बेइन्तेहां वासना की जलन-3

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

बेइन्तेहां वासना की जलन-2

बेइन्तेहां वासना की जलन-4 

मेरी जवानी की हवस की कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा कि मेरी कामवासना की आग ने मुझे कोई तगड़ा जानदार लंड खोजने पर मजबूर कर दिया. मुझे मनचाहा लंड मिल भी गया.

अब आगे:

“इससे पहले तेरी चूत में बस 6 इंच तक ही गया था, इसके आगे तू कुंवारी है, इसलिए तुझे दर्द हो रहा है, वैसे तुझे आज तेरी सीमा बताऊंगा कि तू कितना अंदर तक ले सकती है। अगर पूरा ले गयी तो मान जाऊंगा तुझे!”
मेरी आँखों में आंसू थे, सीने में दर्द, लेकिन मैंने हार नहीं मानी- ढिल्लों … मर जाएगी, जट्टी हार नहीं मानेगी, डाल दे और, लेकिन धीरे-धीरे, फिर भी इतना लंबा और मोटा कभी लिया नहीं।
“कोई बात नहीं मेरी रूपिंदर, अब लेगी भी अंदर तक और फिर चल के फुद्दी देने भी आया करोगी, मेरा वादा है, जितनी मर्ज़ी पाबंदी लग जाये तुझ पर, तू नहीं रह पाएगी।” कह के उसने नीचे अपना फोन लेजा के एक फोटो खींची और मुझे दिखाई।

मुझे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था कि यह मेरी ही चूत है। मेरी फुद्दी उस के लण्ड पर इस तरह किसी हुई थी, जैसे कोई रबड़ चढ़ी हुई हो।
“कैसे लगी?” उसने पूछा।
“हां, ढिल्लों, आज तो सब तरफ से गयी मैं।” मेरी आंखों में आँसू आ गए और मैं बस इतना ही कह पायी थी कि उसने एक ऐसा घस्सा मारा, जिससे मेरे वजूद की जड़ें हिल गयीं, मुँह ऐसे खुल गया जैसे उबासी ले रही होऊँ।

लंड 10 इंच तक घुस गया था।

और फिर वो मेरा मुँह पीने लगा, जैसे प्यास लगी हो। लौड़ा इतनी दूर तक भी जा सकता है वो उस दिन पता चला था। और यह घस्सा मार के वो 5-7 मिनट रुका रहा और मेरे होंठ पीता रहा, ऊपर से नीचे तक हाथ फेरता रहा। कौन सा हिस्सा था मेरे जिस्म का जिस पर उसने हाथ न फेरा हो।

जब मुझे कुछ होश आया तो मैं बोली- हां ढिल्लों, बाकी है अभी भी तो डाल दे, जट्टी हार नहीं मानेगी!
कह के मैंने चूत को अपनी पूरी ताकत इकट्ठी करके उसके खंभे के गिर्द घुमाया। वो यह देख कर हैरान रह गया और इस बार उसन मेरी टाँगें और चौड़ी कर लीं और मुझे और मोड़ कर पूरा लंड भर निकाल के एक ऐसा झटका मारा कि चूत से खून की धार बह निकली।

मैं चीखने लगी तो उसने होंठों पर मुँह धर दिया।
और फिर क्या किया … डीज़ल इंजन के पिस्टन के तरह घस्से मारने लगा। तेज़ आवाज़ कमरे में गूंज रही थी- फड़च, फड़च, फड़च, फड़च, फड़च…
मैं 10-12 मिनट तो बेहोश सी रही।

और जब होश में आई तो महसूस हुआ कि रूपिंदर तू सैकड़ों बार चुद के बर्बाद न हुई थी, लेकिन आज असली मर्द से पाला पड़ा है तेरा, इससे पीछे मुड़ना अब मुश्किल था, मुश्किल नहीं, नामुमकिन था, ढिल्लों से चुद के कोई औरत वापस नहीं जा सकती थी। अब तो तेरी बर्बादी पक्की है।

यह सोचते हुए कब मेरी टांगें और ऊपर उठ गई पता ही नहीं चला। मैं उससे लिपट गयी और उसकी पीठ में नाखून गड़ा दिए और उसके कान के पास मुँह लेजाकर बोलती चली गयी- हां, ढिल्लों, हाँ … हां ढिल्लों, हां हां, ढिल्लो हाँ, हां ढिल्लों हां, हां ढिल्लों हां, हां ढिल्लों हाँ, हां ढिल्लों हां हां हां … हां हां हां!

चुदते वक़्त मैंने अपने आशिकों और पति से बहुत कुछ कहा था और जान बूझ के कई तरह की आवाज़ें भी निकाली थीं, लेकिन आज पता चला था कि मेरी तसल्ली होते हुए मेरे मुंह से बस हाँ ही निकलती है, हां हां हां।
मैंने और कोई आवाज़ निकालने की कोशिश की, कुछ कहने की कोशिश की, मगर मुँह से सिर्फ हां, हां, ढिल्लों, हां, हां, हां, ढिल्लों, हां हां हां ही निकल रहा था।

हर एक औरत अपने चरम पर पहुँच के एक ही आवाज़ निकालती है, वो चाहे कुछ भी हो। मेरी आवाज आज मुझे पता चली थी कि, बस ‘हां हां हां’ ही है।

मैंने अब अपने आठों द्वार ढिल्लों के लिए खोल दिये; टाँगें बिल्कुल उसकी पीठ पर, नाखून उसकी पीठ में, और मुंह उसके मुंह में। मैं पूरा खुल के चुद रही थी, लंड बच्चेदानी तक और फिर चूत के मुहाने तक और फिर बच्चेदानी तक।
सब कुछ रिकॉर्ड हो रहा था … सब कुछ! मेरी चुत का हाल, उसका लंड, सब कुछ, मेरी गांड भी खुल के बंद ही रही थी; वो भी रिकॉर्ड हो रहा था।

50 मिनट तक मैं लगातार उसके नीचे पिसती रही और मेरी चूत 6 बार झड़ चुकी थी। आखिर उसने भी जोर का नारा बुलंद किया और मेरी चूत को भर दिया, मुझे उसका गर्म वीर्य अपने अंदर महसूस हुआ।
वो हांफ रहा था और मैं भी।

मेरी सांसें बहुत तेज़ … बहुत तेज़ … रेल के इंजिन की तरह चल रही थी। वो खड़ा हुआ पैग बना कर कमरे में टहलने लगा। उसका पौने फुट का महालण्ड मेरे कामरस से जड़ तक गीला था और पूरी तरह चमक रहा था।

तभी मैंने अपनी चूत पर हाथ लगा कर देखा तो मेरी जान मुठ्ठी में आ गयी। उसने मेरी चूत को पूरी तरह चौड़ा कर दिया था, पूरी तरह। मेरी चूत चूत न रह के एक गड्ढा लग रही थी।
मैंने मन में ही कहा ‘रूपिंदर अब तो तू गयी, चूत अब बिल्कुल चौड़ी हो गयी है और अब तो तेरे पति का लंड भी तुझे शांत नहीं कर सकेगा।’

मैं बेड पर पर पड़ी यही कुछ सोच रही थी कि ढिल्लों बोला- क्यों … मैंने कहा था न हाथ लगा लगा के देखोगी। अभी तो पूरी रात बाकी है मैडम। तेरी अच्छी तरह तसल्ली करा के भेजूंगा। ऐसी सर्विस करूँगा कि अपने जेल जैसे घर की दीवारें फांदने के लिए भी मजबूर हो जाएगी। तू अपने पति के काम से तो गयी। अब तुझे पौने फुट के लण्ड ही शांत कर पाएंगे। पर फिकर न कर, तेरे लिए बहुत प्रबंध किए हैं। ऐसे ऐसे मर्दों से चुदवाऊंगा कि अपनी जवानी के किस्से तुझे मरते दम तक याद रहेंगे।

मेरे मुंह से कोई शब्द न निकला और मैं वैसे ही पड़ी मुस्कुरा दी। उस घनघोर चुदाई के बाद मेरी टांगें इस तरह काँपी थीं कि अब मुझमें उठने की हिम्मत नहीं थी। तीन तकिये वैसे ही मेरी गांड के नीचे थे और चूत का मुंह भी वैसे मुंह पंखे की तरफ था। टाँगें भी अभी तक पूरी तरह सीधी नहीं कि थी मैंने।
मैंने सोचा था कि खूब चुदने से पहले वो मेरे साथ ढेर सारी बातें करेगा और मैं उससे … लेकिन उसने मुझे आते ही बच्चों की उठाकर बेड पर पटक दिया था बग़ैर कुछ ज़्यादा बोले हब्शियों की तरह चोद दिया था।
वैसे ज़्यादा बातें करने वाले मर्द मुझे कुछ खास पसंद भी नहीं थे। ये पहला मर्द था जिसने आते ही मुद्दे की बात, यानि कि मेरी घनघोर चुदाई कर डाली थी।

तभी ढिल्लों बोला- चल अब उठ कर टाँगें सीधी कर ले, आ मेरे पास!
वो तैयार होने वाले शीशे के पास खड़ा था, मैं मुश्किल से खड़ी हुई और हल्फनंगी उसके आगे जाकर शीशे की तरफ मुंह करके खड़ी हो गयी।

ओह! एक ही चुदाई में मेरी क्या हालत हो गयी थी … बाल बिल्कुल तार तार हो कर बिखर गए थे … चेहरा बेहद लाल हो गया था, आंखों का काजल बह के ऊपर नीचे फैल गया था। मेरी आँखें अफीम और शराब की वजह से पूरी तरह मदहोश थीं और चढ़ी हुई थी। लिपस्टिक गालों पर गर्दन तक पहुंच गई थी।

तभी मैंने उसके सामने अपने कद को देखा, वो मुझसे लगभग 2 फ़ीट ऊंचा था, बलिष्ठ शरीर और कद काठी।
तभी अचानक उसने एक पल के अंदर अंदर ही ऐसी हरकत की कि मैं अंदर तक हिल गयी। उसने थोड़ा सा झुक पीछे से मेरी गांड के ऊपर से होते हुए 2 मोटी उंगलियां अचानक मेरी फुद्दी में डाल दी और उनसे ही मुझे उठा लिया और एक पल के अंदर ही मेरे जिस्म का सारा वज़न मेरी चूत पर था।
मैं हिल गयी थी और मैंने चीखने के कोशिश की मगर मेरी आवाज हलक में ही दब गयी।

तभी उसने मुझे उठा कर पास पड़े मेज़ पर रख दिया और ज़ोर से हंसा और कहने लगा- ओह सॉरी सॉरी, मज़ाक कर रहा था। अब तुम नहा कर आओ, देखो ज़्यादा टाइम मत लगाना, हमारे पास कल 12 बजे तक का ही टाइम है ना?
तभी में बोली- नहीं जानू, सुबह 8 बजे तक का, फिर 9 बजे मेरा पेपर है।
“पेपर गया तेरी गांड में, कितने बजे आएगा तेरा पति?”
“1 बजे तक आ जायेगा जानू, क्योंकि पेपर का समय 12 बजे तक का है।”
“ठीक है, 12 बजे तक चोदूँगा तुझे, कोई पेपर नहीं देने जाओगी तुम, समझी, चुदने आयी है तो अच्छी तरह चुद के जा।”

मैंने उसे समझाया- जानू, अगला पेपर 4 दिन बाद है, और फिर पांच पेपर इसी तरह 3-4 दिन के अंतर पर ही हैं। देख तुम्हारे पास ही रहूंगी हर रात, पेपर तो दे लेने दो। पति को क्या दिखाऊँगी?”
बात उसको जम गई लेकिन फिर भी वो बोला- देख, इस शर्त पर पेपर में जाने दूंगा अगर अगली बार से हर पेपर से एक दिन पहले आएगी, यानि मुझे दो रातें देनी पड़ेगी हर पेपर से पहले, चाहे कुछ भी बोल अपने पति को!
“ठीक है जानू, कुछ भी करूँगी, पर तेरे साथ 2 रातें ही रहा करूँगी, अब ठीक है?”
“हां, ठीक है, चल जा नहा के जा, और इसी तरह नंगी ही आना बाहर, ये पेग लगा ले एक!” यह कह कर उसने देसी का एक मोटा पेग भर के मुझे दिया.

मैं तो पहले से काफी टल्ली थी, पर मैंने सोचा कि वो नाराज़ न हो जाये, इसलिए नाक दबा के पी गयी और बाथरूम में घुस गई।
मेरी सहेली ने बाथरूम में एक बड़ा शीशा लगा रखा था। मैंने अंदर जाते ही उसे नीचे उतार कर फर्श पे रखा और अपनी फटी चूत का मुआयना किया। क्या देखती हूं कि मेरी चूत का मुंह जो पहले लगभग बन्द ही रहता था, अब थोड़ा खुल गया है जैसे बहुत हैरानी में हो। उसके हलब्बी लंड के एक हमले ने ही चूत को ढीला कर दिया था।

पर मुझे पता नहीं क्यों ये अच्छा लगा और मैं मन ही मन मुस्कुरा दी और शावर चला कर जिस्म मसल मसल कर नहाने लगी। नहाते नहाते ही उस आखरी पेग ने मुझे बिल्कुल टाईट कर दिया। अपना जिस्म भी मुझसे ठीक तरह पौंछा नहीं गया। बाथरुम से बाहर निकलते ही मैं गिरती पड़ती बेड पे गिर गयी।

ढिल्लों अभी भी वहां खड़ा पेग के साथ सिगरेट पी रहा था। मैं पूरे सरूर में थी, मैंने उसे आवाज़ दी- आओ न जानू!
वो बोला- आ गया … रुक … क्यों हो गयी टल्ली? जिस्म तो पौंछ लेती ठीक तरह, रुक … मैं करता हूँ।
यह कहकर उसने नीचे पड़ा तौलिया उठाया और फिर बेड पे आकर मुझे थोड़ा बैठाया और फिर धीरे धीरे सारा जिस्म पौंछा।

तभी अचानक उसने टॉवल दूर फेंक दिया और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये और मेरे ऊपर चढ़ गया। उसका लण्ड अब पूरी तरह खड़ा था, मेरी टाँगें अपने आप उसकी पीठ पर आ गयी और मैंने उसे जकड़ लिया।
उसे मेरी यह अदा बहुत पसंद आई और वो ज़ोर ज़ोर से मेरे घूंट भरने लगा।

इस बार मैं और ज़्यादा नशे में थी जिसके कारण मुझे दीन दुनिया की खबर भूल के पूरा जोश चढ़ गया था। इस बार मैंने सोचा हुआ था कि पूरे मन से चुदूँगी। उसका लण्ड बार बार मेरी फुद्दी को टच कर रहा था, जिसके कारण अब ये पूरी तरह पनिया गयी थी।
5 मिनट इसी तरह किस करते करते मैं पूरी तरह गर्म हो गयी और अपने आप मेरे मुंह से निकला- अब डाल भी दे ढिल्लों!
उसने उलटा सवाल किया- कितना?
मैंने कहा- पूरा, जड़ तक, बना दे जट्टी को हीर, कोई कसर न रहे।

यह सुनते ही उसने अपना लण्ड गांड के नीचे से मसलते हुए ऊपर फुद्दी तक 4-5 बार फेरा, मेरे मुंह से निकला- आह, आह, हां, हां, ढिल्लों डाल दे।
तभी उसने अपना सुपारा मेरी चूत के मुहाने पर रखा और और तेज़ झटका मारा, मेरी एक तेज़ चीख कमरे की दीवारों से टकराई, एक बार फिर उसने पूरा निकाल के फिर जड़ तक पेला, मेरी फिर एक तेज़ चीख निकली ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’

इस बार मैं पूरे जोश में थी, मैंने हार नहीं मानी और दांत और अपने हाथों से चादर को भींच कर अगली होने वाली ज़बरदस्त कुश्ती के लिए तैयार हो गयी. और जब उसने तीसरी बार पूरा लण्ड निकाल कर जड़ तक पेला तो मैंने पूरा जोर लगाकर अपनी गांड ऊपर उठायी, हालांकि चीख मेरी इस बार भी निकली थी। लण्ड धुन्नी तक पहुंच गया था और बच्चेदानी के कहीं आस पास ही था।
तभी पूरा अंदर डालकर वो रुका और बोला- ये हुई न बात, तेरे से इसी की उम्मीद थी। अब आएगा असली मज़ा, बहुत कम बार तेरे जैसी बराबर की औरत मिलती है।
मैंने भी जवाब दिया- आ जा ढिल्लों, गूंथ दे आटे की तरह जट्टी को, तेरे जैसा मर्द पहली बार मिला है, तेरे लिये तो मेरी जान भी हाज़िर है। उधेड़ दे मुझे कपडे की गेंद की तरह।

यह सुनते ही वो बहुत जोश में आ गया और मुझसे बोला- करता हूँ तेरी पहलवानी चुदाई।
यह कहकर उसने मेरी टांगें मोड़ कर अपनी मज़बूत बांहों में ले लीं और मेरी तह लगा दी। अब हाल ये था मेरी फुद्दी चट्टान की तरह बहुत ऊंची उठ गयी। अब खेल मेरे बस में 1 प्रतिशत भी नहीं था और मैं 1 इंच भी नहीं हिल सकती थी।

अब उस फौलादी इंसान ने लगातार पूरा बाहर निकाल कर 4-5 झटके दिए। मेरी चूत उसके लंड पर बेरहमी से कसी गई थी। ऐसा लग रहा था जैसे मेरी चूत का अंदरूनी हिस्सा उसके लंड के साथ ही अंदर बाहर हो रहा था।

तभी ज़ोर ज़ोर से चीख़ते हुए मैं सर से पैरों तक कांप गयी और इतने ज़ोर से झड़ी कि मेरी सुधबुध ही गुम हो गयी.

कहानी जारी रहेगी.
आपकी रूपिंदर कौर
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