सेक्स के लिए पागलपन-2

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

सेक्स के लिए पागलपन-1

सेक्स के लिए पागलपन-3

उसके बाद तो हम दोनों का एक दूसरे को देखने का नज़रिया ही बदल गया। आते जाते हर वक्त हमारा ध्यान एक दूसरे पर ही रहता। रात के खाने के बाद भी हमें एक दो बार मौका मिला तो मैंने अगर उसके होंठ चूमे, उसके मम्में दबाये तो उसने भी बड़ी उतावली होकर मुझे चूमने दिया, और मेरी लुल्ली को पकड़ा और खींचा। एक दिन में ही हमारा प्यार परवान चढ़ गया था।

अगले दिन सुमन के मामा का परिवार भी आ गया। सुमन के मामा का लड़का भी मेरा ही हमउम्र था। अब हम खेलने वाले 6 लोग हो गए थे। मगर सुमन का ममेरा भाई मोहित बहुत हरामी टाईप था। साले ने बहुत जल्दी भाँप लिया के मेरे और सुमन के बीच कुछ है। शाम को जब हम खेतों की तरफ घूमने गए तो साले ने पूछ भी लिया। अब मेरी भी जाट बुद्धि, मैंने भी उसे सब सच सच बता दिया, तो वो बोला- तो भाई सुमन तो हम दोनों की बहन है, और दूर के रिश्ते में हम दोनों भी भाई ही लगते हैं। तो क्यों न दोनों भाई मिल बाँट कर खाएं।

मुझे क्या इंकार हो सकता था, तो बस उसी रात खेलते खेलते हम तीनों पीछे वाले बड़े कमरे में गए, और बस अंदर जाते ही, सुमन और मैं आपस में लिपट गए, दोनों बेतहाशा एक दूसरे को चूमने लगे। मोहित भी हमारे पास ही खड़ा था। एक लंबा और बढ़िया चुंबन लेने के बाद मैंने सुमन से कहा- मोहित भी हमारे साथ है, वो भी तुमसे प्यार करना चाहता है।
सुमन ने कोई आनाकानी नहीं की। अगले ही पल सुमन और मोहित आपस में लिपटे एक दूसरे को चूम रहे थे। तब मेरे दिल में एक बारगी ये विचार आया कि मैंने मोहित से सुमन की बात करके गलती की। साली अपनी माशूक किसी और के होंठों को चूमे, पहली बार माशूक की बेवफ़ाई का और अपने चूतिया होने का एहसास हुआ।

मगर अब तो गाड़ी चल पड़ी थी, अब कैसे रोका जा सकता था। मोहित ने सुमन को खूब चूमा, उसके मम्में मसले, साले ने अपनी पैन्ट की ज़िप खोल कर अपना लंड निकाल कर सुमन को पकड़ाया, तो अपना एक हाथ उसने भी सुमन की सलवार में डाल दिया। अब पता नहीं सलवार में हाथ डाल कर वो क्या कर रहा था, सुमन तो उसके होंटों को खा जाने को हो रही थी, और उसके मुंह से बस- उम्म … आह …” ही निकल रही थी।

मैंने जब ये उत्तेजक कामुक दृश्य देखा, तो मुझसे भी न रहा गया। मैंने अपनी पैन्ट की ज़िप खोली और अपना लंड निकाला और सुमन के पीछे जाकर चिपक गया। मोहित ने सुमन की सलवार खोल दी, उसकी सलवार नीचे गिरा कर मोहित ने अपना लंड सुमन के आगे लगाया और मैंने पीछे लगा दिया मगर अंदर किसी ने नहीं डाला।
हम दोनों बारी बारी से सुमन के होंठ चूम रहे थे, और वो भी हम दोनों से मज़े ले रही थी।

फिर मोहित बोला- यार ऐसे मज़ा नहीं आता, सुमन, मुझे तेरी फुद्दी मारनी है, कल दोपहर को खेतों में चलते हैं, वहाँ जा कर सब कुछ करेंगे।
सुमन ने हाँ बोला, मैं भी खुश हो गया कि चलो मोहित के बहाने से ही सही, साला फुद्दी का जुगाड़ तो हो गया।

अगले दिन हम घर में घूमने का कह कर खेतों की ओर चले गए। हमारे खेतों से आगे काफी आगे जाकर थोड़ी बेकार सी ज़मीन है, जहां पर सिर्फ कीकर, करीर जैसे बेकार से पेड़ और झाड़ उगे हैं। हम तीनों वहाँ जा पहुंचे, और उन झाड़ों में काफी अंदर तक चले गए। आगे थोड़ी सी साफ जगह मिल गई, तो हम तीनों वहाँ जा बैठे। अब एक धुकधुकी हम तीनों के दिल में थी, आ तो गए, अब चोदाचादी शुरू कैसे करें।

ये काम भी मोहित ने ही शुरू किया। उसने सुमन का मुंह अपनी तरफ घुमाया और उसको चूम लिया। बस इसी एक शुरुआत की ज़रूरत थी, फिर तो मैं भी सुमन से चिपक गया। दोनों, मैं और मोहित, कभी एक उसका मुंह अपनी तरह घूमा कर उसके होंठ चूसता, तो कभी दूसरा, सुमन के तो दोनों हाथों में लड्डू थे। और हमारे हाथों में सुमन के मम्में थे।

मोहित ने सुमन की कमीज़ ऊपर उठा दी। नीचे से उसने ब्रा या अंडरशर्ट कुछ भी नहीं पहना था। गोरे गोल मम्मे, जिन पर हल्के गुलाबी से रंग के निप्पल बन कर उभर रहे थे। पहले मैंने सुमन के मम्में को दबा कर देखा, मगर मोहित तो सीधा चूसने ही लगा। फिर मैंने भी सुमन का मम्मा चूसा। मोहित और मैंने दोनों ने अपनी अपनी पैन्ट उतार दी, और चड्डी भी उतार कर हम दोनों तो नंगे ही हो गए। दोनों की झांट आ गई थी। शायद वो भी कभी कभी मुट्ठ मारता होगा, मेरी तरह उसके भी लंड की सील टूटी हुई थी।

हम दोनों ने अपने अपने लंड सुमन को पकड़ाये। सुमन हम दोनों के लंड पकड़ कर दबाने लगी। फिर मोहित ने सुमन की सलवार का नाड़ा खोला, एक बार तो सुमन ने रोका, वो थोड़ा शरमाई भी। मगर मोहित तो बहुत ही उतावला हो रखा था। उसने नाड़ा खोला और एक ही बार में सुमन की सलवार खींच कर उतार दी, और उसके बाद उसकी कमीज़ भी उतार दी।

सुमन हम दोनों के बीचे बिल्कुल नंगी हो कर लेटी थी। वो नंगी हुई तो हम दोनों ने अपनी अपनी कमीज़ उतार दी।
मोहित ने मुझसे पूछा- पहले तू करेगा या मैं करूँ?
मैंने कहा- पहले मेरी दोस्ती हुई थी सुमन से, मैं ही करूंगा।
मोहित एक बगल हट गया, बोला- चल आजा फिर।

मैं सुमन की दोनों टांगों के बीच में आया, मैंने अपना लंड उसकी फुद्दी पर रखा और अंदर डालने की कोशिश करी मगर मेरा लंड सुमन की फुद्दी में नहीं घुसा।
मोहित बोला- अबे चल बे भोसड़ी के, तुझे तो पता भी नहीं के कहाँ डालते हैं। हट पीछे मैं दिखाता हूँ।
मोहित मुझे परे धकियाते हुये खुद मेरी जगह आया और उसने सुमन की दोनों टांगें अपने हाथों से पकड़ कर पूरी खोल दी और अपनी कमर हिला कर ही अपना लंड उसकी फुद्दी पर सेट किया। तब मैंने देखा कि मैं तो ऊपर ही अपना लंड सेट कर रहा था, वहाँ कहाँ घुस पाता मेरा लंड।

और जब मोहित ने रख कर अंदर को घुसेड़ा तो उसके लंड के टोपा एक मिनट में सुमन की फुद्दी में घुस गया मगर साथ ही सुमन भी तड़प उठी- हाय … मोहित भैया।
उसने मोहित की कमर पकड़ कर उसे रोकने की कोशिश करी। सुमन का चेहरा दर्द से भरा था। मगर मोहित पर उन्माद छाया था। उसने सुमन की कोई बात नहीं सुनी और अपना लंड और उसकी फुद्दी में घुसेड़ा। सुमन रोई तो नहीं, मगर उसे दर्द ज़रूर हुआ था, पर वो सब सह गई।
मैंने देखा थोड़ा थोड़ा करके और सुमन को “बस थोड़ा सा और, थोड़ा सा और” कहते कहते मोहित ने अपना सारा लंड उसकी फुद्दी में घुसेड़ दिया।

माशूक मेरी, सेट मैंने की, मगर चुदाई पहले उसने की। पूरा लंड अंदर डालने के बाद मोहित ने कई बार अपनी कमर आगे पीछे करी। कुछ देर तक मोहित ने सुमन को बड़े प्यार से चोदा और फिर मुझको बोला- चल तू भी डाल के देख।
उसने अपना लंड बाहर निकाला और मैं फिर से सुमन की टांगों के बीच में था। मैं सुमन के ऊपर झुका तो उसने मेरा लंड पकड़ कर खुद ही अपनी फुद्दी पर सेट किया। मैंने हल्का सा धक्का लगाया और मेरा लंड अंदर को घुस गया। जैसे कोई गरम गीली गुफा हो। सच में बड़ा मज़ा आया, पहली बार फुद्दी में मेरा लंड घुसा था।

ये बात तब मेरे दिमाग में नहीं आई कि सुमन की सील तोड़ने का मज़ा मैं नहीं ले पाया, पर आज ये बात ज़रूर सोचता हूँ। मैं भी मोहित की देखा देखी अपना लंड सुमन की फुद्दी में डाला और आगे पीछे करने लगा। बेशक मुझे नहीं पता मैं सुमन को सही से चोद रहा था या नहीं, मगर सुमन ने जब मेरे साथ किया तो उसने कहा ज़रूर- तू मोहित से बढ़िया कर रहा है।
मैं तो फूल कर कुप्पा हो गया और खुद को बहुत बड़ा चोदू समझने लगा। मैंने एक काम और किया जो, मोहित ने नहीं किया था, वो ये के मैंने अपना पूरा लंड सुमन की फुद्दी के अंदर तक डाला, जबकि मोहित सिर्फ अपना आधा लंड ही उसकी फुद्दी के अंदर बाहर कर रहा था, शायद इसी से सुमन को चुदवाने में ज़्यादा मज़ा आया और उसने मुझे मोहित से बढ़िया पाया।

चुदाई के दौरान हमने सुमन के खूब मम्में चूसे, खूब दबा दबा कर देखे, पहली बार जो किसी लड़की के साथ सेक्स जो कर रहे थे। मोहित ने सुमन को अपना लंड चूसने को कहा, मगर सुमन ने साफ मना कर दिया- ये गंदे काम न तू अपने शहर की रंडियों से करना, मैं ऐसा घटिया काम कतई न करूँ।
जब मोहित ने थोड़ा और ज़ोर डाला तो सुमन तो बिगड़ गई- अबे जब एक बार मना कर दिया तो पल्ले न पड़ता तेरे। साले जो काम ढंग से करना है तो कर, नहीं तो भाग जा भोंसड़ी के।

सुमन के मुंह से गाली सुन कर तो हम दोनों के गोटे हलक में आ गए। हमें नहीं पता था कि सुमन इतनी बिगड़ैल, इतनी बिंदास है।

खैर मैं अपनी स्पीड से लगा रहा। थोड़ी देर बार मेरा माल छूटा, साली इतनी समझ ही नहीं थी कि माल बाहर गिराते हैं। मैंने तो सुमन की फुद्दी में ही अपना सारा माल गिरा दिया। मैं जैसे ही फारिग हो कर सुमन के ऊपर से उतरा, तभी मोहित मेरी जगह आ गया, और उसने अपना लंड सुमन की फुद्दी में डाल दिया, उसने मुझे पूरा लंड डाल कर चुदाई करते हुये देख लिया था, तो वो भी पूरा लंड डाल कर सुमन को चोदने लगा।

यह वो वक़्त था, जब हमें इस बात का कोई एहसास ही नहीं था कि सही सेक्स क्या होता है। इसमें सिर्फ अपनी नहीं, अपने साथी की संतुष्टि का भी खयाल रखना पड़ता है।

कुछ देर बाद मोहित ने भी अपना सारा माल सुमन की फुद्दी में झाड़ दिया। हमें बड़ा मज़ा आया। मगर यह मज़ा ऐसा था कि इससे हमारा दिल ही नहीं भरा। कपड़े पहनते पहनते हमने कल का प्रोग्राम भी फिक्स कर लिया कि कल बाद दोपहर फिर इसी जगह मिलेंगे और फिर से मज़े करेंगे।

उसके बाद तो हमारा ये रोज़ का ही प्रोग्राम होने लगा। सुमन भी हर वक्त गरम रहती, बावली रहती चुदाई के लिए। और हम दोनों भी उतावले रहते. मैं और मोहित दोनों को बस हर जगह सुमन ही दिखती। आते जाते हम दोनों सिर्फ उसको ही घूरते रहते। उसके मम्मे, उसकी गांड। उसका हँसना, बोलना, बात करना, चलना, चहकना। बस हम दोनों तो उसी को देख देख कर दीवाने हो रखे थे।

कहानी जारी रहेगी.
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