गुलाब की तीन पंखुड़ियां-9

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

गुलाब की तीन पंखुड़ियां-8

गुलाब की तीन पंखुड़ियां-10

नमस्ते दोस्तों, मेरी कहानी के इस नवें भाग में आपका स्वागत है. अब कहानी को आगे बढ़ाते हैं…

गौरी को उसके घर के पास ड्राप करने के बाद ऑफिस जाते समय मैं सोच रहा था ‘साली यह नौकरी भी एक फजीहत ही तो है। पता नहीं ये पढ़ाई-लिखाई, नौकरी चाकरी, घर-परिवार, रिश्ते-नाते, शादी-विवाह, बालिग-नाबालिग किस योनि निष्कासित (भोसड़ी वाले) का आइडिया था। आराम से जंगलों या गुफाओं में रहते, कंद-मूल-फल खाते, मर्ज़ी के मुताबिक मनपसंद चूत और गांड मारते, बच्चे पैदा करते और सुकून से मर जाते।’

मैंने बचपन में ‘अलादीन और जादू का चिराग’ नामक एक कहानी पढ़ी थी। जिसमें अल्लादीन जादू का चिराग लेने किसी गुफा में जाता है। वहाँ इंसानों के सिवा नदियाँ, झरने, तालाब, आलीशान मकान, फल और फूलों से लदे सुंदर बगीचे थे।
बस कोई ऐसी ही जगह हो जहाँ मैं गौरी और सुहाना को लेकर चला जाऊँ और फिर उन दोनों के साथ पूरी जिंदगी बिता दूँ। पूरी दुनिया में कितने भयंकर तूफ़ान और जलजले आते हैं। काश! भरतपुर में कोई सुनामी आ जाए। फिर तो मैं बस इस दीन दुनिया को छोड़कर गौरी और सुहाना के साथ किसी अज्ञात जगह पर चला जाऊं जहां हमारे सिवा और दूसरा कोई ना हो।

ऑफिस में किसी काम में मन लग रहा था। बस गौरी के ख्यालों में ही डूबा था। इस साली गुलाबो को भी आज ही बीमार पड़ना था। अगर आधा घंटा और मिल जाता तो बस गौरी फतह अभियान आज ही अपने मुकाम पर पहुँच जाता।
अभी तो प्रेम का पहला सबक ही उसे पढ़ाया है अभी तो ‘आंटी गुलबदन वाले प्रेम के 6 सबक’ बाकी हैं, क्या पता कब पूरे होंगे।

कई बार तो मुझे डर सा लगता है और डर के कई वाजिब कारण भी हैं। कहीं मधुर को कोई शक तो नहीं हो जाएगा? कई बार यह भी ख्याल आता है कि कहीं मैं मधुर के साथ धोखा तो नहीं कर रहा हूँ? या गौरी की मासूमियत का नाजायज़ फ़ायदा तो नहीं उठा रहा?

हो सकता है गौरी अति उत्साह में या अनजाने में चुम्बन दे बैठी हो? बाद में उसे अपनी गलती का अहसास हुआ हो या उसे ख़याल आये कि यह सब गलत है तो क्या होगा? क्या पता अब गौरी वापस ही ना आये तो क्या होगा?
वैसे तो इस बात की उम्मीद कम है पर मान लो गलती से उसने मधुर को यह चुम्बन वाली बात बता दी तो? फिर तो निश्चित ही लौड़े लग ही जायेंगे!

मेरे प्रिय पाठको और पाठिकाओ! मैंने अपनी बहुत सी प्रेमिकाओं को खोया है उनको खोने का दर्द मैं ही जान सकता हूँ। जिस प्रकार मैंने अपनी प्रेमिकाओं को खोया है कई बार तो लगता है वास्तव में ही मैं कोई शापित व्यक्ति हूँ जिसे अपनी हर प्रेमिका को अंत में खोना ही पड़ेगा। मैं सच कहता हूँ अब मैं गुलाब के इस तीसरे कांटे की जुदाई का जख्म बर्दाश्त नहीं कर पाउँगा। या खुदा … सॉरी हे लिंग देव!!!! मदद कर!!! अब गौरी को खोने का हौसला मेरे अन्दर नहीं है।

वैसे ज़िन्दगी में परेशानियां ‘चुनौतियों’ की वजह से कम और ‘चूतियों’ की वजह से ज़्यादा होती हैं। साला ये भोंसले भी सुकून से जीने भी नहीं देता। उसे हर समय केवल सेल्स टारगेट्स की ही लगी रहती है। अब उसने एक हफ्ते के टूअर का प्रोग्राम बना दिया है। आप मेरी हालत समझ सकते हैं।

शाम के सात साढ़े-सात का समय रहा होगा। मैं गाड़ी सर्विस के लिए देना चाहता था पर बाद में मैंने अपना इरादा मुल्तवी (प्रोग्राम बदलना) कर दिया। सोचा आज लेट हो गई है कल सुबह टूअर पर जाते समय गाड़ी सर्विस स्टेशन पर छोड़ दूंगा।

रास्ते में मैं मधुर के बारे में सोच रहा था। आज मैं सारी रात मधुर को अपनी बांहों में भरकर हल्का हो लेना चाहता था पर लगता है इन बाबाओं के चक्कर में एक महीने की पनौती लग ही जायेगी। पता नहीं उसके दिमाग में क्या चल रहा है? इस शुक्र और राहू-केतु के चक्कर में किसी बाबा ने ठोक बजा दिया तो मैं तो गली-गली यही गाता फिरूंगा कि ‘मैं लुट गया … बर्बाद हो गया.’ और फिर लोग पूछेंगे ‘कितने आदमी थे?’

गाड़ी पार्क करने के बाद मैं घर की ओर मुड़ने ही वाला था कि सुहाना एक हाथ में टेनिस का रैकेट और दूसरे हाथ में अपने झबरे कुत्ते की जंजीर पकड़े आती दिखाई दी।

हे लिंग देव! आज की शाम को तो तुमने वाकई बहुत ही सुहाना बना दिया है आज तो बहुत अच्छा सगुन हो गया। पिछले 15-20 दिनों में तो इस फुलझड़ी के दर्शन ही दुर्लभ हो गए थे।

सिर पर वही नाईके की टोपी, झक सफ़ेद रंग की स्कर्ट और छोटी सी निक्कर पैरों में स्पोर्ट्स सूज पहने ऊपर से नीचे बस क़यामत। पतली कमर के ऊपर एक जोड़ी सुडौल सांचे में ढली नारंगियाँ और तीखे कंगूरे। कांख के पास पसीने से गीली हुई शर्ट।

मेरा अंदाज़ा है उसकी पिक्की और बगलों में अभी हल्के हल्के मखमली रोयें ही होंगे जिन्हें झांट तो बिलकुल नहीं कहा जा सकता। लम्बी छछहरी गुदाज़ बाहें। कन्धों के ऊपर तक कटे घने काले मुलायम रेशमी बाल और कानों में वही सोने की छोटी-छोटी जानलेवा बालियाँ।

हे भगवान् कितना नयनाभिराम दृश्य था। मेरी आँखें तो उसकी पुष्ट गुलाबी जाँघों से हट ही नहीं रही थी। मस्त हिरनी की तरह कुलाचें सी भरती जैसे ही वो मेरे पास से गुजरने लगी उसके अल्हड़, अनछुए, कुंवारे बदन से आती खुशबू मेरे स्नायु तंत्र को एक ठंडी मदहोश करने वाली फुहार से सराबोर करती चली गई। उसके छोटे-छोटे कसे हुए नितम्बों की थिरकन देखकर तो मेरे दिल की धड़कन बेकाबू सी होने लगी।

मेरा मन तो करने लगा इस फुलझड़ी को बस एक बार बांहों में भरकर चूम लूं! मैं सच कहता हूँ अगर मैं कोई 18 साल का लौंडा लपाड़ा होता तो कब का उसे बांहों में दबोच लेता पर मेरे जैसे सामाजिक प्राणी के लिए यह कैसे संभव हो सकता था? मैं तो बस टकटकी लगाए उसे देखता ही रह गया।

हे लिंग देव! मेरे ख़्वाबों की शहजादी केवल एक कदम के फासले पर थी। मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था। मेरा लंड तो जैसे किलकारियां ही मारने लगा था। मैं सोच रहा था किसी बहाने से उसे थोड़ी देर रोक कर बात कर ली जाए और थोड़ा सा नयन सुख भोग लिया जाए। मैं अभी कुछ सोच ही रहा था कि उसका कुत्ता कुछ सूंघते हुए भों-भों करता मेरी ओर आने लगा।

“नो शुकु! नो!” सुहाना ने इसके गले से बंधी जंजीर से उसे अपनी ओर खींचा।

आज जिन्दगी में पहली बार मैंने सुहाना को इतनी नजदीक से देखा था और उसकी आवाज सुनी थी। आह … कितनी कोमल और सुरीली आवाज थी। जैसे कोई कोयल अमराई में कूकी हो या किसी ने जलतरंग पर कोई मीठी धुन छेड़ दी हो।

पर साले इस पिल्ले को उसकी नज़ाकत का अंदाज़ा कहाँ था? गौरी ने एक बार मुझे बताया था कि इस कुत्ते का नाम शाहरुख खान रखा हुआ है और ये लोग प्यार से इसे ‘शुकु’ बुलाते हैं।

इतने में अचानक कहीं से एक आवारा कुत्ता जोर से भोंकते हुए सुहाना और शुकु की ओर झपटा। उसने पहले तो एक झपट्टा शुकु की ओर मारा और फिर सुहाना के घुटनों और जाँघों पर पंजा मार दिया।
इस अप्रत्याशित घटना से उसके हाथ से जंजीर छूट गई और शुकु खान मियाँ प्यों-प्यों करते हुए कार के नीचे दुबक गए। इस आपाधापी में सुहाना के हाथ में पकड़ा टेनिस बैट भी गिर गया।

सुहाना की डर के मारे चीख सी निकल गयी- मम्मीईई ईईईइ …
उसकी घिग्गी सी बंध गई और वह दौड़ कर मेरे से लिपट गई।

यह सब घटनाक्रम इतनी तेजी से हुआ था कि एक पल के लिए तो मुझे भी कुछ समझ नहीं आया कि यह सब क्या हो गया है।
मुझे तो तब ध्यान आया जब उसने कसकर मुझे पकड़ लिया और उसके दोनों उरोज मेरे सीने से आ लगे। उसकी गर्म साँसें मेरे गले पर महसूस होने लगी थी। उसके दिल की धड़कन इतनी तेज थी कि मैं उसे साफ सुन सकता था।

मैंने अपने एक हाथ से सुहाना की कमर को पकड़े अपने सीने से लगाए रखा और दूसरे में पकड़े बैग से उस कुत्ते को मारते हुए हटाया। इस आपा-धापी में मेरे हाथ में पकड़ा बैग भी गिर गया फिर मैंने ‘हट! हट!’ करते हुए उस कुत्ते को थोड़ा हड़काया।
बैग की मार और उसके गिरने से वह कुत्ता भाग गया।

अब मुझे सुहाना का ख़याल आया। सुहाना अभी भी सुबक रही थी। मैंने धीरे से उसे पुचकारा- अरे कुछ नहीं हुआ डरो नहीं, तुम तो बहादुर लड़की हो.
मेरा एक हाथ उसकी कमर पर था और मेरा दूसरा हाथ अपने आप उसके खरबूजे जैसे नितम्बों पर सरक गया।

हे भगवान् कितनी मादकता भरी हुई थी इन दो गुदाज़ गुम्बदों में। उसके कमसिन और अल्हड़ बदन से पसीने और किसी बॉडी स्प्रे (परफ्यूम) की मिली जुली खुशबू मेरे नथुनों में समा गई। मिक्की और सिमरन के बाद कोई किशोरी लड़की आज मेरे बाहुपाश में सिमटी हुई थी।
मैं सोच रहा था काश! वक़्त थम जाए और मैं सुहाना को इसी तरह अपने आगोश में लिए बाकी की जिन्दगी बिता दूं!

“बस … बस … डरो नहीं यू आर अ ब्रेव गर्ल!” मैंने उसके गालों पर लुढ़क आये आंसुओं को पोछा और फिर उसके गालों पर थपकी सी लगाई।

रुई के फोहे जैसे नर्म गुलाबी गालों पर किसी शबनम की बूंदों की तरह लुढ़क आये आंसू तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उसके लाल गुलाबी फड़कते होंठ जैसे संतरे की फांक हों। मैं सच कहता हूँ मेरा मन तो उनपर एक चुम्बन ले लेने का करने लगा था।

इतने में आस पास के लोग शोर सुनकर आ धमके। सभी पूछने लगे ‘क्या हुआ? क्या हुआ?’
“कुछ नहीं वो … वो … कुत्ते के कारण थोड़ा डर गई है।”

इतने में संजीवनी बूंटी (सुहाना की मम्मी श्री) आ गई। वह भी थोड़ा घबराई हुई थी। अपनी माँ को देखकर सुहाना मेरी बांहों से निकल कर अपनी मम्मी से जा लिपटी और जोर-जोर से रोने लगी।

“की होलो बेबी?” (क्या हुआ बेबी) शायद उसने बंगाली भाषा में पूछा था।
“से … से … कुकुरा” (वो… वो… डॉगी?)
“आपनी कोथा ओ बीतेंन ना? दिखाबे ना?” (कहीं काट तो नहीं लिया? दिखाओ?” संजया ने घबराए हुए फिर पूछा।

फिर संजया ने उसकी स्कर्ट को थोड़ा ऊपर करते हुए उसके घुटनों और जाँघों को देखा। पता चला कुत्ते के पंजों से सुहाना के घुटनों और जाँघों पर खरोंच सी आयी है और उससे खून भी निकल रहा है। हे भगवान्! रोम विहीन, नर्म, मुलायम, भरी-पूरी पुष्ट स्निग्ध जांघें जैसे उनपर गुलाब का मुलम्मा (परत) चढ़ा हो। जाँघों के संधि स्थल का उभरा हुआ भाग तो जैसे स्पर्श और चुम्बन का का निमंत्रण ही दे रहा था। मैं सच कहता हूँ ऐसी खूबसूरत जांघें तो सिमरन की भी नहीं थी।

“ओह… कामता बा नाखा थेके?” (ओह… मुंह से काटा या पंजों से?)
“आमि … जानि ना?” (मुझे… पता नहीं?)
“ओह… गोड अब क्या होगा? वो मिस्टर बनर्जी भी यहाँ नहीं हैं?” संजया ने बेचारगी से मेरी ओर देखा।
“क… कोई बात नहीं … मैम … आप चिंता ना करें। मैं हूँ ना? गाड़ी निकालता हूँ, अभी डॉक्टर को दिखा देते हैं।” मैंने उसे दिलासा देते हुए कहा।

“नो… मोम… आमि इंजेक्शन पाबेना ना.” (नो… मोम… मैं इंजेक्शन नहीं लगवाऊँगी.) कहकर सुहाना फिर जोर-जोर से रोने लगी।
“इट्स ओके बेबी… प्लीज… कूल डाउन” (ठीक है बेटा … हौसला रखो)

और फिर सुहाना को पास के नर्सिंग होम में दिखाया। डॉक्टर ने अपना उपचार कर दिया था। वापस लौटते समय संजया तो आज संजीवनी बूंटी के स्थान पर शहद की डली ही बन गई थी। उसने हाथ मिलाते हुए इस आपात स्थिति में किये गए इस सहयोग के लिए मेरा धन्यवाद किया और मुझे ‘कभी घर आने का न्योता’ भी दिया।

जिस प्रकार से उसने ‘कभी घर आने का’ न्योता दिया था मैं बाद में कई दिनों तक इस मनुहार भरे न्योते पर गंभीरता पूर्वक विचार करता रहा था। अलबत्ता अगले 5-6 दिन टूअर के चुतियापे में ही निकल गए।

दोस्तो! आप क्या सोचते हैं संजवानी बूंटी ने शिष्टाचारवश (औपचारिकता) ऐसा कहा था या कोई और बात हो सकती है? आप मुझे मेल करेंगे तो मुझे बड़ी ख़ुशी होगी।

मैं जब टूअर से वापस आया तब तक कई चीजें बदल गई थी। मधुर का पुत्रयेष्टि प्रोग्राम शुरू हो चुका था। उसने पास के मंदिर में रोज सुबह-शाम एक-एक घंटे शुक्र के पाठ करने शुरू कर दिए थे और दिन में केवल एक बार हल्का भोजन लेकर व्रत भी करने चालू कर दिए थे। पिछले 5-7 दिनों से शुद्धता की तो वैसे भी कोई समस्या थी ही नहीं और अब उसकी हिटलरशाही के सामने मेरी औकात और हिम्मत उसे अशुद्ध करने की कहाँ थी। हमारे बेडरूम में ही उसने अपने सोने के लिए एक फोल्डिंग बेड अलग से डाल लिया था। शाम को नियमित रूप से गौरी को पढ़ाना भी चालू हो गया था।

ऑफिस में बहुत दिनों बाद कोई ढंग की लड़की ने ज्वाइन किया है। भरी हुई मांग और माथे की बिंदी दर्शाती है कि नई-नई शादी हुई है। रंग रूप तो ठीक-ठाक है पर उसकी लगभग 36-24-36 की फिगर दिलकश ही नहीं जानलेवा है। चलते समय जिस प्रकार उसके नितम्ब थिरकते हैं आप जैसे अनुभवी लोग अच्छी तरह समझ सकते हैं कि यह साली गांड बाजी का मज़ा जरूर लेती होगी वरना इतने खूबसूरत नितम्बों का क्या फायदा।
भोंसले एक हफ्ते के लिए पूना गया हुआ है तो ऑफिस में शांति का माहौल है।

ओह … मैं भी क्या फजूल की बातें ले बैठा। मैं गौरी के बारे में तो बताना ही भूल गया!
गुलाबो की तबियत अब सुधरने लगी थी तो गौरी वापस आ गई है।

गौरी का तो रंग रूप ही निखर सा गया है। अगर मैं कहूं कि अब तो वह रूपगर्विता बन गई है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। अब उसे अपनी सुन्दरता का अहसास होने लगा है और थोड़ी नाजुकी के साथ नखरे भी आने लगे हैं। अब यह उस चुम्बन का असर है या कोई दीगर बात है पता नहीं?

लगता है मधुर ने उसे सजना संवारना सिखा दिया है। वैसे भी नखरे तो जवान लड़की अपने आप सीख ही लेती हैं। कमर तक झूलते बालों को थोड़ा सा ट्रिम करवा दिया है और अब चोटी के बजाय बाल खुले रखने लग गई है। शर्ट या कुर्ते के ऊपर के बटन खुले रखने में अब वो ज्यादा नहीं शर्माती है। माथे पर एक छोटी से लाल बिंदी, कानों में सोने की छोटी-छोटी बालियाँ। साली पूरी मुज्जसमा बनी है।

दोस्तो! आप जरूर सोच रहे होंगे इन छोटी-छोटी बातों का यहाँ लिखने का क्या औचित्य है? क्यों हमारे और अपने लंड को तड़फा रहे हो? साली को पकड़ कर रगड़ क्यों नहीं देते? एक बार थोड़ा सा कुनमुनाएगी और बाद में अपने आप समर्पण कर देगी।
अब वो इतनी लोल भी नहीं है कि तुम्हारी मनसा और नियत अबतक ना समझ पायी हो। स्त्री तो एक नज़र में ही आदमी की नीयत और मनसा दोनों जान लेती है। और फिर अब इस इश्क की आग तो वह भी झेल ही रही होगी।
उसने जिस प्रकार उस दिन चुम्बन में इतनी दिलचस्पी दिखाई थी लगता है अब उससे अपनी जवानी का बोझ संभाला नहीं जा रहा है। तुम मानो या ना मानो उसके मन में भी प्रेम अंकुरित हो चुका है और वह भी इस नैसर्गिक सुख को भोग लेने के लिए उत्सुक और बेजार (आतुर) हो चुकी है। क्यों बेचारी कमसिन बुर को तड़फा रहे हो?

आप अपनी जगह सही हो सकते हैं पर मेरी सोच अलग है। मैं जानता हूँ वह मानसिक रूप से अपने आप को इसके लिए तैयार कर चुकी है। अगर मैं उसे बांहों में भरकर प्रणय निवेदन करूं तो उसके लिए मना करना अब संभव नहीं होगा। वह बहुत ही कम समय में अपना सर्वस्व मुझे बेझिझक सौम्प देगी। वह इस समय तन और मन की एक अजीब सी कश्मकश (धर्मसंकट) में फंसी है। उसका तन इस नैसर्गिक आनंद को भोग लेना चाहता है पर उसका अवचेतन मन और संस्कार उसे ऐसा करने से रोके हुए हैं।

मेरे प्रिय पाठको! आप नारी मन के अन्तःकरण में छिपी भावनाओं को नहीं समझ सकते? मेरी पाठिकाएं इसे बखूबी जानती और समझती हैं। स्त्री जब किसी से प्रेम करती है तो उसमें अपने प्रेमी को अपना सब कुछ सौम्प देने की चाहत सर्वोपरि होती है जबकि पुरुष के मन में प्रथम ख़याल सिर्फ उसे भोग लेने का रहता है। वह सब कुछ पा लेने की चाहत रखता है और स्त्री अपनी सबसे बड़ी ख़ुशी अपने प्रेमी की चाहत को परिपूर्ण करने में महसूस करती है। एक स्त्री और पुरुष की भावनाओं में यही बुनियादी फर्क है।

दोस्तो! मैं गौरी को भोगना तो जरूर चाहता हूँ क्योंकि यह तन और मन दोनों की ही आवश्यकता है। पर मैं इसके लिए किसी भी प्रकार की जोर-जबरदस्ती या जल्दबाजी के पक्ष में बिलकुल नहीं हूँ। मैं कोई उज्जड़, जंगली, गंवार, वहशी या अमानुष व्यक्ति नहीं हूँ जो किसी भी प्रकार का बलात्कार जैसा कृत्य करने पर आमादा हो। मैं तो गौरी के साथ अपने प्रथम मिलन को एक मिसाल और यादगार बनाना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ उसे अपने प्रथम चुम्बन की तरह प्रथम मिलन के अनुभव की स्मृतियाँ भी जीवनपर्यंत रोमांचित करती रहें। और एक सबसे अहम् (विशेष) बात यह भी है कि जब भी वह मेरी पूर्ण समर्पिता बने उसके मन में लेश मात्र भी शंका, झिझक, अपराधबोध महसूस ना हो और ना ही उसके बाद भी पश्चाताप की कोई गुंजाइश ना रहे।

ओह… मैं भी कहाँ दार्शनिक बातें ले बैठा? आइए ‘गौरी फ़तेह अभियान’ का अगला सोपान को शुरू करते हैं। हे लिंगदेव! इस बार इस अभियान के बाकी के सोपान (पायदान) निर्विघ्न सम्पूर्ण कर देना।

प्यारी पाठिकाओ! क्या आप आमीन (तथास्तु) नहीं बोलेंगी???
कहानी जारी रहेगी.
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