गुलाब की तीन पंखुड़ियां-37

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

गुलाब की तीन पंखुड़ियां-36

गुलाब की तीन पंखुड़ियां-38

मुझे पहले तो थोड़ा संशय था पर अब तो मैं पूरे यकीन के साथ कह सकता हूँ कि मधुर ने गौरी को अपनी दूसरी सुहागरात मनाने वाली सारी बातें विस्तार से बताई होंगी और उस आनंद के बारे में भी बताया होगा जो हम दोनों ने उस रात भोगा था।

“क्या हुआ मेरे … भोले … सा..ज … न?” गौरी की आवाज सुनकर मैं चौंका।
“ओह … हाँ … ठीक है.” अब मेरे पास उसकी बात मान लेने के अलावा और क्या चारा बचा था.

गौरी ने पहले तो मेरे सारे कपड़े उतार दिए और फिर मेरी आँखों पर वही दुपट्टा कसकर बाँध दिया जो वह साथ लेकर आई थी। गौरी ने भी अपनी नाइटी उतार दी। मैं देख तो नहीं सकता था पर अपने अंतर्मन की आँखों से महसूस तो कर ही सकता था।

और फिर मैंने गौरी के हाथों की नाजुक और पतली अँगुलियों को अपने पप्पू के चारों ओर महसूस किया। मैं चित लेटा था और गौरी मेरे पास आकर बैठ गई थी।

उसने पहले तो मेरे लिंग मुंड को अपने होंठों पर फिराया और फिर उसको मुंह में लेकर चूसने लगी। लंड तो ठुमके पर ठुमके लगाने लगा था। थोड़ी देर चूसने के बाद गौरी ने उसे मुंह से बाहर निकाल दिया और फिर मुझे अपने लंड पर चिकनाई सी महसूस हुई। शायद गौरी ने कोई ढेर सारी सुगन्धित क्रीम उस पर लगा दी थी।

अब गौरी ने अपने दोनों पैरों को मेरी कमर के दोनों ओर कर लिया और एक हाथ से मेरे पप्पू की गर्दन पकड़ कर अपनी महारानी (गांड) के छेद पर लगाकर घिसना शुरू कर दिया। जिस प्रकार उसके गांड का छेद चिकना सा लग रहा था मुझे लगता है उसने अपनी गांड के छेद पर और अन्दर भी ढेर सारी क्रीम जरूर लगाई होगी।

मैंने अपने हाथ उसके नितम्बों पर फिराने की कोशिश की तो गौरी ने मना कर दिया- ना … आप कुछ नहीं करेंगे।
मेरा मन तो उसके नितम्बों और गांड के छेद को भी सहलाने का कर रहा था पर मन मार कर मैंने अपना हाथ हटा लिया।

अब गौरी ने मेरे लंड को और जोर से कस लिया। लंड तो इतना सख्त हो चला था जैसे कोई लोहे की सलाख हो।

फिर गौरी ने मेरे पप्पू को अपनी गांड के छेद पर लगा कर अपने नितम्बों को नीचे करना शुरू कर दिया। हालांकि मैं देख तो नहीं सकता था पर मैंने महसूस किया कि मेरा पप्पू उसकी गांड के सुनहरे छल्ले के ठीक बीच में लग गया है।

मेरा मन तो कर रहा था कि अपनी आँखों पर बंधे दुपट्टे को निकाल फेंकूं और इस सारे नज़ारे को अपनी आँखों से देखूं; पर मैं अभी ऐसा करना ठीक नहीं था।

गौरी ने एक लंबा साँस लिया और मुझे लगा गौरी ने अपनी आँखें बंद कर के अपने दांत भींच लिए है। उसने अपने नितम्बों को नीचे करने की कोशिश की पर जल्दबाजी में लंड थोड़ा सा मुड़कर फिसल गया।

अब गौरी ने फिर से निशाना लगाया और 2-3 बार धीरे-धीरे अपने नितम्बों को ऊपर नीचे किया और फिर अगले प्रयास में पप्पू तो उसकी गांड में धंसता ही चला गया जैसे किसी कुशल शिकारी का तीर सटीक निशाने पर अपना लक्ष्य भेद देता है।

और उसके साथ ही गौरी की एक चीख पूरे कमरे में गूँज गई- उइइईईई ईईईइइ मा!
गौरी जोर जोर से सांस लेने लगी थी। उसने अपने आप को स्थिर सा कर लिया था। ये पल उसके लिए बहुत ही नाजुक और संवेदनशील थे। उसका सारा शरीर कांपने सा लगा था।

मेरा मन तो उसकी गांड के छल्ले में फंसे मेरे लंड को अँगुलियों से छूने का कर रहा था पर इस समय मेरा थोड़ा सा भी हिलना गौरी के नाजुक अंग को नुकसान पहुंचा सकता था। मैंने भी अपना दम साध लिया।

मुझे लगा गौरी अपने दर्द पर काबू पाने की जी तोड़ कोशिश कर रही है। थोड़ी देर वह इसी मुद्रा में बनी रही और फिर धीरे-धीरे वह अपने सिर को नीचे करके मेरे सीने से लग गई।

अब मैंने अपना एक हाथ उसकी नितम्बों की ओर बढ़ाया और अंदाज़े से उसके छेद को टटोलने की कोशिश की।
मेरा लंड तो केवल 1-2 इंच ही बाहर था, बाकी तो पूरा अन्दर समाया हुआ था।

मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इतनी जल्दी मेरा लंड गृह प्रवेश कर जाएगा। मेरे लंड की हालत यह थी कि जैसे प्लास्टिक की बोतल में अंगूठा फंस गया हो। सच में गौरी की गांड बहुत ही कसी हुई थी।

अब पता नहीं उसने यह सब इन्टरनेट पर देखा था या यह सब मधुर ने उसे बताया था। यह तो अच्छा हुआ कि गौरी ने पहले से ही मेरे लंड पर खूब सारी क्रीम लगा थी और अपनी गूपड़ी (गांड) के अन्दर भी लगा ली थी।

और सबसे ख़ास बात तो यह थी कि उसने बड़े इत्मीनान से मेरे लंड का गृह प्रवेश करवाया था। अगर वह ज़रा भी जल्दी करती तो निश्चित ही उसकी गांड का छल्ला जख्मी हो जाता।

थोड़ी देर ऐसे ही रहने के बाद गौरी कुछ संयत हुई तो उसने अपने होंठ मेरे होंठों से लगा दिए।

अब मैंने एक हाथ गौरी की पीठ पर फिराना शुरू कर दिया। गौरी ने मना नहीं किया। शायद उसे भी अपनी कमर और नितम्बों पर मेरा हाथ फिराना किसी मरहम की तरह लग रहा होगा।

अब मैंने दूसरे हाथ से अपनी आँखों पर बंधा दुपट्टा निकाल फेंका। गौरी की आँखें बंद थी और उसके गालों पर आंसू लुढ़क आये थे। मैंने उन आंसुओं को अपनी जीभ से चाट लिया और फिर गौरी के होंठों को भी चूम लिया।

“मेरी प्रियतमा … आज तुम मेरी पूर्ण समर्पिता बन गई हो तुम्हारे इस समर्पण के लिए मैं तमाम उम्र बहुत आभारी रहूंगा.”

“आह … थोड़ी देर हिलो मत!” गौरी के चेहरे पर दर्द की झलक सी लग रही थी। लेकिन मैंने देखा उसके चेहरे पर एक संतोष भी झलक रहा था। क्यों ना हो, आख़िर एक लंबी प्रतीक्षा, हिचक, लाज़ और डर के बाद आज उसने मेरा महीनों से संजोया ख्वाब पूरा जो कर दिया था।

स्त्री और पुरुष की सोच में कितना विरोधाभास होता है। पुरुष अपने लक्ष्य को पाकर आनंदित होता रहता है और स्त्री अपना कौमार्य अपने प्रियतम को सौम्पकर ख़ुशी महसूस करती है कि उसने अपने प्रियतम के मन की इच्छा को पूर्ण कर दिया है।

जैसे ही मैंने उसके चूचुक को अपने दांतों से थोड़ा सा दबाया तो गौरी थोड़ी सी ऊपर हो गई तो पप्पू थोड़ा सा और आगे सरक गया। गौरी झट से फिर नीचे हो गई और उसने अपना सिर फिर से मेरी छाती से लगा लिया। उसने एक हाथ पीछे करके पहले तो अपनी गांड के छल्ले को देखा और फिर मेरे पप्पू पर अंगुलियाँ फिरा कर देखा। मुझे लगता है वह यह देखना चाहती कि मेरा पप्पू कितनी गहराई तक अन्दर चला गया है।

मैंने उसकी पीठ और नितम्बों पर हाथ फिराना चालू रखा। उसके गदराये उरोज मेरी छाती से लगे हुए थे। मैंने महसूस किया उसके चूचुक आगे की ओर तन से गए हैं। मैंने उसके एक उरोज को पकड़ कर फिर से उसके चूचक को मुंह में भर लिया और चूसने लगा।

गौरी के मुंह से एक मीठी सीत्कार सी निकल गई- आह …
“गौरी … मेरी जान … अब दर्द तो नहीं हो रहा ना?”
“हट!” कहकर गौरी ने मेरे होंठों को अपने दांतों से काट लिया।

मुझे लगा गौरी का दर्द अब थोड़ा कम हो गया है। ऐसे समय में गांड के छल्ले में चुनमुनाहट सी होती है और बार-बार वहाँ घर्षण करवाने या खुजलाने की प्रबल इच्छा होती है। मैंने महसूस किया उसने अपने नितम्बों का संकोचन किया है। और ऐसा करने से मेरे लंड ने एक ठुमका सा लगाया। मुझे लगा मेरा लंड अन्दर फूल सा गया है।

गौरी एक दो बार फिर से थोड़ा ऊपर नीचे हुई। उसने अब अपने नितम्बों को हिलाना शुरू कर दिया था। मैंने देखा उसके चेहरे पर ख़ुशी और हल्के दर्द के मिलेजुले भाव तरंगित हो रहे हैं।

ऐसी स्थिति में गांड के छल्ले के आसपास की संवेदनशीलता बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। मुझे लगा इस समय गौरी के लिए इस मीठी-मीठी जलन, पीड़ा, गुदगुदी और कसक भरी मिठास का आनन्द तो अपने शिखर पर था। वह मुंह से तो नहीं बोलेगी पर वह चाहती है कि अब पप्पू को कुछ व्यस्त किया जाए और काम पर लगा दिया जाए।

अब गौरी ने अपना एक हाथ फिर से पीछे किया और सीधी हो गई। उसे थोड़ा दर्द तो महसूस हुआ पर अब तो पप्पू महाराज पूरा अन्दर चले गए थे। गौरी ने अपनी गांड का संकोचन किया और फिर धीरे-धीरे ऊपर नीचे होना शुरू कर दिया।

मेरा रोमांच तो इस समय सातवें आसमान पर था। गौरी की आँखें अब भी बंद थी और उसकी हल्की हल्की सीत्कारें भी निकलने लगी थी। लगता है पप्पू और गांड की अब तक पक्की दोस्ती हो गई है।
“गौरी … अब दर्द कैसा है?”
“ज्यादा नहीं … पर गुदगुदी और चुनमुनाहट सी हो रही है।”
“एक काम करोगी … प्लीज?”
“हम्म?”
“तुम अपना एक पैर मोड़कर दूसरी तरफ करके थोड़ा घूम जाओ, फिर हम दोनों करवट के बल लेट जायेंगे तो तुम्हें और भी ज्यादा आनंद आयेगा।”

गौरी मेरी ओर देख कर मुस्कुराने लग गई थी। लगता है उसे अपने भैया और भाभी वाली बात याद आ गई थी। और फिर गौरी मेरे कहे मुताबिक़ हो गई। अब उसने अपनी पीठ धीरे-धीरे मेरे सीने से लगाते हुए अपने पैर सीधे कर दिए।

मैंने उसका पेट और कमर पकड़े रखा ताकि मेरा पप्पू बाहर फिसलकर धोखा ना दे दे। और फिर हम दोनों करवट के बल हो गए। गौरी ने अपनी एक जांघ थोड़ी सी मोड़ ली थी और मैंने अपनी एक जांघ उसके दोनों टांगों के बीच कर ली।

मैं एक हाथ से उसका उरोज पकड़ लिया और उसे दबाने लगा।
मैंने धीरे से एक धक्का लगाया।

“उईईईई … आह … थोड़ा धीरे … आह …” गौरी ने अपनी जांघ थोड़ी और ऊपर कर ली और अपने आप को थोड़ा और ढीला कर लिया।

अब तो पप्पू बिना किसी रोक-टोक और झिझक के आराम से अन्दर बाहर होने लगा था। हर धक्के के साथ गौरी का रोमांच बढ़ता ही जा रहा था।

मैंने अपने एक हाथ से गौरी की सु-सु को टटोला। उसके पपोटे फूलकर मोटे-मोटे से हो गए थे और उसका चीरा तो रतिरस से लबालब भर गया था। उसकी मदनमणि भी फूल कर मूंगफली के दाने जितनी हो गई थीड़ा मैंने अपनी चिमटी में पकड़ कर उसे भी थोड़ा मसलना चालू कर दिया।

अब मैंने गौरी को पेट के बल होने को कहा। गौरी धीरे-धीरे अपने पेट के बल औंधी हो गई और मैं उसके ऊपर आ गया। गौरी ने अपनी जांघें जितनी चौड़ी हो सकती थी कर दी थी। अब तो पप्पू बड़े आराम से उछलकूद मचा सकता था।

गौरी बार-बार अपने नितम्बों का संकोचन करती जा रही थी। मैंने एक हाथ से उसके उरोज को पकड़ लिया और दूसरे हाथ को नीचे कर के उसकी सु-सु को फिर से पकड़कर मसलना चालू कर दिया।
सुविधा के लिए गौरी ने अपने नितम्ब थोड़े ऊपर उठाकर एक तकिया पेट के नीचे लगा लिया। पता नहीं यह सब फार्मूले उसे मधुर ने बताये थे या अपनी भैया और भाभी की देशी सुहागरात से प्रेरित थे।
कुछ भी कहो ऐसा करने से मेरा पूरा लंड अब गौरी की गांड में जाने लगा था।

हर धक्के के साथ मेरा और गौरी का रोमांच बढ़ता ही जा रहा था। मैं तो चाह रहा था यह समय रुक जाए और मैं इसी प्रकार गौरी को अपने आगोश में लिए जिन्दगी बिता दूं।
“आह … उईई … माआअ …” गौरी की मीठी सीत्कारें कमरे में गूंजने लगी थी।

मैंने गौरी के कान की लोब को मुंह में ले लिया और अपनी दांतों से उसे हल्का हल्का काटने लगा तो गौरी ने मेरे धक्कों के साथ अपने नितम्ब उचकाने शुरू कर दिए।

कोई 10-12 मिनट के बाद मुझे लगने लगा कि मेरी उत्तेजना इस समय अपने चरम पर है और अब मेरी मंजिल करीब आने को है। मेरा मन तो उसे डॉगी स्टाइल में करके उसके नितम्बों पर कस-कस कर थप्पड़ लगाते हुए पीछे से धक्के लगाऊँ पर बाद में मैंने अपना इरादा बदल लिया।
इस डॉगी स्टाइल के चक्कर में अगर पप्पू बाहर निकल गया तो दुबारा अन्दर करने में बहुत समय और ऊर्जा की जरूरत होगी और अगर फिर से अन्दर नहीं डाल पाया तो मेरा पप्पू बाहर ही शहीद हो जाएगा। मैं कतई ऐसा नहीं चाहता था।

गौरी की मीठी कराहें पूरे कमरे में गूँज रही थी- आह … उईइ … याआ … मैं अपना लंड सुपारे तक बाहर निकालता और फिर से एक धक्के के साथ अन्दर कर देता। उसके साथ ही गौरी के नितम्बों से ठप्प की सी आवाज निकलती।

“आह … मेरी जान … गौरी आज तुमने मुझे मेरे जीवन का बहुत बड़ा सुख दिया है इसे मैं जिन्दगी भर नहीं भूलूंगा। अईई … मेरा … तो … निकलने … जा रहा है …”

मैंने अपने एक हाथ से गौरी की सु-सु को मसलना चलू कर दिया और दूसरे हाथ से उसके उरोज की घुंडी को मसलने लगा। गौरी रोमांच से उछलने लगी और उसने अपने नितम्बों का संकोचन शुरू कर दिया। उसका पूरा शरीर लरजने सा लगा था। मुझे लगा उसका ओर्गास्म भी होने ही वाला है।

इसके साथ ही गौरी की एक किलकारी सी हवा में गूँज उठी। मुझे अपने हाथ पर चिपचिपा सा रस अनुभव हुआ। मुझे लगता है उसका भी स्खलन हो गया है।

मैंने एक जोर का धक्का लगाया और अपने लंड को पूरी गहराई तक अन्दर डाल दिया। इसके साथ ही मुझे लगा मेरा लंड गौरी की गांड में फूलने और पिचकने सा लगा है और उससे प्रेमरस की फुहारें निकलने लगी है।

गौरी ने अपनी गांड को जोर से भींच लिया जैसे वह इस सारे रस को अन्दर चूस लेना चाहती हो।

मैंने कसकर गौरी को अपनी बांहों में भर लिया और उसके गालों पर चुम्बनों की झड़ी सी लगा दी। गौरी ने अपनी गांड का संकोचन जारी रखा। मेरी साँसें बहुत तेज हो गई थी और दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था। मेरा लंड 8-10 पिचकारियाँ मार कर शांत हो गया। और मैं गौरी के ऊपर पसर सा गया।

मैंने 2-3 मिनट ऐसे गौरी को अपनी बांहों में भींचे रखा। थोड़ी देर बाद मेरा लंड फिसल कर बाहर निकल गया। और गौरी की गांड से धीरे-धीरे प्रेम रस बाहर निकाल कर उसकी सु-सु के छेद से होता हुआ नीचे तकिये को भिगोने लगा।

“आईईईई … ” अब गौरी थोड़ी कसमसाने सी लगी थी।
“क्या हुआ?”
“मुझे गुदगुदी सी हो रही है.”

मैं गौरी के ऊपर से उठ गया। गौरी लम्बी लाबी साँसें ले रही थी। मैंने उसके नितम्बों पर पहले तो हाथ फिराया और फिर दोनों हाथों से उसके नितम्बों को थोड़ा चौड़ा कर दिया। उसके गांड से अभी भी सफ़ेद गाढ़ा रस निकलता जा रहा था।

अब गौरी पलट कर बैड से उतरकर नीचे खड़ी हो गई। उसकी गांड से झरता हुआ रस उसकी जाँघों तक बहने लगा था। गौरी अपनी टांगों को चौड़ा कर के बाथरूम में भाग गई।

मेरी निगाह अब तकिये पर पड़ी। तकिया तो 5-6 इंच के व्यास में गीला हो गया था। मुझे हंसी सी आ गई। मैं आँखें बंद करके अभी-अभी भोगे उस अनूठे आनंद के बारे में ही सोचता जा रहा था।

कोई 10 मिनट के बाद गौरी अपने शरीर को तौलिये से ढके हुए वापस आई। अब उसकी निगाह तकिये पर पड़ी।
“ओह … यह तकिया तो खराब हो गया?” कहकर उसने मेरी ओर देखा।

“ओए भिडू … तकिया खराब नई होएला है इसकी तो किस्मत इच चमक गयेली है और अबी तो अपुन को ऐसे इच 3-4 तकियों की किस्मत चमकाने का है … क्या?” कहकर मैंने फिर से गौरी को अपनी बांहों में दबोच लिया।
गौरी तो आह … उईई … करती ही रह गई।

सच कहूं तो सम्भोग की यह क्रिया है ही ऐसी कि इससे मन ही नहीं भरता। आपका इस बारे में क्या विचार है? अपनी कीमती राय लिखेंगे तो मुझे ख़ुशी होगी।

अथ श्री ‘ये गांड मुझे दे दे गौरी’ सोपान इति !!!
अगले भाग में गौरी की गोद भराई की रस्म पूरी होगी … बस थोड़ा सा इंतज़ार …

कहानी जारी रहेगी.
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