गुलाब की तीन पंखुड़ियां-20

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

गुलाब की तीन पंखुड़ियां-19

गुलाब की तीन पंखुड़ियां-21

आज पूरे दिन बार-बार गौरी का ही ख़याल आता रहा। एकबार तो सोचा गौरी से फ़ोन पर ही बात कर लूं पर फिर मैंने अपना इरादा बदल लिया। अब मैं आगे के प्लान के बारे में सोच रहा था। गौरी शारीरिक रूप से तो पहले ही चुग्गा देने लायक हो गयी है और अब तो वह मानसिक रूप से भी तैयार है।

गौरी की सु-सु और नितम्बों का विचार मन में आते ही दिल की धड़कन तेज होने लगती है और मन करता है आज रात को पढ़ाते समय ही उसे प्रेम का अगला सबक सिखा दूं। पर मधुर की मौजूदगी में यह सब कहाँ संभव हो पायेगा? तो क्या कल सुबह-सुबह मधुर के स्कूल जाते ही … अगला सबक … ??? यालाह … मेरा दिल तो अभी से धड़कने लगा है। लंड तो जैसे अड़ियल घोड़ा बनकर चुग्गे के लिए हिनहिनाने लगा है।

ओह … कल तो रविवार है? लग गए लौड़े!

एक बात तो हो सकती है आज रात को पढ़ाते समय भी लिंगपान तो करवाया ही जा सकता है। मधुर तो अन्दर कमरे में सोयी हुई रहेगी और गौरी तो चुप-चाप यह लिंगपान वाला सवाल आसानी से हल कर लेगी। और फिर एक रात की ही तो बात है। अब देर करना ठीक नहीं है सोमवार को लिंग देव का दिन है। अब लिंग देव इतनी कृपा तो हम दोनों भक्तों पर कर ही देंगे।

भेनचोद यह किस्मत हमेशा हाथ में लौड़े लिए तैयार ही रहती है पर सोमवार लिंग देव इतनी कृपा तो हम दोनों भक्तों पर कर ही देंगे। सोमवार को सुबह-सुबह उसके साथ बाथरूम में नहाते हुए प्रेम का अगला सबक सिखाने का यह आईडिया बहुत ही कारगर और सुन्दरतम होगा।

शाम को घर जाते समय मैंने गौरी के लिए बढ़िया क्वालिटी की इम्पोर्टेड चॉकलेट खरीदी और उसकी पसंद के आम और लीची फ्लेवर की फ्रूटी के 8-10 पाउच भी ले लिए थे।

आज गौरी के बजाय मधुर ने दरवाजा खोला। मैंने इधर उधर नज़र दौड़ाई पर गौरी कहीं नज़र नहीं आ रही थी।
अब गौरी के बारे में सीधे मधुर से पूछना तो ठीक नहीं था तो मैंने बहाने से मधुर से कहा- मधुर आज तो कड़क चाय पीने का मन कर रहा है गौरी को बोलो ना प्लीज … बना दे।

“मैं बना देती हूँ आप फ्रेश होकर आओ?”
“वो गौरी नहीं है क्या?”
“गौरी तो घर चली गई है।” मधुर ने बम विष्फोट कर दिया।
“क … क्यों?” मैंने हकला सा गया।
“अरे … ये निम्नवर्गीय लोगों की परेशानियां ख़त्म ही नहीं होती.”
“अब क्या हुआ?”

“होना क्या है वही रोज-रोज पैसे का रोना लगा रहता है.”
“म.. मैं समझा नहीं?” मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था। क्या पता इनकी रोज-रोज पैसों की डिमांड से तंग आकर मधुर ने गौरी को काम से ही ना हटा दिया हो। मैं तो देव चालीसा ही पढ़ने लगा। हे लिंग देव प्लीज अब लौड़े मत लगा देना।

“वो … अनार है ना?” मधुर ने कुछ सोचते हुए कहा।
मेरी झुंझलाहट बढ़ती जा रही थी। ये मधुर भी पूरी बात एक बार में कभी नहीं बताती।
“हाँ?”
“इन लोगों को सिवाय बच्चे पैदा करने के कोई काम ही नहीं है। उसके तीन बच्चे तो पहले से ही हैं अब वह फिर पेट से थी तो उसका गर्भपात हो गया।”
“ओह … बहुत बुरा हुआ.” मैंने कहा।
“अनार का पति कुछ कमाता-धमाता तो है नहीं, सारी आफत बेचारी गुलाबो की जान को पड़ी है। और उसे भी सब चीजों और परेशानियों के लिए बस यही घर दिखता है.”

“फिर?”
“वो गुलाबो का फ़ोन आया था कि कुछ पैसों की जरूरत है तो गौरी के साथ थोड़े पैसे भेज दो।”
“हुम्म …” मैंने एक निश्वास छोड़ते हुए कहा।
“क्या करती पैसे देकर गौरी को भी भेजना ही पड़ा। बड़ी मुश्किल से उसका पढ़ाई में मन लगा था अब 2-3 दिन वहाँ रहेगी तो सब भूल जायेगी।”

सारे मूड की ऐसी की तैसी हो गयी। लग गए लौड़े !!! मैं मुंह हाथ धोने बाथरूम में चला गया। पता नहीं कितने पापड़ अभी और बेलने पड़ेंगे।

मेरे प्रिय पाठको और पाठिकाओ! दुनिया में दो त्रासदियाँ (ट्रेजडी) होती हैं। एक हम जो चाहते हैं वह नहीं होता और दूसरे हम जो नहीं चाहते वह अनचाहा जरूर होता है। अब वक़्त और किस्मत के आगे किसका जोर है। मैं आपसे माफ़ी चाहता हूँ। कितना खूबसूरत प्लान बनाया था पर ये किस्मत भी बड़ी बेरहम होती है। कई बार हमारे लाख चाहने के बाद भी वह नहीं होता जो हम चाहते हैं।
पर आप निराश ना हों 2-3 दिनों की ही तो बात है उसके बाद जल्दी ही वह मरहला (इवेंट) आने वाला है जिसका मुझे ही नहीं आप सभी को भी बेसब्री से इंतज़ार है।
और फिर अगले 3-4 दिन तो गौरी की याद में मुट्ठ मारते हुए ही बीते।

आज शाम को दफ्तर से जब मैं घर लौटा तो पता चला गौरी पूरे चार दिनों के बाद आज दोपहर में आ गई है। मैं जब बाथरूम से हाथ मुंह धोकर हॉल में आया तब तक गौरी ने चाय बना दी थी। मधुर मेरे पास ही बैठी हुई थी।

गौरी ने दो कपों में चाय डाल दी तो हम दोनों चाय पीने लगे।
मेरा मन तो कर रहा था गौरी भी हमारे साथ ही चाय पी ले पर मधुर के सामने मेरी और गौरी की इतनी हिम्मत और जुर्रत कैसे हो सकती थी।

रात का खाना निपटाने के बाद हम लोग टीवी देख रहे थे। मधुर मेरी बगल में सोफे पर बैठी थी। गौरी नीचे फर्श पर बैठी कभी-कभी कनखियों से मेरी ओर देख रही थी। मैंने ध्यान दिया उसके चेहरे की रंगत कुछ निखर सी गयी है और मुंहासे भी अब ठीक लगते हैं।

“अरे गौरी?” मधुर ने उसे टोका।
“हओ” गौरी ने चौंककर मधुर की ओर देखा।
“तुमने 3-4 दिन पटरानी की तरह बहुत मटरगश्ती कर ली अब थोड़ा ध्यान पढ़ाई पर दो।” मधुर ने झिड़की लगाते हुए गौरी से कहा।

बेचारी गौरी तो सकपका सी गई।

“प्रेम! इस महारानी ने 3-4 दिन बड़ा आराम कर लिया अब रात को इसकी थोड़ी देर रात तक क्लास लगाओ नहीं तो यह सब कुछ भूल जायेगी.” मधुर ने फतवा जारी करते हुए कहा।
“ओह … हाँ … ” अब अमरीशपुरी स्टाइल में मधुर के इस फतवे के आगे मैं भला क्या बोल सकता था।

मधुर सोने के लिए बेडरूम में चली गई। गौरी अपनी किताबें उठा कर ले आई। आज उसने कॉटन का टॉप और छोटे वाली निक्कर पहन रखी था। पतली पिंडलियों के ऊपर मांसल घुटने और गुदाज़ जांघें तो ऐसे लग रही थी जैसे चड्डी पहन के फूल खिला हो। चलते समय उसके गोल-गोल घूमते नितम्ब तो मेरे लंड को बेकाबू ही कर रहे थे।

पिछले 3-4 दिनों से मैं मुट्ठ मार-मार कर थक गया था। आज रात में अगर गौरी वीर्यपान वाला सवाल हल कर दे तो कसम से मज़ा आ जाए।

गौरी बेमन से अपनी किताबें टेबल पर रखकर दूसरे सोफे पर बैठ गई। उसके चेहरे पर अनमना सा भाव था।
मुझे लगता है उसे रोज-रोज की यह किताबी पढ़ाई अच्छी नहीं लग रही। वह इन सभी झंझटों और बन्धनों को छोड़ कर खुले आसमान में उड़ना चाहती है। अब तो उसे प्रेमग्रन्थ की पढ़ाई करने का मन करने लगा है।

“गौरी क्या बात है आज तुम कुछ उदास सी लग रही हो?” मैंने पूछा।
“किच्च?” गौरी मुंडी झुकाए बैठी रही।
“गौरी तुम्हारे बिना तो इस घर में रौनक ही नहीं रही। पता है मैंने तुम्हें कितना याद किया?”

अब गौरी ने मेरी ओर देखते हुए उलाहना सा दिया- आपने तो मुझे एतबाल भी फ़ोन नहीं तिया?
“वो.. वो … दरअसल ऑफिस में इतना काम रहता था कि सिर खुजाने का भी समय नहीं मिला यार।”
“यह सब तो बहाने हैं.”

“अच्छा गौरी तुम्हारे मुंहासों का क्या हाल है?”
“अब तो ठीत लगते हैं।”
“दिखाओ तो?”

गौरी मेरी बगल में आकर बैठ गई। मैंने पहले तो उसके दोनों गालों पर हाथ फिराया और फिर उसकी थोड़ी और होंठों पर। मेरे ऐसा करने से गौरी के शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई। और मेरा पप्पू तो बिगड़ैल बच्चे की तरह जोर-जोर से उछलने लगा था। मन कर रहा था उसके होंठों पर एक चुम्बन ही ले लूं पर अभी यह सब ठीक नहीं था। क्या पता मधुर अभी सोई नहीं हो और अचानक बाहर ना आ जाए।

“हम्म … !!! गौरी मैंने बोला था ना?”
“त्या?”
“देखो वीर्यपान और उस दवा से यह मुंहासे कितनी जल्दी ठीक होने लगे हैं।”
“हओ … मैंने 3-4 दिन आपती बताई दवाई दिन में तीन-चाल बाल लगाईं तब जातल ये ठीक हुए हैं?”
“तुम्हें वो नुस्खा याद रहा?”
“हाँ मैंने उसे नोट तल लिया था और आपने जो दवा बनाई थी वह साथ ले गई थी।”
“गुड … गौरी तुम बहुत ही समझदार हो। पर अभी भी ये पूरी तरह ठीक नहीं हुए लगते?”

“तो?”
“अभी वो दवा 10-15 दिन और लगानी पड़ेगी और साथ में वह उपचार भी लेना पड़ेगा नहीं तो दवा असर नहीं करेगी.” मैंने हंसते हुए कहा।
“हट!!! तित्ति बाल (कितनी बार) तो पी लिया?”
“अरे केवल दो बार ही तो पीया है। पता है इसकी कम से कम 7 खुराक जरूरी होती हैं?”
“हट …”

“तुम्हारी कसम मैं सच बोल रहा हूँ। अब अगर ये दुबारा हो गए तो फिर मुझे दोष मत देना कि मैंने पहले नहीं बताया?” मैंने गंभीर स्वर में कहा। पहले तो गौरी इसे मज़ाक समझ रही थी पर अब उसे भी लगा कि मैं सच बोल रहा हूँ।
“गौरी एक काम करते हैं.”
“त्या?”
“मुझे पता है तुम्हें ये पढ़ाई-लिखाई वाला काम थोड़ा झंझटिया (अरुचिकर) लगता है पर यह सब जरूरी भी है। आज पहले मैं थोड़ा अंग्रेजी के अगले 2-3 पाठ पढ़ा देता हूँ फिर हम थोड़ी देर बात करेंगे। कितने दिन हो गए बात किये हुए।”
“हओ” अब गौरी के चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान सी आ गई थी।

“यह पढ़ाई-लिखाई है तो झमेला ही पर यह तुम्हारे अच्छे भविष्य के लिए है तो करना लाज़मी (आवश्यक) भी है।”
गौरी ने एक बार फिर से हओ कहा और फिर मैंने उसे अंग्रेजी की किताब का एक पाठ और लैटर राइटिंग आदि सिखाया। अब तक रात के 10:30 बज गए थे। मैंने एक बार कमरे में चुपके से झाँक कर देखा कि मधुर सो गई या नहीं। मधुर के खर्राटे सुनकर लगा वह सो गई है। मैंने धीरे से कमरे के दरवाजे को बाहर से कुण्डी (सांकल) लगा दी। और फिर गौरी के पास आ गया।

गौरी तो जैसे मेरा इंतज़ार ही कर रही थी। मैंने झट से उसे बांहों में भर लिया और तड़ातड़ कई चुम्बन ले लिए।
‘ईईईईईईई … ’ गौरी कुछ कसमसाई तो जरूर पर उसने ज्यादा विरोध नहीं किया।
“गौरी पिछले 3-4 दिनों में मैंने तुम्हें बहुत मिस (याद) किया।”
“त्यों?” गौरी ने हंसते हुए पूछा।
“सच में गौरी तुम्हारे बिना इस घर में रौनक ही नहीं रही। और ऑफिस में भी किसी काम में मन नहीं लगा.”

मेरी बात सुनकर गौरी कुछ बोली तो नहीं पर वह कुछ सोच जरूर रही थी।
“गौरी, मुझे तुम्हारे मुंहासों की बड़ी फिक्र थी क्या पता ठीक हुए या नहीं?”

गौरी मेरी बांहों में लिपटी मंद-मंद मुस्कुरा रही थी। वह तो बस आँखें बंद किये सुनहरे सपनों में ही जैसे खोई हुई थी।
मैं कभी उसकी पीठ और कभी उसके नितम्बों पर हाथ फिर रहा था और मेरा लंड तो घोड़े की तरह हिनहिनाने लगा था। मन कर रहा था गुरु क्यों देर कर रहे हो सोफे पर पटक कर साली का गेम बजा डालो।

“गौरी क्या तुम्हें मेरी याद आई या नहीं सच बताना?”
“मुझे भी आपती बहुत याद आती थी पल त्या तलती वो अनाल दीदी बीमाल थी तो वहाँ लहना पड़ा।”
“अब कैसी है अनार?”
“थीत है पल तमजोल बहुत हो गई है।”

अब मैंने गौरी के नितम्बों और जाँघों पर हाथ फिराना चालू कर दिया था। गौरी की साँसें तेज होने लगी थी। और मेरा पप्पू तो जैसे पिंजरे में बंद खतरनाक शेर की तरह दहाड़ ही रहा था।

गौरी ने एक सीत्कार सी ली और उसने अपनी बाँहें मेरी कमर पर कस सी ली।

“गौरी क्या तुम्हारा मन नहीं करता कि कोई सारी रात भर तुम्हें बांहों में भरकर प्रेम करे?”
“मुझे ऐसी बातों से शलम आती है?”
“इसमें शर्माने वाली क्या बात है? मैं तो केवल पूछ रहा हूँ?” अब तक मेरा हाथ उसकी सु-सु तक पहुँच गया था।
“आईईईई … ” गौरी की मीठी सीत्कार सी निकल गई।

“गौरी मेरी एक बात मानोगी?”
“हम … ?” गौरी ने आँखें बंद किये हामी सी भरी।
“व … वो … एक बार अपनी सु-सु के द … दर्शन करवा दो ना प … प्लीज?” मैंने हकलाते हुए कहा।
मुझे लगा गौरी मना कर देगी।
“हट!”
“प्लीज गौरी अपने गुरूजी की एक बात तो मान लो प्लीज?” मैंने मिन्नत की।
“वो … दीदी तो पता चल गया तो आपतो और मेले तो जान से माल डालेगी.”

“अरे मधुर तो सोई हुई है उसे कहाँ पता चलेगा? प्लीज … गौरी मान जाओ ना … मैं तो उसकी बस एक झलक देखना चाहता हूँ?”
“नहीं … मुझे शल्म आती है.” कहते हुए गौरी ने अपनी जांघें जोर से भींच ली।
“वाह … जी और मुझे भी तो शर्म आयी थी पर मैंने भी दिखाया था ना?”
“नहीं … प्लीज … आज नहीं … बाद में … दिखा दूंगी?”
“बाद में कब?” मैंने गौरी को चूमते हुए कहा।
“आप समझते नहीं … वो … वो … मैं तल दिखा दूंगी … प्लोमिज …”

मुझे थोड़ी निराशा सी हुई। पता नहीं गौरी मधुर के होते डर रही थी या कोई और बात थी। मैं भी जबरदस्ती कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था। काश कल सुबह गौरी नहाते समय अपनी सु-सु दिखाने के लिए राजी हो जाए तो कसम से मज़ा आ जाए। उसके साथ नहाते समय उसकी सु-सु को चूमने का उत्तम विचार मन में आते ही लंड महाराज ने तो पाजामे में कोहराम ही मचा दिया और उसने प्री कम के कई तुपके छोड़ दिए। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा।

“गौरी! आई लव यू!” मैंने गौरी का सिर अपने दोनों हाथों में पकड़ लिया और उसके होंठों पर एक चुम्बन ले लिया।
“गौरी वो दवाई पीनी है क्या?” मैंने हंसते हुए पूछा।
“तोन सी?”
मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने खड़े लंड पर लगाते हुए कहा- इससे पूछ लो!
“हट!” कहते हुए गौरी ने अपना हाथ झटके से खींच लिया।

“गौरी पिछले 4-5 दिनों से यह बहुत उदास है।”
“त्यों? इसे त्या हुआ?” गौरी ने आँखें तरेरते हुए पूछा।
“इस बेचारे की किसी को परवाह ही नहीं है.” कहकर मैंने आशा भरी नज़रों से गौरी की ओर ताका।

गौरी मेरा मतलब अच्छी तरह जानती थी।
“अगल दीदी जाग गई तो?”
“वो तो कब की सो चुकी है। तुम चिंता मत करो और मैंने बेडरूम की कुण्डी लगा दी है।”
“बेचाली दीदी आपको तितना सीधा समझती हैं ओल आप?” गौरी ने हंसते हुए कहा और फिर पजामे के ऊपर से ही मेरे लंड को दबाना शुरू कर दिया।

“मेरी जान मैं तो यह सब तुम्हारे भले के लिए कर रहा हूँ.”
“मैं सब समझती हूँ … अब मैं इतनी भोली भी नहीं हूँ.” गौरी ने मंद-मंद मुस्कुराते हुए कहा और फिर मेरे तातार लंड को पाजामे के ऊपर से ही मुठियाने लगी।
फिर गौरी ने 4 दिनों के बाद लंड देव का एकबार फिर से अभिषेक करके प्रसाद ग्रहण कर लिया।
और फिर पूरी रात हम दोनों को ही उस हसीन सुबह का बेसब्री से इंतज़ार था.

कहानी जारी रहेगी.
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