गुलाब की तीन पंखुड़ियां-2

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

उस रोज़ का पूरा दिन गौरी के बारे में सोचते ही बीत गया। उसके चक्कर में मैं आज दफ्तर से थोड़ा जल्दी घर आया था। पर गौरी नज़र नहीं आ रही थी शायद वह काम निपटाकर चली गयी थी। मधुर ने आज भूरे रंग की पैंट और टॉप पहना था। मधुर के नितम्ब और कमर इन कपड़ों में बहुत कातिलाना लगते हैं।

पैंट में कसे हुए उसके नितम्ब ऐसे लगते हैं जैसे वो कोई 18-20 साल की कॉलेज गर्ल हो। नितंबों के बीच की विभाजक रेखा ने तो आज भी मुझे अपने ऊपर लट्टू बना रखा है। सच कहूँ तो हमारे सुखी और सफल दाम्पत्य जीवन का असली राज ही यही है कि वो मुझे सेक्स के मामले में हर तरह से संतुष्ट कर देती है और किसी भी क्रिया के लिए मना नहीं करती। आप मेरी हालत का अंदाज़ा बखूबी लगा सकते हैं कि आज उसकी गांड मारने की मेरी कितनी प्रबल इच्छा हो रही थी।मैं यह सोच रहा था अगर गौरी ऐसे कपड़े पहन ले तो कैसी लगेगी। उसकी बुर और नितंबों का जोग्राफिया तो उस कसी हुयी पैंट में साफ नज़र आ जाएगा। रात में बिस्तर पर जब मैंने मधुर को बांहों में भरना चाहा तो उसने चुदाई के लिए मना कर दिया बहाना वही माहवारी के चौथे दिन का। भेन चुद गयी इस चौथे दिन की। एक बार तो मन किया कि सुहाना और गौरी को याद करके मुट्ठ ही मार लूँ पर बाद मैंने अपना इरादा बदल दिया। सारी रात गौरी के हसीन ख्वाबों में ही बीत गई।

शादी के बाद शुरूवाती दिनों में कई बार जब मधुर सुबह-सुबह रसोई घर में काम कर रही होती थी तो मैं चुपके से वहाँ जाकर उसे पीछे से बांहों में दबोच लिया करता था। थोड़ी देर कुनमुनाती थी और फिर हल्की सी ना-नुकर या उलाहने के बाद अहसान सा जताते हुए रसोई में ही चुदाई के लिए मान जाया करती थी। और फिर रसोई के शेल्फ पर उसे थोड़ा सा झुकाकर पीछे से उसकी चूत में लंड पेलने की लज्जत तो आज भी मुझे रोमांच से भर देती है। आप भी कभी इसे आजमाकर जरूर देखें पूरा दिन मधुर स्मृतियों और कल्पनाओं में ही बीत जाएगा।

अभी भी वह सुबह थोड़ा जल्दी उठ जाती है और नित्यक्रिया से निपटकर पहले पूजा पाठ करती है और फिर चाय बनाकर मुझे जगाती है।

पर आज मेरी आँख थोड़ी जल्दी खुल गयी थी। मैं बाथरूम से ब्रश करके जब बाहर आया तो देखा मधुर रसोई में ही है। शायद वह नहा चुकी थी और चाय बना रही थी। पजामे में कसे हुए उसके नितम्ब साफ दिख रहे थे। शायद उसने अंदर पैंटी नहीं पहनी थी। दोनों नितंबों के बीच की खाई तो जैसे मुझे उसे अपनी बांहों में दबोच लेने को उकसा ही रही थी।

मुझे अपनी शादी के शुरू के दिन याद आ गये। आज मैं एक बार फिर से उन्हीं लम्हों को दोहरा लेना चाहता था। मधुर अपने ध्यान में मस्त हुई कुछ गुनगुना रही थी। मैंने चुपके से उसके पीछे जाकर एक हाथ से उसके एक उरोज को कसकर पकड़ा और दूसरे हाथ से उसकी बुर को पकड़कर दोनों अंगों को जोर से भींच लिया। मेरा लंड उसके कसे नितंबों की खाई में जा टकराया।

मैंने आँखें बंद करके अपना सिर उसके कंधे पर रखते हुए अपने होंठ उसके गालों से लगा दिए। मेरा अंदाज़ा था मधुर अपने दोनों हाथ पीछे करके मुझे अपने आप से चिपका लेगी और अपने चिर-परिचित अंदाज़ में उलाहना देते हुए कहेगी … हटो परे!

“उईईई ईईईई … ” अचानक एक हल्की सी चीख उसके मुँह से निकल गयी और हाथ में पकड़ा बर्तन नीचे गिर पड़ा।
“ओहो … छ … छोड़ो मुझे … त्या तल लहे हो?” उसने अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करते हुए मुझे एक धक्का सा दिया।
मैं इस अप्रत्याशित आवाज़ को सुनकर हड़बड़ा सा गया। आज मधुर को क्या हो गया है? वो मेरी पकड़ से निकल गई और अपनी कुर्ती और पाजामे को ठीक करने लगी। उसका चेहरा सुर्ख हो गया था और साँसें लोहार की धोंकनी की तरह चलने लगी थी।

ओह … यह तो मधुर नहीं गौरी थी। लग गए लौड़े … !!! और फिर मुझे तो जैसे काठ ही मार गया।

“ओह … आ … आ … ई अम सॉरी … म … म … मुझे लगा … मेरा मतलब है … मैंने सोचा म … मधुर होगी। ओह … स … सॉरी … आ … ई आम रिअली सॉरी, प्लीज!” मैं हकलाता सा बोला। मुझे खुद पता नहीं मैं क्या बोल रहा था। इस अप्रत्याशित स्थिति के लिए मैं कतई तैयार नहीं था। बहुत बड़ी गलती हो गयी थी। हे भगवान … ! ये क्या हो गया??? अगर मधुर को पता चल गया या उसकी चींख सुनकर वो अभी आ गयी तो क्या होगा? सोचकर ही मुझे तो लकवा सा मार गया।

“वो … वो … वो मधु कहाँ है?” बमुश्किल मेरे मुँह से निकाला।
“दीदी सामने पाल्क में गाय तो लोटी डालने गयी है.” उसने मरियल सी आवाज़ में जवाब दिया। उसकी मुंडी झुकी हुई थी और एक हाथ से वह अपनी छाती को सहला रही थी।

“ग … गौरी … प्लीज … मुझे माफ करना … मुझसे अनजाने में गलती लग गयी प्लीज, आई अम सॉरी.” मैं मिमियाया।
“आप बाहल जातल बैठो मैं चाय लाती हूँ.”

“ओह … हाँ” कह कर मैं कमरे में आ गया। मैंने अपना सिर पकड़ लिया।
अब मैं आगे का सीन सोच रहा था।
हे भगवान … 2-4 मिनट में जब मधुर आएगी तो क्या होगा? पता नहीं गौरी क्या और किस प्रकार इस घटना का जिक्र मधुर से करेगी और पता नहीं मधुर क्या समझेगी और क्या प्रतिक्रिया करेगी? आज तो यकीनन लौड़े लग ही गए समझो। हे लिंग देव! रक्षा करना प्रभु … अब तो बस एक तेरा ही आसरा है। मैं इस बार सच्चे मन से तेरा सोमवार का व्रत रखूँगा और दिनभर कुछ नहीं खाऊँगा … कसम से … बस इस बार इज्जत बचा ले मेरे मौला … मेरे दीन दयाल … !!!

गौरी बिना बोले कमरे में चाय रख गयी। उसने अपनी नज़रें झुका रखी थी। मेरी भी अब उस से आँख मिलाने की हिम्मत कहाँ थी। मैं चाय लेकर बाथरूम में चला आया। इस स्थिति में मैं मधुर का सीधा सामना नहीं कर सकता था। चाय पीने की तो बिल्कुल भी इच्छा नहीं रह गयी थी, मैंने उसे टॉयलेट के हवाले किया और फ्लश चला दिया।

मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। मैं आगे के हालात के बारे में सोचने लगा। क्या किया जा सकता है? आगे आने वाली अनचाही स्थिति का सामना कैसे किया जाए? दिमाग में कुछ नहीं सूझ रहा था। अलबत्ता मैंने अपने कान बाहर ही लगाए रखे।

तभी मुझे मधुर के कदमों की हल्की सी आहट सुनाई दी- साहब को चाय दे दी क्या?
“हओ …” यह गौरी की आवाज़ थी। वा ‘हाँ’ को ‘हओ’ बोलती है।

“आपते लिए बनाऊँ?”
“ना … मेरी इच्छा नहीं है, अभी तू पी ले.” मधुर ने लापरवाह अंदाज़ में कहा।
“अच्छा सुन! आज मार्केट चलेंगे … काम जल्दी से निपटा ले तेरे लिए कुछ ढंग के कपड़े और किताबें आदि लाने हैं.”
“हओ”

हे लिंग देव तेरा लाख-लाख शुक्र है। लगता है अभी तो जान बच गयी। मैंने भगवान का धन्यवाद किया। हालांकि मैं यह जरूर सोच रहा था अगर बाद में गौरी ने कुछ बता दिया तो क्या होगा? ओहो … गोली मारो … बाद की बाद में देखेंगे फिलहाल तो आने वाला तूफान टल गया है। दिन में अगर कुछ अन्यथा हुआ भी तो कोई बात नहीं, मैं सिर दर्द का बहाना बना लूँगा या फिर ज्यादा काम का बहाना लगाकर आज दफ्तर से देरी से आऊँगा।

मैं भी बेकार में ज्यादा ही डर रहा हूँ … मैंने शॉवर खोलकर उसके नीचे सिर लगा दिया।

आज सुबह के घटनाक्रम के बाद पूरा दिन किसी अनहोनी की आशंका में ही बीता। दिनभर यही डर लगा रहा की अभी मधुर का फोन आया, अभी फोन आया। शाम को मैं थोड़ा देरी से घर पहुँचा। मैं आज मधुर की पसंदीदा आइसक्रीम और पिज़्जा लेकर आया था।

मैंने डरते डरते घर में कदम रखे। क्या पता कोई नयी आफ़त मेरा इंतज़ार कर रही हो? मुझे लगा सब कुछ नॉर्मल सा है, मैं बेकार ही चिंता में मरा जा रहा हूँ।
गौरी शायद काम निपटाकर अपने घर चली गयी थी। मधुर भी खासे रंगीन मूड में लग रही थी। लगता है लिंग देव ने मेरी सुन ली।

कई बार मधुर जब अच्छे मूड में होती है तो अपने बालों की दो चोटियाँ बनाती है। और फिर उस रात हमारा प्रेमयुद्ध (मधुर को चुदाई, लंड, चूत और गांड जैसे जैसे शब्द पसंद नहीं हैं) बहुत देर रात तक चलता है। रात को अक्सर वह नाइटी ही पहनती है पर आज उसने सफेद रंग का कमीज़-पाजामा पहना था जिन पर काली-काली बिंदियाँ बनी थी। आज उसने दो चोटियाँ भी बनाई थी, मुझे पक्का यकीन था आज मधुर गांड देने के लिए जरूर राज़ी हो जाएगी।

पिछले 4-5 दिन से उसे माहवारी आई हुई थी और आप तो जानते ही हैं इन दिनों में मधुर चुदाई तो छोड़ो मुझे अपने आप को छूने भी नहीं देती।

आज तो खैर 5वाँ दिन … मेरा मतलब रात थी।

रात के कोई दस बजे होंगे। बार-बार सुबह की घटना मेरे दिमाग में घूम रही थी। दिमाग जैसे कह रहा था “मैने चेताया था ना? जल्दबाजी में कोई पंगा मत लेना पर साला लंड तो किसी की मानता नहीं? लग गये ना लौड़े?”

मैं अपने नाराज लेकिन खड़े लंड को पाजामे के ऊपर से ही सहला रहा था। मधुर काम निपटाकर कमरे में आई और ड्रेसिंग टेबल के शीशे के सामने खड़ी होकर अपने आप को देखने लगी। मेरा पूरा ध्यान उसकी इन हरकतों पर ही लगा था। ऐसे मौकों पर मैं अक्सर उसे अपनी बांहों में दबोच लिया करता हूँ पर आज मेरी ऐसा करने के हिम्मत नहीं हो रही थी। मैं आज पूरी तसल्ली कर लेना चाहता था कि आज सुबह वाली बात गौरी ने उसे बताई है या नहीं।

“प्रेम?”
“हूँ?” मेरा दिल जोर से धड़का।
“मैं कुछ मोटी नहीं होती जा रही?” उसने अपना कुर्ता थोड़ा सा ऊपर उठाकर अपनी कमर की चमड़ी को अपने अंगूठे और तर्जनी अंगुली के बीच दबाकर देखते हुए पूछा।

आप तो जानते ही हैं कि ये सब औरतों के नाज़-ओ-अंदाज़ और नखरे होते हैं। उन्हें अपनी तारीफ बहुत पसंद होती है। मैं आज भला उसकी तारीफ क्योंकर नहीं करता- मेरी जान, तुम बहुत खूबसूरत लगती हो। कहाँ मोटी हो रही हो मुझे तो लगता है तुम कमजोर होती जा रही हो, दिनभर काम में लगी रहती हो अपना ध्यान बिल्कुल नहीं रखती!

“हटो परे … झूठे कहीं के!” उसने अपने बालों की जानबूझ कर छोड़ी गयी पतली सी आवारा लट को पीछे करते हुए अपने चिर-परिचित अंदाज़ में कहा।
“सच … कहता हूँ … तुम आज भी 20-22 की कॉलेज गर्ल ही लगती हो.” मैंने मस्का लगाया।
“देखो ना कितनी चर्बी चढ़ गयी है.” उसने अपनी कमर को दोनों हाथों से घेरा बनाकर पकड़ते हुए मेरी ओर देखा।
वाह … ! क्या कातिलाना अंदाज़ था।

अब तो मेरा उठना और उसे बांहों में भर लेना लाज़मी बन गया था। मैं पलंग से उछला और जाकर पीछे से उसे बांहों में भर लिया। मेरा खड़ा लंड उसके नितंबों से जा लगा और एक हाथ से मैंने उसका एक उरोज और दूसरे हाथ से उसकी मुनिया को पकड़कर धीरे धीरे दबाना चालू कर दिया।
“ओहो … रुको तो सही … लाइट तो बंद करने दो.”
“जानेमन अब रूकना उकना नहीं … जल्दी से मेरे दुश्मनों को परे हटाओ.” मैंने उसके पाजामे का नाड़ा खींचते हुए कहा।

“ओहो … प्रेम तुम से तो 3-4 दिन भी नहीं रुका जा सकता? आज मेरा बिल्कुल भी मूड नहीं है, कल करेंगे प्लीज … आज तो 5वाँ दिन ही है.”
“तुम्हारे 5वें दिन की ऐसी की तैसी! आज मैं तुम्हें नहीं छोड़ने वाला!” मैंने उसे बांहों में भरे हुए ही पलंग पर पटक दिया।

इस आपाधापी में वह पेट के बल गिर पड़ी और मैं ठीक उसके ऊपर आ गया।

“मेरी जान, तुम क्या जानो कि पिछली चार रातें यानि 96 घंटे और 14 मिनट मैंने कैसे बिताए हैं?”
“हुंह … तुम्हें मेरी कोई परवाह ही नहीं है.”
“मधुर तुम बहुत खूबसूरत हो … मेरी जान … बोलो क्या चाहिए तुम्हें?” मैंने उसके कानो के पास चुंबन लेते हुए कहा।
“हटो … परे झूठे कहीं के?” मधुर ने उलाहना देते हुए से कहा।

“सच में मधुर, तुम्हारे नितम्ब बहुत खूबसूरत हैं.” कहते हुए मैंने उसके कानों की लॉब को अपने होंठों में दबा लिया।
“नो … बिल्कुल नहीं …”
“प्लीज मधुर आज कर लेने दो ना … ? देखो ना पूरे 9 महीने और 17 दिन हो गये हैं। आज पीछे से करने का बहुत मन कर रहा है प्लीज मान जाओ।
मैं उसके ऊपर से थोड़ा सा सरक गया और उसके नितंबों पर हाथ फिराने लगा। मेरा लंड तो पाजामें में जैसे उधम ही मचाने लगा था।
“ओहो … रुको … ना …” मधुर कसमसाने सी लगी।
“क्या हुआ?”

वो पलटकर पीठ के बल हो गयी और फिर बोली “प्रेम … बस एक बार मुझे गर्भवती हो जाने दो फिर चाहे तुम रोज पीछे से कर लिया करना.”
“मधुर! देखो डॉक्टर ने बताया तो है कि …”
वह मेरी बात को बीच में ही काटते हुए बोली- अरे छोड़ो जी … डॉक्टरों को क्या पता … मुझे अपने कान्हाजी और लिंग देव पर पूरा विश्वास है, मेरी मनोकामना जरूर पूरी होगी.”

मैं मन ही मन हंसने लगा। लिंग देव कुछ नहीं करेंगे ये लंड देव जरूर कुछ कर सकता है।
पर मैंने उसे समझाते हुए कहा- मधुर, हम कोई बच्चा गोद भी तो ले सकते हैं?
“नहीं प्रेम, मैं तुम्हारे अंश से ही अपनी कोख भरना चाहती हूँ.”

“आजकल IVF, IUI, सैरोगेसी जैसी बहुत सी तकनीकें और साधन हैं तो फिर ..????”
“नहीं मुझे इस झमेले में नहीं पड़ना … ” मधुर कुछ उदास सी हो गयी थी।

“प्रेम???”
“हाँ”
“बोलो ना मेरी मनोकामना पूरी होगी ना? तुम क्या कहते हो?”

अब मैं क्या बोलता? डॉक्टर्स ने तो साफ मना कर दिया है कि मधुर अब कभी दुबारा माँ नहीं बन सकेगी। पर मैं उसका नाजुक दिल नहीं तोड़ सकता था। पिछली बार उसकी माहवारी 3-4 दिन आगे सरक गयी थी तो वो कितना खुश थी। पर जैसे ही माहवारी आई वो बहुत रोई थी। मैंने उसका मन रखने के लिए तसल्ली देते हुए कहा- हाँ मधुर, कई बार चमत्कार भी हो जाते हैं … हाँ हाँ तुम्हारी मनोकामना जरूर पूरी होगी.
“ओह … थैंक यू!” कहते हुए मधुर ने हाथों से मेरा सिर पकड़कर मेरे होठों को जोर से चूम लिया।

प्यारे पाठको और पाठिकाओ! क्या आप ‘आमीन!’ भी नहीं बोलेंगे?

यह कहानी साप्ताहिक प्रकाशित होगी. अगले सप्ताह इसका अगला भाग आप पढ़ पायेंगे.
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