चुदाई के गीत मेरे लबों पर-3

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

चुदाई के गीत मेरे लबों पर-2

चुदाई के गीत मेरे लबों पर-4

अन्तर्वासना के सभी पाठक एवं पाठिकाओ को मेरा नमस्कार. कहानी के इस नए भाग में आप सबका स्वागत है…

परमीत ने कहा- मेरे नीचे से खून आता है.
मीता ने पूछा- नीचे से मतलब कहां से??

तब परमीत ने अपनी चुत की तरफ इशारा करके दिखाया और हम सबके चेहरे के रंग ही बदल गए.

अब आगे:

मैंने घोर आश्चर्य से आंखें चौड़ी की और तुरंत कहा- मतलब जहां से हम सूसू करते हैं वहीं से?
परमीत ने हां में सर हिलाया, तो मैंने झट से कहा- तुमने डॉक्टर को दिखाया?
इस पर परमीत शरमा गई और उसने कहा- धत कमीनी, कोई अपनी ऐसी जगह किसी को दिखाता है क्या?
मैंने कहा- दिखाता तो नहीं है, पर जब बात तबीयत की हो तो फिर डॉक्टर से कैसी शर्म.

ये बातें करते हुए मेरा ध्यान मनु पर गया, वो मुस्कुरा रही थी. मैंने उसे एक हल्का सा मुक्का मारा और कहा- कुतिया तुझे बड़ी हंसी आ रही है. जब तेरे नीचे से खून की धार बहेगी, तब तू समझेगी.

मेरी इस बात मनु और जोर से हंस पड़ी और अब तो परमीत भी मुस्कुरा रही थी. वहां सिर्फ मैं और मीता ही घोर आश्चर्य में घिरे परेशान हो रहे थे.

फिर मनु ने श्श्श्शश करते हुए हमें चुप रहने को कहा और परमीत से पूछा- तुमने पैड किससे मांगा??
परमीत ने सीधा जवाब दिया- दीदी से.
मनु- पेट में दर्द हुआ, हाथ पैर दुखा, सर दुखा या कुछ और लगा?
परमीत- पेट में तेज दर्द हुआ.
मनु- तुम ज्यादा घबराई तो नहीं?
परमीत- हां पहले तो मैं एकदम से डर गई, फिर दीदी ने सब समझा दिया.
मनु- कितने दिन रहा?
परमीत – आज चौथा दिन है, अभी भी थोड़ा-थोड़ा है.

अब उनकी बातों से मेरा ये आश्चर्य और धैर्य बर्दाश्त से बाहर हो गया.

मैंने कहा- अरे हमें भी तो कुछ बताओ कि हुआ क्या है. और तुम दोनों किस विषय पर बातें कर रही हो?
फिर मैंने मनु से कहा- और तू कमीनी ये सब कैसे जानती है?
मनु ने मुस्कुरा कर मेरा कान पकड़ते हुए जवाब दिया- परमीत जो बता रही है, उसे मासिक धर्म का आना कहते हैं.

फिर मेरा कान छोड़ के अपना कान पकड़ते हुए कहा- मुझे माफ कर दो यार … मैंने तुम लोगों को बताया नहीं, पर पिछली गर्मी की छुट्टियों से ये मुझे भी हो रहा है.

अब मनु के अलावा हम तीनों ने एक साथ अपने दांत कटकटाए और आंखों ही आंखों में एक इशारा किया और मनु पर टूट पड़े. कोई उसे हाथ से मार रही थी, तो कोई पैर से मार रही थी. मनु वहीं घास पर लुढ़क गई और माफी मांगने लगी.
पर हम सब यही कहते रहे साली कुतिया तू हमारी सबसे अच्छी सहेली बनती है और इतनी बड़ी बात हमसे छुपा कर रखी.

गार्डन का वह भाग जहां हम रुके थे, वह रास्ते से भी नजर आता था, तो हमारी इस हरकत पर लोगों का ध्यान हमारी तरफ आने लगा. पहले तो लोग राह चलते देख कर निकलते रहे … फिर कुछ लोग रुक कर देखने लगे.

हम सच में तो झगड़ नहीं रहे थे, बस एक मस्ती ही थी, जो हम आपस में कर रहे थे और हमें तो अपने कपड़ों तक का होश भी नहीं था.

हमारे स्कूल का ड्रेस, सफेद शर्ट और जर्मन ब्लू की स्कर्ट, सफेद मोजे और नीले रंग की टाई थी.

मनु घास पर लुढ़क गई थी, इसलिए उसकी स्कर्ट भी ऊपर उठ गई थी और उसकी गोरी मांसल जांघों से आगे नजर जाने पर उसकी सफेद पेंटी स्पष्ट नजर आ रही थी.

तभी एक और गाड़ी रास्ते पर रुकी. उसकी आवाज से हमें होश आया और हमनें रास्ते पर नजर डाली, हम सब शरमा गए और हमने खुद ही मनु को उठाकर ठीक किया. सफेद शर्ट तो सबके ही गंदे हो चुके थे, वैसे तो स्कर्ट भी गंदे हो चुके थे, पर उनके गहरे रंग की वजह से वो गंदे दिख नहीं रहे थे. वैसे भी इस उम्र में कपड़ों की सफाई की परवाह ही कौन करता है. हम सबने खुद को ठीक किया और अपनी साइकिल पकड़ कर निकल गए. रास्ते में ये तय हुआ कि अधूरी बातें कल पूरी की जाएंगी.

मनु ने जाते-जाते कहा- रुको सालियों, जब तुम्हारी बारी आएगी … तब मैं बताऊंगी कि पिटाई कैसे करते हैं.

घर पहुंचकर मैंने सबसे नजरें छुपाते हुए कपड़े बदल लिए. लेकिन कपड़ों को बदल लेने या धो लेने से मन की बातें नहीं धुलतीं, मेरे साथ भी यही हुआ. मुझे आज हुई बातें बार-बार याद आने लगीं. एकांत वाला समय तो गुजरता ही नहीं था और रात का समय भी मैंने छटपटाहट में गुजारा. छटपटाहट भी ऐसी कि कभी दिल जोरों से धड़कने लगता, तो कभी योनि से रक्त बहने का डर सताने लगता. घर पर किसी से इस विषय पर पूछने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी. और मां के अलावा इस विषय पर बात करने लायक कोई था भी नहीं.

खैर रात तो जैसे तैसे कट गई, लेकिन उनकी बातें दिमाग में बैठ गईं. फिर जब मैं नहाने के लिए बाथरूम में गई, तो उनकी बातों को याद करके खुद को आईने पर निहारने लगी. जैसा कि मैंने बताया है कि मैं अच्छे घर की लड़की हूँ, तो हमारा बाथरूम भी बड़ा और सभी सुविधाओं वाला है, जिसकी एक दीवार पर आदमकद का बड़ा सा आईना लगा है. मैंने उस आईने पर खुद को हर तरफ से ऐसे देखा, जैसे खुद में कुछ खोजने को प्रयास कर रही हूँ. यहां तक कि पीठ और कूल्हों को भी देखने के लिए गर्दन को पूरी तरह मोड़ लिया. फिर भी मैं जो देखना चाहती थी, वो मुझे खुद के शरीर में नहीं मिला.

फिर मैंने जल्दी से अपने सफेद रंग के लोवर और पीले रंग की टॉप, जिसे मैं घर पर पहनती थी … उसे पल भर में ही शरीर से उतार फेंका. ये काम मैंने ऐसे किया, मानों मैं जो खोजना चाहती हूँ, वो कपड़ों के अन्दर हो. पर मैं अपने पेट तक आती, समीज और पेंटी के ऊपर से भी खुद को पूरा निहार कर असंतुष्ट ही रही. फिर भी मेरे मन में एक आखिरी उम्मीद बाकी थी … और अब मैंने अपनी समीज को भी निकाल फेंका. आईने के सामने अब केवल पेंटी पहने खड़ी गीत को निहारने लगी. मेरे मन में एक असंतोष व्याप्त हो गया. मैं किसी भी तरीके से अपनी सहेलियों से पीछे नहीं रहना चाहती थी, पर जवानी की दहलीज पर आकर लग रहा था कि मेरी सहेलियां मुझसे पहले जवान हो गई थीं.

अब तक अपने शरीर में मैं जवानी के ही लक्षण तलाश रही थी. मेरी हाईट मेरी उम्र के हिसाब से बहुत अच्छी थी, फिर अभी तो मुझे और बढ़ना था. हाईट के अलावा रंग बहुत साफ और गोरा था और आंखों में गजब की चमक थी. लोग तो मुझे मृगनयनी भी कहा करते थे. लेकिन आप तो जानते हैं कि हमारे पास जो चीजें होती हैं, हम कभी उसकी कद्र नहीं करते, बल्कि उस चीज के पीछे भागते हैं, जो हमारे पास नहीं होती.

मैं भी अपने भारी स्तन भारी कूल्हे, भरा पूरा शरीर, चूत में बाल और जवानी के लक्षण तलाश कर रही थी. जो मुझमें नहीं दिखा.

फिर मैं मन मारकर शॉवर के नीचे खड़ी होकर नहाने लगी. इस वक्त मेरे मन के किसी कोने में एक उम्मीद की लहर दौड़ी और मैंने अपने सीने के छोटे-छोटे निप्पलों को टटोला और फिगर बनने के पहले ही शरीर पर बन चुके निशान पर उंगलियों को घूमा कर महसूस किया कि शायद मेरा फिगर यहां तक हो सकता है. इसी रोमांच के साथ मैंने एक हाथ अपनी चूत पर ले जाकर वहां रोंए तलाशने की कोशिश की, जो कि बहुत छोटे-छोटे और भूरी रंगत लिए कोमल अहसास देने के लिए वहां मौजूद थे.

फिर जब मेरे तन पर पानी की बूंदें पड़ीं, तब याद आया कि हमेशा ही पानी शरीर को ठंडक पहुंचाती है, पर आज पानी की बूंदें मेरे तन को जला रही थीं. क्या ये मेरी जवानी का संकेत था?
शायद हां … मैं अब जवान हो रही थी.

ये सारी बातें हर लड़की यहां-वहां से सुनकर जान चुकी होती हैं, इसलिए शरीर के आकर्षण और जवानी की मेरी इस चाहत पर आप आश्चर्य मत करना.

उस दिन पहली बार मुझे बाथरूम के उस एकांत पर भी प्यार आया, तभी तो पांच मिनट में नहा लेने वाली लड़की ने आज बाथरूम में घंटे लगा दिए.

तभी मां की आवाज आई- तू बाथरूम में सो गई है क्या?
तब मैंने कहा- हां … बस आ ही रही हूँ.
मुझे अपने दिमाग को घर पर केन्द्रित करके जल्दी से बाहर आना पड़ा.

फिर जब स्कूल में सहेलियों से मुलाकात हुई, तब हमारे मिलने का अंदाज अलग था. सभी के चेहरे पर आज मस्ती नजर आ रही थी. शायद आज सभी ने अपनी जवानी को टटोला था. हम सबने स्कूल टाईम के बाद फिर से उसी गार्डन में मिलने का फैसला किया, जहां हमारी सहेली ने अपने प्रथम मासिक धर्म के बारे में बताया.

उसने कहा कि उसे मासिक धर्म गर्मियों की छुट्टी के वक्त आया था. उस समय उसकी बुआ घर पर ही थी, जो कालेज की पढ़ाई के लिए बाहर रहती थी और छुट्टियों पर ही घर आती थी. उसी ने सब कुछ समझाया और पैड यूज करना सिखाया.

मेरे दिमाग में घुस गया कि ये पैड यूज करने का क्या मतलब है?

अब मनु और परमीत तो पैड यूज करना जान चुकी थीं, पर मैंने और मीता ने आश्चर्य से पूछा- पैड यूज करना? इसका कोई खास तरीका भी होता है क्या?

तब मनु ने मुस्कुरा के कहा- हां जानेमन … खास तरीका ही होता है. पैड लंबा सा एक तरफा चिपकने वाला नैपकिन होता है, जिसे पैंटी के नीचे पतली म्यानी पर चिपकाया जाता है, फिर पैंटी पहनने से पैड योनि को ढक लेता है, जिससे कि मासिकधर्म के समय बहने वाला खराब खून खास प्रकार की रूई द्वारा पैड के माध्यम से सोख लिया जाता है. पैड से पहले तो पुराने कपड़ों से ये काम लिया जाता था.

मुझे तो सोच कर ही डर लगता है, पर क्या करें, हम लड़कियों के लिए हर महीने इस परेशानी से जूझने के अलावा और कोई दूसरा उपाय भी नहीं है. बुआ तो कहती हैं कि मासिकधर्म हमारे लिए वरदान भी है और अभिशाप भी.
मैंने चौंकते हुए तुरंत कहा- ऐसी परेशानी अभिशाप ही है, इसे बुआ वरदान क्यूँ कह रही थीं?
तब मनु ने कहा- यार ज्यादा तो मैं भी नहीं जानती, पर वो कह रही थीं कि मासिकधर्म का सही रहना … मां बनने के लिए जरूरी होता है. मासिकधर्म आना शुरू होने के बाद लड़कियों में निखार आता है, इसे जवानी की दहलीज पर पहला कदम भी कह सकते हैं और शरीर भी अपने स्त्रीत्व को स्वीकार करके पूर्ण औरत के रूप में ढलने लगता है.

उसकी इस बात के खत्म होने के पहले ही मैंने उसके स्तन के उभार को जोर से दबा कर कहा- जैसा तेरा शरीर आकार ले रहा है.

मेरी अचानक की गई ऐसी हरकत ने उसे चौंका दिया, लेकिन उसने खुद को छुड़ाते हुए मेरे स्तन वाली जगह को चिकोटी काटते हुए कहा- फिकर मत कर कमीनी, तेरे भी बहुत जल्दी आएंगे और जब आएंगे, तब लोगों के होश उड़ा देंगे.

मैं शरमा के उसे मारने लगी. सच कहूं तो मैं उसकी बातों से बहुत खुश हुई. मैंने मन ही मन कहा कि मनु तेरी जुबान में सरस्वती बस जाए.

अब हम सब हंसी ठिठोली करते घर आ गए. कुछ सवालों के जवाब मिल गए थे, पर कुछ नये सवालों ने जन्म भी ले लिया था.

खैर इन बातों के बीच एक और बात हुई थी और वो ये है कि मैंने मनु के स्तन पहली बार छुये थे. मनु ही क्यों. मैंने तो किसी के भी स्तन इस मस्ती से पहली बार ही छुये थे. और उसकी छुवन के मधुर अहसास ने मेरे तन बदन में आग सी लगा दी थी.

उस दिन के बाद हंसी मजाक में एक दूसरे के अंगों को छू लेना आम सी बात हो गई, लेकिन हर बार एक नये अहसास से बदन सिहर उठता था. अब मेरे और मीता के शरीर में भी बदलाव नजर आने लगे थे. अभी गर्मी की छुट्टियां लगी ही थी कि मुझे भी सर और कमर में दर्द महसूस होने लगा, शायद आप यकीन नहीं करेंगे कि मैं इस दर्द से परेशान होने के बजाय खुशी का अनुभव करने लगी. क्योंकि मुझे जवान होने की उत्सुकता और जल्दी थी, क्योंकि मैं मासिकधर्म को जवानी की दहलीज पर पहला कदम मान चुकी थी.

लेकिन शरीर का दर्द तो दर्द ही होता है, मैं परेशानी को लेकर मां के पास गई. फिर मां ने मुझे संभाला समझाया और सहारा दिया. पांच दिनों की परेशानी के बाद मैं खुद में नई उर्जा को महसूस करने लगी. मुझमें सचमुच निखार आने लगा और मेरी जिंदगी में भी सहज बदलाव होने लगे.

शरीर के बदलाव के साथ ही हमारे स्वभाव मिजाज व्यवहार और हंसी मजाक के तौर तरीकों में भी बदलाव होने लगा. स्कूल और घर में पढ़ाई का प्रेशर और मन में जवानी का तूफान सबको एक साथ संभाल पाना, बहुत मुश्किल होता है.

खैर ऐसे ही कुछ बातों को सीखते सिखाते मस्ती के साथ हमने अच्छे नंबरों से बारहवीं की परीक्षा पास कर ली और अब तो हमने अपना अठारहवां बसंत भी देख लिया था. इससे पहले तक तो सब ठीक ही था. क्योंकि लोक लाज का डर जवानी पर हावी था. इसलिए कभी कभी चूत में उंगली करके और खूबसूरत हो चुके उभारों को अपने ही हाथों मसल के काम चल जाता था.

पर अब जवानी बगावत करने लगी थी, मन काबू में नहीं रहता था. इस पर जब कभी किसी के पास फोन में जरा सा भी पोर्न देख लिया, तब तो पूछो ही मत कि चूत का हाल क्या होता था. मोमबत्ती और उंगलियों से रगड़ रगड़ के चूत छिल जाती थी और ऐसी भरी उफनती जवानी में हमारी खूबसूरती तो देखते ही बनती थी.

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