दोस्त की बीवी की चूत की तड़प-1

दोस्तो, मेरा नाम राज गर्ग है. मैं दिल्ली में रहता हूँ। मेरा एक वाइफ स्वापिंग क्लब भी था जैसा कि में आपको अपनी पुरानी कहानी
बाली उम्र की मीठी चुदास
में बता चुका हूं क्लब के चलते मेरा डिवोर्स हुआ; यह भी मैं आपको बता चुका हूं. अब मैं एक अच्छी पार्टनर की तलाश में हूँ. डिवोर्स के बाद में बिल्कुल अकेला महसूस करने लगा हूँ क्योंकि जिसे रूटीन में चूत लेने की आदत हो वो कैसा महसूस करेगा ये तो आप समझ सकते हो.

मैं आपका ज्यादा समय खराब नहीं करते हुए सीधा कहानी पर आता हूं. ये कहानी मेरे एक दोस्त शीराज और उस की वाइफ ज़ायरा की है; जब मैंने ज़ायरा की मसाज करते करते उसकी चुदाई की है जो कि मेरे दोस्त के घर पर ही उसकी गैरमौजूदगी में हुई।

हुआ यह कि एक दिन मेरे दोस्त का कॉल आया कि उसका ट्रांसफर दिल्ली से मुंबई हो गया है तो उसे दो दिन के अंदर मुंबई शिफ़्ट होना था.
उसको मेरी कुछ हेल्प चाहिए थी।

एक बात और मैं आपको बता दूँ कि जब मैंने अपना वाइफ स्वाइपिंग क्लब शुरू किया था, तब एक बार मेरी पत्नी ने शीराज और ज़ायरा के बारे में भी बात करी थी. क्योंकि मेरी पत्नी शीराज को पसंद करती थी.

और ज़ायरा तो बहुत ही शानदार औरत है। उसका कद थोड़ा कम था, मगर गोरी चिट्टी, भरपूर बदन की खूब सेक्सी औरत है। दो बच्चों की माँ है, मगर आज भी फंटास्टिक लगती है।
उसके जिस्म पर सबसे खूबसूरत चीज़ उसके भारी मम्मे हैं। हर कोई उसके मम्मों को ही घूरता रह जाता है। उसको भी पता है कि हर कोई उसके गोरे मोटे मम्मों का दीवाना है.
और वो भी अक्सर अपनी हर ड्रेस में चाहे वो साड़ी हो या सूट, अपना थोड़ा सा क्लीवेज हमेशा दिखा कर रखती है।

मैं और शीराज अक्सर एक दूसरे को मज़ाक करते थे. मैं कहता था कि तेरी बीवी से तो गले मिल कर मज़ा आ जाए.
और वो कहता था- तेरी बीवी से गले मिल कर मज़ा आ जाए।
क्योंकि मुझे भरी भरी औरतें पसंद हैं और शीराज को स्लिम और ब्यूटीफुल औरतें पसंद है।

मेरी बीवी को भी शीराज पसंद था. इसीलिए उसने मुझे शीराज और ज़ायरा को अपने स्विंगर्ज़ क्लब में शामिल करने को कहा था। मगर किसी वजह से मैं शीराज और ज़ायरा को अपने क्लब में नहीं शामिल कर पाया।

हालांकि बाद में धीरे धीरे क्लब में न जाने क्यों औरतों ने आना कम कर दिया. और एक बार तो ऐसा हुआ कि हम 5 मर्द थे और सिर्फ दो औरतें एक मेरी बीवी और एक मेरे दोस्त प्रेम की बीवी।
तो उस दिन तो उन दोनों औरतों ने 5 मर्दों की बरदाश्त किया, मगर साथ में ये भी कह दिया कि आगे से सिंगल मर्द को एंट्री मत दो। वो अपनी बीवी को तो घर छोड़ आते हैं, और यहाँ आकर दूसरों की बीवियों को चोद कर अपनी वासना की पूर्ति करते हैं।

जब मैंने रूल सख्त किए तो साले यार दोस्तों ने क्लब में आना ही छोड़ दिया, और फिर धीरे धीरे मेरा क्लब ही खत्म हो गया।

बाद में कुछ दोस्तों ने और घटिया बात करी कि अक्सर मेरी बीवी को फोन करके, क्लब की बातें करते और उसे बाहर मिलने के लिए बुलाने लगे।
एक कमीने ने तो पैसों की ऑफर कर दी।
इस वजह से मेरा अपने कुछ दोस्तों से लड़ाई झगड़ा भी हो गया। मगर ये बात मेरी बीवी को बहुत नागवार गुज़री जिस वजह से हम दोनों में अक्सर कहा सुनी और झगड़े बढ़ने लगे और फिर एक दिन हमारा तलाक भी हो गया।

बीवी के जाने के बाद मैं बहुत अकेला हो गया और अपने लंड को शांत करने के लिए बहुत से कुदरती, गैर कुदरती और न जाने कैसे कैसे तरीके अपनाने लगा।
मगर इन सब में वो मज़ा नहीं था। एक औरत के नंगे जिस्म के ऊपर लेट कर उसको मसलते हुये, चूमते चाटते, उसको चोदने में जो सुख है वो और किसी भी चीज़ में नहीं मिलता।

बल्कि एक दो बार तो मुझे लौंडे भी मिले, सोचा कि ट्राई के करके देखता हूँ। मैं झूठ नहीं बोलता, मैंने दो लौंडों की गांड भी मारी है। मगर फिर भी उनमे वो औरत वाली फीलिंग नहीं आती। उनको चूमने का दिल नहीं करता, उनको तो बस अपना लंड चुसवाओ और कोंडोम डाल कर उनकी गांड मार लो।

मगर जो एक नंगी औरत आपके सीने से लगती है, तो उसके भरे हुये मम्मों की नर्मी आपके सीने को अहसास देती है, वो लौंडों में कहा। एक औरत के लबों में रस है, वो किसी लौंडे के लबों में कहाँ।

और सबसे ज़रूरी बात, जो मज़ा औरत की चूत को चाटने में मिलता है, वो किसी लौंडे में कहाँ। आपकी तरह उनके पास भी एक लंड होता है। और बस उस लंड को देखते ही, सारा नशा भी उतार जाता है; सारा मूड भी बिगड़ जाता है।
तो लौंडों के साथ मेरा तजुरबा तो बिल्कुल बेकार रहा।

इसलिए मैं अपने लिए किसी औरत को खोज रहा था। आस पड़ोस की औरतों से बड़े अच्छे से पेश आता कि शायद कोई पट जाए। एक तलाक़शुदा से दोस्ती भी हुई मगर वो एक खास दूरी बना कर रखती।
गली मोहल्ले बाज़ार हर जगह मैं जब औरतों को देखता तो सोचता- भैंनचोद, दिल्ली में एक से एक भोंसड़ी है। भरी पड़ी है सारी दिल्ली चूतों से, मगर साली मेरे लिए एक भी नहीं मिल रही।

खैर जिस दिन शीराज का फोन आया और उसने मुझे बताया कि उसका तबादला दिल्ली से मुंबई हो गया है, और अगले दो दिनो में उसे वहाँ शिफ्ट होना है और इस वजह से उसे मेरी हेल्प चाहिए.
तो मैं भी उसकी हेल्प करने को चल पड़ा।

मुंबई में मेरी मौसी की लड़की रहती है. मैंने उससे बात करके शीराज के मुंबई में रहने का इंतजाम तो कर दिया मगर यह इंतजाम सिर्फ 2-4 दिन के लिए था ताकि शीराज वहाँ आस पास में कोई घर ढूंढ कर अपने परिवार को रख सके।

अब परिवार के नाम पर शीराज और ज़ायरा ही थे क्योंकि उनके दोनों बच्चे तो बोर्डिंग स्कूल में शिमला में पढ़ते थे। तो मैंने भी सोचा कि घर पर अकेले बोर होने से तो अच्छा है कि वहीं चल कर शीराज की हेल्प कर दी जाए उसका भी काम हो जाएगा; मेरा खाली समय भी अच्छे से पास हो जाएगा।

तो मैं तैयार होकर उसके घर पहुंच गया। मैंने अपनी गाड़ी पार्किंग में खड़ी की और उसके घर पहुंचा. उसकी डोर बेल बजायी, जैसे ही गेट खुला, सामने ज़ायरा थी।
सफ़ेद काटन के कुर्ते और स्किन टाइट जीन्स में वो बहुत ही शानदार दिख रही थी।

एक बार तो दिल में आया के आगे बढ़ कर उसे गले से लगा लूँ, मगर नहीं!
बेशक उसके साथ मैं खुल कर हंस बोल लेता था, मगर अभी मुझे उसको इस तरह से बांहों में भरना बदतमीजी लगा.

तो मैंने हाथ जोड़ कर कहा- नमस्ते भाभी, कैसी हो आप?
वो भी खुल कर मुस्कुरा दी- अरे नमस्ते भाई साहब, आज आपको हमारी याद कैसे आ गई?
मैंने कहा- कल शीराज के फोन आया था कि उसकी बदली मुंबई की हो गई है, तो उसने मुझे हेल्प के लिए कहा था।

वो मुस्कुराती हुई आगे चल पड़ी और बोली- ओह हो … तो आप आये हैं मेरी हेल्प करने!
मैं उसको जाते हुये देख रहा था. मोटी गांड, साली दोनों चूतड़ थलल थलल करके हिलाती हुई जा रही थी।

दिल किया कि साली की गांड पर एक चपत लगाऊँ।
मगर नहीं … दोस्त की बीवी है, रहने दो।

मैंने पूछा- शीराज कहाँ है?
तो वो बोली- ये अभी किसी जरूरी काम से बाहर गए हैं, थोड़ी देर में आ जाएंगे. तब तक मैं आपके लिए कॉफ़ी लाती हूँ।
लेकिन मेरा मन तो उससे देखकर उसका दूध पीने का मन था.

फिर सोचा कि गलत है दोस्त की पत्नी है पता नहीं क्या सोचेंगी. और अभी तो सिर्फ औपचारिकता चल रही है, भाई साहब भाभी जी।

वैसे तो शीराज के सामने मैं उसका नाम भी ले लेता हूँ। मगर जब तक अगली कोई इशारा नहीं देती मैं कैसे बेतकल्लुफ़ हो जाऊँ. इसलिए मैंने अपने लंड को समझाया कि बेटा हर चूत देख कर अंगड़ाइयाँ मत लेने लग जया कर! ज़रूरी नहीं कि हर चूत में घुसने का मौका मिले तुझे।

तो मैं सोफ़े पर बैठ कर टीवी ऑन करके पिक्चर देखने लगा और 5 मिनट में ज़ायरा कॉफी बना लाई।
वह मेरे साथ बैठ कर ही कॉफी पीने लगी.

काफी देर तक इधर उधर की फालतू बातें होती रही.
इसी बीच उसने मेरे तलाक की भी बात करी और मेरे तलाक का अफसोस भी ज़ाहिर किया.

इसी दौरान मैंने मौका देख कर अपना दुखड़ा भी रो दिया ताकि उसको ये पता चल जाए कि मैं अकेलेपन से कितना दुखी हूँ।

कुछ देर और बातें होती रही।

उसके बाद मैंने शीराज से फोन पर बात करी।
उसने कहा कि वो अपने ऑफिस के कुछ ज़रूरी काम निपटा रहा है, तो आप लोग जितनी पैकिंग हो सकती है, कर लो।

मैंने ज़ायरा से कहा- शीराज को तो ऑफिस में टाइम लगेगा. तो इस दौरान क्यों न हम सारी पैकिंग का काम निपटा लें।
वो बोली- ठीक है।

मैं ज़ायरा के पीछे पीछे उसके बेडरूम में गया जहां मैंने उसके रूम की सभी चीजों को पैक करने में उसकी मदद की।

इस दौरान कई बार जब वो झुकी तो मुझे मस्त मोटे मम्मों के और क्लीवेज के दर्शन भी हुये. मुझे तो लगा जैसे मुझे इस मेहनत का मेहनताना मिल गया हो।

काम के दौरान बातें करते करते मैं भी भाभी जी से ज़ायरा पर आ गया। वो भी मुझे भाई साहब से राज जी कहने लगी।

एक और बात हुई कि पैकिंग करते हुये मैंने जब ज़ायरा ने उनकी अलमारी के सभी कपड़े निकाल कर बेड पर पड़े सूटकेस में रखे तो मैंने देखा, उन में कई बहुत खूबसूरत रंग बिरंगे ब्रा और पैंटीज़ थी। कुछ अंडर शर्टस थी। निकरें, जीन्स, स्कर्टस, साड़ियाँ, ब्लाउज़, सूट बहुत कुछ था।
ज़ायरा ने वो सब अपने सूटकेस में रखे।

मैंने शीराज की बुक्स और बाकी सामान बड़े बड़े गत्ते के डिब्बों में भरा। दीवान खोल कर रजाइयाँ, कंबल चादरें तकिये भी पैक किए। उसके बाद किचन का समान, और स्टोर का समान, और ना जाने क्या क्या हमने पैक किया।

इस दौरान कई बार ज़ायरा के नर्म जिस्म से टकराने और उसे छूने का मौका मिला। मैंने भी इस बात का कोई नोटिस नहीं लिया. उसने भी इन बातों की इगनोर किया।

सुबह 10 बजे मैं आया था और अब दोपहर का 1 बज रहा था। हम दोनों ने खाना खाने और थोड़ा आराम करने का सोचा।

खाना घर में बनाने की बजाये मैं बाज़ार से ही बना बनाया खाना ले आया।

शीराज ने तो शाम को आना था, तो हमने खाना खाया, और उसके बाद मैं और ज़ायरा दोनों बेड पर बैठ कर टीवी देखने लगे।

मोटा मोटा सामान हमने सब पैक कर लिया था। बड़े बड़े बक्से और गट्ठर बांध कर रख दिये थे। टीवी देखते देखते हम दोनों को सुस्ती छाने लगी, और थोड़ी ही देर में मैं तो सो गया।
मुझे नहीं पता चला कि कब ज़ायरा भी सो गई।

करीब घंटे भर बाद मैं जागा। उठ कर देखा तो ज़ायरा मेरे पास ही बेड पर सो रही थी। सोते हुये उसकी कुर्ती थोड़ी सरक गई थी। एक तो, उसका खूबसूरत क्लीवेज बड़े बढ़िया तरीके से दिख रहा था, और दूसरे उसका थोड़ा सा पेट भी दिख रहा था।

मैंने सोचा कि ये मौका बढ़िया है। मैंने झट से अपना फोन निकाला, उसकी सभी आवाज़ें बंद की, और फिर कैमरा ऑन किया और ज़ायरा के क्लीवेज की, उसके कुर्ती से बाहर दिख रहे थोड़े से पेट और कमर की पिक्स खींची, और विडियो भी बनाई क्योंकि ऐसे मौके कहाँ हमेशा मिलते हैं।

कल को मुंबई चली जाएगी, फिर क्या पता दोबारा कभी मिले या न मिले। इस लिए एक याद के तौर पर मैंने उसके अंजाने में उसकी कुछ पिक्स और विडियो बना कर अपने पास रख ली कि कल को अकेले में बैठ कर देखा करूंगा।

मैंने देखा कि करीब साढ़े तीन बज रहे थे.
तो मैं उठा और पहले बाथरूम गया, और मूतने के बाद किचन में जाकर दो कप चाय बना लाया, और आकर ज़ायरा को जगाया।
“अरे भाई उठ जाओ, बहुत सो ली, लो चाय पी लो।”

ज़ायरा उठी और उठने के बाद उसने सबसे पहले अपने कपड़े ठीक किए, वो थोड़ी शर्मिंदा सी थी कि बेख्याली में मैंने उसके जिस्म की नुमाइश के दीदार कर लिए थे।
मगर मैंने ऐसे ज़ाहिर किया कि कोई बात नहीं यार, थोड़ा बहुत तो चलता है।

वो उठ बैठी, बाथरूम जाकर फ्रेश होकर आई और आकर चाय पीने लगी।
एक चुस्की लेकर बोली- अरे वाह, चाय अच्छी बनाते हो आप!
मैंने कहा- शुक्रिया, मेरी बीवी को भी मेरे हाथ की चाय बहुत पसंद थी।

ज़ायरा बोली- तो आप उनसे बात करो, उनको वापिस ले आओ।
मैंने कहा- मैंने तो बहुत कोशिश की है ज़ायरा. सच कहूँ, मेरा इतना दिल करता है कि वो वापिस आ जाए, मेरे घर को संभाले, मुझे संभाले। मुझे प्यार करे। मगर ना जाने क्यों, कुछ बातें ऐसी हो गई हैं कि वो उन्हें भुला नहीं पा रही है। कोई बात नहीं एक दिन वो समझ जाएगी और ज़रूर वापिस आ जाएगी।

ज़ायरा बोली- और जब तक वो वापिस नहीं आती?
मैंने एक बार तो सोचा कि कह दूँ कि जब तक वो नहीं आती, तब तक तुम हो न।
मगर मैंने कहा- तब तक इंतज़ार!
ज़ायरा हंस कर बोली- हाँ, मगर इंतज़ार करना सबसे बुरा काम है. मुझे इंतज़ार करना बिल्कुल पसंद नहीं।

मैंने मन में सोचा- अरे यार मुझ से पूछ! तुझसे चोदने के सपने मन में बुन रहा हूँ. और उन सपनों के पूरा होने का इंतज़ार किस शिद्दत से कर रहा हूँ, ये मैं ही जानता हूँ।

कहते हैं कि जब आप किसी इंसान के बारे में कुछ सोचते हो तो हमारी छठी इंद्री हमें बता देती है कि सामने वाला हमारे बारे में क्या सोच रहा है। मैं चाहता था कि किसी तरह ज़ायरा को पता चल जाए कि उसके गदराये, भरपूर जिस्म को देख कर मेरा लंड भी अंगड़ाई पे अंगड़ाई ले रहा है।

बेशक मेरा लंड पूरी तरह से तना हुआ नहीं था मगर थोड़ा सा भी तन जाए तो पैंट में से दिख जाता है।
और मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ.

जब चाय पीते पीते और ज़ायरा के गदराए बदन को देखते हुये मेरे लौड़े ने अंगड़ाई सी ली, तो ज़ायरा का ध्यान भी मेरी पैंट की तरफ गया और उसने देख लिया के पैंट के अंदर मेरा लंड बल खा रहा है।

मैं जानबूझ कर इस बात से अंजान बना रहा क्योंकि मुझे पता था के ज़ायरा मेरे लंड को देख रही है. मैं जानबूझकर टीवी की ओर देखता रहा और पैंट के अंदर अपने लंड को तुनके मारता रहा.
ताकि वो पैंट के अंदर ही हिलता रहे और ज़ायरा बड़े अच्छे से उसको देख ले. और अगर उसका मन हुआ तो बात कर ले मुझसे।

मगर मुझे पता था कि औरत कभी भी खुद शुरुआत नहीं करती, वो इशारा देती है, और अगर मर्द ने उस इशारे को समझ लिया और मौका संभाल लिया, तो औरत उसको पक्का देगी। और अगर मर्द ने इशारा न समझा तो मर्द का मौका गया।

मैं अब उस इशारे के इंतज़ार में था कि कब ज़ायरा मुझे वो इशारा देती है।

हालांकि इस बात की भी पूरी आशंका था कि शायद वो इशारा मुझे मिले ही न।
हो सकता है कि ज़ायरा ऐसा कुछ सोच ही न रही हो।
हो सकता है कि वो अपने पति के आने का इंतज़ार कर रही हो और पति के आने के डर से वो इशारा मुझे करे ही नहीं।

मगर उम्मीद पर दुनिया कायम है।
मैं भी उम्मीद का दामन पकड़े बैठा था।

कहानी जारी रहेगी.
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