गाँव के मामा का सपना-2

नमस्कार मित्रों, मेरी कहानी के पिछले भाग
गाँव के मामा का सपना-1
में आपने पढ़ा कि रवि मामा के लंड की तलब ने मुझे पागल सा कर दिया था और कई साल के इंतज़ार के बाद मैं उनसे अपने दिल की बात कह पाया था. अब मामा भी अपने लंड की मस्त चुसाई करवाना चाहते थे.

हम लोग फॉर्म हाउस से लगभग 300 मीटर दूर खड़े होकर अपनी रंगरेलियों में मशगूल थे.

>अब तो मुझ पर खुमार सा चढ़ गया था मैंने बिना देर किये लंड के गर्म सुपारे को अपने मुँह में भर लिया और लौड़ेपॉप की तरह चाटने लगा. रवि मामा भी मानो पागल ही हो गए थे. वो ज़ोर ज़ोर से कुछ बड़बड़ाते हुए आनन्द ले रहे थे.

लेकिन उनका बड़बड़ाना, हमारे लिए महंगा पड़ गया. जैसा कि हम लोग खेत के पास ही थे, इसलिए आवाज़ से नानाजी की नींद खुल गयी, वो खड़े हुए और खांसते हुए उन्होंने अपनी टॉर्च चालू कर दी.

हम लोग तुरंत सम्भल गए और सही स्थिति में आ गए. नानाजी चारों तरफ टॉर्च की रोशनी से देखने लगे, लेकिन वे हमें नहीं देख पाए. क्योंकि हमलोग उनसे लगभग 200 मीटर की दूरी पर थे और टॉर्च छोटी थी. रवि मामा खुद बोले- ताऊजी जग रहे हो क्या अभी तक.. सोये नहीं? तभी नानाजी ने हमारी तरफ अपनी टॉर्च चमकाई और बोले- लव भी आ गया तेरे साथ.. गांव में नहीं सोया? बातचीत तो सब गयी भाड़ में लेकिन दिमाग की माँ बहन हो चुकी थी. रवि मामा का लंड झटके मार रहा था और मैं उसके काम रस को पीने को उतावला था. लेकिन अब कुछ भी हो पाना असंभव था. रवि मामा अपने खेत वाले घर पर चले गए और मैं नानाजी के नज़दीक खटिया लगा कर सो गया.

अब तो शेर की जुबान पर खून लग चुका था और शिकार होना तो अब तय ही था. आज नहीं हो पाया तो कल होगा लेकिन होगा ज़रूर. हम दोनों ही किसी मौके के इंतज़ार में थे और अब तो हम दोनों ही उस दिन की कल्पना करते ही पागल से हो जाते थे. रवि मामा का लंड तुरन्त खड़ा हो जाता और मैं भी उसे पाने की चाहत में डूब जाता. जैसा कि मैं बता चुका हूँ कि उस समय हर शाम शादियों में जाना होता था इसलिए अगली रात फिर वही हुआ. मुझे और रवि मामा को साथ ही खेत पर आने का मौका मिला. मेरे सगे मामाजी शादी से लौटते हुए आज भी गांव में ही रुक गए. मैं और मेरा जवान सपनों का राजकुमार … हम दोनों गांव से खेत की तरफ रवाना हुए. लेकिन आज हम लोग मोटर साइकिल पर थे. गर्मी की खूबसूरत काली रात और काले ही लंड वाला मेरा राजकुमार.

कल रात रवि मामा ने अपना लंड मेरे हाथों में देकर मानो मेरे दिलो दिमाग में हवस की चिंगारी डाल दी थी, जो कि इस सुनसान अंधेरी रात में अकेले रवि मामा के कड़क मज़बूत जिस्म और मस्त चुदाई सोचकर अब आग की तरह धधकने लगी थी. अभी तो हम लोग गांव भी पार नहीं कर पाए थे और मेरे लिए अपने आप को संभालना मुश्किल हो रहा था. गांव था और जगह जगह ब्रेकर थे, इसलिए गाड़ी धीरे ही चल रही थी. प्रत्येक ब्रेकर पर आने वाले झटके से मैं अपनी नाक उनकी जवान मर्दाना पीठ से टच करता और लंबी सांस लेते हुए उस मस्त मर्द की मदहोश खुशबू को अपने मंम समा लेता. रवि मामा के जिस्म की खुशबू मुझे मानो बेकाबू कर रही थी.

रोड के दोनों ओर बने घरों की लाइटें बन्द हो चुकी थीं और सब लोग सो चुके थे. लेकिन जैसा कि शादी का सीजन था, इसलिए कई घरों में लोगों का आना जाना चल भी रहा था. मेरी हवस के सामने लोगों का डर अब कमज़ोर पड़ने लगा था. मैं लगातार उस मेहनती मज़बूत जिस्म के नज़दीक जा रहा था और मूसल से लंड को अपने गले तक उतार लेना चाहता था. मेरी हरकत को देखते हुए रवि मामा ने कहा- यार अभी गांव है, अभी कोई हरकत मत कर … बस 5-10 मिनट की बात है, रुक जा. उनकी बात सुनकर मैंने अपने आपको संभालते हुए थोड़ा पीछे सरका दिया. बचपन से लेकर आज तक मैंने कई बार रवि मामा के कड़क मेहनती जिस्म को बिना कपड़ों के देखा.

कभी नहर में नहाते हुए.. तो कभी घर में कपड़े बदलते हुए. कई बार खूंटी पर टंगे उनके कपड़ों को सूंघते हुए उनके मर्दाना जिस्म और गांडफाड़ू चुदाई को महसूस करते हुए मुठ मारी थी. कई बार नहाते हुए उनकी पीठ का मैल निकालने के लिए रगड़ने के बहाने छुआ और कड़क मर्दाना बालों वाली छाती के उभार को छुआ था. कई बार उनके बिना धुले उतारे हुए गीले अंडरवियर को उल्टा करके अंडरवियर के लंड वाले हिस्से में उनके वीर्य और मूत्र की बूंदों को ढूंढने की कोशिश की और उसकी मदहोश महक से अपना होशोहवास खोया था. ये सभी दृश्य मेरे दिमाग में खलबली मचाते हुए मुझे उकसा रहे थे और मुझे झकजोर रहे थे कि ये वही मर्द है, जिसके लंड और जिस्म की कल्पना भी तुझे पागल कर देती थी और जिसकी अंडरवियर भी तुझमे कामुकता पैदा कर देती थी … वही मर्द आज तेरे साथ है.

इस दिमागी उथल पुथल के कारण मैं अपने आपको रोक नहीं पाया और दुनिया को बेशर्मी दिखाते हुए अगले 2 मिनट में ही अपना हाथ गाड़ी चलते हुए मामा के लंड के उभार पर रख दिया. जबकि अभी गांव खत्म भी नहीं हुआ था. लेकिन मामा ने अबकी बार कोई एतराज़ नहीं किया और मैंने हल्के-हल्के पेंट के ऊपर से ही लंड को सहलाना शुरू कर दिया. बस 2-3 मिनट में ही गांव खत्म हुआ और हम लोग गांव से बाहर पहुँच गए. मानो अब हम आज़ाद हो गए थे, कोई हमें देखने वाला नहीं था और शायद अब हम दोनों ही अश्लीलता पर उतर जाने को आतुर थे. लंड के उभार को सहलाने से लंड बिल्कुल किसी कड़क लोहे की रॉड की तरह तन चुका था, जो कि सादे फॉर्मल पैन्ट पर से पकड़ने और सहलाने में काफी आसान था. इसके अलावा अब में मामा की पीठ से लिपट चुका था.

मेरा दूसरा हाथ मामा की छाती पर था और मैं मामा के कान के पास जाकर अपने मुँह से आह.. आह.. सी.. सी.. की अश्लील आवाजें निकाल रहा था. मानो मामा ने मेरी गांड में मोटा लंबा लंड डाल दिया हो. और यह सब अपने आप ही हो रहा था, मैं ऐसा सब कुछ सोच समझकर नहीं कर रहा था. इस वक्त मेरी इन कामुक आवाजों से मानो मैं मामा को चुदाई के लिए उकसा रहा था. मामा बोले- हाय जान फंस गया क्या लंड गांड में.. दर्द हो रहा है.. इसी दर्द में तो मज़ा है बाबू… बस 10 मिनट और रुक जा.. खेत पर पहुंच जाएं बस.. फिर इस लंड ने तेरी गांड का भोसड़ा न बना दिया तो बोलना. भागेगा फिर तू इस शेर से.. अभी तो उकसा रहा है.

यह कहते हुए उन्होंने अपने एक हाथ पीछे लाते हुए मेरी गांड मसलते हुए एक ज़ोर की चिमटी काट दी. हाय मेरी गांड पर उनका कड़क हाथ लगते ही मुझे तो मज़ा ही आ गया था. मामा की इतनी सेक्सी गन्दी बातें सुनकर मैं अपने आपे से बाहर होने लगा और मैंने मामा के पेन्ट को खोलकर लंड को बाहर निकालने की कोशिश शुरू कर दी, लेकिन चलती बाइक में लंड निकलना मुश्किल था. ऊपर से रोड पर हर 2-3 मिनट में एक मोटरसाइकिल हमारे नज़दीक से गुजरती थी. लेकिन हवस और जवान लंड की प्यास ने मेरा हर डर खत्म कर दिया था. मेरी कोशिशों को देखकर मामा से भी रहा नहीं गया और उन्होंने चलती बाइक पर ही खड़े होकर अपना पैन्ट खोल दिया और अपनी सीट पर वापस बैठकर अपना खीरे सा मोटा लंड मेरे हाथ में पकड़ाते हुए कहा- ले घुसा ले बम्बू अपनी गांड में अब.

मैं डर गया, मामा का मोटा लंड बिल्कुल खुला हुआ बाइक की टंकी से बैठकर आसमान को सलामी दे रहा था और हम लोग अभी भी रोड पर ही थे. हालांकि हम लोग अगले 3-4 मिनट में ही मेन रोड से अपने खेत के कच्चे रस्ते पर मुड़ जाने वाले थे और रात का अंधेरा भी था. लेकिन डर फिर भी लग रहा था. मैं भी बिल्कुल बेशर्म हो चुका था. मैंने अपने दोनों हाथों से पीछे बैठे बैठे ही उस जवान मर्द का तंदरुस्त लंड किसी कार के गियर की तरह दोनों हाथों से पकड़ लिया और आगे पीछे करते हुए मालिश करने लगा. जिससे उनका मज़ा सातवें आसमान पर पहुँच गया और वो ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ करते हुए कराहने लगे. ड्रामेबाज़ तो खैर वो भी कम नहीं थे.

अगले 3-4 मिनट में हम लोग मेन रोड से अपने खेत जाने वाले कच्चे रोड की तरफ मुड़ते हुए बिल्कुल बेखौफ और ज़्यादा अश्लील हो गए. क्योंकि गर्मी के दिनों में फसल न होने के कारण खेतों में कोई नहीं होता और यहां पर कोई मोटरसाइकिल या कार अब नहीं आने वाली थी. अब मैं एक हाथ से लंड को मसलते हुए दूसरे हाथ से उनके मोटे मोटे आन्डों को खुजाने लगा. मामा कभी बाइक पर खड़े हो जाते, तो कभी बैठ जाते, तो कभी एक हाथ पीछे लेकर मेरी छाती के उभार को मसल देते. मानो वो मोटरसाइकिल पर करतब दिखा रहे थे.

उनकी इस चुदाई की इच्छा भरी कामुक मस्ती के जवाब में मैं भी अपना करतब दिखाने को व्याकुल था.. क्योंकि वासना की आग उनसे ज़्यादा मुझमें लगी हुई थी. बिना कुछ सोचे समझे मैं तुरंत ही खड़ा हो गया और अपने दोनों पैर एक ही तरफ के पैरदान पर रखते हुए बाजू से अपनी मुंडी उनके हैंडल पकड़े हुए हाथ के ऊपर से होते हुए मोटे लंड के मशरूम से सुपारे को अपने मुँह में भर लिया. इससे उनका मज़ा दोगुना हो गया और वो कराहते हुए कहने लगे- आह.. मज़े ला दिए रे तूने. साथ ही मेरे इस करतब को देखकर वो आश्चर्य में थे और शायद नाराज़ भी क्योंकि हम लोग गिर सकते थे. मैं बाइक के छोटे से पैरदान पर बड़ी मुश्किल से अपने दोनों पैर रखकर खड़ा हो पाया था.. इसलिए सिर्फ 2-3 सेकेंड ही लंड मुँह में रख पाया था.

इस सबके दौरान हमारे गिरने का खतरा देखते हुए मामा ने बाइक रोक दी, मामा बैठे रहे, मैं बाइक से उतरा और तुरन्त ही लंड के मोटे गुलाबी सुपारे को अपने मुँह में एक बार फिर भर लिया, जिससे आनन्द में डूबते हुए वो अपनी सीट पर वैसे के वैसे ही पीछे की ओर लेट गए और कराहने लगे. मैं भी इतनी आसानी से किसी को मज़े नहीं देता हूँ. उनके आराम की मुद्रा में आते ही मैंने अपने मुँह से लंड का सुपाड़ा बाहर निकाल दिया और उनके आन्डों को खुजाने में लग गया. जिससे वो चुसाई को तड़पने लगे. अब यदि जगह पर ध्यान दिया जाए, तो ये लगभग वही जगह थी, जहां पर कल हम लोगों ने कांड किया था और हम लोग फार्म हाउस से सिर्फ 300 मीटर ही दूर थे, जहां नानाजी सो रहे थे.

इसके अलावा आज हम लोग मोटरसाइकिल से थे, जिसकी आवाज़ से नानाजी के जागने का डर भी आज ज़्यादा था और मोटरसाइकिल की लाइट से भी नानाजी को हमारे आने का एहसास हो सकता था. हमारी मोटरसाइकिल अब बन्द हो चुकी थी और आज एक बार फिर हमलोग एक दूसरे के जिस्म और लंड-गांड में डूब जाने को तैयार थे. लेकिन तभी मुझे नानाजी के जाग जाने का ध्यान आया और हम लोगों ने कल की तरह गलती न करने की नसीहत लेते हुए रवि मामा के फार्म हाउस जाने का फैसला लिया क्योंकि आज हम लोग किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहते थे. लेकिन चिंता इस बात की थी कि यदि हम लोग मोटरसाइकिल को स्टार्ट करते हैं तो उसकी आवाज से नानाजी जाग जाने वाले थे.

यह बात शत प्रतिशत पक्की थी. लेकिन आज हम लोग किसी भी प्रकार की रिस्क नहीं लेना चाहते थे. इसी लिए हम लोगों ने मोटरसाइकिल को बिना स्टार्ट किये ही धकेलते हुए ही रवि मामा के फार्म हाउस तक जाने का निर्णय लिया. मामा ने हैंडल पकड़ा और मैंने पीछे से धक्का दिया और जल्दी ही हम लोग रवि मामा के फार्म हाउस पहुँच गए. पास ही के बाड़े में गायें बंधी हुई थीं, जिन्होंने हमारे आने पर रंभाते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई. मामाजी ने ताला खोला और हम लोग अन्दर दाखिल हुए. जैसा कि वह खेतों के पास बना हुआ फार्म हाउस था इसलिए ज़्यादातर सामान अस्त व्यस्त पड़ा हुआ था.

एक पीले बल्ब की हल्की रोशनी में कुछ अनाज की भरी बोरियां और एक खटिया, जिस पर कल रात का बिस्तर और मच्छरदानी पड़ी हुई थी, दिखाई दे रहे थे. वहां का माहौल बिल्कुल किसी पोर्न फ़िल्म के दृश्य जैसा था, जिसमें चुदाई के चक्कर में दो जिस्मों ने किसी सुनसान रात में कोई अस्त व्यस्त सा फार्म हाउस ढूंढ लिया हो और हल्की रोशनी में मानो भारी चुदाई होने की तैयारी हो. मेरी करतूतों की वजह से मामा का लंड बिल्कुल कड़क हो चुका था. अपना पैन्ट और अंडरवियर तो वह मोटरसाइकिल पर ही खोल चुके थे, जिसे बाइक से उतरकर फिर से पहनने की बजाय उन्होंने पूरी तरह से अपने जिस्म से अलग करके फेंक दिया, मानो अब वह लंड और चुदाई के बीच में किसी और को नहीं आने देना चाहते हों. अब मामा कमर से नीचे बिल्कुल नंगे हो चुके थे और उनका मोटा ताज़ा अकड़ू लंड बिल्कुल सीधा छत को सलामी दे रहा था. लेकिन यह क्या.. मामा ने पास ही में रखी पानी की बाल्टी उठाई और गाय के मुँह के आगे ले जाकर रख दिया. इसी तरह कई बार वह बाल्टियां भरने गए और गायों को चारा भी डाला.

जैसा कि गर्मी का मौसम था और हमारी रंगरलियों से पहले भूखे प्यासे जानवरों को खिलाना पिलाना भी ज़रूरी था. वैसे यह मेरे लिए बिल्कुल नया था. आज पहली बार उन्हें नग्न अवस्था में तने हुए मूसल से लंड लिए काम करते देख रहा था. वह बिल्कुल सामान्य तरीके से अपना काम कर रहे थे. लेकिन उनका लुक एक गांव के जवान देसी चोदू ग्वाले जैसा लग रहा था, जो नग्न अवस्था में पशुओं को खाना पानी दे रहा था. मौका पाकर मैंने उनकी शर्ट को भी निकाल दिया, जिससे मेहनती जिस्म वाला वह ग्वाला बनियान में बिल्कुल नग्न होकर कहर ढा रहा था. मामा के इस लुक को देखकर मैं वासना के सागर में डूब गया और उनके लंड की प्यास में उनके आगे पीछे घूमने लगा. वो काम कर रहे थे और मैं उनका लंड सहला रहा था. जब वो बाल्टी लेकर चलने लगते, तो मैं लंड को छोड़ देता और जब उस बाल्टी का पानी गाय पीती, तब तक मैं उनके लंड को सहलाता और मौका मिलने पर एक दो बार चूस भी लेता.

हम लोग बिल्कुल असामान्य क्रियाकलाप कर रहे थे, जिन्हें सोचकर भी हँसी आ जाए लेकिन यह सभी क्रियाकलाप मानो हमारी वासना की आग में घी डालने का काम कर रही थीं. मैं तो मानो अपनी पूरी ज़िन्दगी भर की कसर निकलने में लगा हुआ था. जिन कामों को करते हुए देखकर मैं मामा के काल्पनिक लंड की सोच में डूबकर तरसता रहता था. आज वही जिस्म और चोदू लंड मेरी मुट्ठी में था. अब काम खत्म हुआ, तेज़ गर्मी के चलते मामा ने पंखे का बटन दबा दिया और पास ही रखी खटिया के अस्त व्यस्त से बिस्तर पर जाकर धड़ाम से लेट गए और अपने बम्बू से तने लंड को पकड़कर हिलाते हुए बोले- सुकून नहीं था ना लंड लिए बिना तुझे, ले.. अब इसके साथ जो करना है कर ले. मैं तो इंतज़ार ही कर रहा था उनके काम खत्म होने का, इसलिए मैं तुरन्त उनके बगल में खटिया पर बैठ गया और उनके खीरे से मस्त लंड की चमड़ी को पीछे की ओर खींचते हुए गहरे लाल सुपारे को बेपर्दा कर दिया और अपने दूसरे हाथ से उनकी मज़बूत बालों वाली छाती को सहलाने लगा. अब लिंग के सुपारे पर अपनी नाक को रखकर लम्बी सांस ली, जिससे लंड की महक मेरे रोम रोम में समा गयी. ऐसा करते हुए मैं उनके आंडों को लगातार खुजा रहा था.

जिससे मिलने वाला आनन्द उनके चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था. अब वह मेरी जीन्स को खोलने की कोशिश करने लगे, जिसमे मैंने उनकी मदद करते हुए अपनी जीन्स का बटन और चैन खोल दी. मेरा खोलना ही हुआ की उन्होंने मेरी अंडरवियर में हाथ घुसाते हुए मेरी चिकनी गांड को सहलाना शुरू कर दिया. काम करते हुए और गायों को पानी पिलाते हुए उनके हाथ पानी से काफी ठंडे हो चुके थे. इतनी गर्मी में उनके ठंडे हाथों की छुअन ने मेरे शरीर में सनसनी पैदा कर दी और मेरी गांड अकड़ने लगी. लिंग से नाक छूने से उनकी कामुकता और भी बढ़ गयी औऱ उन्होंने अपने एक हाथ से मेरे बाल पकड़कर एक तेज़ धक्के के साथ अपना लंड मेरे गले तक उतार दिया.

मामा अपने दांतों को आपस में भींचते हुए बोले- अब लंड को तड़पा मत, घुसा ले इसको. लेकिन उस मोटे लंड से मेरा दम घुट रहा था और मेरा सांस लेना भी मुश्किल था. मैंने लंड को मुँह से बाहर निकालने की कोशिश की, लेकिन उनके मज़बूत हाथ के दबाव के आगे मेरी एक ना चली और मैं घबराकर तड़पने लगा. मैंने मामा का ये रूप कभी नहीं देखा था, आखिर मामा थे, वो ऐसा कैसे कर सकते थे.

एक पल के लिए यह सोचते हुए मैंने ज़ोर से अपना सिर हिलाया, जिससे उनकी पकड़ कमज़ोर हुई और मैंने तुरन्त मोटा लंड अपने मुँह से निकलते हुए चैन की सांस ली और कहा- जान लोगे क्या मेरी.. दम घुट गया यार! ‘सॉरी यार..क्या करूँ… कंट्रोल नहीं हुआ मुझसे… बहुत ज़्यादा ही चुदास चढ़ गयी है यार. तूने ही तो रास्ते में इस लंड को सहला सहलाकर बम्बू बना दिया था न.’ मैं उनकी बेकरारी का मजा भी लेने लगा था. ‘क्या करूँ अब… रहा ही नहीं जाता.. चल पीछे मुड़ और थोड़ा झुक जा.. आज तू देख तेरे मामा की चुदाई.. मस्त हो जाएगी तेरी गांड..’ ये कहते हुए उन्होंने अपने मज़बूत किसानी हाथों से मेरी गांड को मसल दिया. वाह क्या आनन्द था. दिल कर रहा था कि इसी तरह बस मेरी गांड को मसल-मसल कर मामा इसकी चटनी बना दें. लेकिन मैं आज तक भी गांड में लंड लेने से डरता हूँ, इसीलिए मैंने मना कर दिया और कहा कि जो करना है मुँह में ही कर लो.

मामा अब बहुत ज़्यादा तड़पने लगे थे और उनका लंड हर 2-3 सेकेंड में झटके से ऊपर की ओर उठ जाता था, जो कि गम्भीर चुदाई को तरस रहा था. मैं भी अपनी ज़िन्दगी के इस अनमोल पल को पूरी तरह से जीना चाहता था. मेरे गांड में लंड न लेने की बात को वह मान तो गए लेकिन बिल्कुल गांड ही ही तरह मुख की चुदाई का आग्रह करने लगे, जिसे मैंने सहर्ष स्वीकार किया. अब पोजिशन की तैयारी की गयी. दीवार के सहारे रखी अनाज की बोरियों पर मामा बैठ गए और अपने सामने खटिया को रखा. मामा की तरफ चेहरा रखकर मैं खटिया पर बैठ गया. जैसे कि बोरियों का ढेर खटिया से ऊंचा था, इसलिए मामा का लंड बिल्कुल मेरे चेहरे के सामने था.

अब मामा ने अपने दोनों हाथ बोरियों पर टिका दिए और अपने शरीर का पूरा वजन अपने हाथों पर ही देते हुए अपने कूल्हों को बोरी से ऊपर उठा लिया. मतलब अब वह किसी मेंढक की तरह हाथ के बल हवा में लटक रहे थे. ऐसा उन्होंने चुदाई को आसान बनाने के लिए किया था क्योंकि अब उनके कूल्हे और लंड वाला भाग ज़मीन से टिका हुआ नहीं था, जिसे हवा में लटकते हुए आगे पीछे करते हुए मस्त चुदाई का मज़ा चौगुना किया जा सकता था. यह सबकुछ 3-4 सेकेंड में ही हो चुका था. उन्होंने मुझे इशारा किया. मैंने आगे को सरकते हुए मामा जी के लंड का गुलाबी मोटा सुपाड़ा अपने मुँह में भर लिया. ऐसा करने से उनके मुँह से एक लंबी आह निकली और एक बड़े झटके के साथ लंड मेरे कलेजे तक पहुंच गया.

अब उन्होंने अपनी पोजिशन को और भी मज़बूत बनाने के लिए अपना एक पैर खटिया पर रख दिया और अपनी स्पीड बढ़ा दी. बस 3-4 मिनट के बाद हम दोनों का ही आनन्द सातवें आसमान पर पहुंच चुका था. मेरे मुँह से आ रही घप…घप… घप… की आवाज़ पूरे फॉर्म हाउस में गूंज रही थी, जिसे सुनकर मामा ओर भी ज्यादा प्रेरित हो रहे थे और उनके मुँह से भी लगातार सिसकारियां निकल रही थीं. लंड चूसते हुए लगभग दस मिनट हो चुके थे और मैं थक चुका था, लेकिन उनकी चुदाई की गति कम होने की जगह और भी बढ़ती ही जा रही थी. तभी एक सोच से मानो मेरी मुराद पूरी हो गयी थी, जिस मर्द को जीवन भर सिर्फ निहारकर और जिस्म की खुशबू और लंड की कल्पना से काम चलाया करता था, आज वही मर्द मेरी मुख की घमासान चुदाई कर रहा था.

मेरी आंखों से आंसू और मुख से थूक गिर रहा था, लेकिन मैं उस मासूम लंड की प्यास बुझाने के लिए तत्पर खड़ा था. मैं अपने हाथों से उनकी कड़क मज़बूत बालों से भरी छाती के उभार और बाजुओं को लगातार सहलाते हुए आनन्द ले रहा था. तभी अचानक उनके मुँह से ‘आह.. सी… अउह… आ..’ की आवाज़ निकलने लगी और उन्होंने अपना लंड मेरे मुँह से बाहर खींच लिया, शायद वह मेरे मुँह में झड़ना नहीं चाहते थे. मैं कुछ समझ पाता, उससे पहले ही लंड से निकली दो गर्म पिचकारियों से मेरा चेहरा भर गया और हड़बड़ाते हुए मैंने तुरंत लंड का सुपाड़ा अपने मुँह में घुसा दिया, जिससे वीर्य की दो पिचकारियों से मेरा मुँह भर गया. अब दोनों को शांति मिली और दोनों ही खटिया पर लेट गए.

थोड़ी देर में दोनों ने कपड़े पहने और मामा मुझे पैदल ही अपने नानाजी के पास ये कहते हुए छोड़ आये कि मैं मोटरसाइकिल पर पीछे बैठकर कुछ समान पकड़कर गांव से खेत पर लाया था, इसलिए सामान छोड़ने रवि मामा के खेत तक गया था. तो दोस्तो, यह थी मेरे बचपन से शुरू हुई आकर्षण की कहानी, जिसमें देर से ही सही लेकिन मेरे दिल की इच्छा पूरी हुई और मैंने रवि मामा के जिस्म और मस्त लिंग को पा लिया. इसके बाद भी कई बार हम लोगों ने जिस्मानी आनन्द लिया और मेरे सपनों का राजकुमार मैंने पा लिया. यदि आपने भी लम्बे समय तक किसी जिस्म के लिए आकर्षण प्रेम और संभोग की इच्छा को महसूस किया हो, तो मुझे मेल करके अपना अनुभव बताएं. इसके अलावा आपको मुख चुदाई की कहानी कैसी लगी, क्या मेरी भाषा शैली सही है.. और मुझे अपनी कहानियों में क्या बदलाव की आवश्यकता है? मुझे नीचे दिए गए ईमेल पर ज़रूर बताएं. [email protected]