जवान स्कूल गर्ल की फड़कती चूत-3

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

जवान स्कूल गर्ल की फड़कती चूत-2

जवान स्कूल गर्ल की फड़कती चूत-4

किसी से चुदवाने का तो मैंने पक्का इरादा कर ही लिया था पर मैं अपनी चूत दूं तो किसको दूं? दो तीन ऐसे ही असमंजस में बीते पर मैं कोई निर्णय नहीं ले पाई.

डॉली से मिलने के बाद शायद चौथे या पांचवें दिन की बात है कि मेरी नींद मुंह अँधेरे ही खुल गयी घड़ी देखी तो सुबह के चार बज रहे थे. अब मैं तो कभी सात बजे के पहले उठने वाली हूं नहीं … तो फिर से एक तकिया अपने सीने से चिपटाया और फिर से सोने की कोशिश करने लगी पर नींद फिर आई ही नहीं.
मजबूरन मैं पांच बजे से कुछ ही पहले उठ गई और सुबह सवेरे के कामों से फ्री होकर मैं घर के बाहर जाकर यूं ही खड़ी हो गई.

मेरे घर के पास ही खुला मैदान है उसके आगे जंगल शुरू हो जाता है तो मोर्निंग वाक् पर जाने वाले लोग मेरे दरवाजे के सामने से ही होकर गुजरते हैं. सुबह की हवा मुझे बहुत अच्छी लगी तो मैं अपने घर के आगे ही टहलने लगी. सुबह घूमने जाने वाले लोग आ जा रहे थे. स्त्री पुरुष बच्चे सभी निकल रहे थे.

तभी मेरी नज़र एक अंकल जी पर पड़ी जो मेरे घर की ही तरफ आ रहे थे. उनकी उम्र का अंदाजा लगा पाना तो मेरे लिए मुश्किल ही था पर वैसे देखने में मुझे अच्छे लगे; उनके बालों में सफेदी आ चुकी थी, चेहरे पर हल्की हल्की दाढ़ी मूंछें थीं जो उन पर भली लग रहीं थीं.

नीची नज़र किये हुए वो मेरे सामने से गुजर गए.
वो मुझे न जाने क्यों अच्छे लगे. रंगे सियार तो मुझे सख्त नापसंद हैं, रंगे सियार से मतलब जो लोग अपने बाल, और दाढ़ी मूंछ को काली डाई से रंग करके जवान दिखने का बेहूदा प्रयास करते हैं न वो; अब सफेदी तो झलक ही जाती है चाहे आप कितना भी जतन कर लो.
उन अंकल जी को मैं जाते हुए पीछे से देखती रही जब तक वे आँखों से ओझल न हो गए.

अगले दिन मैं जानबूझ कर सुबह सवेरे अपने घर के आगे टहलने लगी, साढ़े पांच बजे वही अंकल जी फिर मेरे घर के सामने से निकले, वही छवि, हाथ में रूलर लिए हुए, मेरी ओर बिना देखे नीची नज़रें किये हुए फुर्ती से निकल गए.
अब यह क्रम रोज ही चलने लगा, ये अंकल जी मुझे भा चुके थे और मन ही मन मैंने तय कर लिया था कि मैं अपनी चूत की सील तो इन्हीं अंकल जी से तुड़वाकर चैन की सांस लूंगी.

तो सबसे पहले मैंने इनके बारे में और ज्यादा जानने की कोशिश की तो पता चला कि उनका नाम सुरेश है और वे एक सरकारी दफ्तर में अधिकारी की पोस्ट पर कार्यरत हैं. वे मेरे घर से कुछ ही दूर मेन रोड पर अपने आलीशान घर में रहते हैं. उनके दो बच्चे हैं जो कि ग्रेजुएशन करने के बाद बंगलौर और चेन्नई में एमबीए कर रहे हैं. बाकी घर पर सिर्फ आंटी जी हैं.
किसी जासूस की तरह खोजबीन करके इतनी जानकारी मैंने जुटा ली.

अब मेरा अगला स्टेप था इन अंकल जी को सेड्यूस करने का मतलब उन्हें लुभाने का ललचाने का और उन्हें मुझ पर आशिक करवाने का था. पर मैं करूं तो क्या ये मेरी समझ में नहीं आ रहा था क्योंकि मैं इन चक्करों से बिल्कुल अनजान थी. न तो मुझे कोई अदाएं या इशारे करना आते थे और न ही कुछ और अगर थोड़ा बहुत कुछ पता भी था तो वो सब करना मेरे लिए असम्भव सा था. मेरी अंतरात्मा मुझे इस बात की इजाजत नहीं देती थी कि मैं कोई फूहड़ या अश्लील हरकत करूं किसी को आकर्षित करने के लिए. फिर कोई भी सभ्य पुरुष ऐसी लड़की की तरफ आकर्षित कभी नहीं होगा जो इस तरह की प्रवृत्ति वाली हो.

मुझे अब क्या करना चाहिए और क्या नहीं … यही सब सोचते सोचते मैं देर तक जागती रहती. रात ग्यारह बजे के बाद मुझे अक्सर अपनी मम्मीं की आहें कराहें सुनाई देनें लगतीं और मैं समझ जाती कि मम्मी की चुदाई हो रही है. मैंने एक दो बार देखा था कि पापा मम्मी को दारु के नशे में बुरी तरह से चोदते हैं और यह बुरी तरह से चोदना ही मम्मी को बहुत अच्छा लगता है.

मैं इन सब बातों से ध्यान हटा कर सोने की कोशिश करने लग जाती या सुरेश अंकल के बारे में सोचने लगती कि वो भी कभी मुझे मेरी मम्मी की तरह ही बुरी तरह चोदेंगे. शायद और इतना सोचते ही मैं गीली होने लग जाती. और फिर अनचाहे ही मेरी उंगलियां सुरेश अंकल को याद करते हुए मेरी चूत पर जा पहुंचतीं और मोती सहलाना शुरू कर देतीं. मेरे मुंह से धीमी धीमी कराहें फूटने लगतीं.

दिन पर दिन गुजरते जा रहे थे पर मेरे केस में कोई प्रगति हो ही नहीं पा रही थी. सुरेश अंकल मेरी भावनाओं, तमन्नाओं, मेरी प्यास से अनजान प्रातःकाल पर निकलते और मुझे बिना देखे अपनी ही धुन में निकल जाते; वो घूम कर वापिस करीब सात बजे लौटते थे पर लौटने में भी उनका यही क्रम रहता था कि बिना किसी की तरफ देखे मजबूत कदमों से फुर्ती से चलते हुए लौट जाते.

मैं नित्य ही सुबह उनके आने जाने के टाइम पर घर के सामने खड़ी रहती या टहलती रहती.

तो क्या मेरे यूं रोज रोज खड़े रहने से अंकल जी पर कुछ असर नहीं होगा? उनके मन में ये प्रश्न नहीं उठेगा कि ये लड़की रोज रोज ऐसे क्यों दिखाई देती है मुझे?
मेरे मन ने खुद ही इस प्रश्न का जवाब दे दिया कि जब सुबह के टाइम सब लोग घूमते हैं तो मैं भी तो वही कर रही हूं इसमें एक्स्ट्रा एफर्ट क्या है?
मेरी कमी मुझे समझ आ गयी थी; अब मुझे अंकल जी का ध्यान अपनी तरफ खींचना था वो भी सादा सिंपल तरह से.

मैंने अगले दिन से अपनी बॉडी लैंग्वेज चेंज की और जैसे ही मुझे अंकल जी आते दिखे मैं अपने दरवाजे पर उकडूं बैठ गयी और अपने घुटनों में अपना सिर छिपा लिया जैसे मैं बहुत दुखी होऊं. मेरा मुंह मेरी बांहों में छिपा था पर इस तरह कि मैं तिरछी नज़र से अंकल जी को देख सकूं.

मेरी यह कोशिश रंग लाई और अंकल जी ने ठिठक कर मुझे देखा, उनकी चाल धीमी हुई और वे चले गए.

अगले दिन मैं फिर मैंने जैसे ही अंकल जी को आते देखा और मैं अपने घर के सामने सिर झुका कर किसी अपराधी की भांति समर्पण की मुद्रा में खड़ी हो गयी और अपना दुपट्टा अपनी उँगलियों में लपेटने लगी.
इस बार अंकल जी के कदम कुछ पलों के लिए रुके, उन्होंने मुझे नजर भर कर देखा और चले गए.

अब मुझे यकीन हो चला था कि मैं सुरेश अंकल को जीत लूंगी. अगली सुबह फिर यही रिपीट किया मैंने!
अंकल जी ने मुझे देखा और आँखों से इशारा करके पूछा कि क्या बात है?
मैंने सहमति में सिर हिलाया और सिर झुका कर बुत बन गयी. अब मुझे विश्वास हो गया था कि मेरी ये कोशिश जरूर रंग लाएगी.

उसके अगले दिन फिर अंकल जी आते दिखे, मैं पिछली सुबह की तरह ही खड़ी थी और उन्होंने मुझे अपने पीछे आने का इशारा कर दिया. मेरी तो जैसे मन की मुराद पूरी होने वाली थी तो मैं अंकल जी के पीछे पीछे बिन डोर से बंधी खिंची उनके पीछे पीछे चली गयी.

मेरे घर के आगे कुछ दूर एक मैदान था उसके आगे जंगल शुरू हो जाता था तो अंकल जी उसी जंगल की पगडण्डी पर चलते हुए आगे निकल गए. वहां पर भी कई लोग आ जा रहे थे; कुछ लोग किसी पत्थर पर बैठ कर या अपना आसन बिछाए प्राणायाम कर रहे थे; कुछ लड़कियां जॉगिंग भी कर रहीं थीं; मैं यही सब देखते हुए अंकल जी के पीछे पीछे चलती चली गयी.

आगे जाकर घने पेड़ों के बीच अंकल जी रुक गए वहां लोगों का आना जाना नहीं के बराबर था. मैं सकुचाती शर्माती सी अंकल जी के निकट जाकर खड़ी हो गयी.

अंकल जी मेरी तरफ आये और मेरी कलाई पकड़ ली और मुझे खींचा मैं उनके सीने से जा लगी, अंकल जी ने मुझे अपनी बांहों में भर लिया और मेरा बायां गाल चूम कर मेरे कान के नीचे गर्दन पर अपने होंठ रख दिए. बस इतने से ही मेरा पूरा बदन उत्तेजना से थरथरा गया, मेरी गर्दन के पीछे पता नहीं ऐसा क्या था कि वहां उनके होंठ लगते ही मैं आनन्द के सागर में डूबने उतराने लगी.

“अंकल जी कोई देख लेगा, बस कीजिये!” मेरे मुंह से इतना ही निकला.
पर अंकल जी ने मेरी बात अनसुनी करते हुए मुझे पास के पेड़ के तने के सहारे खड़ा कर दिया और मुझे बांहों में लिए चुपचाप खड़े रहे. मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था और मेरे स्तन उनके कठोर चौड़े सीने से दबे हुए पिस रहे थे.

कोई एकाध मिनट तक हम लोग ऐसे ही आपस में लिपटे हुए खड़े रहे फिर अंकल जी ने मेरे दोनों गाल बारी बारी से चूम कर मुझे छोड़ दिया. मैं सुधबुध खोकर परकटी हंसिनी की तरह वहीं खड़ी रह गयी. पुरुष का वो प्रथम स्पर्श मुझे सम्मोहित कर गया था. मेरी अनछुई कोरी छातियों में कसक सी उठ रही थी कि कोई उन्हें दबोच कर भींच डाले, मीड़ दे और आटे की तरह गूंथ दे. पर अंकल जी ने ऐसा कुछ नहीं किया.

“गुड़िया बेटा बुरा तो नहीं लगा न?” अंकल जी ने मुझसे पूछा.
मैं क्या जवाब देती तो मैं चुपचाप सिर झुकाए खड़ी रही.
“बता न बेटी?” अंकल जी ने फिर पूछा और मेरा कन्धा हिलाया.

इस बार मैंने एक बार नज़रें उठा कर उन्हें देखा और फिर तुरंत अपनी आँख झुका ली. मेरा दिल जोर जोर से धकधक कर रहा था. जो मैं चाहती थी, इतने दिनों से तपस्या कर रही थी और उस दिन जब मेरी चाहत रंग लाई तो मुझसे एक शब्द नहीं बोला जा रहा था.
“मुझे तेरा जवाब पता है पर तू शर्मा रही है न. चल कोई बात नहीं. अच्छा, गुड़िया तेरा नाम तो बता क्या है?” अंकल जी ने मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए पूछा.

“अंकल जी, सो… सोनम नाम है मेरा, सोनम सिंह!” मैंने बताया.
“कितना प्यार नाम है, तुम्हारी ही तरह प्यारा और खूबसूरत!” अंकल जी ने मेरी तारीफ़ की तो मैं गदगद हो गई.

“और सोनम बेटा कौन सी क्लास में हो अभी?”
“अंकल जी, इंटरमीडिएट फाइनल में हूं” मैंने कहा. अब बात करने का आत्मविश्वास मुझमें आने लगा था.
“ओह, बेटा ये तो बड़ी क्रूशियल स्टेज है पढ़ाई की. तुझे अच्छे से मेहनत करनी होगी,”
“जी अंकल जी पता है मुझे तभी तो इतनी मेहनत कर रही हूं” मैंने कहा (चुदवाने के लिए मेहनत मैंने मन ही मन सोचा)

“सोनम बेटा तुम मेरे घर आ सकती हो जब मैं बुलाऊं?”
“क्या? मैं समझी नहीं अंकल जी?”
“देखो सोनम बेटी, अब तुम इतनी नासमझ, नादान तो हो नहीं जो मेरे बुलाने का मतलब न समझ सको.” अंकल जी ने कहा.

मैं चुप रह गई, कहती भी तो आखिर कैसे.
“देखो बेटा, तुम्हारी चाहत को मैं समझता हूं तभी तो तुम मेरे साथ यहां तक आई हो, है कि नहीं? सोनम बेटा बात क्लियर हो तो बाद का टेंशन नहीं रहता; अगर तुम मुझसे अकेले में न मिलना चाहो, तुम्हारी कोई इच्छा न हो तो कोई बात नहीं, ये बातें यही समाप्त कर देते हैं, सिम्पल है.” अंकल जी ने मुझे समझाते हुए कहा.

मैंने अंकल जी की ओर देखा और सहमति में सिर हिला दिया.

मेरी तरफ से हां का इशारा पाते ही अंकल जी ने मुझे फिर से अपनी बांहों में भर लिया और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए और मेरा निचला होंठ चूसने लगे साथ ही अपना हाथ नीचे लेजाकर मेरी सलवार के ऊपर से ही मेरी झांटों वाली चूत सहलाने लगे और उसे मुट्ठी में भर के मसल दिया.
मेरा पूरा बदन झनझना उठा.

तभी किसी के आने की आहट सुनाई दी तो अंकल जी ने मुझे छोड़ दिया और मैं तेज तेज कदमों से चलती हुई अपने घर लौट आई.

कहानी जारी रहेगी.
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