गुलाब की तीन पंखुड़ियां-35

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

गुलाब की तीन पंखुड़ियां-34

गुलाब की तीन पंखुड़ियां-36

कहानी की इस पेंतिसवे भाग में आपका स्वागत है दोस्तों …

अब भाभी बैड पर पेट के बल लेटी गई थी और भैया ने उनका पेटीकोट भी उतार दिया था। अब दोनों मादरजात नंगे थे। भैया उसके दोनों नितम्बों के बीच अपना हाथ फिराना चालू कर दिया। फिर उन्होंने क्रीम वाली शीशी का ढक्कन खोला और लगभग आधी शीशी क्रीम अपनी हथेली पर उंडेल ली। अब एक हाथ की अँगुलियों से उसके नितम्बों की खाई में क्रीम लगाने लगे।

“उईई … मुझे गुदगुदी हो रही है.” भाभी ने अपने नितम्ब भींचते हुए कहा।
शायद भैया ने गांड के छेद में अपनी अंगुली घुसा दी थी।

“उसमें बी तो क्रीम लगाने दे … नई तो फिर बोलेगी दर्द होयरेला है?”

भैया ने अपनी अंगुली पर फिर क्रीम लगाई और गांड के छेद पर लगाकर अपनी अंगुली को गोल-गोल घुमाने लगे। भाभी आह … ऊंह करती रही।
फिर उन्होंने अपनी अंगुली भाभी की गांड से निकाल ली और उसके नितम्बों को चौड़ा करके गौर से देखने लगे। शायद वह उसकी गांड का छेद देख रहे थे।

इतनी दूर से हमें भाभी की गांड का छेद तो नज़र नहीं आ रहा था पर भैया के चेहरे पर आई मुस्कान देखकर लगता है उन्हें वह छेद जरूर पसंद आ गया था।

“वाह … मेरी पपोटी क्या मस्त गांड है तेरी। चल अब मेरे शेर का गृहप्रवेश करवा देते हैं.”

भाभी ने बिना कुछ बोले घुटनों के बल होकर अपने नितम्ब ऊपर उठा दिए। भैया ने उसके नितम्बों को थोड़ा और खोल दिया। हालांकि इतनी दूर से गांड का छेद साफ़ तो नहीं दिख रहा था पर सांवले से छेद का अंदाज़ा तो हो ही रहा था।

भैया ने भाभी के नितम्बों पर थपकी सी लगाई जैसे घुड़सवारी करने से पहले घोड़ी को थपथपाया जाता है।

अब भैया उसके पीछे आ गए और भाभी को अपने नितम्बों को अपने हाथों से थोड़ा चौड़ा करने को कहा। भाभी ने अपना सिर तकिये पर रख लिया और अपने दोनों हाथों को पीछे करके अपने नितम्बों को और खोल दिया।

अब भैया ने अपने सिकंदर पर एक बार फिर से हाथ फिराया और भाभी की गांड के छेद पर अपना सुपारा लगा दिया। भाभी मन ही मन कुछ बुदबुदा सी रही थी। शायद डर के मारे हनुमान चालीसा पढ़ने लगी थी।
“प्लीज … धीरे करना!”
“बस तू अपनी गूपड़ी को ढीला छोड़ने का … बाकि काम में अपने आप कर देगा।”

अब भैया ने अपना निशाना साधकर दोनों हाथों से भाभी की कमर को कसकर पकड़ लिया। और फिर एक जोर का धक्का लगाया।

धक्का इतना जबरदस्त था कि एक ही झटके में सुपारे सहित आधा लंड भाभी की गांड में बिना किसी रोक टोक के घुस गया … और उसके साथ ही भाभी की दर्द भरी एक चीख पूरे कमरे में गूँज गई- मर गईई … अबे साले … मादरचोद … मार डाला रे … हाय … आह … मैं मर गई.

भैया ने कोई रहम ना करते हुए 2-3 धक्के और लगा दिए। अब तो लगता था उनका पूरा लंड भाभी की गांड में चला गया था। भाभी दर्द के मारे कराहे जा रही थी। वह भैया की पकड़ से अपने आपको छुड़ाने की भरपूर कोशिश कर रही थी और अपने हाथों को उनकी जाँघों पर लगाकर पीछे धकलने की कोशिश भी कर रही थी।

“अबे भोसड़ी के … मार डालेगा क्या … निकाल ले बाहर … मैं मर जाऊँगी … आईई माआआआ!” भाभी की आँखों से आंसू निकलते जा रहे थे।
“अरे मेरी जान अब बाहर निकालने का क्या फ़ायदा … जो होना था हो गया। फिकर मत करो दो मिनट में सब ठीक हो जाएंगा … बस तू अपनी गूपड़ी को ढीला छोड़ दे।”

“तुम एक नंबर के कसाई हो. ओईईईई माँ … कोई तो मुझे बचा लो …” भाभी रोये जा रही थी पर लगता था भैया रहम करने के मूड में कतई नहीं थे। उन्होंने भाभी की कमर को और जोर से कस कर पकड़ लिया था।

थोड़ी देर भाभी कसमसाती और छटपटाती रही और फिर उन्होंने अपने आप को ढीला छोड़ दिया। उनकी आँखों से अब भी आंसू तो निकल रहे थे पर हाय-तोबा अब जरूर कम हो गई थी।

“साले बहनचोद … मैं तेरी बातों में आ गई … लगता है मेरी तो फट ही गई है … बाहर निकाल ले … साले हरामी …”
“बस मेरी जान अब तू काये को फिकर कर रयेली है? किला फ़तेह हो गयेला है। बस दर्द बी ठीक हो जायेंगा। बस थोड़ी देर एसे इच रहने का … हिलने का नई!” भैया उसे तसल्ली देते जा रहे थे।

थोड़ी देर ऐसे ही रहने के बाद भाभी का रोना अब सिसकारियों में बदल गया था। भैया ने उसके नितम्बों और पीठ पर हाथ फिराना चालू कर दिया था।
“ऐसे तो कोई दुश्मन या कसाई भी नहीं करता … मैंने बोला था ना … धीरे करना … मैं … मैं … ”
“ओह … मैं सॉरी मांगेला है जान … मुझे लगा धीरे करने से तेरे को जास्ती दर्द होएंगा …”

“ओह … अब तो बाहर निकाल लो … या मुझे जान से ही मारोगे?”
“अरे मेरी बुलबुल … अब बाहर निकालने का क्या फायदा … बस मेरे खातिर थोड़ा सा कष्ट और सह ले … में तेरे को प्रोमिज देता तेरे को बहोत प्यार करेंगा … ” कहकर भैया ने अपनी मुंडी झुकाते हुए भाभी की पीठ पर एक चुम्बन ले लिया।

“मेरे तो पैर दुखने लगे हैं.”
“तू एक काम कर धीरे-धीरे अपने पैर पीछे करले इससे तेरे को आराम मिलेगा।”
“एक बार बाहर निकाल लो बाद में जब दर्द ठीक हो जाए तब कर लेना.”
“अपुन को सटकेला समझा क्या? किता मुश्किल से अन्दर किएला है अब बाहर निकल गया तो फिर अन्दर डालने में बहुत मुश्किल होएंगा और तेरे को दर्द बी बहुत ज्यास्ती होएंगा जैसा बोला तू अपने पैर पीछे कर तो सही!”

अब भाभी धीरे धीरे अपने घुटने और पैर पीछे की ओर करने लगी तो उनके नितम्ब भी नीचे होने लगे।

भैया उनके नितम्बों से चिपके रहे और ध्यान रखा कि उनके मूसल का संपर्क भाभी की ओखली से नहीं टूटे।

हौले-हौले भाभी ने अपने पैर पीछे की ओर सीधे कर दिए। भैया अब भी उनके ऊपर थे और उनका लंड पूरा भाभी की गांड में धंसा हुआ था।
थोड़ी देर दोनों इसकी प्रकार पड़े रहे।

अब भैया ने भाभी के कानों और गर्दन पर चुम्बन लेने शुरू कर दिए और अपने हाथ नीचे करके उसके उरोजों की घुन्डियाँ मसलने लगे थे। भाभी का दर्द ख़त्म तो नहीं हुआ था पर शायद उनके गूपड़ी अब तक भैया के गबरू सिकंदर से अच्छी तरह परिचित जरूर हो गई थी।

अब भैया ने हाथ बढ़ाकर टेबल पर रखी पान की गिलोरियां उठाकर एक अपने मुंह में डाल ली और दूसरी भाभी के मुंह की ओर बढ़ा दी।
“क्या है?”
“ये केशर कस्तूरी वाला पेशल पान है इसको खाकर तू सारा दर्द भूल जायेंगी … क्या?”
अब भाभी ने भी वह पान की गिलोरी अपने मुंह में ले ली और साथ ही भैया की एक अंगुली भी दांतों से काट खाई।
“क्या करती बे साली? दर्द कर दियेला ना?”
“अब पता चला ना मुझे कित्ता दर्द हुआ है?”

“अच्छा ये बात … तो ले फिर … ” और भैया ने धीरे से अपने नितम्ब उठाकर एक धक्का और लगा दिया।
“अईई … ” भाभी के मुंह से फिर आह सी निकली पर अब लगता था उसमें दर्द नहीं था।
“जान … तेरा पिछवाड़ा बहुत ही मस्त हे। सच में ऐसा तो उस चिकनी का बी नई था.”

“निकालो बाहर इसे … और चले जाओ अपनी उसी चिकनी के पास!”
“हाय … मेरी रानी … तेरे को छोड़ के अब किधर जायेंगा? तेरे को प्रोमिज देता अपुन तेरे को रानी बनाके रखेगा.”
“चल झूठे … अब मैं दुबारा तेरी बातों में नहीं आने वाली!”

लगता है भाभी का दर्द अब कम हो गया था। भैया ने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए थे। भाभी की आँखें बंद थी और अब उन्होंने अपनी टांगें और ज्यादा खोल दी थी और कभी-कभी जब भैया धक्के लगाने के लिए अपना लंड थोड़ा बाहर निकालते तो वह भी साथ में अपने नितम्ब उठाने लगी थी।

भैया उसके गालों, कानों, और गले पर चुम्बन लिए जा रहे थे। एक हाथ से उसकी बुर के पपोटे भी शायद मसल रहे थे और दूसरे हाथ की चिमटी से उसके उरोजों की घुन्डियाँ भी मसल रहे थे। भाभी की अब हल्की-हल्की सित्कारें सी निकालने लगी थी।

“क्यों मेरी रानी मजा आयेला ना अब?”
“हट! तुमने तो मेरी जान ही निकाल दी अपने मजे के लिए!”
“तेरी जान लेके अपुन किधर जाएगा रे। तूने तो अपुन को दीवाना बना लिएला है एक इच रात में!”
“आह … धीरे … ” भाभी ने एक मीठी सिसकारी सी ली।

लगता था अब भाभी का दर्द ख़त्म हो चुका था और अब तो उनकी गूपड़ी को भी मज़ा आने लगा था। भैया ने हल्के धक्के लगाने चालू रखे।
“जान मैं क्या बोलता तू फिर से घुटनों के बल हो जा इससे तेरे को बी बड़ा मज़ा आयेंगा।”
“मेरे से तो हिला ही नहीं जा रहा … लगता है तेरा गधे जितना बड़ा हथियार मेरे पेट के अन्दर से गले तक आ गया है।” कह कर भाभी हंसने लगी।

फिर भाभी ने अपनी गूपड़ी पर हाथ लगा कर चेक किया कि कितना अन्दर है। और फिर धीरे धीरे भाभी ने अपने नितम्ब उठाते हुए अपने घुटनों को मोड़ा और फिर से डॉगी स्टाइल में हो गई।
भैया ने कस कर उनकी कमर पकड़ी रखी ताकि उनका सिकंदर अपने लक्ष्य से कहीं भटक ना जाए।

अब भैया ने फिर से धक्के लगाने शुरू कर दिए। वह अपना लंड सुपारे तक बाहर निकालते और फिर किसी पिस्टन की तरह अन्दर कर देते। उन्होंने थोड़ी क्रीम अपने लंड पर और लगा ली इससे लंड को अन्दर बाहर होने में अब कोई दिक्कत महसूस नहीं हो रही थी।

लंड तो फूलकर बहुत मोटा हो गया था। अब तो भाभी की गांड का छेद भी पूरा दिखाई देने लग गया था। बाहर से तो काला छल्ला सा लग रहा था पर जब भैया अपना लंड बाहर निकालते तो अन्दर का गुलाबी रंग नज़र आ जाता था।

“हाय … क्या मस्त चुदाई करता है? साली के जोर-जोर से धक्के लगा ना मेरे राजा भैया? आह … ईईईईई …” अंगूर दीदी अब जोर जोर से बदबुदाने लगी थी और लहंगे के अन्दर उनका हाथ तेजी से चल रहा था और फिर एक किलकारी के साथ वो लम्बी-लम्बी साँसें लेने लगी और उनका हाथ अब रुक गया था।

“क्या हुआ दीदी?” मैंने देखा दीदी की अँगुलियों पर चिपचिपा सा पानी लगा था। दीदी ने अपने पर्स से रुमाल निकालकर उसे साफ़ करने लगी थी।

मुझे थोड़ा तो पता था कि कुंवारी लड़कियां को अपनी सु-सु सहलाने में और उसके ऊपर बने दाने को छेड़ने में बड़ा मजा आता है पर दीदी की तो शादी हो चुकी थी तो उसे अब अपनी सु-सु को इस तरह सहलाने की क्या जरूरत थी? मेरे समझ में नहीं आ रहा था।
“तेरी शादी हो जायेगी तब पता चल जाएगा … ” कहकर दीदी फिर से अन्दर देखने लगी।

अन्दर अब भैया ने पूरे जोर जोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए थे। भाभी को भी शायद अब मज़ा आने लगा था।

“दीदी अब तो लगता है भाभी को दर्द बिल्कुल नहीं हो रहा?” मैंने डरते डरते कहा.
“हाँ … यह सब उस पान की गिलोरी का कमाल है अब देखना साली कैसे मस्त होकर गांड में लेने लगी है पहले कितना नखरा दिखा रही थी।”

भैया एक हाथ नीचे करके उसकी चूत के दाने को भी मसलने लगे थे। भाभी आह … ऊंह करते जा रही थी।

और फिर कोई 15 मिनट के बाद एक लम्बी हुँकार के साथ भैया ने आखिरी 5-6 धक्के जोर-जोर से लगाए और भाभी की पीठ से चिपक गए। लगता है उनका वीर्य भाभी की गांड में निकल गया था।

थोड़ी देर बाद भैया का लंड एक पुच्च की आवाज के साथ बाहर निकल गया। भैया का लंड सिकुड़ने के बाद भी 4-5 इंच का तो जरूर लग रहा था। और भाभी की गांड का छेद अंग्रेजी के ‘ओ’ अक्षर की तरह खुला हुआ सा दिखने लगा था।

अब भाभी घुटनों के बल बैठ गई। ऐसा करने से उनकी गांड से वीर्य बाहर निकल कर चादर पर गिरने लगा और चादर पर कोई 4-5 इंच के दायरे में वह फ़ैल गया।
उसे देख कर भैया बोले- देख मेरी रानी, ऐसेइच अभी तो 4-5 निशान और बनाने का है आज!
पहले तो भाभी को कुछ समझ नहीं आया बाद में वह शर्मा सी गई।

और उसके बाद उन दोनों ने थर्मोस से केशर और शिलाजीत मिला दूध पीया और मिठाई खाई।

फिर भैया ने उसे एक बार फिर से अपनी बांहों में दबोच लिया।
भाभी थोड़ी सी कसमसाई और बोली- ओहो … आपने तो एक ही बार में मेरी हालत बिगाड़ दी है अब और नहीं बाकी कल कर लेना। मुझे लगता है मैं तो कल ठीक से चल भी नहीं पाऊँगी, घर और रिश्तेदार औरतें क्या सोचेंगी?

“अरे मेरी पपोटी … ! उन औरतों के बीच तेरी कितनी इज्जत बन जायेगी ये तो सोच?” भैया ने उन्हें चूमते हुए कहा कहा।
“कैसे?” भाभी ने आश्चर्य से पूछा।
“कल जब तू अपनी टांगें चौड़ी करके चलेंगी तो औरतें सोचेंगी कि तुम कितनी किस्मत वाली हो कि इतने लम्बे और बड़े हथियार से रोज चुदाने को मिलेंगा … क्या?” भैया ने हंसते हुए कहा।
भाभी एक बार फिर से शर्मा गई।

और फिर इनका यह प्रेम-युद्ध सुबह 5 बजे तक चला था। भैया ने 4 बार खूब जोर-जोर से भाभी की चूत को बजाया था। भैया तो और एक बार उसकी गूपड़ी को प्यार करना चाहते थे पर भाभी ने मना कर दिया कि आज केवल उसकी पूपड़ी को ही प्यार करो। भैया एक आज्ञाकारी पति की तरह पूपड़ी को प्यार करने लगे।

इतना कह कर गौरी चुप हो गई।

“भई वाह … क्या कमाल की सुहागरात मनाई है दोनों ने!” कहकर मैंने गौरी को एक बार फिर से अपनी बांहों में भर कर चूम लिया।
“गौरी … आओ हम भी वैसी ही सुहागरात मना लें?”
“हट! मुझे जान से मारने का इरादा है क्या?”
“वो तुम्हारे भैया और ग़ालिब चचा ने भी अब तो साबित कर दिया है कि गांड मरवाने से … ”

“बस … बस … ज्यादा बातें रहने दें। मैं अब आपकी चिकनी चुपड़ी बातों में नहीं आने वाली। अब आप ऑफिस जाओ आपको देर हो जायेगी।” गौरी ने मुझे दूर धकलते हुए कहा।
“गौरी प्लीज मान जाओ ना?”
“मेरे साजन! मैंने आपको कभी किसी चीज के लिए मना नहीं किया पर इसके लिए मुझे पहले मानसिक रूप से तैयार हो लेने दो फिर आप जो चाहो कर लेना मैं कौन सी भागी जा रही हूँ?” गौरी ने तो मुझे निरुत्तर ही कर दिया था अब मैं क्या बोलता।

मैं दफ्तर जाने के लिए तैयार होने बैडरूम में चला आया और गौरी रसोई में।

कहानी जारी रहेगी.
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