पहले बिना कुछ बोले काम क्रीड़ा की और भाभी उनके बिना कहे बिस्तर पर मुंधी(उलटी) हुई और फिर उनके पीछे बाबूजी खड़े हो गए फर्श पर और फिर कैसे 12 मिनट बीते, ये पता ही नहीं चला. भाभी की सिसकारियों से पूरा कमरा भर गया था और बाबूजी एक नवयुवती की जवानी का भरपूर मजा ले रहे थे।

बाबूजी काफी देर में झड़ते थे, यह देख कर मुझे भाभी से ईर्ष्या होने लगी कि कैसे इस औरत ने मेरे बाप को कब्जे में कर रखा है; और वो भी सिर्फ अपने सुन्दर जवान बदन से!
आखिर इसे मेरे बाप में ऐसा क्या दिखा कि ये रात को कुछ भी नहीं बोलती और न ही मना करती है, सब कुछ ऐसे होता था जैसे मशीन करती थी।

मैं भी अब अपने जवान बदन को निहारने लगी. मेरे अंदर कोई भी कमी नहीं थी पर मैं अपने बाबूजी के नीचे यानि की जन्म दाता के नीचे कैसे लेटूँ?
यह एक बहुत बड़ी समस्या थी.

मैंने सोचा कि क्यों न भाभी को रंगे हाथ पकड़ा जाये!
पर ऐसा करने से दोनों सावधान हो सकते थे.

फिर मैंने एक तरकीब लगायी कि भाभी से खुल कर बात करने लगी सेक्स के बारे में!
हम दोनों हमउम्र थी और हमारी कदकाठी भी लगभग एक समान थी.

मैंने एक दिन बात ही बात में कह दिया- भाभी, असली मजे तो तुम ले रही हो जवानी के!
तो वो एकदम से चौंक पड़ी और उन्होंने कहा- रमा तू भी … छी: तेरी प्यास अभी तक नहीं बुझी क्या?

मैंने बिल्कुल भी देर नहीं की और कह दिया- भाभी, और रात को तुम जो मजे लेती हो उसका क्या? आखिर भैया में ऐसी क्या कमी है?
उनका मुंह शर्म से लाल हो गया।

भाभी ने कहा- अरे रमा, बस जिंदगी ऐसे ही चलती है. औरत तो बस एक मोहरा है. मुझे तो इस घर में रहना है. जल में रहना है तो मगर से बैर नहीं किया जाता. पर बता तुझे कब पता लगा और तूने क्या देखा?
मैंने उसे सब कुछ बता दिया.

साथ ही मैंने तुरंत बात सँभालते हुए उन्हें कहा- भाभी, अगर कोई चीज़ मजा देती है तो उसे मिल बाँट कर खाने में क्या बुराई है?

भाभी ने कहा- रमा, देख तू मेरी सहेली ज्यादा है ननद बाद में! देख पहले तो जोर-जबरदस्ती करी थी पापा जी ने एक रात को और मैंने तुम्हारे भैया को डर के मारे नहीं बताया. और फिर धीरे धीरे मुझे भी आदत हो गयी उनकी।

भाभी आगे बोली- पर तेरे तो बाबू जी हैं। है तेरे अंदर इतनी हिम्मत?
मैंने कहा- भाभी, अभी कुछ नहीं कह सकती … पर तुम ही कोई रास्ता बताओ?

फिर भाभी ने जो कुछ कहा, सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए.
उन्होंने कहा- देख ऐसा कर … तेरे बेटे के साथ मैं सो जाऊंगी और दो दिन तक मैं उन्हें कोई भी बहाना बना कर रोक कर रखूंगी. और तू ऐसा करना कि मेरे बेड पर मेरे कपड़े पहन कर लेट जाना, वो कुछ भी बात नहीं करते हैं, बस प्यार करते हैं और फिर अपनी प्यास बुझा कर चुपचाप चले जाते हैं.

मुझे भाभी का यह सुझाव बहुत अच्छा लगा पर ख्याल आया कि सुबह क्या होगा?
मैंने भाभी से ये बात बताई तो उन्होंने कहा- अरे सुबह की सुबह देखना.

और फिर दो दिन बाद मैंने उनकी वो नारंगी रंग की साड़ी पहनी ठीक रात को सोने से पहले. भाभी मेरे कमरे में चली गयी और मैं उनके बिस्तर में।

मेरा दिल धड़क रहा था कि मैं ये क्या कर रही हूँ. पर मेरी चूत में चुलबुलाहट हो रही थी जो बाबूजी ही मिटा सकते थे.

मैं रात को वैसे ही अपनी गांड दरवाजे की तरफ करके लेट गयी. मेरे से टाइम काटे नहीं कट रहा था.
कि तभी मुझे दरवाजा बंद करने की आवाज आयी और फिर कोई मेरे पीछे आकर लेट गया.

मुझे उसकी सांसों से एक तेज गंध आयी जो दारू की गंध थी. बाबूजी ने दारू पी रखी थी.

और मेरे बाल हटा कर मेरी गर्दन पर जैसे ही उन्होंने किस किया, मेरे शरीर में एक करेंट सा दौड़ गया. फिर वो अँधेरे में ही मेरी चुम्मियाँ लेने लगे और मेरे बाहर से ही स्तन दबाने लगे.
मैं चाह कर भी सिसकारी नहीं ले सकी।

उनका हाथ मेरे पेट की तरफ बढ़ रहा था और उन्होंने मेरी साड़ी उठा दी.

फिर बाबूजी ने मुझे सीधा करा और मेरे ऊपर आ गए. उन्होंने घुटने से मेरी जांघें चौड़ी की और अपना निहायत ही मोटा लण्ड मेरी फुद्दी पर रख दिया. वो मुझे लगातार चूमे जा रहे थे.
और फिर जैसे ही उन्होंने कस कर धक्का मारा, मैं एक अजीब आनंद के मारे दुहरी हो गयी.

बस फिर बाबूजी मुझे भाभी समझ कर धीरे धीरे पेलने लगे.

मेरा रोम रोम आनंद के मारे पुलकित हो रहा था। ऐसा मोटा लण्ड मैंने पहले कभी नहीं लिया था. मेरी चूत के सलवट खुलते जा रहे थे. साली ऐसी मस्त रगड़ाई मेरे पति रमेश ने पहले कभी नहीं की थी।

बाबूजी मुझे किसी भालू की तरह चोद रहे थे.
मैंने भी मस्ती में आकर उनकी जफ्फी भर ली और उनके चूतड़ पर हाथ फेरा. आह … उनके चूतड़ बहुत सॉलिड थे, तब मुझे आभास हुआ कि भाभी क्यों चीखती थी.
मेरी टाइट चूत मेरे से ज्यादा चीखने लगी.

न बाबू जी को होश था और न मुझे!
और आखिरी पलों में तो मैं जैसे किसी स्वर्ग की सैर कर रही थी. मेरी बच्चेदानी का जम कर चुदान हो रहा था, बाबूजी पूरी ताकत लगा रहे थे और अब मुझे मुश्किल हो रही थी. मुझे लग रहा था की बाबूजी का लौड़ा कोई साधारण लौड़ा नहीं है क्योंकि आज तक मुझे पहले कभी भी इतना आनंद नहीं आया था।

बाबूजी ने मेरे ब्लाउज़ के बटन खोलने की कोशिश की पर जब नहीं खुले तो उन्होंने एक झटके में ब्लाउज़ के बटन तोड़ दिए और मेरे चूचे बुरी तरह मसल दिए उनके हाथ एक किसान के हाथ थे.

एक तो लौड़ा अंदर ठोकरें मार रहा था और फिर बाबूजी ने मेरे इतने अंदर लौड़ा पेल दिया कि मैं बता नहीं सकती। मुझे लगा कि कम से कम सात इंच लम्बा लौड़ा था उनका!
वो मुझे चूतड़ तक नहीं उठाने दे रहे थे!

‘आह!’ और जब लास्ट धक्का मारा तो मैं अपनी चीख रोक नहीं सकी और मुंह से आह निकल गयी. और तभी गर्म गर्म तेज फुहारें मेरे बदन में समाती चली गयी. आह … क्या आनन्द था इस चुदाई में!

बाबू जी का लौड़ा मेरी चूत में बुरी तरह काँप रहा था. पर फिर जैसे ही धारें गिरनी बंद हुई, वो एकदम से मेरे जिस्म से उतरे और लौड़ा भी लगभग खींच कर ही निकाला।
और फिर बड़ी तेजी से अपना कच्छा उठा कर दरवाजा खोल कर निकल गये.

शायद उन्हें मेरी आवाज से पता चल गया था कि मैंने किसी और की चुदाई कर दी है।

मैं भी कुछ देर बाद वहां से उठी और भाभी के पास आ गयी.

भाभी ने लाइट जलाई और मेरी तरफ देखा मेरा ब्लाउज़ एकदम खुला हुआ था.
उन्होंने हँसते हुए कहा- रमा हो गया तेरा काम? पड़ गयी ठण्ड? कैसा लगा?
मैंने शरमाते हुए कहा- भाभी, तुम बाबूजी को कैसे झेलती हो?
उन्होंने कहा- अरे रमा, हमारे मर्द तो बाऊजी के आगे कुछ भी नहीं हैं। आज तो देख ही लिया कि क्या करेंट है ससुर जी में।

भाभी आगे बोली- और सुन, भूल कर भी किसी को मत बताना ये बात!
मैंने कहा- भाभी, तुम्हारे तो मजे है यार! पर अब सुबह क्या होगा? मैं उन्हें कैसे मुंह दिखाऊंगी?
उन्होंने कहा- चिंता मत कर … शर्म तो उन्हें होगी कि अपनी बेटी की चूत ही बजा डाली नशे में!

“वो तेजी से भागे!” भाभी ने कहा- इसका मतलब है कि उन्होंने तेरी आवाज पहचान ली।
मैंने कहा- भाभी, अब क्या होगा?
उन्होंने कहा- देख, मर्द जात होती है न … इसका कुछ नहीं पता! तू घबरा मत, मैं हूँ न, पर ये बता तेरी खुल गयी न अच्छी तरह से?

मेरा शर्म के मारे बुरा हाल था.
भाभी ने कहा- चिंता मत कर।

मेरी भाभी की बातों से मुझे थोड़ा आराम हुआ पर मन में बेहद आत्मग्लानि थी कि मैं ऐसी बेटी हूँ जो अपने ही बाप से चुद गयी हूँ.
भाभी ने कहा- तू फ़िक्र मत कर, मैं सब संभाल लूंगी. और तू जब तक यहाँ है, अपने बाप से मजे लेती रह! मेरा क्या है मैं तो यहीं हूँ न।

मैंने कहा- भाभी सुनो, बाऊजी तो बहुत स्ट्रांग हैं.
उन्होंने कहा- और पगली! देखा नहीं कि उनका लिंग कितना बड़ा और मोटा है?
मैंने कहा- हाँ भाभी, कमरे में बिल्कुल अँधेरा था. मैं उनका लिंग नहीं देख सकी. पर मेरी तो जान ही निकल गयी थी.
भाभी ने कहा- अरे पुराने मर्द हैं … साले जल्दी से झड़ते नहीं हैं. और औरत को क्या चाहिए!

इसके बाद वो अपने बिस्तर पर चली गयी. सुबह जब मैं उठी तो बाबूजी घर पर नहीं थे.
मैंने भाभी को पूछा तो उन्होंने बताया कि वो खेत पर पानी लगाने गए हुए हैं.

भाभी को मैंने पूछा- बाबूजी ने तुम कुछ बताया तो नहीं?
तो भाभी ने कहा- नहीं यार, कुछ नहीं बताया!
तो मैंने आराम की साँस ली।

मैंने भाभी को कहा- मैं उन्हें कैसे मुंह दिखाऊंगी?
तब उन्होंने कहा- फ़िक्र मत कर। सब ठीक हो जायेगा. आज भी तू ही सोना. अच्छा तो है जो उन्हें पता चलेगा। .

फिर भाभी ने अगले दिन यानि रात को फिर अपने कमरे में भेज दिया.

बाबूजी आये और मेरी चुदाई करने लगे. बहुत मजा आ रहा था.
पर आखिर में मेरे से रहा नहीं गया और मेरे मुंह से निकल गया- बाबूजी मैं रमा हूँ.
उन्होंने तुरंत कहा- साली, कल जब तेरी चुदाई हो रही थी तो तभी बता देती कि मैं रमा हूँ.
मैंने कहा- बाबूजी, आप बहुत जोश में थे. मैं शर्म के मारे चुप रही क्योंकि तब तक आप मेरे अंदर आ चुके थे.

उन्होंने कहा- रमा तो फिर आज ये शर्म क्यों?
मेरे पास कोई जवाब नहीं था उनकी बातों का।

“अब चुपचाप पड़ी रह … मेरा मूड बना हुआ है!”
और फिर बाबूजी ने मेरे गालों पर हल्के से दांतों से काटा. आह … क्या साला बुड़का मारा!

अब तो मैं रातों में सिसकारियां भी भरने लगी थी जो भाभी सुनती थी.

एक दिन भाभी की पिलाई होती थी और अगले दिन मेरी।

और एक दिन तो मेरी पिलाई हो रही थी और भाभी आ धमकी और लाइट जला दी.

हम दोनों बाप बेटी पानी पानी हो गए. बाबू जी ने खिसिया कर अपना लौड़ा मेरी चूत से बाहर निकाला तो मैं हैरान हो गयी.
आह … साला काले रंग का कोबरा था बिल्कुल … 7 इंच लम्बा लौड़ा और दो इंच मोटा लण्ड!

भाभी ने कहा- पापा जी … अरे करते रहो न, बेचारी को मजा आ रहा था.
और भाभी वहीं बगल में लेट गयी.

भाभी ने लाइट बंद कर दी और उसी बिस्तर पर बाबूजी मेरे साथ कामक्रीड़ा करते रहे.

जब बाबूजी ने मेरी चुदाई कर ली तब उन्होंने अँधेरे में ही कहा- इस काम में जिसने शर्म करी, वो मजे नहीं ले सकता।
तब भाभी ने उन्हें बता दिया कि रमा ने हमें देख लिया था और इसका भी इच्छा हुई, क्योंकि इसे भी इसका पति ऐसे मजे नहीं देता जैसे आप हम दोनों को देते हो।

भाभी ने पूछा- पापा जी, आपको ज्यादा मजा किसके साथ आया?
उन्होंने कहा- तुम दोनों तो मेरी जान हो. यह पूछने की क्या जरूरत है तुम्हें?

भाभी ने कहा- पापाजी, आपको पता नहीं चला रात को कि यह आपकी बेटी है?
उन्होंने कहा- जब मैंने इसकी फुद्दी पर हाथ फेरा तो मुझे इसकी झांटें बड़ी लगी जबकि तुझे तो मैं रोज ही रगड़ता हूँ। पर उस समय मैं बहुत मजे में था इसलिए चुपचाप रहा।

बाबूजी ने कहा- देख बहू, सच कहूं … बुरा मत मानना, तेरी चूचियां बहुत सॉलिड हैं और गांड रमा की बहुत सॉलिड है. और इसकी फुद्दी थोड़ी ढीली है, जबकि तेरी काफी टाइट है।

फिर बाबू जी ने कहा- आओ अब दोनों मेरे पास आओ.
और हम दोनों ने उनकी चौड़ी बालों से भरी छाती पर सिर रख दिया. उन्होंने हम दोनों को जकड़ा हुआ था और हमें पता नहीं कब नींद आ गयी.
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