चौराहे पर खड़ा दिल-14

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

चौराहे पर खड़ा दिल-13

चौराहे पर खड़ा दिल-15

टीन फर्स्ट टाइम सेक्स स्टोरी में पढ़ें कि मैंने अपनी युवा कामवाली की कुंवारी बुर की सील तोड़ी तो क्या हुआ और कैसे हुआ. कैसे मैंने उसके दर्द को सम्भाला.

टीन फर्स्ट टाइम सेक्स स्टोरी में अभी तक आपने पढ़ा:

सानिया शारीरिक रूप से तो पहले से ही तैयार थी अब तो वह मानसिक रूप से भी तैयार हो गई थी। अब मैंने धीरे से अपने लंड को आगे सरकाया पर मुझे लगा आगे कुछ अवरोध सा है। मैंने एक बार फिर से अपने लंड को थोड़ा बाहर निकाला और फिर से अन्दर किया।

जैसे ही मेरा लंड उसकी झिल्ली से टकराता मैं उसे फिर से बाहर खींच लेता। सानिया दम साधे अगले लम्हे का जैसे इंतज़ार कर रही थी। अब तो उसने उत्तेजना के मारे अपनी बांहें मेरी पीठ पर कस ली थी और अपने नितम्बों को भी हिलाने लगी थी।

“सानू जान बस मेरी जान … थोड़ा सा दर्द और होगा बस … तुम तैयार हो ना?” कहकर मैंने उसे अपनी बांहों में भींच लिया तो सानिया ने जोर से अपने दांत भींच लिए। मुझे लगा डर के कारण उसकी बुर कुछ ज्यादा ही कस गई है। उसकी कसावट मेरे लंड के चारों ओर साफ़ महसूस की जा सकती थी।

अब आगे की टीन फर्स्ट टाइम सेक्स स्टोरी:

और फिर मैंने एक धक्का लगाया तो मेरा खूंखार लंड उसकी कौमार्य झिल्ली को रौंदता हुआ अन्दर समा गया।
सानिया ने अपने दांत भींच रखे थे पर फिर भी उसकी लाख कोशिशों के बाद एक चीख निकल ही गई “उईईई … मा आआ आआआ …”

“मेरी जान आज … तुम मेरी समर्पिता बन गई हो … मेरी महबूबा … आज तुमने मुझे निहाल ही कर दिया … थैंक यू मेरी जान …” कहते हुए मैंने उसके होंठों और गालों पर चुम्बनों की झड़ी सी लगा दी।

सानिया को दर्द तो जरूर हो रहा था पर वह किसी प्रकार अपने दर्द को सहने की कोशिश कर रही थी।
और मेरा लंड पूरी तरह अन्दर समाकर अपने भाग्य को सराह रहा था।

मुझे अपने लंड के चारों ओर गुनगुना सा अहसास होने लगा। मुझे लगता है उसकी झिल्ली टूटने के कारण उसमें से खून निकालने के कारण ऐसा हुआ होगा। अगर सानिया ने इस खून खराबे को देख लिया तो निश्चित ही वह घबरा जायेगी और कोई बवाल भी हो सकता है। मैंने तकिये के नीचे रखे तौलिये को उठा कर उसके नितम्बों के नीचे सरका दिया।

“आईई … मुझे जलन सी हो रही है.”
“बस थोड़ी देर चुनमुनाहट सी होगी उसके बाद तुम्हें बहुत अच्छा लगने लगेगा.”
“दर्द भी हो रहा है.” सानिया ने कहा तो जरूर पर मुझे लगता है अब यह दर्द उसके लिए असहनीय नहीं रहा है।

मैंने उसके गालों और होंठों पर फिर से चुम्बन लिया और फिर उसकी बंद आँखों पर भी चुम्बन लिया। मेरे ऐसा करने से उसके शरीर में झनझनाहट सी होने लगी थी।

“सानू जान मेरी प्रियतमा … अपनी आँखें खोलो. मैं तुम्हारी आँखों में अपने इस प्रेम को देखना चाहता हूँ.” इस समय मैं उसे लफ्फाजी भरे शब्दों के जाल में उलझा कर रखना चाहता था ताकि वह भी अपने दर्द को भूल कर इस क्रिया को खूब एन्जॉय करने लग जाए।

सानिया ने धीरे से अपनी आँखें खोली। उसकी आँखें बहुत लाल सी लगने लगी थी। पर उनमें एक नया रोमांच भी साफ़ देखा जा सकता था। सानिया ने फिर अपनी आँखें बंद कर ली और लम्बी-लम्बी साँसें लेने लगी।

उसका कमसिन बदन मेरे नीचे बिछा पड़ा था। अब मैंने उसका एक हाथ पकड़कर थोड़ा ऊपर कर दिया। उसकी कांख में हल्के-हल्के रेशमी से बाल थे। मुझे नहीं लगता उसने कभी इन बालों पर कैंची चलाई होगी।
मैंने पहले तो उसकी कांख को जोर से सूंघा और फिर अपनी जीभ से उसे चाट लिया। एक तीखी और मादक महक से मेरा सारा स्नायु तंत्र भर सा गया।

सानिया तो ‘आईईइ … ’ करती ही रह गई “आह … सल … गुदगुदी हो रही है सर …”

मैंने दो तीन बार उसे फिर से सूंघा और अपनी जीभ उस पर फिराई तो सानिया रोमांच के मारे और भी ज्यादा थिरकने लगी। मेरा मकसद तो उसे नॉर्मल करने का ही था जिसमें मैं अब तक कामयाब हो गया था।

अब तो मैं अपने लंड को आसानी से अन्दर बाहर कर सकता था। मैंने धीरे से अपने लंड को आधा बाहर खींचा और फिर से पूरा अन्दर डाल दिया।

सानिया तो बस अआईई … करती ही रह गई। मुझे लगता है अब सानिया का दर्द ख़त्म तो नहीं हुआ है पर कम जरूर हो गया है।

अब तो मैंने हल्के-हल्के धक्के भी लगाने शुरू कर दिए थे। मुझे अपने लंड के चारों तरफ कुछ चिपचिपा और गुनगुना सा लेप महसूस होने लगा था। मुझे लगता है सानिया की बुर ने अपना पानी एक बार फिर से छोड़ दिया है।

“सानू … मेरी प्रियतमा … अब दर्द नहीं हो रहा ना?”
“आपने तो अपने मन की कर ही ली ना? अब दर्द का क्यों पूछ लहे हो?” सानिया की आवाज में दर्द कम और उलाहना ज्यादा था।

“जान … तुम इतनी खूबसूरत हो मैं तो क्या अगर कोई फरिश्ता भी होता तो उसका भी मन डोल जाता. और वह स्वर्ग को छोड़ कर बस तुम्हारे पहलू में अपनी सारी जिन्दगी बिता देता।”
बेचारी सानूजान के लिए अब रूपगर्विता बनने का वाजिब बहाना था।

अब तो मेरे धक्कों के साथ सानिया की मीठी किलकारियां निकलने लगी थी। अब तो वह भी अपने नितम्बों को हिलाने लगी थी।

मेरे धक्कों के साथ उसकी बुर से फिच्च-फिच्च की आवाज और संगीत निकालने लगा था। मैंने उसके बूब्स को मसलना और चूमना भी जारी रखा था। सानिया का रोमांच तो अब सातवें आसमान पर था और वह तो अब रोमांच के उच्चतम शिखर पर पहुँच गई थी।

मेरे धक्के चालू थे और सानिया आह … ऊंह करती प्रकृति के इस अनूठे आनंद को भोगती जा रही थी।

मेरा लंड तो ऐसी कमसिन बुर को पाकर जैसे खूंखार ही हो चला था। उसका सुपारा तो फूल कर लाल टमाटर जैसा हो गया था। जैसे ही लंड बाहर आता उसकी बुर की कोमल पत्तियाँ भी बाहर आती और जैसे ही लंड अन्दर जाता खींचती हुयी अन्दर समा जाती।

सानिया ने बीच-बीच में अपनी बुर को टटोलने की फिर कोशिश की थी। अब तो उसे भी तसल्ली हो गई थी कि उसकी बुर का कुछ नहीं बिगड़ा है सही सलामत है। अब तो उसने अपनी जांघें और भी फैला दी थी और अपने नितम्बों को मेरे धक्कों के साथ उचकाने भी लगी थी। मुझे लगता है उसने अपने भैया-भाभी की चुदाई जरूर देखी होगी या फिर उस प्रीति ने सब कुछ बताया होगा।

मेरी इच्छा तो अब आसन बदलने की हो रही थी पर ऐसा करना अब ठीक नहीं था। एक बार अगर लंड बुर से बाहर निकल गया तो सानिया अपनी बुर की हालत को जरूर देखेगी और फिर शायद ही वह इसे दुबारा अन्दर डलवाने के लिए राजी हो। मैंने अपना इरादा बदल दिया।

“सानू.. मैं सच कहता हूँ … अगर मैं कहीं का राजा होता तो तुम्हें अपनी पटरानी ही बना लेता।“
“क्यों?”
“अरे मेरी जान तुम्हें अपनी खूबसूरती का ज़रा भी भान नहीं है. भगवान् ने तुम्हें लाखों में एक बनाया है। सच कहूं तो गौरी से भी ज्यादा खूबसूरत हो तुम!”

सानिया लम्बी-लम्बी साँसें लेते हुए पता नहीं क्या सोचे जा रही थी। मेरे धक्कों से उसे अब बिल्कुल दर्द नहीं हो रहा था।

मेरा मन तो जोर-जोर से धक्के लगाने का कर रहा था पर उसके लिए यह पहला अवसर था। मुझे डर था मेरे तेज धक्कों से उसकी नाजुक बुर का कबाड़ा ही ना हो जाए और फिर वह 2-3 दिन ठीक से चल ही ना पाए।
मैंने संयत तरीके से धक्के लगाने चालू रखे।

अब मैंने दो काम और किए। एक तो उसके उरोजों को मुंह में भर कर चूसना चालू कर दिया और अपना एक हाथ उसके नितम्बों के नीचे करके उसकी गांड का छेद टटोलना चालू कर दिया।
उसकी बुर से निकला रस तो उसकी गांड के छेद तक पहुँच गया था। जैसे ही मैंने उस छेद पर अपनी अंगुली फिराई एक रपटीला और गुनगुना सा अहसास मुझे अपनी अँगुलियों पर महसूस हुआ।
इसके साथ ही मैंने 2-3 धक्के एक साथ लगा दिए। सानिया का शरीर कुछ अकड़ने सा लगा और उसने अपने दोनों हाथ मेरी कमर पर कस लिए और अपनी जांघें उठाकर ऊपर कर ली। उसकी बुर संकोचन करने लगी थी और उसकी साँसें बेकाबू सी होने लगी थी।

और फिर एक लम्बी आह … सी करते हुए उसने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया। मुझे लगा फिर से उसका ओर्गास्म हो गया है। अब तक मेरा शहजादा सलीम भी फ़तेह का झंडा बुलंद कर शहीद होने के मुकाम पर पहुँच गया था।

मैंने 2-3 धक्के लगाए और मेरे लंड ने कई पिचकारियाँ छोड़ कर अपनी शिकस्त मंजूर कर ली।
सानिया आह … ऊंह करती अब भी अपने हाथों से मेरी कमर पकड़े लम्बी लम्बी साँसें लेती जा रही थी और मैं अब सानिया के ऊपर पसर सा गया।

अब मुझे लगने लगा था कि मेरा लंड सिकुड़ कर बाहर आने की फिराक में है। सानिया भी अब थोड़ा कसमसाने सी लगी थी। कितनी अजीब बात है चुदाई करते समय जब तक लंड चूत के अन्दर होता है पुरुष का भार स्त्री को ज़रा भी नहीं लगता पर जैसे ही लंड अपना पानी छोड़ देता है तो थोड़ी देर बार वह पुरुष को अपने ऊपर से हटाने का प्रयास करने लग जाती है।

मुझे एक और बात का डर सताने लगा था। मेरे हटते ही सबसे पहले सानिया अपनी बुर को जरूर देखेगी और जैसे ही उससे रिसता हुआ खून देखेगी तो जरूर डर जायेगी। अब मैंने उसकी दोनों जाँघों के बीच हाथ डालकर उसके नितम्बों के नीचे लगे तौलिये को अपने हाथ में पकड़ा और उसकी जाँघों के बीच और उसकी बुर को पौंछते हुए उसके ऊपर से उठा गया।

अब मैंने एक हाथ से उसे सहारा देते हुए उठाया।
और दूसरे हाथ से फिर से उसकी बुर को थोड़ा सा और साफ़ करते हुए उस तौलिये को अपने लंड पर लपेट सा लिया। मेरा लंड हालांकि सिकुड़ सा गया था पर निरोध अब भी उस पर लगा था और उसके चारों ओर खून भी लगा हुआ था।

अब मैंने अपने लंड पर लिपटे तौलिये को इस प्रकार खींचा के निरोध भी साथ ही निकल आया। मैंने झट से उसे नीचे फेंक दिया।

“मुझे बाथलूम जाना है.” सानिया किसी मेमने की तरह मिनमिनाई।
“ओह … हाँ … एक मिनट!”

मैं झट से बेड से नीचे आ गया और फिर से सानिया को अपनी बांहों में भर लिया और कमरे में बने बाथरूम में ले आया।
सानिया को अब मैंने अपनी गोद से उतार दिया।

“आप बाहर जाओ.” उसने मुंडी नीचे झुकाए हुए ही कहा।
“क्यों?”
“मुझे सु-सु करना है.”
“ओह … अरे मेरी जान प्लीज … मेरे सामने ही कर लो ना … अब शर्म की क्या बात है?”
“हट!”
“जान … तुम कितनी खूबसूरत हो!?”
तो?”
“मेरा बहुत बड़ी इच्छा है तुम्हें सु-सु करते हुए देखने की!”
“नहीं मुझे शर्म आती है … आईईइ!”
“क्या हुआ?”
“मुझे बहुत जोर का सु सु आ रहा है.”
“प्लीज मेरे सामने ही कर लो ना! प्लीज सानू …”

सानिया ने पहले तो तिरछी निगाहों से मेरी ओर देखा और फिर कमोड की ओर जाने लगी।
“जान कमोड पर नहीं फर्श पर ही कर लो ना … प्लीज!”
लगता है सानिया को जोर से सु-सु आ रहा था वह झट से नीचे बैठ गई।

हे भगवान्! उसकी बुर तो सूज कर और भी मोटी हो गई थी। चीरा तो अब खुल सा गया था और बुर के बीच की कलियाँ तो फूल कर लम्बूतरी सी नज़र आने लगी थी।

सानिया की आँखें बंद थी। उसने अपने जांघें थोड़ी सी चौड़ी कर ली और फिर पहले तो छर्रर्रर्र … की आवाज के साथ गुलाबी और पीले से रंग का थोड़ा सु-सु निकल कर उसकी पत्तियों से टकराकर छितराने सा लगा और फिर थोड़ा छिटकते हुए उसकी जाँघों पर भी लगने लगा तो सानिया ने अपनी जांघें थोड़ी और चौड़ी कर दी।

अब तो एक पतली सी धार पिस्स्स्स … की आवाज करती हुयी पहले तो ऊपर उठी और फिर नीचे फर्श पर गिरने लगी।

हे भगवान्! इतनी प्यारी आवाज तो गौरी की बुर से भी नहीं निकलती थी। मैं अपने आप को नहीं रोक पाया और झट से नीचे बैठा गया। मैंने अपना एक हाथ बढ़ाकर उस धार के बीच अपनी अंगुलियाँ लगा दी। झर-झर करता सु-सु मेरी अँगुलियों से टकराने लगा। सानिया की आँखें अब भी बंद थी। जैसे ही मेरी अंगुलियाँ उसके पपोटों से टकराई सानिया चौंकी और उसके मुंह से एक हल्की सीत्कार सी निकल गई।

“छी … गंदे सु-सु … को हाथ लगा रहे हो?”
“सानू मेरी जान तुम मेरी प्रियतमा हो … तुम्हारी कोई चीज गंदी कैसे हो सकती है.”
“हट!” कहते हुए सानिया ने मेरा हाथ परे कर दिया।

अब सानिया की बुर से दो-तीन बार हल्की हल्की पिचकारियाँ और निकली। कुछ बूँदें तो उसकी गांड के सांवले छेद पर भी लग गई थी।

सानिया अब खड़ी हो गई और उसने अपने हाथों से अपनी बुर को ढक सा लिया। फिर वह नल की ओर जाने लगी। चलते समय जिस प्रकार वह लंगड़ा रही थी मुझे लगता है अभी 1-2 दिन तो वह ठीक से नहीं चल पायेगी। उसके चौड़े और गोल नितम्बों को देखकर तो मैं अपनी झीभ अपने होंठों पर ही फिराता रह गया।

मेरी अंगुलियाँ सानिया के सु-सु से भीग गई थी। मैंने एक बार उन अँगुलियों को अपनी नाक के पास ले जाकर सूंघा। उसकी सु सु में उसकी कमसिन जवानी की गंध तो मदहोश कर देने वाली थी।

“छी …” सानिया ने नल के पास पहुँच कर पलटकर मेरी ओर देखने लगी।

दरअसल मेरा यह सब करने का मकसद यही था कि सानिया के मन में यह बैठा दूं कि प्रेम में कोई चीज गंदी नहीं होती और वह मेरे लिए बहुत ही स्पेशल है।

प्रिय पाठको और पाठिकाओ! मेरा मन तो सानिया को एक बार बाथरूम में ही नहाते समय फिर से रगड़ने को कर रहा था पर आज पहला दिन था। और जिस प्रकार वह लंगड़ाकर चल रही थी मुझे नहीं लगता वह इतनी जल्दी दुबारा तैयार हो पायेगी। अब मैं ठहरा शरीफ आदमी भला इस बच्ची की जान तो नहीं ले सकता था।

और फिर हम दोनों ने साथ में स्नान किया और एक दूसरे के शरीर को साबुन लगाकर मसला और फिर तौलिये से पौंछा। हालांकि सानिया तो मना करती रही पर मैंने मैंने सानिया की बुर पर क्रीम भी लगाई।

मैं तो चाहता था आज हम दोनों मिलकर बिना कपड़े पहने ही रसोई में नाश्ता बनायें. पर साली इस ऑफिस जाने मजबूरी के कारण ऐसा करना आज संभव नहीं लग रहा था।

10 बज गए थे। हम दोनों ने कपड़े पहन लिए और फिर जल्दी से ब्रेड और चाय का नाश्ता किया। मैंने एक चुम्बन लेते हुए सानिया का फिर से धन्यवाद किया और कल सुबह जल्दी आ जाने का भी कहा। उसे अपनी मनपसंद चीज खरीदने के लिए कुछ रुपए भी और दे दिए। सानिया अपनी गिफ्ट्स लेकर घर चली गई और मैं ऑफिस।

मेरी टीन फर्स्ट टाइम सेक्स स्टोरी में मजा आ रहा है ना पाठको!
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टीन फर्स्ट टाइम सेक्स स्टोरी जारी रहेगी.