गुलाब की तीन पंखुड़ियां-17

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

गुलाब की तीन पंखुड़ियां-16

गुलाब की तीन पंखुड़ियां-18

गौरी ने मेरे तनाव में आते लंड को देखा तिरछी नजर से देखा और फिर जमीन की और देखने लगी। अब मैंने अपने लंड को एक हाथ की मुट्ठी में पकड़ा और उसे थोड़ा हिलाते हुए ऊपर नीचे किया। पप्पू महाराज अब अपनी निद्रा से जागने लगे थे।
“गौरी अब तुम इसे अपने हाथों में पकड़ कर इसी तरह थोड़ा हिलाओ।”
मेरे ऐसा कहने पर गौरी ने थोड़ा डरते-डरते और झिझकते हुए मेरे लंड को अपने एक हाथ से छुआ।
“डरो नहीं … ठीक से पकड़कर हिलाओ।”

गौरी अब नीचे उकड़ू होकर बैठ गई और उसने अपनी मुंडी झुकाए हुए धीरे-धीरे मेरे लिंग को अपनी अँगुलियों से पकड़ा और फिर मुट्ठी में लेकर थोड़ा सा हिलाने की कोशिश की। पप्पू महाराज ने अंगड़ाई सी लेनी शुरू कर दी। गौरी की पतली, नाजुक और लम्बी अँगुलियों के बीच दबे पप्पू का आकार अब बढ़ने लगा था। आह … क्या नाज़ुक सा अहसास था।
“शाबश गौरी! इसी तरह ऊपर नीचे करो … हाँ थोड़ा जल्दी जल्दी करो … रुको मत!”

गौरी थोड़ा झिझक जरूर रही थी पर उसने मेरे पप्पू को अब पूरी तरह से अपनी मुट्ठी में पकड़ कर ऊपर नीचे करना चालू कर दिया। जिस प्रकार गौरी इसे मुठिया रही थी मुझे लगा वह कतई अनाड़ी तो नहीं लगती। मेरा अनुभव कहता है उसने किसी का लंड भले ही ना पकड़ा हो पर इसने किसी को ऐसा करते देखा तो जरूर होगा।

पप्पू तो अब अपने पूरे जलाल पर आ गया था, बार-बार ठुमके लगा रहा था। एक-दो बार तो गौरी के हाथ से फिसल गया तो गौरी ने दोनों हाथों से उसे पकड़ लिया और फिर उसे हिलाने लगी।

मेरा मन तो कर रहा था हाथों का झंझट छोड़कर सीधा ही इसके मुखश्री में डाल दूं पर इस समय जल्दबाजी ठीक नहीं थी। चिड़िया अब पूरी तरह जाल में कैद है भाग कर कहाँ जायेगी। अंत: इसे मुंह में लेकर चूसना तो पड़ेगा ही वरना ऐसे हिलाने से तो इसकी मलाई इतना जल्दी नहीं निकलने वाली।

“वो तब नितलेगा?”
“थोड़ा समय तो लगेगा पर तुम जरा जल्दी-जल्दी और प्यार से हाथ चलाओ तो जल्दी ही निकल जाएगा।”
मैंने उसे दिलासा दिलाया। आज मेरे पप्पू का इम्तिहान था। मैंने आपको बताया था ना कि कल रात को गौरी को पढ़ाने के चक्कर में देरी हो गयी थी तो नींद नहीं आ रही थी तो मैंने पप्पू महाराज की तेल मालिश करके सेवा की थी तो आज यह इतना जल्दी झड़ने वाला नहीं लगता।

“शाबाश गौरी बहुत बढ़िया कर रही हो।”
“नितले तब बता देना प्लीज?”
“हाँ … हाँ … तुम चिंता मत करो मैं बता दूंगा तुम मुंह में … मेरा मतलब कटोरी में डाल लेना।”
गौरी ने बोला तो कुछ नहीं पर उसकी लंड हिलाने की रफ़्तार जरूर बढ़ गई।

जब हमारी नई-नई शादी हुई थी तो माहवारी के दिनों में कई बार मधुर इसी प्रकार अपने हाथों से मेरे लंड को हिला-हिला कर इसका जूस निकाला करती थी। बाद में तो उसने चूसना शुरू कर दिया था और जिस प्रकार वह लंड चूसती है मुझे लगता है अगर इस विषय में कोई ऑफिशियल डिग्री होती तो मधुर को जरूर पीएचडी की डिग्री मिलती।

“गौरी मेरी जान तुम बहुत अच्छा कर रही हो … आह … शाबाश … इसी तरह करती जाओ … गुरुकृपा से तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जायेंगे।”
गौरी अब दुगने उत्साह के साथ लंड महाराज की सेवा करने लगी। वह अपने दोनों हाथ बदल-बदल कर लंड हिला रही थी और अब तो उसने उसकी चमड़ी को ऊपर नीचे करना भी शुरू कर दिया था। जब भी वह अपनी मुट्ठी को ऊपर करती तो सुपारा चमड़ी से ऐसे बंद हो जाता जैसे किसी दुल्हन ने शर्माकर घूँघट निकाल लिया हो। और फिर जब वह मुट्ठी को नीचे करती तो लाल रंग का सुपारा किसी लाल टमाटर की तरह खिल उठता।

गौरी अब बड़े ध्यान से मेरे उफनते लंड और सुपारे को देखती जा रही थी। तनाव के कारण वह बहुत कठोर और लाल हो गया था। मेरी आँखें बंद थी और मैं हौले-हौले उसके सिर पर अपना हाथ फिरा रहा था। आज उसने पतली पजामी और हाफ बाजू का शर्ट पहना था। ऊपर के बटन खुले थे और उनमें से उसकी नारंगियाँ झाँक सी रही थी मानो कह रही हो हमें भूल गए क्या? कंगूरे तो तनकर भाले की नोक की तरह हो चले थे।

गौरी को मेरा लंड मुठियाते हुए कोई 8-10 मिनट तो हो ही गए थे पर पप्पू महाराज अपनी अकड़ खोने को तैयार ही नहीं हो रहे थे। वो तो ऐसे अकड़ा था जैसे शादी में दुल्हा किसी नाजायज़ मांग को लेकर मुंह फुलाए हुए बैठा हो।

“ये तो नितल ही नहीं रहा?” गौरी ने अपना हाथ रोकते हुए मेरी ओर देखा।
“ओहो … पता नहीं आज इसे क्या हो गया है? मधुर तो बहुत जल्दी इसका रस निकाल दिया करती है.”
“उनतो तो इसता अनुभव है।”
“गौरी एक काम करो?”
“त्या?” गौरी ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा।
“वो थोड़ा सा नारियल का तेल इसके सुपारे पर लगा कर करो फिर निकल जाएगा?”

गौरी ने हाथ बढ़ाकर तेल की शीशी पकड़ी और थोड़ा सा तेल निकाल कर मेरे लंड के सुपारे पर लगा दिया। और फिर से पप्पू महाराज की पूजा शुरू कर दी।
“गौरी?”
“हम?”
“आज तो यह साला पप्पू लिंग देव बना है बेचारी इतनी खूबसूरत अक्षत यौवना कन्या इतनी देर से पूजा में लगी है और यह प्रसन्न होकर उसे प्रसाद ही नहीं दे रहा। इसे ज़रा भी दया नहीं आती.” कह कर मैं हंसने लगा।
“हट!”

कितनी देर बार गौरी सामान्य हुई थी। लंड तो अब ठुमके पर ठुमके लगा रहा था। और सुपारे पर प्री कम की कुछ बूँदें चमकने लगी थी। गौरी को लगा अब जरूर प्रसाद मिलने वाला है तो इसी आशा में उसने दुगने जोश के साथ पप्पू को उमेठना शुरू कर दिया।

कोई 5 मिनट तक गौरी ने हाथ बदल-बदल कर पप्पू को हिलाया, मरोड़ा और उसकी गर्दन को कसकर मुट्ठी में भींचते हुए ऊपर नीचे किया पर हठी लिंग देव प्रसन्न नहीं हुए अलबत्ता उन्होंने तो रोद्र रूप धारण कर लिया और रंग ऐसा हो गया जैसे क्रोध में धधक रहा हो।
“ये तो नितल ही नहीं लहा? अजीब मुशीबत है?” गौरी ने थक कर हाथ रोक दिए।

“गौरी हो सकता है तुम्हें थोड़ा अजीब सा लगे?”
“त्या?”
“यार … वो पता नहीं तुम मुझे गलत ना समझ बैठो?”
“नहीं … बोलो … ।”
“वो … इसे अपने मुंह में लेकर … अगर थोड़ा सा चूस लो तो … मुंह की गर्मी से 2 मिनट में ही निकल जाएगा।”

मैंने गौरी की ओर आशा भरी नज़रो से देखा। मुझे लगा गौरी ‘हट’ बोलते हुए मना कर देगी।
“पल … वो तो शहद ते साथ मिलातर मुंहासों पर लगाना है ना?”
“हाँ वही तो कह रहा हूँ मुंह में लेने से बहुत जल्दी निकल जाएगा और जब निकलेगा तब मैं बता दूंगा तुम तुरंत उसे पास रखी कटोरी में डाल लेना.”
“हओ …” गौरी को हर बात में हओ बोलने की आदत ने मेरा काम आसान कर दिया।

“एक और बात है?”
गौरी ने मेरी ओर सवालिया निगाहों से देखा।
“इसे कटोरी में डालने की कोई हड़बड़ी या जल्दबाजी मत करना वरना यह नीचे गिर जाएगा तो किसी काम नहीं आएगा। अगर गलती से थोड़ा बहुत तुम्हारे मुंह में भी चला जाए तो उसे थूकना मत। क्योंकि यह तो एक तरह की दवाई है लगाने से ज्यादा पीने पर असर करती है। तुम समझ रही हो ना?”
गौरी ने इस बार ‘हओ’ तो नहीं बोला पर सहमति में अपनी मुंडी जरूर हिला दी।

“गौरी, अब एक काम करो?”
“त्या?”
“तुम थोड़ा शहद अपनी जीभ पर भी लगा लो और थोड़ा मुझे दो मैं इसपर लगा देता हूँ फिर तुम्हें और भी आसानी हो जायेगी।”

अब गौरी कुछ सोचने लगी थी। मेरी उत्तेजना बहुत बढ़ गई थी। पप्पू महाराज जोर-जोर से उछल रहा था। जिस प्रकार गौरी सोचती जा रही थी मुझे लगा ज्यादा देर की तो साला पप्पू इस बार भी चुनाव हार जाएगा। मेरा दिल इतनी जोर से धड़कने लगा था कि मुझे तो डर लगने लगा कहीं यह बीच रास्ते में ही शहीद ना हो जाए। पप्पू तो लोहे के सरिये की तरह कठोर हो गया था।

गौरी ने एक चम्मच शहद अपने मुखश्री के हवाले किया और बाकी से मैंने अपने पप्पू का अभिषेक कर दिया।

गौरी ने पप्पू को अपने एक हाथ में पकड़ लिया। पप्पू ने जोर का ठुमका लगाया तो गौरी ने उसकी गर्दन कसकर पकड़ ली और फिर सुपारे की ओर पहले तो गौर से देखा। ओह्ह्ह … उसने इतने चिकने, मांसल और कठोर लण्ड के अधखुले सुपारे की चमड़ी ऊपर खींच कर उसे पूरा खोल दिया। गुलाबी सुर्ख सुपारा जिसके बीच में छोटा छेद और उस पर प्री कम की बूँद।

और फिर उसने अपनी जीभ उस पर लगा दी। एक गुनगुना सा लरजता गुलाबी अहसास मेरे सारे शरीर में दौड़ गया। गौरी ने पहले तो मेरे सुपारे पर अपनी जीभ फिराई और फिर पूरे सुपारे हो मुंह में भर लिया। और फिर दोनों होंठों को बंद करते हुए उसे लॉलीपॉप की तरह बाहर निकाला।

प्यारे पाठको और पाठिकाओ! मेरी जिन्दगी का यह सबसे हसीन लम्हा था। मैं सच कहता हूँ मैंने लगभग अपनी सभी प्रेमिकाओं को अपना लिंगपान जरूर करवाया है पर जो आगाज (शुरुआत) गौरी ने किया है मुझे लगता है उसका अंजाम बहुत ही अनूठा, रोमांचकारी, हसीन और अविस्मरणीय होने वाला है।

गौरी ने दो-तीन बार सुपारे पर अपनी जीभ फिराई और फिर उसे अपने मुंह में लेकर अन्दर बाहर किया। फिर उसने चूसकी (लम्बी गोल आइस कैंडी) की तरह मेरे लंड को चुसना शुरू कर दिया। मैंने उसका सिर अपने हाथों में पकड़ लिया। जिस प्रकार वह मेरे लंड को चूस रही थी मुझे शक सा होने लगा कहीं इसने ऐसा अनुभव पहले तो किसी के साथ नहीं ले रखा है?

आप सभी तो बड़े गुणी और अनुभवी हैं। आप तो जानते ही हैं लंड चूसना भी एक कला है। होठों के बीच दबा कर जीभ से दुलारना या हौले से दांत गड़ाने में बड़ा मजा आता है। या वेक्यूम क्लीनर की तरह पूरा का पूरा लंड मुंह में लपेट गले की गहराई में उतार मलाईदार दूध चखने का अपना ही मज़ा है।

पहले जमाने में तो लड़कियां अपनी नव विवाहित सहेलियों या भाभियों से उनके अनुभव सुनकर ही यह सब सीखती थी पर आजकल तो पोर्न फ़िल्में देख कर सभी लड़कियां शादी से पहले ही इस कला में माहिर हो जाती हैं। अब यह मात्र एक संयोग है या कोई दीगर बात है साली इस तोतापरी ने यह कमाल और कला कहाँ से सीखी होगी पता नहीं।

गौरी की चुस्कियों की लज्जत से मेरा लंड तो जैसे निहाल ही हो गया। मैंने उसका सिर अपने हाथों में पकड़ रखा था और मेरी कमर अपने आप थोड़ी-थोड़ी चलने लगी। इससे मेरा लंड आसानी से गौरी में मुखश्री में अन्दर बाहर होने लगा था। इस मुख चोदन का अहसास और रोमांच के मारे मेरी सीत्कार सी निकलने लगी थी।

गौरी ने अपना मुंह थोड़ा सा ऊपर करके मेरी ओर देखा था। शायद वह मेरी प्रतिक्रया देखना चाहती थी कि मुझे यह सब कितना अच्छा लग रहा है और वह ठीक से कर पा रही है या नहीं।

“गौरी मेरी जान! बहुत अच्छा कर रही हो बस थोड़ी देर और ऐसे ही सुपारे पर अपनी जीभ घुमाओ और अन्दर बाहर करो तो निकल जाएगा। नीचे गोटियों को भी दबाओ तुम्हें बहुत अच्छा लगेगा। आह … यू आर डूइंग ग्रेट!”

गौरी अपनी प्रशंसा सुनकर अब इस क्रिया को और बेहतर करने की कोशिश करने लगी थी। पहले तो वह सुपारा ही अपने मुंह में ले रही थी अब तो उसने गले तक मेरा लंड लेना शुरू कर दिया था। धीरे धीरे वो मेरे लंड को इतनी तेज़ी से चूसने और चाटने लगी कि उसका चेहरा इस तरह से नशीला नज़र आने लगा जैसे उसने दारू पी रखी हो।

उसके पतले और मखमली होंठों का स्वाद चख कर तो मेरा लंड जैसे धन्य ही हो गया। मैं सच कहता हूँ लंड चुसाई में जो लज्जत है वह चूत और गांड में भी नहीं है। इस नैसर्गिक आनन्दमयी क्रिया का कोई विकल्प तो हो ही नहीं सकता। काश वक़्त रुक जाए और गौरी इसी प्रकार मेरे लंड का चूषण और मर्दन करती रहे।

मेरे कंजूस पाठको और पाठिकाओ, आमीन तो बोल दो।

गौरी अब कुछ ज्यादा ही जोश में आ गई थी। उसने मेरे लंड को पूरा जड़ तक अपने मुंह में लेने की कोशिश कि तो सुपरा उसके हल्क तक चला गया इससे उसे थोड़ी खांसी आने लगी और फिर उसने मेरा लंड अपने मुंह से बाहर निकाल दिया।

“मेला तो गला दुखने लग गया?” गौरी ने अपना गला मसलते हुए कहा।
“गौरी जल्दबाजी मत करो धीरे-धीरे जितना आसानी से अन्दर ले सको उतना ही लो। गौरी तुम लाजवाब हो … बहुत अच्छा कर रही हो। बस निकलने ही वाला था कि तुमने बाहर निकाल दिया। अबकी बार निकल जाएगा शाबाश … इसी तरह कोशिश करो। मैं सच कहता हूँ इतना अच्छा तो मधुर भी नहीं करती।”

गौरी ने अपनी तुलना मधुर से होती देख एकबार फिर से पप्पू को दुगने जोश के साथ चूसना चालू कर दिया। मुझे लगने लगा अब मैं ज्यादा तनाव सहन नहीं कर पाऊंगा और जल्दी ही झड़ जाउंगा। मेरा मन तो कर रहा था जोर-जोर से अपने लंड को उसके मुंह में अन्दर बाहर करूं पर मुझे डर था कहीं गौरी बिदक ना जाए या उसे फिर से खांसी ना जाए। और अगर इस कारण उसे असुविधा हुई और उसने फिर आगे लंड चूसने से मना कर दिया तो आज लौड़े लगेंगे नहीं अलबत्ता झड़ जरूर जायंगे।

गौरी अपनी लपलपाती जीभ से मेरे लंड को कभी चाटती कभी चूसती कभी पूरा अन्दर लेकर बाहर तक खींचती। इस लज्जत को शब्दों में बयान करना कहाँ संभव है।
मेरे शरीर में वीर्य स्खलन से पहले होने वाले रोमांच की एक लहर सी दौड़ने लगी। मुझे लगा अब वीर्य निकलने का आखिरी पायदान नजदीक आ गया है। मैंने गौरी को कहा तो था कि जब निकलेगा मैं बता दूंगा और तुम इसका रस कटोरी में डाल लेना पर मैं अब इस लज्जत को इस प्रकार खोना नहीं चाहता था। मैं चाहता था गौरी मेरे सारे वीर्य को पूरा निचोड़कर चूस ले और इसे अपने हल्क के रास्ते उदर (पेट) में उतार ले।

दोस्तो! प्रकृति बड़ी रहस्यमयी है। हर नर अपना वीर्य मादा की कोख में ही डालना चाहता है। और वीर्य स्खलन के समय उसका हर संभव प्रयास यही रहता है कि वीर्य का एक भी कतरा व्यर्थ ना जाए और किसी भी छेद के माध्यम सीधा उसके शरीर के अन्दर चला जाए अब वह छेद चाहे चूत का हो, गांड का हो या फिर मुंह का हो क्या फर्क पड़ता है। इसीलिए स्खलन के समय नर अपनी मादा को कसकर भींच लेता है और अपने लिंग को उसके गर्भाशय के अन्दर तक डालने का प्रयास करता है।

और मेरी प्रिय पाठिकाओ और पाठको! मैं भी तो आखिर एक इंसान ही तो हूँ मैं भला प्रकृति के नियमों के विरुद्ध के जा सकता था? मुझे लगा मेरा तोता अब उड़ने वाला है तो मैंने गौरी का सिर अपने हाथों में कसकर पकड़ लिया और अपने लंड को उसके कंठ के आखिरी छोर तक ठेल दिया।

गौरी के हल्क से गूं-गूं की आवाज निकलने लगी और थोड़ा कसमसाने लगी थी। मुझे लगा वह मेरे लंड को बाहर निकाल देगी और मैं प्रकृति के इस अनूठे आनन्द को भोगने से महरूम (वंचित) हो जाऊंगा। मैं कतई ऐसा नहीं होने देना चाहता था। मैंने उसका सिर अपने हाथों में और जोर से जकड़ लिया।

“गौरी मेरी जान … प्लीज हिलो मत … प्लीज गौरी आह … मेरी जान गौरी … आह … मेरा निकलने वाला है … इसे बाहर मत निकलने देना … तुम्हें मेरी कसम … प्लीज … तुम इसे दवाई या लिंग देव का प्रसाद समझ कर पी जाओ … मेरी जान … आई लोव यू गौ …र.. र … रीईईईई … आईईईईइ …!!!

और फिर मेरे लंड ने पिचकारी मारनी शुरू कर दी। गौरी ने अपने हाथों को मेरी कमर और जाँघों पर लगाकर मुझे थोड़ा धकलते हुए अपना सिर मेरी गिरफ्त से छुड़ाने की भरसक कोशिश की पर वह इसमें सफल नहीं हो पाई। और मेरा गाढ़ा और ताज़ा वीर्य उसके कंठ में समाता चला गया। अब उसके पास इसे पी जाने के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं बचा था। गौरी गटा-गट सारा वीर्य पी गई।

मेरा लंड 5-6 पिचकारियाँ मारकर अब फूल और पिचक रहा था। मेरी साँसें बहुत तेज़ हो गयी थी। मुझे लगा गौरी का को शायद सांस लेने में परेशानी हो रही है। उसके मुंह से अब भी गूं-गूं की आवाज निकल रही थी।
“गौरी आज तुमने मेरी शिष्या होने का अपना फ़र्ज़ पूरा कर दिया। मैं तुम्हारा बहुत आभारी हूँ मेरी जान … तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद। गौरी यू आर ग्रेट।”

मेरा लंड अब थोड़ा ढीला पड़ने लगा था और मेरी गिरफ्त भी ढीली हो गई थी। गौरी ने इसका फ़ायदा उठाया और उसने मेरा लंड अपने मुंह से बाहर निकाल दिया। और अब वह खड़ी होकर जोर-जोर से खांसने लगी और तेज़-तेज सांस लेने लगी।

मुझे लगा गौरी अब जरूर यह शिकायत करेगी कि मैंने जबरदस्ती अपना वीर्य उसके मुंह में निकाल दिया। इससे पहले कि वह संयत हो मैंने उसका सिर अपने हाथों में पकड़ कर उसके होंठों को चूमने लगा। एक शहद भरी मिठास और गुलाब की पंखुड़ियों जैसा अहसास के एकबार फिर से पुनरावृति होने लगी। फिर मैंने कई चुम्बन उसके होंठों गालों और माथे पर ले लिए।

फिर मैंने उसे अपने बाहुपाश में भरकर अपने सीने से लगा लिया। और धीरे-धीरे उसके सिर और पीठ पर हाथ फिराने लगा। उसके दूद्दू मेरे सीने से लगे थे और उसके दिल की धड़कन मैं साफ़ सुन सकता था। आह … उस दिन सुहाना के उरोज भी तो ऐसे ही मेरे सीने से लगे थे। दोनों में कितनी समानता है।

गौरी कुछ बोलने का प्रयास कर रही थी पर इससे पहले कि वह कुछ बोले या शिकायत करे मैंने कहा- गौरी, आज तुमने अपने गुरु की लाज रख ली। मैं तुम्हारा यह उपकार जीवन भर नहीं भूलूंगा। सच में गौरी आज तुमने मुझे वह सुख दिया है जो एक पूर्ण समर्पिता प्रेयसी या शिष्या ही दे सकती है। इसके बदले तुम कभी मेरी जान भी मांगोगी तो मैं सहर्ष दे दूंगा।

अब बेचारी के पास तो बोलने के लिए कुछ बचा ही नहीं था। वह तो बस बुत बनी जोर-जोर से सांस लेती मेरे सीने से लगी बहुत कुछ सोचती ही रह गई। मैंने उसके सिर, कन्धों, पीठ और नितम्बों पर ऐसे हाथ फिराया जैसे मैं उसके इस ऐतिहासिक और साहसिक कार्य पर उसे सांत्वना और बधाई दे रहा हूँ।

मेरा मन तो आज उसके साथ नहाने का भी कर रहा था। मौक़ा भी था और दस्तूर भी था पर मैंने इसे अगले सोपान में शामिल करने के लिए छोड़ दिया।
“गौरी … एक बार तुम्हारा फिर से धन्यवाद … अगर भगवान् ने चाहा तो इस दवा से बस दो दिनों में ही तुम्हारे सारे मुंहासे ठीक हो जायेंगे। मैं बाहर जा रहा हूँ पहले तुम फ्रेश हो लो, फिर मैं भी नहा लेता हूँ फिर दोनों तुम्हारी पसंद का नाश्ता करते हैं।”

आज तो बेचारी गौरी ‘हओ’ बोलना भी भूल गई थी।

मैं अपना बरमूडा पहन कर बाहर आ गया।

अथ श्री लिंग दर्शन एव वीर्यपान सोपान इति !!!

मेरे प्रिय कंजूस पाठको! आप मुझे अष्टावलेह (वायनाड) फ़तेह की बधाई भी नहीं देंगे क्या? एक मेल तो बनता ही है।

कहानी जारी रहेगी.
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