गाँव के मामा का सपना-1

सभी मित्रों को लव शर्मा का प्रणाम! मैं एक बार फिर हाज़िर हूँ. अपने जीवन के एक और सत्य घटनाक्रम को एक कहानी के माध्यम से आप तक पहुँचाने के लिए.

ठंड का मौसम सम्भोग और जिस्मानी आनन्द के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है. उम्मीद करता हूँ कि आप लोग भी अपनी इच्छा और आकर्षण के अनुसार इस आनन्द को ज़रूर भोग रहे होंगे. क्योंकि यह पहली सर्दी है, जो अपने साथ समलैंगिकता का अधिकार भी लेकर आयी है और हर लिंग को अपनी बांहो में भरने के लिए बांहें फैलाये खड़ी है.

दोस्तो, ज़िन्दगी में कम से कम एक बार ही सही, लेकिन सभी के साथ ही ऐसा होता है कि बचपन से ही हमारे आसपास के कुछ लोग हमें अच्छे लगते हैं और हम उनके जिस्म की ओर आकर्षित होते हैं. चाहे आपकी उम्र अबोध हो या कुछ समझने की ही क्यों ना हो.

बचपन से ही कुछ लोग हमें अच्छे लगते हैं और धीरे धीरे उन्हें देखने और छूने की इच्छाएं उम्र के साथ बढ़ती जाती हैं.. और बाद में यही चीज़ आकर्षण और सेक्स तक पहुँच जाती हैं.

मेरी आज की कहानी भी इसी पर आधारित है. ज़िन्दगी कई रंग दिखाती है, कई लोगों से मिलते हैं, कभी प्रेम होता है, तो कभी लोगों से शारीरिक संबंध भी बनते हैं. लेकिन यह सब कुछ जीवन की यादें बनकर रह जाता है और हमारे दिल की इन यादों को कहानियों के रूप में साझा करने का मौका देता है.

‘अन्तर्वासना’ एक ऐसा ही पटल है, जिसके माध्यम से हम दोबारा उन कहानियों को जीते हैं. इसके लिए अन्तर्वासना का धन्यवाद और आप सभी पाठकों से मिलने वाले प्यार के लिए भी आभार.

सबसे पहले यह जान लें कि यह एक ‘गे सेक्स’ की कहानी है, लेकिन यदि आप स्ट्रेट भी हैं, तो भी कहानी आपको आनन्द दे सकती है, पढ़कर देखें.

अब सीधे कहानी का रुख करते हैं.
यह बात अब से काफी पुरानी है, जब मैं अपनी ज़िन्दगी का काफी समय अपने मामाजी के गांव में बिताया करता था. वहां सब लोग मुझे बहुत प्यार करते थे और मैं मानो शहजादे की तरह रहता था. मेरे सगे मामाजी के चाचा के बेटे थे, जिनका नाम रवि था और वह मेरे मामा से उम्र में छोटे थे.

मतलब रवि मामा मेरे सगे मामा नहीं थे लेकिन फिर भी सभी लोग मुझे बड़े प्यार से रखते थे. जब मेरी उम्र किशोर वय की थी, तब रवि मामा पूरे जवान हो चुके थे. तब मुझे इस उम्र में सेक्स की बारहखड़ी भी नहीं आती थी, ना कुछ पता था. लेकिन पता नहीं क्यों मुझे रवि मामा को देखना और छूना अच्छा लगता था.

रवि मामा की हाइट 5 फिट 10 इंच के करीब थी, मतलब खानदान में सबसे ऊंचे लंबे आदमी थे. अंडाकार लम्बा चेहरा छोटी छोटी दाढ़ी मूँछ, गेंहुए रंग के चेहरे पर छोटे छोटे होंठ.. जिसके साथ अजय देवगन जैसे लहराते हुए बाल. वाह.. क्या जबरदस्त आकर्षक शरीर था उनका.. ये कह देना कि मामा चुदाई ठुकाई के लिए बिल्कुल परफेक्ट थे.

समय बीता, मैं बड़ा हुआ और उम्र के साथ रवि मामा से आकर्षण बढ़ता गया. कुछ समझ भी आ गयी थी कि चुदाई क्या चीज होती है.

उनका घर और खेत थोड़ा दूर था, जिससे मैं पूरे समय उन्हें नहीं देख पाता. लेकिन जब भी कुछ काम से वो आते, मैं उन्हें देखता और छूने की कोशिश करता.

जब मेरी उम्र जवान लौंडे की हुई, तब रवि मामा की जवानी भरपूर निखर चुकी थी और अब वह मुझे बहुत अच्छे लगते थे. चूंकि वे काफी लम्बे थे लगभग 6 फिट और क्योंकि वह खेत में मेहनत करते थे, तो उनकी बॉडी किसी खिलाड़ी की तरह ही काफी सुडौल और मस्त थी. साथ ही धूप की वजह से थोड़े काले हो चुके थे. हालांकि मेरी पिछली कहानियों की तरह रवि मामा कोई बड़े पहलवान नहीं थे लेकिन उनका जिस्म कसा हुआ बिल्कुल फिट था.

लंबा चेहरा काली आंखें, चेहरे पर हल्की दाढ़ी, छाती के उभारों पर काले बाल उनकी सुंदरता को बढ़ा देते थे. उनकी एक और खास बात थी कि वह थोड़े कंजूस थे इसलिए जब खेतों में काम करते.. तो मिट्टी कीचड़ के कारण फटे पुराने कपड़े पहन लेते. कभी कभी तो उनकी शर्ट काफी ज़्यादा फट जाती और उनका कड़क जिस्म फ़टे कपड़ों में से बाहर झांकने लगता. उस वक्त मेरी आंखें उनके उसी कड़ियल जिस्म पर टिक जातीं और मैं बस यही दुआ करता कि रवि मामा बस एक बार मुझे अपने जिस्म को छूने दें. हालाँकि उस समय मुझे मुठ मारने की सही से समझ भी नहीं थी. तब भी लंड ने ठुमकना शुरू कर दिया था.

कभी कभी मेरे सगे मामा ट्रेक्टर में आलू या प्याज़ के बोरे चढ़वाने में मदद के लिए उन्हें बुला लेते और जब रवि मामा बोरों को उठाते, तो उनका जिस्म और भी कस जाता और उनकी छाती और बाजुओं के उभार और भी गहरे हो जाते. जिन्हें देखकर मेरा मन उन्हें चूमने और चाटने को होने लगता.

अब तो मैं उनके मस्त कड़क लंड की कल्पनाएं भी करने लगा था और अंदाज़ा लगाता कि रवि मामा का लंड कितना लम्बा और मोटा होगा. इस समय तक मुझे यह भी पता नहीं था कि किसी मर्द के लिए दूसरे मर्द के लिए आकर्षण समाज को स्वीकार नहीं होता है और इसे ‘गे’ अर्थात समलैंगिकता कहा जाता है.

इसके अलावा वह खेतों में मेहनत करते तो इनके जिस्म और कपड़ों से मस्त महक आने लगती थी. जब भी मुझे मौका मिलता, मैं उस मादक महक को अपने नथुनों के अन्दर भर लेता.

समय बीता… अब मैं बड़ी कक्षा में आ गया था और मेरी कक्षा का बंजारा लड़का राजेश भी मुझे काफी पसंद था, जिसके बारे में मैं अपनी कहानी
पहला प्यार पहला लंड
में बता चुका हूँ. आप उसे भी ज़रूर पढ़ें.

इसी समय मैंने मुठ मारना भी सीख लिया था और पानी निकालने शुरू कर दिया था. मैं अक्सर राजेश को सोचकर या फिर रवि मामा के हैंगर पर टंगे कपड़ों की महक लेते हुए मुठ मार लिया करता था.

उस समय मुझे रवि मामा और सभी लोग छोटा ही समझते थे, इसीलिये मेरी बातों को गम्भीरता से नहीं लेते थे. इसके अलावा वो मेरे मामा थे इसलिए लिहाज भी था और उनसे गन्दी बातें भी नहीं कर सकता था, क्योंकि डरता था.
मैं तो हमेशा ही तैयार रहता था कि किसी तरह कुछ जुगाड़ हो और मुझे रवि मामा का लंड देखने को मिले.

ऐसे ही एक दिन रवि मामा और उन्हीं के जैसे एक और कज़न मामा साथ में काम कर रहे थे. मज़ाक मस्ती में एक दूसरे को लंड दिखाने की बात चली. वो लोग मज़ाक करते हुए अपना अपना लंड दिखाने की बात करने लगे और सबसे पहले मुझे अपना लंड दिखाने को कहा गया.

मुझे भी मजाक समझ में तो आ रहा था, लेकिन मुझे तो रवि मामा का लंड देखने की उत्सुकता थी, इसीलिए मैं कोई मौका छोड़ना नहीं चाहता था. मैंने सोचा कि यदि मैं अपनी लुल्ली दिख देता हूँ, तो फिर मैं रवि मामा से अपना लंड दिखाने की जिद कर पाऊँगा.
इसी के चलते मैंने अपनी लुल्ली निकाल कर दिखा दी और इसके बाद बड़ी ही उम्मीद के साथ रवि मामा से अपना लंड खोलकर दिखाने को कहा.

लेकिन जैसा कि सबको पता था कि वो लोग मज़ाक ही कर रहे थे. उन्होंने अपना लंड नहीं दिखाया. बस मेरी लुल्ली देखकर हँसने लगे. ज्यादा ज़िद करने पर मामाजी और नानाजी से बोल देने की धमकी देते हुए उन्होंने बात को टाल दिया. मेरे अरमानों पर एक बार फिर से पानी फिर गया.
समय के साथ अब मैंने भी उनके लंड के मिलने की उम्मीद छोड़ ही दी थी.

रवि मामा की शादी हुई, उनको एक बेटा और एक बेटी हुई. कुछ समय के बाद उनकी बीवी मतलब मेरी मामी पैसों और जायदाद की लालच में अपने पिता के घर चली गयी और रवि मामा लगभग 25 साल की उम्र में ही अकेले रह गए.

समय बीतता गया और मैं पढ़ाई के लिए काफी समय से मामा के घर से दूर रहा. इस बीच मैं भी जवान हो गया. कभी कभी ही मुझे एक दो दिन के लिए मामाजी के घर जाने का मौका मिलता. अब रवि मामा का रवैया कुछ बदल चुका था. अब वो अकेले में मुझसे गर्लफ्रेंड और लड़कियों के बारे में पूछते और मैं उनकी उम्र और मामा होने के चलते, शर्मा जाता.

अब रवि मामा की बीवी भी लगभग 2 साल से नहीं थी और शायद इसी के चलते उनका दिमाग दूसरे की बीवी और गर्लफ्रेंड में ज्यादा लगने लगा था.
खैर … स्वाभाविक सी बात थी कि 2 सालों से रवि मामा कोई बिना किसी को चोदे तो रहे नहीं होंगे, उन्होंने भी चूत का जुगाड़ कर ही लिया होगा.

मैं ग्रेजुएशन के पहले साल की परीक्षा के बाद गर्मियों में मामा के घर छुट्टियां बिताने पहुंचा था. अब तो मुझे भी सब कुछ समझ में आने लगा था. मैं भी उड़ती चिड़िया के पर गिनने में माहिर हो चुका था.

धीरे धीरे रवि मामा मेरे साथ काफी फ्रेंक होना चाहते थे और अब वह मुझसे कोई जुगाड़ या चुदाई के लिए कोई लड़की के लिए पूछते रहते थे. क्योंकि मैं कॉलेज में था और उन्हें लगता था कि कॉलेज में सभी लड़कियां सिर्फ चुदने ही आती हैं. इसलिए मैं हमेशा उन्हें टाल देता था.

अब मुझे साफ समझ आ चुका था कि रवि मामा यहां वहां मुँह मारते फिरते हैं और मौका मिलते ही मस्त चुदाई कर देते हैं. इसी समय मेरे दिल का पुराना कीड़ा फिर से ज़िंदा हुआ और फिर से दिल उनके मस्त लंड का स्वाद चखने और उनके जिस्म का आनन्द लेने के लिए मचलने लगा.

हालांकि अब मुझे थोड़ी उम्मीद भी लगने लगी थी. क्योंकि अब मुझे पता चल चुका था कि रवि मामा थोड़े ठरकी हैं और अब उनका लंड जब हिचकोले मरता है तो उसका रस पिलाने के लिए उनके पास कोई नहीं होता है.

गर्मियों का समय था और उस समय शादियों की भरमार थी. एक दिन में कभी 2 तो कभी 3 शादियों में जाना होता था. शादियां मतलब मस्त सैक्सी मर्दों और लड़कों की भरमार. फिर बात जब गांव के गबरू जवान लौंडों की हो, तो बात ही क्या.
मैं रोज़ शादियों में मस्त लौंडों से मिलता उन्हें निहारता और मिलने जुलने के बहाने उनके मस्त देसी जिस्मों को छूता और घर आकर उनकी याद में मुठ मारता.

वैसे आसपास के गांवों में हमारा परिवार काफी इज्जतदार और फेमस हैं, इसलिए काफी लोग मुझसे संपर्क बनाने की कोशिश करते हैं. जबकि मैं उनके जिस्म से सम्पर्क बनाने की कोशिश करता.

अब एक दिन रात को मैं मेरे सगे मामा, मामा का बेटा और रवि मामा शादी में गए. काफी अच्छी शादी थी, खूब आनन्द लिया और रात के करीब 11 बजे हम लोग शादी से लौटने लगे. लौटते समय मुझे, मेरे मामा और रवि मामा हम तीनों को मामाजी के एक परिचित मित्र ने मस्ती मजाक और बातचीत के लिए अपनी कार में बिठा लिया और बाइक मेरे मामा के बेटे को दे दी.

अब कार गांव में हमारे घर के सामने आकर रुकी और मेरे सगे मामा कार से उतर गए. लेकिन रवि मामा यह कहते हुए नहीं उतरे कि उन्हें खेत पर जाना है और वो वहीं सोएंगे. इसके अलावा कार आगे वाले गांव जा रही थी और खेत उधर रास्ते में ही है.

आज मेरे दिल में उम्मीद की एक किरण जगी और मैंने भी कार से उतरने से मना कर दिया और खेत पर ही जाकर सोने की इच्छा जताई. मेरे मामाजी ने मुझे इज़ाज़त दे दी और हम चल पड़े.

कार ने हमें खेत से लगभग एक किलोमीटर दूर मेन रोड पर उतार दिया और कार चली गयी. कार से उतरने के बाद रवि मामा और मैं अपने खेत की तरफ पैदल चल पड़े.

आगे जाने पर पहले हमारा खेत आता है, उसके बाद में रवि मामा का. रात के करीब साढ़े ग्यारह बज चुके होंगे, सुनसान पगडंडी रास्ता, गर्मी की रातों की लम्बी हवाएं, चाँद की हल्की रोशनी में पैरों की स्पष्ट आवाज़ आ रही थी. लेकिन दूर दूर तक सन्नाटा पसरा हुआ था.

रवि मामा ने फिर से मुझसे लड़कियों की बातें करना शुरू कर दीं और वो आज तो अपनी जुगाड़ों के बारे में भी बताने लगे थे. वैसे एक बिना बीवी का आदमी कर भी क्या सकता है. लंड बीवी के होने ना होने का अंतर नहीं देखता, उसे तो चूत का छेद तो चाहिए ही चाहिए.

हालांकि वह मुझे यह जताने की कोशिश कर रहे थे कि उनकी कई सारी जुगाड़ हैं और अक्सर वो चुदाई का खेल खेलते ही रहते हैं. लेकिन दोस्तो … अक्सर, अक्सर ही होता है, वो रोज़ में तब्दील नहीं हो सकता है. इसीलिए मुझे उन पर थोड़ा तरस भी आ रहा था क्योंकि वो हमेशा ही यहां वहां मुँह मारते ही रहते थे. उनके पास अपनी चूत का तो इंतज़ाम था ही नहीं.

वो मुझे बताने लगे कि खेतों में भेड़ बकरियां चराने के लिए जो गड़रिये आते हैं, उनकी महिलाओं और लड़कियों की चूत भी उन्होंने कई बार ली है और उन्होंने मुझसे भी पूछा कि क्या मुझे चूत के दर्शन करने हैं, यदि हां तो वह मुझे भी जल्दी ही चूत दिखाने का जुगाड़ लगाएंगे.

रवि मामा के मुँह से निकलने वाले लंड चूत के शब्दों ने मानो मेरे दिल में बुझ चुके लंड के अंगारों को हवा देने का काम किया, जिससे उनकी बातें सुनते हुए मेरे दिल के पुराने अरमान फिर से जागने लगे और अब तो मेरा मन आत्मविश्वास से भी भर चुका था. आज मैं मानो रवि मामा का मूसल सा लंड अपने मुँह में भरने को उतावला हो रहा था. मैंने कहा- मामा.. एक बात कहूँ!
वो बोले- हां बोल ना?
लेकिन फिर भी मैं चुप ही रहा तो उन्होंने मुझे हिम्मत दिलाते हुए कहा- अरे बोल पागल… बोल दे.. मुझे तो अपना दोस्त ही समझ… मैंने भी तो तुझे अपनी कितनी बातें बताई हैं.

अब मैंने हिम्मत को एकजुट किया और अपने दिल से कहा कि मौका है और दस्तूर भी.. तो अब इंतज़ार किस बात का.. बस मैंने अपने कदम रोकते हुए कहा- मामा.. रुको.. बताता हूँ.
मेरे रुक जाने की वजह से उन्हें भी रुकना पड़ा और अब उन्होंने मुझे हिम्मत दिलाते हुए अपने दोनों हाथ मेरे कंधों पर रख दिए और कहा- हां बोल यार?
मैंने भी आव देखा ना ताव बस कह दिया- मुझे आपका लंड छूना है.
वह मेरे चेहरे की तरफ देखने लगे और बोले- अरे बस इतनी सी बात, ले छू ले. इतना कहते हुए वो अपने पेंट की चैन खोलने लगे, लेकिन मैंने उनका हाथ पकड़ते हुए उन्हें रोक दिया.

आखिर मैं जिस लंड को देखने और छूने के लिए पिछले कई सालों से कोशिश कर रहा था, उस लंड को किसी और के हाथों क्यों बेपर्दा करूं, ये तो मेरा हक है. वैसे जितना मैं डर रहा था, उतना डरने की मुझे शायद ज़रूरत ही नहीं थी. रवि मामा तो बिल्कुल चालू निकले.

मैंने अपनी आंखों को बन्द किया और गहरी सांस लेते हुए धीरे से उनके लंड के उभार को छू लिया और हल्के हल्के हाथ ऊपर नीचे करते हुए लंड को सहलाने लगा. उन्होंने थोड़ा नर्म-चिकने कपड़े का सिला हुआ फॉर्मल पेंट पहन रखा था, जिस पर से लंड को सहलाना मानो लंड को छूने के ही समान था.

मेरे हाथ लगाते ही रवि मामा भी बिल्कुल शांत हो गए और लम्बी सांसें लेने लगे. मानो वो इसी इंतज़ार में ही हों कि कोई उनके लंड को छुए, उससे खेले और उनको मज़ा दे. वैसे बीवी का न होना इसका एक कारण हो सकता है.
खैर हमें भी इतनी गहराई में जाकर क्या करना है.

अब उनके लंड में धीरे धीरे तनाव आने लगा और 30 सेकेंड में ही लंड तनकर बम्बू बन गया. अब वो फिर से अपनी चैन खोलकर लंड को बाहर निकलने को उतावले हो गए.
मैंने फिर से उन्हें रोका तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और मेरा हाथ अपने बम्बू की तरह तन चुके लंड के उभार पर रख दिया. वे मेरे हाथ से अपने लंड को ज़ोर ज़ोर से रगड़ने लगे. उनके मुँह से ‘सी.. सी.. आह…’ की आवाजें निकलने लगीं. ये सच था या उनका नाटक, पता नहीं.

इतना जल्दी क्या इतना आसान था रवि मामा के इस दानवी लंड को पाना?
क्या मैं बेवजह ही चिंता में था?
आखिर मुझे इतने साल क्यों लगे इसे पाने में?
और क्या इससे पहले भी यदि मैंने कोशिश की होती, तो मुझे इस जवान मर्द के लॉलीपॉप का स्वाद चखने का मौका मिल सकता था, जो अभी मेरी मुट्ठी में है?

यही सारी बातें मेरे दिमाग में घूम रही थीं.

रवि मामा अपने फनफनाते लंड को मेरे हाथ में देने के लिए अब और भी बेताब हो चुके थे. इसीलिए बिना देर किये अब मेंने चैन खोलकर अपना हाथ अन्दर डाल दिया और उनकी अंडरवियर के ऊपर से लंड को मसलने लगा. काफी अच्छा लंड था.. ठीक बिल्कुल वैसा ही जैसी कल्पना में बचपन से किया करता था. लंड को सहलाते हुए ही मैंने अपना एक कदम आगे बढ़ाया और मैं उनके जिस्म के बिल्कुल करीब आ गया. मैंने उनकी गर्दन को चूम लिया और अब मैं लंबी सांसों से उनके जिस्म की मदहोश करने वाली महक को अपने अन्दर भरने लगा.

यह ज़िन्दगी में पहली बार था, जब मैं सीधे ही उस जवान चोदू मज़बूत मर्द के जिस्म की खुशबू सीधे जिस्म से ले रहा था. इससे पहले सिर्फ हैंगर पर टंगे उनके कपड़ों को सूंघकर ही काम चलाना पड़ता था.

जैसा कि वो काफी लम्बे थे, इसलिए मैंने उन्हें धकेलते हुए ऊंची जगह पर खड़ा कर दिया और मैं ट्रेक्टर के पहियों से धंस चुकी नीची ज़मीन पर खड़ा हो गया. जिससे मेरा मुँह उनकी छाती तक पहुंच पाए.
अब मैं उनकी मेहनती मज़बूत छाती पर अपनी नाक रगड़ने लगा और लम्बी गहरी सांस लेते हुए सूंघने लगा. साथ ही अपने हाथ से मामा जी के लंड को सहलाना भी जारी रखा. जिससे उनकी सांसें भी तेज होने लगीं और उन्होंने मुझे बांहो में भरते हुए अपने मज़बूत किसानी जिस्म में जकड़ लिया.

अब तो मैं भी हर चीज़, हर बात, हर दर्द, हर चिंता भूल जाना चाहता था और बस इस सुनसान गर्मी की रात में चलती लम्बी हवाओं के बीच कई साल के इंतज़ार के बाद मिले जवान मर्द और फनफनाते लंड से जुड़ी हर चीज़ को जी भरकर जीना चाहता था.

मै अब उनकी कड़क हथेलियों को भी सहलाने लगा और उनकी उंगलियों को चाटते हुए चूसने लगा, जिससे उनका आनन्द चरम पर पहुंच गया.
उन्होंने बड़े ही चोदू अंदाज़ में कहा- उंगली क्या चूसता है.. लंड का तंबू खड़ा है… चूस ले.. चूस ले इसको यार..
यह कहते हुए उन्होंने अपना पेंट नीचे करते हुए अपना खीरे जैसा लम्बा मोटा लंड मेरे सामने अंडरवियर से आज़ाद कर दिया.

अब तो मैं चाह कर भी उन्हें नहीं तड़पा सकता था. क्योंकि अब तो मेरी कमज़ोरी मतलब लंड मेरे सामने आ चुका था. वो भी एक मेहनती किसान का जवान लंड, जो कि देखने में ही इतना खूबसूरत था कि किसी के भी मुँह में पानी आ जाए.

हल्का काला लम्बा और मोटा बिल्कुल सीधा लंड, जिसके थोड़े से खुले गहरे गुलाबी सुपारे पर प्रीकम की एक बड़ी बूंद. नीचे लटकते मोटे-मोटे गोटे और बाल बिल्कुल क्लीन शेव.

मैं तो किसी भूखे की तरह लंड पर झपट पड़ा और तुरन्त लंड चूसने की पोजिशन बनाते हुए घुटनों के बल नीचे बैठ गया. सबसे पहले मैंने मामा जी के लंड के मोटे गहरे गुलाबी सुपारे पर किसी ओस की बून्द की तरह लगी हुई प्रीकम की मोटी बूंद को अपनी नाक से गहरी सांस लेते हुए सूँघा. जिससे प्रीकम की वह बूंद मेरी नाक में किसी दवा की बूंद की तरह चली गयी और साथ ही उनके चॉकलेटी लंड से आती मदहोश कर देने वाली वीर्य की महक मेरी नाक से होते हुए मेरे दिमाग में घुल गयी. इस दवा ने मानो मुझे पागल कर दिया.

अब तो मुझ पर खुमार सा चढ़ गया था. मैंने बिना देर किये पूरे गर्म सुपारे को अपने मुँह में भर लिया और लौड़ेपॉप (लॉलीपॉप का नया नाम) की तरह चाटने लगा.

रवि मामा भी मानो पागल ही हो गए थे. वो ज़ोर ज़ोर से कुछ बड़बड़ाते हुए आनन्द ले रहे थे.

लेकिन उनका बड़बड़ाना हमारे लिए महंगा पड़ गया. जैसा कि हमलोग खेत के पास ही थे, इसलिए आवाज़ से नानाजी की नींद खुल गयी. वो खड़े हुए और खांसते हुए उन्होंने अपनी टॉर्च चालू कर दी.

आगे क्या हुआ, क्या नानाजी ने हमें आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया और किस तरह हमने अपने आपको बचाया और क्या इसके बाद हम लोग कभी अपने जिस्मों का मिलन कर पाए या नहीं, जानेंगे कहानी के अगले भाग में.

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कहानी का अगला भाग: गाँव के मामा का सपना-2