एक अनोखा उपहार-23

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

एक अनोखा उपहार-22

एक अनोखा उपहार-24

नमस्ते दोस्तो … मेरी इस लम्बी सेक्सीकहानी के पिछले भाग में आपने जाना था कि रात को प्रतिभा दास की चुत और गांड चुदाई के बाद मैं सुबह जब उठा तो मेरी पुरानी केयर टेकर होटल की स्टाफ नेहा मेरे सामने थी. वो मुझसे अपने प्रेम का इजहार कर रही थी और मैं उसके साथ बात कर रहा था.अब आगे की हिंदी सेक्सीकहानी:

नेहा- मैं तलाकशुदा महिला हूँ, खुद के जीवनयापन के साथ साथ एक बच्चे की परवरिश का जिम्मा भी मुझे पर है. इसलिए मन की हसरतों को मारकर मैंने खुद को आपसे दूर रखने की पूरी कोशिश की … पर हो ना सका. अब आप ही कहो … मेरी क्या सजा है? क्या आपके मन में मेरे लिए एक पल को भी प्रेम आया था? आप परदेशी हो. चले जाओगे. फिर भी मेरी हसरत है कि आपके चंद लम्हों के प्रेम को समेटकर मैं अपनी जीवन बगिया महका लूं.

मैंने नेहा की आंखों में आंखें गड़ा दीं और कहा- मुझसे क्या सुनना चाहती हो?

नेहा ने कहा- जो आप कह दो. मेरे लिए आपके मुख से निकला हर शब्द अमृत है, जिससे मेरी रूह तृप्त हो जाएगी.

मैंने कहा- अब तुम मुझे आप की जगह तुम कह कर बुला सकती हो. इसके आगे तुम्हें जो देखना समझना है, वो मेरी आंखों में देख लो. क्योंकि मैं तुम्हारे सच्चे प्रेम को शब्दों की जादूगरी नहीं दिखाना चाहता … और ना ही कोई वादा करना चाहता हूँ, क्योंकि मुझे पता है कि मैं किसी भी वादे को पूरा करने में समर्थ नहीं हूं.
नेहा ने मुझे फिर जकड़ लिया और कहा- तुमने अपनी सच्चाई से मुझको अपना बना लिया है.

वो मुझसे चिपकी हुई थी, तो उसके भारी गोल स्तन मुझे आंदोलित करने लगे.

मैंने पहली बार उसके ललाट को चूमा और उसे कंधों से पकड़ कर अपने सामने रखकर कहा- एक बार फिर सोच लो, तुम एक अजनबी से दिल लगाने की गलती कर रही हो!

नेहा ने एक लंबी गहरी सांस ली और आंखें मूंद कर कहा- जब मैं होटल में जॉब करने आई, तब पता चला कि होटल में लड़की को ग्राहक सिर्फ़ भोग का सामान समझता है. मैं अपने उसूलों पर चलने वाली लड़की हूँ. तब भी तीन बार मुझे अपने उसूल तोड़ने पड़े थे. और मेरा उसूल तोड़ने के लिए सिफारिश में होटल के मालिक तक को आना पड़ा था.
मैं तुम्हें चाहती हूँ, आज पहली बार मैं किसी के सामने अपने प्रेम की खातिर खड़ी हूँ. क्या तुम्हारा ये उपहार कम है कि तुम्हारी आंखों में मेरे लिए इज्जत है. और इस उपहार के बदले मैं अपनी जान तक लुटा सकती हूँ.

यही शब्द मैंने कुछ घंटों पहले प्रतिभा के मुँह से भी सुने थे. मैं सोचने लगा कि मैं उपहार दे रहा हूँ … या मुझे उपहार मिल रहा है.

मैंने नेहा को गले से लगा लिया. प्रेम और समर्पण की खुशबू पूर कमर में फैल गई.

मैंने गले लगाए हुए ही नेहा के कान में कहा- नेहा तुम समर्पित हो … पर आग और पेट्रोल के बीच चाह जितनी भी घनिष्ठता क्यों ना हो, संपर्क में आने से शोले तो भड़केंगे ही. अच्छा होगा तुम चली जाओ. मैं तुम्हारी अच्छाई का फायदा नहीं उठाना चाहता.

पता नहीं मेरी बातों का नेहा ने क्या मतलब निकाला, पर उसने अपनी बांहों के पाश में मुझे और जोरों से जकड़ लिया.
मैंने फिर उसके कानों में कहा- नेहा इस आलिंगन का मैं क्या मतलब समझूं?
नेहा ने मुझसे लिपटे हुए ही, शरमा कर कहा- तुम इतने भी नासमझ तो नहीं लगते.

उसकी इस बात ने मेरे अन्दर जोश भर दिया और मैंने उसे बांहों में ऐसे कसा, जैसे मैं उसका रस निचोड़ना चाह रहा हूँ.

फिर मैंने उसे बिस्तर में बिठाना चाहा. तो उसने मुझे रूकने को कहा और खुद उठकर दरवाज पर लॉक कर आई.

फिर फोन लगाकर उसने किसी से कहा- हां सुधा, मैं सर को लंच करा रही हूँ, मुझे थोड़ा टाइम लगेगा.

उसने लंच की बात की. तो मुझे याद आया कि ना मैंने नाश्ता किया है. ना ही फ्रेश हुआ हूँ और ना ही नहाया हूं. खैर नाश्ता तो नहीं भी करने से चल जाता है, पर फ्रेश होना और नहाना तो जरूरी ही था, क्योंकि शरीर की थकावट भी दूर करनी थी और गर्मी भी चढ़ने लगी थी.

इस समय नहाने के बारे में सोचने की एक वजह और भी थी, ये बात आप भी ध्यान में रखें, तो अच्छा है. जब भी हम किसी से सेक्स करें, तो अपने गुप्तागों की अच्छे से धुलाई जरूरी है. क्योंकि साफ सफाई ही हमें बीमारियों से बचाता है.

मैंने नेहा से फ्रेश होने की इच्छा जाहिर की, तो उसने कहा- ठीक है तो मैं चलती हूँ.
मैंने कहा- अरे नहीं … तुम रूको ना मैं बस पांच मिनट में आता हूँ.

वो मेरे कहने पर बिस्तर पर बैठ गई और मैं तौलिया लपेटकर बाथरूम में जाकर जल्दी से फ्रेश हो गया.

इसी दौरान मेरे दिमाग में एक आइडिया आया कि क्यों ना आज नेहा के साथ नहाया जाए?

किसी ने सच ही कहा है दुनिया के सारे अच्छे आइडिए संडास के वक्त ही आते हैं.

मैं फ्रेश होने के बाद बाहर निकला और नेहा से कहा- यार, मेरी पीठ खुजला रही है, मैं नहाना भी चाह रहा हूँ, अगर तुम्हें कोई ऐतराज़ ना हो तो क्या तुम मेरी पीठ रगड़ दोगी.

ये बात मैंने मुस्कुरा कर कही थी और नेहा मेरी मंशा समझ चुकी थी, उसने भी मस्ती से कहा- पीठ ही रगड़नी है ना … या कुछ और भी!
मैंने भी आंख मारते हुए कहा- तुम और क्या-क्या रगड़ सकती हो?
उसने मुस्कुरा कर आंखें झुका लीं और कहा- तुम चलो, मैं आती हूँ.

मैंने बाथरूम में जाकर अंडरवियर के अलावा बाकी कपड़े उतार दिए और नेहा की प्रतीक्षा करने लगा.

जब नेहा अन्दर आई, तो मेरी आंखें ही चौंधिया गईं, क्योंकि नेहा ने सारे कपड़े उतार कर सिर्फ तौलिया लपेट रखा था, जिससे उसके झांकते स्तन और गोरी पिंडलियों की चमक मन को मोह रही थीं.

नेहा अनुभवी थी, पर इतनी भी चालू नहीं थी कि मेरे बिना कहे ही अपने सारे कपड़े उतार फेंके.
उसे देख कर मेरे मुँह से निकल गया- वाह … तुम तो मुझसे भी ज्यादा बेसब्र निकलीं.

इस पर नेहा ने मुस्कुरा कर जवाब दिया- ऐसा नहीं है जनाब … जब दो साल बिना सेक्स के गुजारने पर भी मेरे पैर नहीं डिगे, तो इस समय धैर्य खोने का सवाल ही नहीं उठता. और जनाब आपने तो पीठ रगड़ने की बात कह दी. मुझे ये भी पता है कि पीठ रगड़वाने के बाद तुम और क्या रगड़ दोगे. पर क्या तुमने सोचा है कि मेरे कपड़े भीग गए तो मैं क्या पहन कर बाहर जाऊंगी? फिर मैं लोगों को उंगली उठाने का कोई मौका नहीं देना चाहती.

मैंने कान पकड़ कर सॉरी कहा और नेहा को पास बुलाने लगा.

नेहा ने कहा- ये गलत बात है जनाब … आप नहाना शुरू कीजिए, तभी तो मैं पीठ पर शैम्पू लगाऊंगी और रगड़ाई भी होगी.
मैंने हंसकर कहा- रगड़ाई … किसकी? तुम्हारी रगड़ाई तो मैं करूंगा.

ये कहते हुए मैं खुद नेहा के पास चला गया और उसे बांहों में भर लिया. उसकी अर्धनग्न कंचन काया के मखमली अहसास ने मेरे सोये हुए राक्षस को जागृत कर दिया.

नेहा ने टॉवेल संभाले रखा और मुस्कुराती हुई मेरी मस्ती का आनन्द लेती रही.

नेहा की बॉडी फिगर मॉडलों जैसा था, मैंने उसके बॉडी शेप को देखकर 36-24-36 साइज का अनुमान लगाया. होटल वाले खूबसूरत और फिट लड़कियों को अच्छी सैलरी देकर काम पर रखते हैं.

मैंने उसके उन्नत उभार टॉवेल के ऊपर से ही छूने शुरू कर दिए और उसकी गर्दन पर किस करने लगा.

उसने कान से चिपका हुआ टॉप्स पहन रखा था, मैंने उसके कान भी दांतों से काट लिए. सच पूछो तो उसका पूरा बदन ही चाट लेने और खा जाने लायक था.

मेरी हरकतें उसके बदन को तपाने लगी थीं. उसकी तेज होती धड़कनें ज्वार भाटा की भांति चढ़ती बैठती सी प्रतीत हो रही थीं.

फिर भी नेहा ने खुद को संयत किया और पलट कर मेरी बलिष्ठ और बालों भरी छाती में सर छुपाते हुए कहा- ऐसे में तो तुम नहा ही नहीं पाओगे. और सब कुछ हो जाने के बाद नहाने का मजा नहीं आएगा.

मैंने उसके ललाट पर चुंबन अंकित कर उसकी बातों पर सहमति जताई और जाकर बॉथटब में बैठ गया. बैठने से पहले मैंने अंडरवियर निकाल दी … जिससे मेरा खड़ा लंड उजागर हो गया.

मैंने नोटिस किया कि नेहा की नजर भी मेरे लंड पर ही अटक गई थी.

हाई क्लास होटलों में बाथरूम पर खास ध्यान दिया जाता है. सुंदर सा फर्श रंगीन, दीवारें, फैंसी लाइटें, महंगे स्टाइलिस नल शावर और गैजेटस के साथ साफ स्वच्छ बॉथटब.

इस बॉथटब में आधे से ज्यादा पानी भरा हुआ … बड़ा सा था, जिसमें मैं एक ओर अपने पैर मोड़कर बैठ गया और पीछे नेहा भी बैठ सके, उस लायक जगह छोड़ दी.

फिर मैंने नेहा से कहा- लो अब तुम्हारा काम आ गया है.

नेहा ने मुस्कान बिखेरी और अपने शरीर पर बंधे तौलिए की गांठ खोल दी और तौलिए को सूखे जगह पर टांग दिया.

अब नेहा आदमजात नग्न अवस्था में थी. उसकी सांवली फूली हुई चूत के ऊपर हल्के भूरे रेशमी बाल नजर आ रहे थे. अभी मुझे चूत के भीतर झांकने का अवसर नहीं मिला था, तो मुझे सिर्फ दरार देखकर ही संतोष करना पड़ा.

उसके उठे हुए लाजवाब स्तन के चूचुक तने हुए थे और काले रंग का घेराव उन्हें और आकर्षक बना रहा था.

उसके उदर पर बच्चा जनने का हल्का निशान उसके मातृत्व सुख का सुबूत दे रहा था … लेकिन उसने सचमुच अपने शरीर को ऐसे ढाल रखा था कि कोई नवयौवना भी उसके समक्ष फीकी लगे.

उठे हुए कंधे और कंधों पर बिखरे उसके केश … अन्दर घुसा पेट और बलखाती कमर, मांसल किंतु सुडौल जांघें, आकर्षक पिंडलियां … और सर से लेकर पांव तक सब कुछ उसके सौंदर्य का बखान कर रहा था.

उसका गोरा बदन सांचे में ढला हुआ सा प्रतीत हो रहा था, अंग-अग में चिकनाई थी, रोम-रोम से मादकता टपक रही थी और उसके चेहरे को प्रेम और वासना की मिश्रित कांति चमक रही थी.

नेहा अपनी नजरों की कटार और थिरकते होंठों से वासना का सैलाब लाने की कुब्बत रखती थी. मैंने प्यासी निगाहों से नेहा को देखकर अपनी ओर आने के लिए उसे आमंत्रित किया.

नेहा मुस्कुराती हुई टब में प्रवेश कर गई और मेरे पीछे आकर टब के किनारे पर बैठ गई. नेहा ने अपने खूबसूरत हाथों का प्रथम स्पर्श मेरे चौड़े नग्न कंधों पर किया और मैं सिहर उठा.

प्रेम हदें नहीं जानता, रिश्ते नहीं मानता. मैंने भी नहीं सोचा था कि मुझे प्रेम करने का इतना अवसर मिलेगा और इतनी खूबसूरत प्रेमिकाएं मिलेंगी.

खैर किस्मत और ईश्वर की मर्जी को कौन जानता है. कब चमक जाए और कब डूब जाए.

नेहा मुस्कुराती हुई टब में प्रवेश कर गई और मेरे पीछे आकर टब के किनारे पर बैठ गई. नेहा ने अपने खूबसूरत हाथों का प्रथम स्पर्श मेरे चौड़ नग्न कंधे पर किया और मैं सिहर उठा.

मैंने सिहरन में ‘इस्स्स..’ करके आवाज निकाली और अपने कंधों पर ही उसके हाथ को पकड़ कर मसलने लगा.

उसने थोड़ी देर साथ दिया. फिर वो हाथ छुड़ा कर अपने हाथों से पानी के छींटें मेरी पीठ पर मारने लगी. उसके हाथों की छुअन से गुनगुना पानी और ज्यादा तप्त महसूस होने लगा.

बाथरूम में नेहा की नग्न अवस्था में मौजूदगी और बाथटब पर उसका साथ होना ही मेरे लिए रोमांचक अहसास था, पर मैंने अपने बेकाबू मन को संभाले रखा और नेहा के अगले उपक्रम की प्रतीक्षा करने लगा.

नेहा ने वहां रखे बॉडी शैंपू की बॉटल उठाई और हाथों में शैंपू लेकर मेरी पीठ पर मलना प्रारंभ किया. उसके नर्म हाथों और शैपू की चिकनाई की कमलता मेरे मन को आनन्दित करन लगी.

मैंने आंखें मूंद लीं और खुद को नेहा के हवाले कर दिया.

नेहा ने शैंपू को मेरे शरीर पर फैलाने के बहाने पूरे बदन को सहलाना प्रारंभ किया. नेहा के हाथ पीठ के बगल से होकर मेरे सीने तक आ रहे थे और मेरा लंड पानी के भीतर भी जोर मारने लगा था.

फिर नेहा ने एक ब्रांडेड फोम को पानी में भिगोया और मेरी पीठ की रगड़म रगड़ाई करने लगी. मुझे इस ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं थी, मैंने तो नेहा को पास लाने के लिए ये बहाना किया था. सो मैंने नेहा के हाथ को पकड़ कर रोक दिया और मैं खुद पलट कर नेहा की ओर मुँह करके बैठ गया.

इससे नेहा की चूत मेरे आंखों के सामने थी. उसकी सांवली चूत के ऊपर हल्के रेशमी बाल और पुष्प की भाँति पखुड़ियों वाली खुली चूत अत्यंत मनमोहक नजर आ रही थी.

नेहा अपनी नजर की कटार और थिरकते होंठों से सैलाब लाने की कुव्वत रखती थी. मैंने प्यासी निगाहों से नेहा को देखकर अपनी ओर आने के लिए आमंत्रित किया.

कामुक और वासना भरे इस खेल में कई मुकाम आने बाकी हैं. कहानी जारी रहेगी आप अन्तर्वासना के साथ बन रहें.

आप सबको मेरी किस्मत में लिखी चुदाई कैसी लग रही है, आप अपनी राय मुझे इस पते पर दे सकते हैं.
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सेक्सीकहानी जारी है.