गुलाब की तीन पंखुड़ियां-19

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

गुलाब की तीन पंखुड़ियां-18

गुलाब की तीन पंखुड़ियां-20

कहानी आगे बढ़ाते हैं…

“वो … चाय … ठंडी हो जायेगी?” गौरी ने अस्फुट से शब्दों में कहा तो सही पर उसने मेरे बाहुपाश से हटने की बिलकुल भी कोशिश नहीं की थी। उसकी साँसें बहुत तेज़ चल रही थी और आँखें अभी भी बंद थी। मैं उसके सिर, पीठ, कमर और नितम्बों पर हाथ फिराता जा रहा था और साथ में प्रवचन भी देता जा रहा था।

दोस्तो! आप सोच रहे होंगे गुरु … ठोक दो साली को … क्यों बेचारी को तड़फा रहे हो … लौंडिया तुम्हारी बांहों में लिपटी तुम्हें चु … ग्गा (चूत.. गांड) देने के लिए तैयार बैठी है तुम्हें प्रवचन झाड़ने की लगी है। आप सही सोच रहे हैं। इस समय गौरी अपना सर्वस्व लुटाने को तैयार है बस मेरे एक इशारे की देरी है वह झट से मेरा प्रणय निवेदन स्वीकार कर लेगी।

मेरे प्रिय पाठको और पाठिकाओ! मज़ा तो तब आये जब गौरी खुद कहे कि ‘मेरे प्रियतम … आज मुझे अपनी पूर्ण समर्पिता बना लो!!’
हाँ दोस्तो! मैं भी उसी लम्हे का इंतज़ार कर रहा हूँ। बस थोड़ा सा इंतज़ार!

मैंने अपना प्रवचन जारी रखा- गौरी! नारी सौन्दर्य भगवान या प्रकृति का ऐसा उपहार है जो हर किसी के भाग्य में नहीं होता। जड़ हो या चेतन भगवान ने हर जगह अपना सौन्दर्य बिखेरा है। इनमें से बहुत कम लोग भाग्यशाली होते हैं जिन्हें यह रूप और यौवन मिलता है इसलिए इसे सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी भी उसी पर आती है। भगवान ने तुम्हें इतना सुन्दर रूप और यौवन देकर तुम्हारे ऊपर कितना बड़ा उपकार किया है तुम समझ रही हो ना?

अब पता नहीं यह प्रवचन गौरी के कितना पल्ले पड़ा पर उसने अपनी आँखें बंद किये-किये ही ‘हओ’ जरूर बोल दिया था।

मैंने गौरी का सिर अपने दोनों हाथों में पकड़ लिया और हौले से अपने होंठों को उसके लरजते (कांपते) अधरों पर रख दिए।
आह … जैसे गुलाब की पंखुड़ियां शहद में डूबी हुई हों।

धीरे-धीरे मैंने उसके अधरों को चूमना और चूसना शुरू कर दिया। गौरी ने कोई आनाकानी नहीं की। उसकी साँसें बहुत तेज होने लगी थी और अब तो उसने अपनी एक बांह को मेरी गर्दन के पीछे भी कर लिया था। उसकी एक जांघ मेरी जांघ से सट गयी थी। मेरा एक हाथ उसके नितम्बों से होता हुआ उसकी जाँघों के संधिस्थल की ओर सरकने लगा। योनि प्रदेश की गर्माहट पाकर मेरा पप्पू तो छलांगें ही लगाने लगा था।

मेरी अंगुलियाँ जैसे ही उसकी सु-सु को टटोलने की कोशिश करने लगी मुझे लगा कि गौरी का शरीर कुछ अकड़ने सा लगा है।
“सल … मुझे तुच्छ हो लहा है … मेले तानों में सीटी सी बजने लगी है … सल … मेला शलील तलंगित सा हो लहा है … ओह … मा … म … मेला सु-सु … आह … लुको … ईईईईईइ …”
उसके शरीर ने दो-तीन झटके से खाए और फिर वह मेरी बांहों में झूल सी गयी।

हे भगवान … यह तो बहुत ही कच्ची गिरी निकली … लगता है आज एक बार फिर उसने ओर्गस्म (यौन उत्तेजना की चरम स्थिति) को पा लिया है।

गौरी कुछ देर इसी तरह मेरी बांहों में लिपटी पड़ी रही। थोड़ी देर बाद वह कुछ संयत सी होकर सोफे पर बैठ गई। उसने अपनी मुंडी झुका रखी थी और अब वह अपनी नज़रें मुझ से नहीं मिला रही थी। शायद उसे लगा उसका सु-सु निकल गया होगा।

पर यह तो प्रकृति का वह सुन्दरतम उपहार और परम आनंदमयी क्रिया थी जिसे पाने और भोगने के लिए सारे जीव मात्र कामना करते हैं। इसी क्रिया से तो यह संसार-चक्र चल रहा है और यही तो इस संसार को अमृत्व (अमरता) प्रदान करता है। वरना प्रकृति इस क्रिया में इतना रोमांच और आनंद क्यों भरती।

मेरे कानों में भी सांय-सांय सी होने लगी थी। लंड तो जैसे बेकाबू होने लगा था। एक बार अगर यह चश्का लग गया तो अब वह नहीं मानने वाला।

“गौरी मैं मानता हूँ तुम्हें थोड़ा कष्ट तो जरूर होगा पर मैं सच कहता हूँ अगर तुम दो-तीन दिन और इसी तरह वीर्यपान कर लो तो फिर यह लेप-वेप का झमेला भी नहीं रहेगा और मुंहासे भी जड़ से ख़त्म हो जायेंगे.”
गौरी ने अपने गले पर हाथ फिराते हुए कहा- आप गले ते अन्दल तत डाल देते हो तो बड़ी असुविधा होती है।
“ओह … सॉरी इस बार मैं कुछ नहीं करूंगा तुम जिस प्रकार करना चाहो करना … गुड बॉय प्रोमिस!”
गौरी ने मेरी ओर देखा शायद वह बाथरूम में चलने का सोच रही थी।

“गौरी आज तो कुछ गिरने या गंदा होने का डर तो है नहीं, यहीं सोफे पर ही आसानी से हो जाएगा।” बेचारी गौरी जड़ बनी वही बैठी रही। मैंने हॉल का दरवाजा और खिड़की ठीक से बंद कर दी।
और फिर वापस सोफे पर आकर मैंने अपने पायजामे का नाड़ा खोल दिया.

गौरी ने थोड़ा झिझकते हुए मेरे पप्पू को अपने नाज़ुक हाथों में पकड़ लिया। पप्पू ने बेकाबू होते हुए एक जोर का ठुमका सा लगाया तो गौरी ने कसकर उसकी गर्दन पकड़ी और फिर उसे हिलाना चालू कर दिया।
मैंने पास रखी शहद की शीशी खोल कर गौरी को पकड़ा दी। गौरी ने थोड़ा शहद पप्पू के सुपारे पर लगाया और थोड़ा अपने मुख श्री में भी डाल लिया और फिर सुपारे को मुंह में भरकर चूसने लगी।

गौरी भी सोफे पर बैठी तो बार-बार मेरा लंड उसके मुंह से फिसल रहा था तो अब वह नीचे फर्श पर उकड़ू होकर मेरे पैरों के बीच में आकर लंड को चूसने लगी। मेरी दोनों टांगों के बीच उसका ऊपर नीचे होता सिर ऐसे लग रहा था जैसे वह यस-नो बोल रहा हो।

मैंने उसके गालों, होंठों, सिर और पीठ पर हाथ फिराना चालू कर दिया। अब मेरा ध्यान उसके उरोजों पर चला गया। आज उसने कमीज और पायजामा पहना था। कमीज के आगे के दो बटन खुले थे। लंड चूसते हुए जब गौरी अपने मुंह को ऊपर करती तो लगता जैसे दोनों कबूतर गुटर गूं कर रहे हैं। कंगूरे तो आज अकड़कर पेंसिल की नोक जैसे तीखे हो चले थे। मैंने हाथ बढ़ाकर उन्हें अपनी चिमटी में लेकर धीरे धीरे मसलना चालू कर दिया। गौरी अब और भी ज्यादा जोश में आ गयी और मेरे लंड को किसी चुस्की (आइस कैंडी) की तरह चूसने लगी थी।

दोस्तो! इस लज्जत को शब्दों में बयान करना आसान नहीं है। इसे तो बस आँखें बंद करके महसूस ही किया जा सकता है। मैं अगर कोई बहुत बड़ा लेखक या कवि होता तो इस लज्जत का बहुत खूबसूरती के साथ वर्णन कर सकता था पर मैं लेखक कहाँ हूँ।

पर यह तो सच है कि गौरी जिस प्रकार लंड चूस रही है उसका कोई जवाब ही नहीं है। मेरा लंड तो जैसे धन्य ही हो गया। पता नहीं यह सब उसने कहाँ से सीखा है? लगता है उसने जरूर किसी साईट पर यह सब तसल्ली से देखा और सीखा होगा।

कोई 10 मिनट तक गौरी ने लंड चूसा होगा। फिर वह सांस लेने के लिए थोड़ी देर रुकी।
“गौरी मेरी जान! यू आर ग्रेट ! तुम बहुत अच्छा चूसती हो।”

गौरी अपनी प्रशंसा सुनकर मुस्कुराने लगी थी। आज उसने ना तो गला दुखने की बात की और ना ही वीर्य जल्दी नहीं निकलने की कोई शिकायत की। एकबार फिर से उसने थोड़ा शहद मेरे लिंगमुंड पर लगाया और थोड़ा शहद अपनी जीभ पर लगा कर फिर से चूसना चालू कर दिया।

अब वह अलग-अलग तरीकों से लंड चूसने लगी थी कभी-कभी मेरी प्रतिक्रया जानने के लिए मेरी ओर भी देखती और मेरे चेहरे पर आई मुस्कान देखकर वह इस क्रिया को और भी बेहतर ढंग से करने का प्रयाश करने लगी। कभी सुपारे को चाटना, कभी उसपर जीभ फिराना, कभी लंड को जड़ तक मुंह में लेकर चूसते हुए धीरे धीरे बाहर निकालना, कभी उसे दांतों से काटना और फिर दुलारना … कभी गोटियों को सहलाना … आह … गौरी तो आज कमाल कर रही थी।

मैं आँखें बंद किये अपने भाग्य की सराहना करता रहा।

गौरी की 8-10 मिनट की कड़ी मेहनत के बाद लिंग महादेव प्रसन्न हुए और फिर उन्होंने अपना अमृत गौरी को भेंट कर दिया। गौरी तो कब से इस अमृत की प्रतीक्षा कर रही थी। वह इस हलाहल को गटागट पीती चली गयी। उसने वीर्य रूपी प्रसाद का एक भी कतरा बाहर नहीं आने दिया।

जब मेरा लंड कुछ ढीला पड़ गया तो गौरी ने उसे अपने मुंह से बाहर निकाल दिया। फिर उसे एक हाथ में पकड़कर उस पर हल्की सी चपत लगाकर हंसने लगी। साली ये जवान लड़कियां नखरे और अदाएं तो अपने आप सीख लेती हैं।
अब मैंने उसे अपनी बांहों में भरकर अपने पास फिर से सोफे पर बैठा लिया। फिर टेबल पर रखी मीठी इलायची और सुपारी की पुड़िया खोल कर आधी गौरी के मुख श्री में डाल दी और बाकी अपने मुंह में डाल ली। गौरी को अब उबकाई वाली समस्या भी नहीं होगी।

“गौरी! मेरी जान तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद। गौरी तुम सच में इस क्रिया को बहुत अच्छे से करती हो। मधुर भी कई बार करती तो है पर इतना सुन्दर ढंग से नहीं कर पाती।” मैंने उसके सिर पर हाथ फिराते हुए कहा।

अब बेचारी गौरी क्या बोलती वह तो मेरे आगोश में सिमटी बहुत कुछ सोचती ही रह गई।
“वो … चाय नहीं पीनी त्या?”
“गोली मारो चाय को … आज तो तुम अपनी पसंद के पकोड़े बनाओ तब तक मैं नहा लेता हूँ।”
“हओ” गौरी हंसते हुए रसोई में चली गई।

कहानी जारी रहेगी.
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