वासना में जलती बीवी की तड़प-13

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

वासना में जलती बीवी की तड़प-12 

सेक्सी गांड की चुदाई की कहानी में पढ़ें कि कैसे मैंने अपनी साली की गांड को तेल लगा कर चुदाई के लिए तैयार किया. वो डर रही थी. जब मेरे लंड का सुपारा उसकी गांड में घुसा तो …

मैंने जैतून का तेल अपने लंड पर अच्छे से लगाया और थोड़ा सा तेल उसकी गांड के छेद पर टपका कर सुपारा रगड़ने लगा.
“जीजू गुदगुदी हो रही है मत करो ऐसे!” वो बोली.
“गुदगुदी होती है न वहां पर; अभी देखना जब लंड घुसेगा तो और भी मज़ा आएगा. अब तुम मजबूती से खड़ी रहना और हिलना मत!”

फिर लंड को हाथ से पकड़ कर सहारा देते हुए गांड में धकेला. तेल की चिकनाई की वजह से सुपारा साली जी की गांड का छल्ला पार करके अन्दर दाखिल हो गया और मैंने तुरंत उसकी कमर मजबूती से पकड़ ली.

“जीजू … नहीं … निकाल लो!” निष्ठा ने दर्द के मारे आर्तनाद सा किया.

अब आगे की लड़की की सेक्सी घांड की कहानी:

“बस रानी जी … हो गया न. तू तो मेरी बहादुर साली है न … बस एक दो मिनट थोड़ा दर्द सह ले मेरी खातिर!” मैंने उसे ढांढस बंधाया और आहिस्ता आहिस्ता लंड को और अन्दर धकेलने लगा.
साली जी छटपटाती रही पर मैंने पूरा लंड जड़ तक उसकी गांड में पेल कर ही चैन की सांस ली.

फिर उसके हिप्स को सहलाता हुआ उसकी पीठ चूम चूम कर उसे नार्मल करने लगा. बीच बीच में नीचे हाथ ले जाकर उसके स्तन भी मसल देता था.
धीरे धीरे साली जी नार्मल हो गयी.

गांड मारने का जो सुख मेरी सगी बीवी ने मुझे कभी नहीं दिया था वही सुख उसकी छोटी सगी बहिन मुझे दे रही थी.

निष्ठा की गांड में मेरा पूरा लंड समा चुका था और मैं धीरे धीरे लंड को अन्दर बाहर करते हुए उसकी गांड मारने लगा था. निष्ठा की गांड की मांसपेशियों का कसाव मेरे लंड को असीम सुख दे रहा था. लड़की की गांड मारने में भी इतना मज़ा आता होगा इसका तो मुझे अंदाजा ही नहीं था.

गांड मरवाते मरवाते निष्ठा भी मजे लेने लगी थी और उसके मुंह से कामुक कराहें निकलने लगीं थीं.
“निष्ठा, अब अच्छा लग रहा है न?” मैंने पूछा.
“हां जीजू, ऐसे में भी एक अलग ही मजा आ रहा है.”
“तू तो बेकार ही डर रही थी फिर, है न?”
“अब मुझे क्या पता था कि आपका हथियार ये कमाल भी दिखा सकता है.” साली जी ने कहा और अपनी कमर आगे पीछे चलाई.

“तो ले मेरी बुलबुल अब देख इस लंड का कमाल!” मैंने कहा और फिर निष्ठा की गांड में बलपूर्वक स्पीड से धक्के मारने लगा.
साली जी भी खूब मस्ता गयी और मेरे लंड से गांड लड़ाते हुए कमर नचाने लगी.

थोड़ी देर ही देर बाद वो बोली- जीजू, मैं तो यूं झुके झुके थक गयी.

मैंने उसे बेड पर लिटा दिया और उसकी कमर के नीचे तकिया लगा के उसके पैर मोड़ के अच्छे से ऊपर उठा दिए. अब इस पोज में उसकी चूत और गांड दोनों के छेद मेरे सामने थे.

साली जी की चूत के होंठ जो कभी आपस में सटे से रहते थे अब खुल चुके थे और उसकी चूत किसी नाव जैसा आकार ले चुकी थी और उसके भीतर का एक एक अंग स्पष्ट रूप से दिख रहा था; मैंने गांड के छेद पर लंड को पुनः सेट किया और उसकी गांड में लंड को पहिना दिया.

साली जी इस बार लंड को बड़े आराम से गांड में ले गयीं, उफ्फ तक नहीं की.

फिर मैंने भी पूरे दम से लंड को उसकी गांड में ठोकना शुरू किया. तो उसकी उत्तेजना भी चरम पर पहुँचने लगी. उसने अपनी चूत में दो उंगलियां घुसा लीं और अन्दर बाहर करने लगी. कभी अपना दाना रगड़ने लगी.

मुझे आज भी याद है वो कितना शानदार नजारा था कि मेरा लंड निष्ठा की गांड में अन्दर बाहर हो रहा था और वो खुद अपनी चूत में उंगलियां घुसा के अपनी चूत चोद रही थी और अपना दाना मसल रही थी.
वैसा नायाब नजारा मुझे अपने जीवन में फिर कभी देखने को नहीं मिला.

गांड मारते मारते दो ही मिनट बाद उसकी चूत ने रस बहा दिया और मैं भी उसकी गांड में ही झड़ गया. निष्ठा भी लगभग साथ ही स्खलित होने लगी और उसने मुझे पूरी ताकत से अपनी भुजाओं में बांध लिया.
इस तरह भीषण चुदाई के बाद नींद भी सताने लगी थी. कब हम दोनों नंगे ही लिपटे हुए सो गए कुछ पता ही नहीं चला.

फिर जब नींद खुली तो पाया कि निष्ठा की मुट्ठी में मेरा लंड था और वो धीरे धीरे उसे सहला रही थी. मैंने आंख खोल कर देखा तो खिड़कियों में से भोर का उजाला झांकने लगा था.

“गुड मोर्निंग निष्ठा डार्लिंग!” मैंने साली जी को चूमते हुए कहा.
“वेरी गुड मोर्निंग जीजू डार्लिंग!” साली जी बोलीं और मेरा हाथ पकड़ कर अपने बूब पर रख लिया और दबाने लगी.
“सुबह सुबह ये क्या?” मैंने कहा.
“जीजू, मन कर रहा है कि एक बार और, फिर तो आज दीदी आ ही जायेंगी फिर करने को नहीं मिलेगा न!” साली जी कुछ दुखी स्वर में बोली.

“हंम्म … तो साली जी कहां लोगी लंड को चूत में या गांड में या मुंह में?” मैंने पूछा.
“आपकी मर्जी, चाहो तो सब जगह से चोदो हमें!” उसने मुझसे लिपटते हुए संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

निष्ठा को तो मैंने हर तरह से भोग लिया था अब सिर्फ एक ही ख्वाहिश बाकी थी कि मैं उसे अपनी दुल्हन के वेश में देख कर उसकी गदराई, उफनती जवानी को अपने लंड से रौंद डालूं!

यही सोच कर मैंने उससे कहा- साली जी, हम इस बार आखिरी बार आपको चोदेंगे, हर तरह से प्यार करेंगे. बस मेरी एक इच्छा और बाकी है. चाहो तो पूरी कर देना.
मैंने उसके दूध मसलते हुए कहा.

“जीजू ऐसे क्यों कह रहे हो; इस जिस्म के मालिक हो अब आप जैसे चाहो वैसे भोग लो मुझे पर अपने मन में कोई इच्छा शेष मत रखना!” साली जी भाव विव्हल होकर मेरे सीने से लग कर बोली.

“निष्ठा मैं तुम्हें अपनी दुल्हन के रूप में देखना चाहता हूं एक बार!” मैंने झिझकते हुए कहा.
“ठीक है जीजाजी, आप बताओ मैं क्या करूं?” वो समर्पित भाव से बोली.

“तुम शर्मिष्ठा की आलमारी खोल लो और अपनी पसंद की कोई भी साड़ी पहिन लो और उसके सभी गहने भी वहीं रखे हैं वो सब पहिन कर आओ.” मैंने कहा.
“जीजू, मेरी मांग भी भरोगे?” वो मेरी आंखों में देखती हुई बोली.
“नहीं साली जी, सिर्फ आपको दुल्हन के वेश में देखते हुए प्यार करना है आपको!” मैंने कहा.

“चलो ठीक है जीजू, पर अभी इतनी सुबह सवेरे नहीं. कुछ देर रुको, नहा धो के तैयार होती हूं फिर जैसे आप चाहो वैसे कर लेना!” निष्ठा बोली और बिस्तर छोड़ के निकल ली.

मैं उनींदा सा यूं ही लेटा रहा और सोचता रहा.
मेरी अजीब सी फितरत है कि मैंने जब जब भी अपनी पत्नी को कोई नयी साड़ी दिलवाई है तो उसी रात मैंने उसे वही कोरी साड़ी पहिना कर खूब चोदा भी है. शर्मिष्ठा बार बार प्रतिवाद करती कि नयी साड़ी पहिन कर कल मंदिर चलेंगे उसके बाद आप जो चाहे सो कर लेना; पर मैं कहां मानता था. शर्मिष्ठा की ऐसी कोई भी साड़ी नहीं थी जिसे पहिना कर मैंने उसे न भोगा हो. इन्हीं सब बातों को सोचते सोचते मैं भी उठ गया और तैयार होने लगा.

उसी दिन की बात है. निष्ठा नहा धोकर तैयार हो गयी तो मैंने शर्मिष्ठा की अलमारी खोल कर उससे कहा- जो चाहो सो पहिन लो. सारे कपड़े और गहने वो सामने रखे हैं. तुम तैयार हो के आ जाना.

मैं बेडरूम में वेट कर रहा था. दिन के नौ बजे थे जब निष्ठा मेरे पास आई.

मैं उसे, उसका निश्छल सौन्दर्य, उसका वो लुभावना रूप देख कर अवाक रह गया. साली जी ने लाल रंग की बनारसी साड़ी और मैचिंग ब्लाउज पहिन रखा था.
वो साड़ी मैंने शर्मिष्ठा को वाराणसी से खरीद कर दी थी जब हम एक बार गंगा स्नान और बाबा विश्वनाथ तथा कपाल मोचन तीर्थ के दर्शनों को गए थे.

साली जी ने अपनी दीदी के सारे जेवर … माथे का टीका, झुमके, हार, चूड़ियां, अंगूठियां, करधनी, पायल सब कुछ पहिन लिया था और वो अपनी दीदी से भी कई गुना खूबसूरत लग रही थी.
माथे तक घूंघट डाल रखा था … आंखों में गहरा काजल, होंठों पर हल्की सी लाली और मधुर मुस्कान और लाज से झुकीं नज़रें; ये सब देख कर मैंने बरबस ही उसे अपने सीने से लगा लिया और उसे चूमने किस करने लगा.

“जीजू पहले नाश्ता कर लो फिर ये सब कर लेना!” निष्ठा बोली.
“ओके डार्लिंग, जैसा तुम कहो!” मैंने कहा.

नाश्ते के लिए निष्ठा ने आलू के परांठे बनाए थे, साथ में अचार और दही भी था.
भरपेट नाश्ता करके हम दोनो बेडरूम में आ गए.

उसे बेड पर गिरा दिया मैंने और खुद पूरा नंगा होकर उसे बांहों में लेकर लेट गया और मस्ती करने लगा. साली जी के गाल चूम डाले, होंठ चूस डाले गर्दन भी चूमी तो साली जी मुझसे कामातुरा होकर लिपटने लगी.

मैंने उसके बूब्स मसलना शुरू किया साथ ही मेरा घुटना जो उसकी जांघों के बीच में दबा हुआ चूत पर दस्तक दे रहा था, उससे चूत को रगड़ने लगा.

साली जी उठी और फिर पूरी तन्मयता के साथ लंड चूसने चाटने लगी. लंड चूसने की उसकी झिझक पूरी तरह समाप्त हो चुकी थी और अब वे इस अंदाज से मेरी आंखों में देखती हुईं लंड चूस रही थी जैसे कि उसके लिए इससे ज्यादा मनभावन कोई दूसरा काम संसार में हो ही न!

“जीजू जल्दी कर लो फिर अस्पताल चलना है दीदी को लिवाने!” निष्ठा रानी बोली और उसने ब्लाउज के हुक्स खोल दिए.

ब्लाउज के नीचे उसने ब्रेजरी नहीं पहिनी थी तो उसके नंगे बूब्स का लुभावना जोड़ा मेरे सामने हो गया जिन्हें मैंने जल्दी से दबोच लिया और सहलाने लगा.
थोड़ी देर यूं ही उसके मम्मों से खेलने के बाद मैंने उसकी साड़ी पैरों से ऊपर पेट तक सरका दी.

साड़ी के नीचे उसने न पेटीकोट न पैंटी कुछ भी नहीं पहिना हुआ था. मैंने खुश होकर उसकी चूत चूम ली तो निष्ठा ने भी अपने घुटने मोड़ कर ऊपर कर लिए और अपनी चूत को अपने हाथों से खोल दिया.
“लो जीजू … ये रही!” उसने चूत पसार कर कहा.

मैंने तुरंत झुक कर चूत को चूमना और चाटना शुरू किया; चूत चाटने से साली जी फुल मस्ती में आ गयी और अपनी ऐड़ियां बेड पर रगड़ने लगी.
फिर मैं उसके ऊपर छा गया और चूत रस के गीले होंठ उसके होंठों पर रख दिए और चूमने लगा.

“छिः जीजू … ये क्या …मत करो ऐसे!” साली जी मुझे परे धकेलते हुए बोली.
“निष्ठा मेरी जान, तुम्हारी चूत का रस तुम्हें ही चखा रहा हूं, लो अच्छे से चख लो!” मैंने कहा और उस होंठ अच्छे से चूसने चाटने लगा फिर गाल भी चाट चाट कर चूम डाले.
“तुमने मुझे भी गंदा कर दिया न … अब जल्दी करो अगर करना हो तो, देखो देर हो रही है.” साली जी उतावली होकर बोली.

“अरे यार, आराम से करते हैं न, ऐसी भी क्या जल्दी है. तेरी दीदी शाम तक भी आ जायेगी तो क्या फर्क पड़ेगा.” मैंने कहा और उसके ऊपर लेट गया.
मेरा फनफनाया हुआ लंड उसकी चूत पर रगड़ रहा था.

साली जी ने मेरा लंड पकड़ा और अपनी चूत की दरार की लम्बाई में चार पांच बार ऊपर नीचे रगड़ा फिर उसे चूत के छेद से सटा कर अपनी कमर जोर के झटके से उठा दी जिससे पूरा लंड फच्च से उसकी चूत में सरक गया.

फिर उसने अपनी टांगें मेरी कमर में लपेट कर मुझे अपनी भुजाओं में जोर से कस लिया. जैसे उसे डर हो कि मैं कहीं लंड को बाहर न निकाल लूं.

काफी देर तक हम दोनों बिना हिले डुले यूं ही एक दूसरे के बाहुपाश में बंधे रहे. निष्ठा की चूत की मजबूत ग्रिप, उसकी पकड़ और चूत के स्पंदनों को मैं अपने लंड पर महसूस करता हुआ उसके बूब्स में मुंह छिपाए लेटा रहा.

हालांकि मुझे इच्छा हो रही थी कि अब चूत में धक्के लगाना शुरू कर दूं पर चूत में लंड पहिना कर शांत लेटे रहने में भी खूब आनंद आता है. चूत-लंड का आपसी मूक संवाद बड़ा अलौकिक सुख देता है.

नीचे लेटी निष्ठा को शायद चुदने की मिसमिसी छूटने लगी थी … वो बार बार अपनी कमर ऊपर उठा कर चोदने का संकेत कर रही थी.
मेरी ओर से कोई प्रतिक्रिया न पाकर उसने मेरी पीठ में जोर से चिकोटी काट ली.

“स्ससी…” मेरे मुंह से कराह निकल गयी.
“अरे इतनी जोर से चिकोटी क्यों काटी?” मैंने भी उसका गाल हौले से काटते हुए पूछा.
“अब क्यों तरसा रहे हो आप …जल्दी से चुदाई करो न, अब रहा नहीं जाता!”

इसके बाद हमारे लंड-चूत के बीच वो भीषण संग्राम छिड़ा कि जिसका वर्णन करूं तो सब रिपीट ही लगेगा.
बस इतना बता दूं कि साली जी से लंड चुसवाने के बाद पूरे दम से उसकी चुदाई की फिर एक बार उसकी गांड मारने का भी मज़ा लिया.

ये सब करते हुए भी उसे नंगी नहीं किया. शर्मिष्ठा की साड़ी साली जी के जिस्म से पूरे दौर में बेतरतीब सी लिपटी रही.

इन सब से निपट कर साली जी ने शर्मिष्ठा के कपड़े और गहने यथा स्थान रख दिए और सादा सा सलवार कुर्ता पहिन लिया. दोपहर एक बजे के करीब हम अस्पताल के लिए निकलने लगे तो निष्ठा भावुक होकर मेरे सीने से लग गयी.

“जीजू, तुम मेरे जीवन में पहले पुरुष हो, मेरे तन मन पर तुम्हारा अधिकार जीवन भर रहेगा. मेरा विवाह चाहे जिसके साथ हो जाय पर मैं तन से और मन से सदा तुम्हारी ही रहूंगी. तुम कभी भी मुझे बुला कर देखना मैं सारे बंधन तोड़ कर तुम्हारे पास आऊँगी.” साली जी ने भीगे मन से कहा.

वो मेरी छाती से लग गयी और अपनी बांहों का हार मेरे गले में पहिना दिया. मेरी छाती में मुंह छुपा कर सुबकती सी रही और मैं उसकी पीठ सहलाता हुआ उसे चूमता हुआ दिलासा देता रहा.

उसी दिन दोपहर बाद साढ़े पांच बजे शर्मिष्ठा और मेरा बेटा अभिनव अस्पताल से घर आ गए.
घर में फिर चहल पहल हो गयी. मुझे ख़ुशी के साथ अफ़सोस भी था कि निष्ठा के साथ अब कुछ करने की स्थिति में मैं नहीं था.
शर्मिष्ठा को चोदना भी 40-45 दिन बाद ही संभव था.

कभी एकांत में निष्ठा को पकड़ कर चूम लेता या उसके बूब्स मसल लेता, बस यही सुख रह गया था. निष्ठा हमारे यहां से 15 दिन बाद अकेली अपने घर चली गई क्योंकि उसके कॉलेज की पढ़ाई का नुकसान हो रहा था.
मेरी सास जी दो महीने हमारे यहां ही रहीं. फिर जब शर्मिष्ठा एकदम नार्मल हो गयी और घर का काम काज करने लगी तो सासू माँ भी अपने घर चली गयीं और हमारा जीवन पहले की तरह ही सामान्य रूप से चलने लगा.

मित्रो, इस प्रकरण के तीन वर्षों के बाद निष्ठा के विवाह की फ़िक्र उसकी मम्मी को होने लगी.
उन्होंने ये जिम्मा मेरे ही ऊपर ही डाल दिया कि दामाद जी आप ही कोई अच्छा सा वर ढूँढ़ दो निष्ठा के लिए.

मेरे ससुर जी का देहांत तो कई वर्ष पूर्व ही हो चुका था और निष्ठा का कोई भाई भी नहीं था. अतः मेरे लिए यह भी एक फर्ज ही था जिसे मुझे निभाना ही था. मैंने अखबार में विज्ञापन देकर साली जी के लिए सरकारी नौकरी वाला, अच्छा सजातीय योग्य वर तलाश लिया और निष्ठा का विवाह धूमधाम से कर दिया.
अब तो उसके एक बेटा भी है और वो अपनी ससुराल में सब तरह से सुखी संपन्न है. अब ये कहानी यहीं समाप्त होती है.

उपसंहार

निष्ठा की शादी के बाद भी उससे कई बार मिलना हुआ कभी किसी रिश्तेदारी के शादी समारोह में कभी किसी अन्य कारण से और मैंने निष्ठा की आँखों सदैव ही में अपने लिए चाहत और चुदाई करने का मूक आमंत्रण ही देखा.
लेकिन मैंने हमेशा इसे नजरअंदाज किया और निष्ठा से एकांत में मिलने से भी बचता रहा.
हालांकि मेरा दिल भी कई बार किया कि चलो एक बार और निष्ठा को चोद लेते हैं पर मैंने हर बार यह सोच कर खुद पर काबू पाया कि अगर किसी को हमारे संबंधों की भनक भी लग गयी और और कोई ऊँच नीच हुई तो निष्ठा का हँसता खेलता जीवन नरक बन जाएगा और कालिख तो मुझे भी लगेगी ही.
हमेशा यही सोच कर मैं निष्ठा से बचता रहा.

तो मित्रो … यह थी मेरी बहूरानी अदिति की मौसी सास निष्ठा की चुदाई कथा.

कई बार रिश्तेदारी में या समाज के शादी ब्याह में जाने पर ऐसा भी हुआ कि मेरी पत्नी शर्मिष्ठा, बहूरानी अदिति, निष्ठा और कम्मो (कम्मो की कहानी “कमसिन कम्मो की स्मार्ट चूत” तो याद तो होगी ही आप सबको जो अदिति के चचेरे भाई की शादी में दिल्ली में मिली थी और मुझसे चुदी भी थी) एक साथ बैठे हुए बतियाते मिलीं.

मुझे यह देख कर अजीब सा हर्ष होता था कि इन चारों की चुदाई मैंने की है. निष्ठा, अदिति या कम्मो किसी को भी एक दूसरे की चुदाई का राज पता नहीं था. सबकी निगाह में मेरे लिए प्यार और आमंत्रण ही होता था पर मैं सबकी निगाह से बचता रहता था.

किस्मत के रंग भी कितने निराले होते हैं. आप लोगों को कभी ऐसा मंज़र देखने को मिला हो तो मेरे मनोभावों का अंदाजा आप सहज ही लगा सकते हैं.

प्रिय पाठक पाठिकाओ, उम्मीद है कि मेरी पिछली सभी कहानियों की तरह यह कहानी भी आपकी अपेक्षाओं पर खरी उतरी होगी और लड़की की सेक्सी घांड की कहानी पढ़ते हुए सबने अपनी अपनी रूचि अनुसार पूरा आनंद लिया होगा.
हां, आपके अमूल्य कमेंट्स की प्रतीक्षा रहेगी ताकि अगली कहानी में और सुधार ला सकूं. मेरी मेल आई डी नीचे दी जा रही है जिस पर भी आप अपनी प्रतिक्रिया, कमेंट्स और सुझाव साझा कर सकते हैं.

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धन्यवाद
समाप्त