दीदी की चूत सहेली के भाई ने चोदी-3

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

दीदी की चूत सहेली के भाई ने चोदी-2

दीदी की चूत सहेली के भाई ने चोदी-4

आपने अब तक की मेरी इस सेक्स कहानी में पढ़ा था कि दीदी अपनी सहली श्वेता और साकेत भैया के साथ एक होटल में गई थी. मैं भी उन सभी के साथ था. होटल में साकेत भैया ने दीदी की जाँघों पर हाथ डरते हुए उनकी बुर को अपनी उंगलियों से सहलाया था. उसके बाद हम दोनों घर आ गए थे.

अब आगे:

घर आने से पहले दीदी मुझसे बोली- अर्णव, मम्मी को मत बताना कि हम लोग साकेत भैया के साथ होटल गए थे.
मैं- ठीक है.

जब हम दोनों घर आए, तब मम्मी ने पूछा- अरे प्रिया आने में बहुत देर कर दी.
दीदी- हां मम्मी … दुकान में बहुत भीड़ थी.
मैं- हां मम्मी … बहुत भीड़ थी.
दीदी ने तुरंत सामान रखा और बाथरूम में चली गई.

मैं सोच रहा था कि आखिर मेरा लंड इतना टाइट क्यों हो गया था … मुझे इतना मजा क्यों आ रहा था. मैं उस समय छोटा था, तो एक दो दिन बाद मैं ये सब चीजें भूल गया.

अब हर रोज दीदी लैटर लिखती और उधर से भी लैटर आता. मुझे जब भी मौका मिलता, मैं उन लैटर को पढ़ लेता था.

कुछ दिन ऐसे ही बीत गए और गर्मियों की छुट्टी भी खत्म हो गईं. हमारे कॉलेज भी खुल गए और उसी तरह हम लोग कॉलेज जाने लगे.

कुछ दिन बाद कॉलेज में हम लोगों के टेस्ट एग्जाम भी शुरू हो गए.

इसी बीच एक दिन अचानक से मम्मी का तबीयत ज्यादा बिगड़ गई, तो हम लोग बहुत घबरा गए.

तब दीदी ने मुझसे बोली- अर्णव, जल्दी से श्वेता के घर जाओ और आंटी को बुलाकर लाओ.
मैं- ठीक है.

मैं दौड़ता हुआ उनके घर गया. श्वेता दीदी सामने बैठी थी. उन्होंने मुझसे पूछा- क्या हुआ … इतना हांफ क्यों रहे हो?
मैं- मम्मी की तबीयत ज्यादा खराब हो गई है … दीदी ने आंटी को बुलाया है. जल्दी चलिए.
आंटी- क्या हुआ?
मैं- पता नहीं.

वे जल्दी से मेरे साथ आने लगीं. घर पहुंच कर हम चारों, मतलब श्वेता दीदी, आंटी, दीदी और मैं जल्दी से मम्मी को हॉस्पिटल लेकर गए. हॉस्पिटल पहुंचने के बाद अंत में डॉक्टर से बात की और उन्हें डॉक्टर के केबिन में लेकर गए.

हम लोग बाहर ही बैठे थे. कुछ देर बाद आंटी मम्मी को लेकर केबिन से बाहर आईं.

दीदी ने आंटी से पूछा- आंटी, डॉक्टर क्या बोला?
आंटी- कुछ नहीं, कुछ दवा लिख दी है और बोला है कि अभी तबीयत में कुछ सुधार हो जाएगा.

फिर आंटी ने दीदी से पापा का मोबाइल नंबर लिया और पापा को कॉल करने लगीं. वे एक साइड में जाकर बात करने लगीं. मैं भी उनके पीछे पीछे चल दिया और उनकी बात सुनने लगा.

आंटी- हैलो, हां मैं श्वेता की मम्मी बोल रही हूं.
पापा- नमस्ते, भाभी जी.
आंटी- नमस्ते.
पापा- हां भाभी … बोलिए सब ठीक है ना.
आंटी- हां, सब ठीक ही है. आपकी प्रिया की मम्मी की तबीयत खराब है उनको हॉस्पिटल लेकर आई हूं.
पापा- डॉक्टर को दिखा लिया?
आंटी- हां.
पापा- डॉक्टर ने क्या बोला?
आंटी- डॉक्टर साहब ने तो देख लिया है दवा भी दे दी है और बोला है कि तबीयत में अभी सुधार हो जाएगा. लेकिन वे बोले कि किसी अच्छे स्पेशलिस्ट डॉक्टर को भी दिखा लीजिएगा.
पापा- अच्छा ठीक है.

फिर आंटी ने फोन बंद कर दिया और हम लोग वहां से घर लौट आए.

कुछ देर तक आंटी और श्वेता दीदी घर में रुके रहे. कुछ देर बाद वे लोग जाने लगे.

आंटी बोली- ठीक है प्रिया … हम लोग जा रहे हैं … कोई दिक्कत हो तो मेरा नंबर ले लो … फोन कर लेना … घबराना नहीं.
दीदी- ठीक है आंटी.
श्वेता दीदी- मम्मी तुम जाओ … मैं बाद में आ जाऊंगी.
आंटी- ठीक है.

कुछ देर बाद हमारे मामा जी, जो मम्मी के इकलौते भाई हैं … उन्होंने मम्मी के नंबर पर फोन किया. मामा जी पास के ही एक गांव में रहते थे.

दीदी मामा जी से बात करने लगी- नमस्ते मामा जी.
मामा जी- कैसी हो प्रिया, मम्मी कैसी है?
दीदी- मैं ठीक हूं मामा जी, मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है. अभी उन्हें डॉक्टर से दिखला कर लाए हैं.

मामा जी- क्या बोला डॉक्टर ने और अभी कैसी हैं?
दीदी- अभी ठीक है, पर डॉक्टर ने किसी बढ़िया डॉक्टर से दिखाने के लिए बोला है.
मामा जी- हां, अभी तुम्हारे पापा ने फोन किया था. तुम लोग घबराना नहीं, हम शाम तक वहां आ जाएंगे. हम घर से निकल चुके हैं … और अर्णव कैसा है?
दीदी- वो भी ठीक यहीं पर हैं. यहीं पर है … लीजिए बात कीजिए.
मामा- हां उसको दो.

मैं- प्रणाम … मामा जी.
मामा- खुश रहो, कैसे हो?
मैं- ठीक हूं … बस मम्मी की तबीयत खराब है.
मामा- अरे कोई बात नहीं … मम्मी ठीक हो जाएगी.
मैं- आप आ रहे हैं.
मामा जी- हां मैं आ रहा हूं. तुम लोग जरा भी परेशान मत होना. मैं शाम तक आ जाऊंगा.
मैं- ठीक है.

फिर मामा जी ने फोन काट दिया. कुछ देर बाद पापा का फोन आया और उन्होंने मम्मी और दीदी से बात की. उसके बाद शाम को मामा जी भी आ गए. उन्होंने बताया कि पापा कल सुबह तक आ जाएँगे.

रात में दीदी ने खाना बनाया और हम लोग खाना खाकर सो गए. सुबह पापा भी आ गए.

दोपहर में खाना खाते वक्त पापा और मामा जी ने तय किया कि आज शाम को ही मम्मी को लेकर दिल्ली निकालना है. सारा प्रोग्राम फिक्स हो गया.

दीदी और मम्मी ने मिलकर सारा सामान पैक किया. उसके बाद मम्मी ने श्वेता दीदी को फोन किया और उन्हें घर बुला लिया.

आंटी और श्वेता दीदी दोनों मेरे घर आ गईं. फिर वे लोग आपस में बात करने लगे.

मम्मी आंटी से बोलीं- दीदी घर आते रहिएगा. बच्चों का ख्याल रखिएगा.
आंटी- अरे कोई बात नहीं है … आप लोग घबराइए नहीं, आराम से जाइए और ठीक से दिखला कर आइए.
मम्मी- ठीक है दीदी.
पापा दीदी से बोले- तुम लोगों के एग्जाम कब तक हैं?
दीदी- दो दिन बाद हैं.
पापा- एग्जाम खत्म हो जाएं, तो घर पर ही रहना. जब हम लोग आ जाएंगे, तब फिर कॉलेज जाना.
दीदी- ठीक है पापा.
पापा- अर्णव का ख्याल रखना.
दीदी- ठीक है पापा.
पापा- अर्णव घर पर ही रहना … बाहर मत जाना ठीक है ना!
मैं- हां पापा … ठीक है.
मम्मी- बेटा बदमाशी मत करना और दीदी को परेशान मत करना.
मैं- जी नहीं परेशान करूंगा.
मम्मी- आते वक़्त तुम्हारे लिए क्या लेकर आऊं?
मैं- मेरे लिए बैट लेकर आना.

फिर सब लोग हंसने लगे. शाम हो गई थी. सब लोग जाने के लिए तैयार थे. मामा जी ऑटो लाने के लिए गए. कुछ देर बाद ऑटो लेकर वापस आ गए.

मामा जी ने सारा सामान ऑटो में रखवाया, फिर मम्मी ने आंटी के पैर छुए. हम दोनों ने मम्मी पापा के पैर छुए, फिर सारे लोग ऑटो में बैठ गए और वे लोग चले गए.

अब धीरे धीरे अंधेरा भी होता जा रहा था.

तभी आंटी बोलीं- ठीक है प्रिया … मैं जाती हूं … घर में बहुत सारा काम पड़ा है. साकेत भी आ गया होगा. तुम्हारी मम्मी जब तक नहीं आती हैं, तब तक श्वेता रात में यहीं रहेगी. तुम्हारा मन भी लगा रहेगा और अगर कोई दिक्कत हो तो बताना.
दीदी- ठीक है आंटी.
आंटी चली गईं.

रात में दीदी और श्वेता दीदी दोनों ने मिलकर खाना बनाया और हम लोग खाना खाकर सो गए.

जब सुबह हुई, तो दीदी मुझे जगाने आई.
मैं उठा, तो दीदी बोली- जल्दी से तैयार हो जाओ … वरना कॉलेज के लिए लेट हो जाओगे.
मैं- श्वेता दीदी कहां है?
दीदी- वो घर गई है … तैयार होने के लिए … तुम भी जल्दी तैयार हो जाओ.

मैंने जल्दी जल्दी में नाश्ता किया और अपने कमरे मैं ड्रेस चेंज करने लगा.

तभी दीदी के रूम का दरवाजा बंद होने की आवाज सुनाई दी. मैं झट से होल से अन्दर झांकने लगा. मुझे लगा कि वो कुछ लैटर वगैरह लिख रही होगी … इसलिए मैं देख रहा था. लेकिन मैंने देखा कि दीदी कपड़े चेंज करने में लगी थी. मैंने कुछ सोच कर इग्नोर कर दिया. फिर मैंने सोचा कि हो सकता है कपड़े चेंज करने के बाद वो लैटर लिखे, तो मैं फिर से अन्दर झांकने लगा.

उसके बाद मैंने अन्दर का जो नजारा देखा, मेरे तो होश उड़ गए. मैंने देखा कि दीदी ने अपना सूट उतार दिया था. मेरे सामने वो सिर्फ ब्रा में थी. मुझे उनका सफेद दूधिया पिछवाड़ा दिखाई दे रहा था.

मैंने अहसास किया कि मेरा लंड पैंट में ही खड़ा हो गया. मुझे उस वक़्त वही फीलिंग हो रही थी, जो मुझे उस दिन होटल में हुई थी. मैं अभी सोच ही रहा था कि तभी दीदी ने अपनी सलवार भी उतार दी.

अब तो मेरी आंख खुली की खुली रह गई. उनकी बड़ी सी गांड देखकर जो लग रहा था कि दीदी की जांघियां फाड़ कर पूरा का पूरा पिछवाड़ा बाहर आ जाएगा. उनके गोरी और मोटी जांघों को देख कर मेरा लंड पूरा टाईट हो गया. ऐसे तो मेरा मेरे लंड उस वक़्त छोटा था, पर खड़ा था. मेरा हाथ अपने आप मेरे लंड पर चला गया और मैं अपने लंड को सहलाने लगा. मुझे बहुत मजा आ रहा था. मैं सोचने लगा कि दीदी की जांघिया के अन्दर क्या होगा. मुझे ये देखने की बहुत उत्सुकता हो रही थी. यही सब सोच कर मैं अपना लंड धीरे धीरे हिला रहा था. मेरी आंखें बंद हो गईं.

तभी दीदी ने आवाज लगाई- अर्णव हुआ क्या?
मैं लड़खड़ाते हुई आवाज में बोला- हां दीदी हो गया.
दीदी- चलो जल्दी बाहर आओ.

मैं अपने आपको संभालते हुए जल्दी से बाहर आ गया. दीदी बिल्कुल तैयार थी. दीदी कॉलेज ड्रेस मिनी स्कर्ट और व्हाईट शर्ट पहनी थी. उनकी स्कर्ट उनके घुटने से थोड़ी ऊपर थी, जिससे उनकी मोटी मोटी जांघें साफ़ दिखाई दे रही थीं. अगर कोई नीचे झुक कर देखता, तो अन्दर का सब कुछ दिखाई दे जाता.

मेरा लंड अभी भी बिल्कुल टाईट था, लेकिन मैं जल्दी जल्दी में अपनी पैंट की ज़िप लगाना भूल गया था.

तभी दीदी बोली- तुम ड्रेस चेंज करने में कितना समय लगाते हो … इतना समय तो मुझे भी नहीं लगता. देखो तुमने अपनी ज़िप भी नहीं लगाई है.

तभी वो मेरे पास आकर मेरे पेंट की ज़िप को लगाने लगी. जैसे ही उनका हाथ मेरे लंड पर लगा, मुझे अजीब सी फीलिंग हुई, मुझे ऐसा लगा कि जैसे पूरे शरीर में करंट दौड़ गया हो. लेकिन उस वक़्त मैं बहुत घबराया हुआ था.
मैं दीदी से आंख नहीं मिला पा रहा था.

तभी दीदी बोली- आज क्या हो गया है तुम्हें … ऐसा क्यों कर रहे हो? तबीयत तो ठीक है तुम्हारी.
मैं घबराते हुए बोला- हां मैं ठीक हूं.
इतने में बाहर से आवाज आई- प्रिया हो गया क्या … चलो जल्दी लेट हो रहे हैं.
दीदी- हां श्वेता हो गया, बस आ रही हूं.

उसके बाद हम लोग बाहर निकले. दीदी ने दरवाजे में ताला लगाया. हम लोग जल्दी जल्दी कॉलेज के लिए चल दिए. मेरा एग्जाम खत्म हो गया. मैं जल्दी जल्दी अपने कॉलेज से दीदी के कॉलेज के पास पहुंच कर उनका इंतज़ार करने लगा.

थोड़ी देर बाद दोनों बाहर आ गईं.

तभी दीदी ने मुझसे पूछा- तुम कब आए?
मैं- अभी ही आया.
दीदी- क्यों आज तुम्हारा एग्जाम बड़ा जल्दी हो गया.
मैं- हां, बहुत हल्के हल्के सवाल थे, तो बहुत जल्दी बन गया.
दीदी- अच्छा सवाल दिखाओ तो?

मैंने दीदी को अपना क्वेश्चन पेपर दे दिया और दीदी उस पढ़ने लगी. तभी दीदी की कुछ और सहेलियां दीदी के पास आईं और उनसे पूछने लगीं.

एक सहेली- अरे प्रिया … ये कौन है?
दीदी- मेरा छोटा भाई.
सहेली- अरे तेरा भाई तो तुम्हारे जैसा ही बड़ा क्यूट है.
दीदी- अच्छा …
दीदी की सहेली ने मुझसे पूछा- क्या नाम है तुम्हारा?
मैं- अर्णव.
सहेली- किस क्लास में पढ़ते हो?

मैंने बताया.
तभी श्वेता दीदी बोली.

श्वेता दीदी- तुम इससे इतना सवाल क्यों पूछ रही हो?
सहेली- अरे मेरा भी इसी के उम्र का छोटा भाई है … वो मुझे बहुत परेशान करता है. वह मुझसे हमेशा लड़ता रहता है. एक ये है … अपनी बहन का कितना ख्याल रखता है … प्रिया को साथ ले जाने के लिए इसका इंतजार कर रहा है.
तभी श्वेता दीदी बोली- चलो ठीक है … कल मिलते हैं.

फिर सब लोग अपने अपने घर की ओर चल दिए. हम लोग भी चलने लगे. मैं दीदी के पीछे पीछे चल कर उनकी जांघों को देखते हुए चल रहा था.

तभी दीदी बोली- अरे अर्णव पीछे पीछे क्यों चल रहे हो … साथ में चलो. इधर बहुत गाड़ी चलती हैं.

मैं दीदी के साथ साथ चलने लगा. दोनों आपस में बात करते हुए चल रही थीं. मैं भी उनकी बात सुनने लगा.

श्वेता दीदी बोली- प्रिया मैं तुमसे एक बात बोलना चाह रही थी.
दीदी- हां बोलो न?
श्वेता दीदी- साकेत भैया तुमसे मिलना चाहते हैं.
दीदी- क्यों?

मेरी दीदी की चुत की सील साकेत भैया ने कैसे खोली. इस सबको मैं पूरे विस्तार से लिखता रहूँगा. ये सेक्स कहानी कई भागों में आपको पढ़ने को मिलेगी. मेरी इस सेक्स कहानी के लिए आपके मेल की प्रतीक्षा रहेगी.
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कहानी जारी है.