चौराहे पर खड़ा दिल -4

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

चौराहे पर खड़ा दिल -3

चौराहे पर खड़ा दिल -5

देसी वर्जिन गर्ल इरोटिक सेक्स स्टोरी में पढ़ें कि मैंने कैसे अपनी कमसिन कामवाली के जिस्म को भोगने के लिए उसे अपनी बातों के लपेटे में लिया. कैसे मैंने उसकी पसंद की बातें करके उसे खुश किया.

“वो तुम साड़ी बांधना सीखने का बोल रही थी ना?”
“हओ?”
“तो फिर एक काम करो तुम ये बर्तन आदि बाद में साफ़ कर लेना आओ तुम्हें साड़ी पहनना सिखाता हूँ.”

“आपको साड़ी बांधना भी आता है?” उसने हैरानी से पूछा.
“अरे जब हमारी शादी हुई थी ना उस समय मधुर को भी ठीक से साड़ी पहनना नहीं आता था तो वह साड़ी बांधते समय मेरी हेल्प लिया करती थी। मैं उसे बताता था कि साड़ी की लटकल आदि कहीं ऊंची-नीची तो नहीं रह गई और कमर पर जो लिपटन होती है वह भी मैं अपनी अँगुलियों और अंगूठे से बनाया करता था।”
“सच्ची?”
“हाँ भई … धीरे-धीर मुझे भी साड़ी बांधना आ गया। अब तो मैं भी एक्सपर्ट हो गया हूँ।” कह कर मैं हंसने लगा तो सानिया भी हंसने लगी।

“तुम अगर किसी को ना बताओ तो मैं तुम्हें मधुर और मेरी एक बात बता सकता हूँ.”
“हओ … सच्ची मैं किसी को नहीं बताऊँगी.”
“वो … साड़ी पहनाते समय मैं मधुर के पेट, कमर और नितम्बों पर हाथ लगाता था तो उसे बहुत गुदगुदी होती थी तो जानबूझकर बार-बार उन पर हाथ फिराया करता था.”
“तो दीदी नालाज नहीं होते थे?”
“हा हा हा … पहले तो नाराज होती थी. बाद में वह भी मुझे बांहों में भींचकर मेरे गालों को अपने दांतों से काट लिया करती थी।” कहकर मैं जोर-जोर से हंसने लगा।

इस्स्स्स … सानिया ने कुछ बोला तो नहीं पर अब वह भी रहस्यमयी ढंग से मुस्कुराने जरूर लगी थी।

आप सोच रहे होंगे इन छोटी-छोटी बातों को यहाँ लिखने का क्या तुक है? प्रिय पाठको! माना आप बहुत गुणी और अनुभवी हैं पर मैं दरअसल यह यकीनी (पुख्ता) बना लेना चाहता था कि साड़ी बांधते समय अगर मैं सानिया के साथ थोड़ी बहुत चुहल करूँ तो उसे बुरा तो नहीं लगेगा? उपरोक्त बातों से साफ़ जाहिर था कि सानिया ने मेरी इन बातों को अन्यथा नहीं लिया था अलबत्ता वह भी इसे एन्जॉय कर रही थी। इसका मतलब हंसी तो फंसी।

सानिया जल्दी बर्तन रख कर और अपने हाथ मुंह आदि धोकर वापस आ गई। फिर हम दोनों बेडरूम में आ गए।

मैंने मधुर की आलमारी खोली उसमें तो बहुत सी साड़ियाँ पड़ी थी। अब मैंने सानिया से पूछा “तुम्हें कैसी साड़ी पसंद है?”
“पता नहीं?” सानिया ने भोलेपन से जवाब दिया।
“अरे रंग तो बता सकती हो?”
“लाल रंग!” सानिया ने कुछ सोचते हुए कहा।

फिर मैंने उसमें से एक लाल रंग की साड़ी, उसी से मिलता-जुलता पेटीकोट और ब्लाउज निकाला लिया और साथ में एक नई ब्रा और पेंटी भी निकाल ली। अब हम ड्रेसिंग टेबल की ओर आ गए।
“अरे सानिया! तुमने तो आज बालों की चोटियाँ बना रखी हैं यह साड़ी पर सुन्दर नहीं लगेंगी. एक काम करो तुम ड्रेसिंग टेबल के शीशे के सामने रखी स्टूल पर बैठ जाओ मैं पहले तुम्हारे बाल सेट कर देता हूँ. बाद में साड़ी पहनाता हूँ.”
“हओ … ठीक है.”

अब सानिया ड्रेसिंग टेबल के सामने पड़ी स्टूल पर बैठ गई। मैंने पहले तो उसके बालों की चोटियों को खोल दिया और फिर उनमें कंघी करने लगा।
आह … रेशम जैसे हल्के घुंघराले और मुलायम बालों पर हाथ फिराते समय मैं सोच रहा था इसकी केशर क्यारी भी इतनी ही मुलायम होगी।

बालों में कंघी करते समय उसकी गर्दन और गालों पर भी छूने का मौक़ा मुझे आसानी से मिल रहा था। मेरा मन तो उसे बांहों में दबोच लेने को करने लगा था।

हालांकि चिड़िया अब पूरी तरह मेरे वश में आ गई थी और मुझे लग रहा था वह थोड़े से मान-मनोवल के बाद आराम से समर्पण के लिए तैयार हो जायेगी. पर अभी इतनी जल्दी यह सब ठीक नहीं था। मैं चाहता था सानिया भी समर्पण के लिए मन से तैयार हो जाए। फिर तो मैं बिना किसी लाग लपेट के इसके कुंवारे बदन की खुशबू लूट कर इसे कलि से फूल बना ही दूंगा।

इसी ख्याल से मेरा लंड तो पाजामें में झटके पर झटके खाने लगा।

मैंने उसके बालों में कंघी करके जूड़ा बना दिया था और उस पर हेयर क्लिप भी लगा दिए थे। थोड़े से बालों की एक लट मैंने जानकार आवारा सी छोड़ दी थी ताकि वो बार-बार उसके माथे और गालों को चूमती रहे।

अब उसके चहरे पर भी कारीगरी करने की जरूरत थी।

आज तो मैं पूरा ब्यूटीशियन बना हुआ था। मैंने उसके चहरे पर क्लीनर लगाकर रुई से उसके चहरे को थोड़ा साफ़ किया। मक्खन जैसे मुलायम गालों पर हाथ फिराने का मौका मैं भला कैसे गंवाता।
फिर उसके चहरे पर पहले तो थोड़ा फाउंडेशन लगाया और फिर पाउडर, क्रीम, चमकी आदि लगाया. और फिर उसकी आँखों में काजल लगाया. फिर मधुर की मनपसंद लाल रंग की लिपस्टिक भी उसके होंठों पर लगा दी।

हालांकि मुझे इन ब्यूटी प्रोडक्ट्स का नाम तो नहीं पता पर मैंने कई बार मधुर को मेकअप करते देखा था तो सानिया का मेकअप करने में मुझे कोई मुश्किल नहीं थी।

उसके गुलाबी होंठों को देखकर तो बार बार मन में यही ख्याल आ रहा था कि अगर इन होंठों के बीच यह मेरे पप्पू को दबा कर चुस्की लगा ले तो खुदा कसम मज़ा आ जाये।

“लो भई सानू मैडम! चहरे का मेकअप तो बहुत बढ़िया हो गया अब साड़ी पहनाने की बारी है।” मैंने उसके गालों पर थपकी लगाते हुए कहा।
“हओ।” कहते हुए उसने अपने चहरे को आईने में 2-तीन बार अच्छी तरह देखा और फिर खड़ी हो गई।

“तुम्हारा इतना खूबसूरत मेकअप किया और तुमने तो थैंक यू भी नहीं बोला?” मैं उलाहना देते हुए हंसने लगा।
सानिया को पहले तो कुछ समझ नहीं आया और फिर उसने थोड़ा शर्माते और मुस्कुराते हुए मुझे ‘थैंक यू’ कहा।

“कोरी थैंक यू से काम नहीं चलेगा. तुम्हें यह शर्ट और निक्कर भी उतारने होंगे?”
“क … क्यों?” सानिया ने थोड़ा घबराते हुए पूछा।
“अरे … मेरा मतलब साड़ी इन कपड़ों के ऊपर थोड़े ही पहनी जा सकती है?” मैंने हंसते हुए कहा।
“ओह … अच्छा … मैं समझी?” सानिया ने शर्माते हुए कहा।

“अब शरमाओगी तो कैसे काम चलेगा?”
“वो … वो …” सानिया के मन में चलने वाली उलझन मैं समझ सकता था।

“तुमने अन्दर ब्रा पेंटी तो पहनी ही होगी तो फिर शर्ट और निक्कर उतारने में क्या प्रोब्लम है?”
“वो … मैंने ब्रा नहीं पहनी बस समीज (ब्रा के स्थान पर लड़कियों द्वारा पहनी जाने वाली छोटी बनियान) पहनी है.”
“तो फिर क्या दिक्कत है समीज को थोड़ा सा मोड़कर उसके ऊपर ब्लाउज पहना जा सकता है? ठीक है ना?”

अब बेचारी सानिया के पास मेरी बात मान लेने के अलावा और क्या रास्ता बचा था।
उसने थोड़ा झिझकते और शर्माते हुए अपनी स्कर्ट और शर्ट उतार दी।

हे भगवान्! समीज और छोटे निक्कर में उसका शफ्फाक बदन तो ऐसे लग रहा था जैसे जन्नत से कोई हूर जमीन पर उतर आई हो। उस झीनी समीज में उसकी पतली कमर, गहरी नाभि और उरोज साफ़ महसूस किये जा सकते थे।
आपको याद होगा एक बार मधुर के जन्म दिन की पार्टी में भी मैंने इसे इसी समीज में देखा था।

उसके उरोजों के कंगूरे (घुन्डियाँ) तो तनकर पेन्सिल की नोक जैसी हो गये थे। उसकी साँसें बहुत तेज हो चली थी और कानों और गालों की रंगत तो गुलाबी नहीं रक्तिम हो गई थी।

अब आप मेरी हालत का अंदाज़ा भी लगा सकते हैं कि मैंने अपने आप को किस प्रकार रोका होगा आप बखूबी सोच सकते हैं। मैं सच कहता हूँ अगर मैं इस समय 18-20 साल का कुंवारा लौंडा-लपाड़ा होता तो बिना कोई परिणाम के सोचे इसी वक़्त इस फित्नाकर करिश्में का गेम बजा देता। पर मैंने बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभाले रखा।

“हाँ अब ठीक है … पर इस निक्कर को भी तो उतारो? इसके ऊपर तो पेटीकोट और साड़ी बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगेगी.”
“वो … वो मैं निक्कर नहीं उतार सकती.”
“क … क्यों? अन्दर पेंटी नहीं पहनी क्या?”
“किच्च.” सानिया ने शरमाकर अपनी मुंडी झुका ली।

“ओह … कोई बात नहीं तुम एक काम करो मैं तुम्हें मधुर की पेंटी और ब्रा दे देता हूँ उसे पहन लो.”
“आपके सामने?”
“अरे नहीं यार … मैं अपनी आँखें बंद कर लूंगा.” कहकर मैं हंसने लगा।

बेचारी सानिया तो मारे शर्म के दोहरी ही हो गई।

प्रिय पाठको और पाठिकाओ! आपने अक्सर कामुक किस्से कहानियों में जरूर ऐसे किस्से जरूर पढ़े या सुने होंगे कि फिर नायिका (लड़की) ने अपनी निक्कर उतार दी और फिर नायक उसे अपनी बांहों में भरकर चूमने लगा और फिर दोनों उत्तेजित होकर … किस्सा-ए-आदम और हव्वा दोहराने लगे … पर दोस्तो! हकीकत में ऐसा नहीं होता। अपनी मंजिल तक पहुँचने में इंतज़ार की ये घड़ियाँ मेरे लिए कितनी मुश्किल थी आप सोच सकते हैं।

“अरे मेरी जान … मैं तो मजाक कर रहा था … मैं बाहर चला जाता हूँ. तुम दरवाजा बंद करके यह ब्रा-पेंटी पहन लेना फिर साड़ी वाला प्रोग्राम करते हैं.”
“हओ.” सानिया ने मिमियाते हुए कहा।
मैं हंसते हुए बेड रूम से बाहर आ गया।

बेडरूम से बाहर आकर मैं सोफे पर बैठ गया और अगले सोपान के बारे में सोचने लगा।
ओह … मैं भी निरा गाउदी ही हूँ … भेनचोद … खूबसूरत लड़कियों की बुर की खुशबू सूंघते ही दिमाग तो जैसे काम ही करना बंद कर देता है।
कितना अच्छा मौक़ा था मैं मोबाइल का विडियो ऑन करके चुपके से ड्रेसिंग टेबल के पास रख देता और फिर तो सानूजान के निक्कर और समीज उतार कर ब्रा पेंटी पहनते समय कमसिन नंगे बदन का एक-एक रोयाँ आराम से विडियो में कैद हो जाता और फिर मैं तसल्ली से उसे बार-बार देखता रहता।

ओह … लग गए लौड़े!
अब सिवाय पछतावे के और क्या हो सकता है। साली ये बातें पहले याद ही नहीं आती?

कोई 5-7 मिनट के बाद सानिया ने दरवाजा खोलकर मुझे अन्दर बुला लिया। मैं तो ऊपर से नीचे तक सानिया के कमसिन बदन को देखता ही रह गया।
मेरे कानों में सीटियाँ सी गूंजने लगी थी और दिल की धड़कने बेकाबू सी होने लगी थी। मुझे तो डर सा लगने लगा था आज मेरा दिल जरूर धड़कना बंद करने देगा।

ब्रा में उसके कसे हुए उरोज देखकर और जाँघों के संधि स्थल में छोटी सी पेंटी तो बस क़यामत ही ढा रही थी।

मेरे पुराने पाठक और पाठिकाएं तो जानते हैं मधुर जो डोरी वाली ब्रा पेंटी पहनती है वह आगे से केवल 2 इंच चौड़ी होती है और उसमें मुश्किल से उसकी मुनिया का चीरा और पपोटे ही ढक पाते हैं और ब्रा तो केवल उसके उरोजों को बस आगे से 3-4 इंच तक के घेरे में ही ढांप सकती है बाकी पीठ की तरफ तो बस एक पतली सी रेशमी डोरी के अलावा एक धागा भी नहीं होता।

एक बार मैंने मिक्की को भी इसी प्रकार की ब्रा पेंटी पहनाई थी।

ब्रा पेंटी में उसके रूप और सौंदर्य का वर्णन करना मेरे जैसे साधारण से व्यक्ति के लिए लिए कहाँ संभव है। काश मैं कोई बहुत बड़ा और मशहूर लेखक या कवि होता तो जरूर सानिया के इस बेपनाह हुस्न पर कोई ग़ज़ल ही लिख देता या उसकी तारीफ़ में कसीदे गढ़ देता।

मुझे अपने कमसिन शरीर का मुआयना करते देख सानिया ने अपना एक हाथ अपनी सु-सु के ऊपर रख लिया था और दूसरे हाथ से अपने उरोजों को ढांपने की नाकाम सी कोशिश करने लगी थी।
लगता है उसे इन कपड़ों में मेरे सामने थोड़ी शर्म भी आ रही थी। उसके होंठ काँप से रहे थे और उनके ऊपर थोड़ा सा पसीना सा भी झलकने लगा था।

उसकी तेज होती साँसों के साथ उसके उठते-गिरते उरोजों को देख कर मेरा दिल भी जोर-जोर से धड़कने लगा था। मेरा मन बार-बार उसे बांहों में भर लेने को करने लगा था।

“वाह … बहुत सुन्दर … वो … वो … मेरा मतलब … आओ … साड़ी अभियान शुरू करते हैं.” मैं क्या बोले जा रहा था खुद मुझे नहीं पता। मेरी तो जबान ही साथ नहीं दे रही थी।
“हओ” सानिया ने कांपती आवाज के साथ अपनी मुंडी हाँ में हिलाई।

मैंने बेड पर रखा पेटीकोट उठाया और फिर सानिया को पास आने का इशारा किया। सानिया धीमे कदमों से मेरी ओर आ गई। यह पल हम दोनों के लिए बहुत ही संवेदनशील थे। मेरी कोई भी बेजा हरकत इस समय पूरा गेम बदल सकती थी। मैंने अपने आप पर पूरा नियंत्रण रखा हुआ था।

ट्यूब लाइट की दूधिया रोशनी में चमकती उसकी पुष्ट और मखमली जाँघों को देखकर तो मेरा लंड तो किसी नाग की तरह फुफकारे ही मारने लगा था।
हे लिंग देव! मैं तो बस उन्हीं लम्हों का इंतज़ार कर रहा हूँ जब इन संगमरमरी जाँघों पर हाथ फिराने और इन्हें चूमने-चाटने और मसलने का मौक़ा मिलेगा।
बार-बार मेरा मन उसकी पुष्ट जाँघों और नितम्बों किसी भी बहाने से छू लेने को करने लगा था।

मेरे मन में अचानक एक आईडिया आया।
“सानू मैडम अपने हाथ ज़रा ऊपर उठाओ?”
सानिया मेरी ओर आश्चर्य से देखती जा रही थी उसकी समझ में तो कुछ नहीं आया। उसने धीरे से अपने दोनों हाथ ऊपर उठा लिए।

मैंने देखा उसकी कांख पर भी हल्के-हल्के बाल थे। उसकी बगलों से आती अक्षत कौमार्य की तीखी गंध ने तो मुझे कामातुर ही कर दिया था। मेरा ख्याल है अगर सानिया इन बालों को साफ़ कर ले तो इसकी बगलों को चूमने का आनंद ही दुगना हो जाये।
मेरा मन तो उसकी बगलों को चूमने का ही करने लगा था। मैं अभी ऐसा तो नहीं कर सकता था पर बहाने से इन्हें छू तो सकता ही था।

अब मैंने उठकर ड्रेसिंग टेबल की ड्रावर से परफ्यूम की शीशी निकाली और एक बार अपने हाथों पर स्प्रे किया। और फिर मैंने उसकी दोनों बगलों पर परफ्यूम का स्प्रे किया। स्प्रे की ठंडक और रोमांच के कारण से सानिया के शरीर के रोयें खड़े से हो गए थे.

अब मैंने उसकी एक बगल (कांख) पर हाथ फिराया तो सानिया को गुदगुदी सी महसूस होने लगी थी। अब मैंने उसके गले और उरोजों की घाटी में भी स्प्रे कर दिया. फिर उसकी सु-सु के चीरे वाली जगह भी 2-3 बार स्प्रे करते हुए उसकी जाँघों पर भी फुहार छोड़कर अपना हाथ 2-3 बार उसकी मखमली जाँघों पर हाथ फिराया।

सानिया बोली तो कुछ नहीं … पर उसका सारा शरीर रोमांच और लाज के मारे के लरजने लगा था।
मैंने ध्यान दिया उसकी पेंटी सु-सु वाली जगह पर कुछ गीली सी हो गई थी। मेरा मन तो उस पर चुम्बन लेने को करने लगा था और लंड तो झटके पर झटके खाने लगा था।

सानिया भी कनखियों से मेरे ठुमकते लंड को देखे जा रही थी और मेरी इन हरकतों पर वह मंद-मंद मुस्कुराते हुए ठुमकने सी लगी थी।

दोस्तो! यकीनन आप उतावले हो रहे होंगे और मेरी इन हरकतों से आपको गुस्सा भी आ रहा होगा और उलझन सी भी हो रही होगी कि मैं सानिया को पटक कर उसे सानूजान बनाने में इतनी देरी क्यों कर रहा हूँ।
अब तो वह भी पूरी गर्म हो चुकी है और बिना किसी ना नुकुर और नखरों के मेरा पूरा लंड अपनी बुर में ले लेने के लिए तैयार है।

आपका सोचना अपनी जगह सही है पर बस थोड़ा सा इंतज़ार!
मैं चाहता हूँ कि आज की रात वह भी मेरी तरह करवटें बदलते ही बिताये और उसकी कल्पनाओं की उड़ान इतनी ऊंची हो जाए कि कल मेरे एक इशारे पर अपना सब कुछ मुझे अपनी मर्ज़ी से ख़ुशी-ख़ुशी सौम्प दे।

बस आज की रात आप भी अपने लंड को हाथों में लिए सोयें और मेरी पाठिकाएं भी अपनी लाडो की पंखुड़ियों को प्यार से सहलाएं।

मेरी देसी वर्जिन गर्ल इरोटिक सेक्स स्टोरी कैसी लग रही है?
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देसी वर्जिन गर्ल इरोटिक सेक्स स्टोरी जारी रहेगी.