सेक्स का मस्ती भरा खेल-7

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

सेक्स का मस्ती भरा खेल-6

सेक्स का मस्ती भरा खेल-8

अब तक की इस मस्त सेक्स कहानी में आपने पढ़ा था कि नेहा अब खुलती जा रही थी उत्तेजना के वश उसने अब शर्म हया छोड़ दी और खुद ही अपनी चुत को मेरे मुँह पर घिसना शुरू कर दिया था.
अब आगे:

मैंने भी अब उसे ज्यादा नहीं तड़पाया और अपनी जीभ को नुकीला करके उसकी संकरी गुफा में पेवस्त कर दिया, मगर जैसे ही मैंने अपनी जीभ को उसकी चुत की गहराई में उतारा, मेरा मोटा सुपारा उसके मुँह में होने के बावजूद वो ‘उह … उउऊऊ … अह्हहहं …’ कहकर जोरों से सिसक उठी और अपनी चुत को मेरे मुँह पर जोर से दबा दिया ताकि मेरी जीभ अधिक से अधिक उसकी चुत की गहराई में उतर जाए.

शायद नेहा की जीभ भी अब मेरे सुपारे पर हल्की हल्की जुम्बिस सी करने लगी थी क्योंकि मुझे अपने सुपारे पर कुछ गर्म गर्म और गीला गीला सा महसूस हो रहा था. मेरे लिए शायद ये नेहा की तरफ से इशारा था कि मैं भी अब अपना काम शुरू कर दूँ … इसलिए मैंने अब अपनी पूरी जुबान निकालकर धीरे धीरे उसकी प्रवेशद्वार की दीवारों पर घिसना शुरू कर दिया.

इससे नेहा के मुँह से अब मस्ती भरी ‘उऊऊ … ह्हहुँहुँहंउ … उऊऊ … ह्हहुँहुँ हंउ …’ आवाजें निकलने लगीं. साथ ही उसने भी अब मेरे लंड को चूसना शुरू कर दिया. लंड चुसाई से मेरे आनन्द की अब कोई सीमा नहीं थी. इसलिए मैं भी अब मजे से नेहा की चुत को चाट चाट कर उसके रस को पीने‌ लगा. नेहा और मैं अब अपनी पूरी तन्मयता से एक दूसरे के अंगों को चूम चाट रहे थे.

तभी मुझे खिड़की पर किसी के होने का आभास सा हुआ, जिससे मेरी नजर खिड़की पर चली गयी, जो कि हल्की सी खुली हुई थी. मुझे कोई नजर तो नहीं आया, मगर बाहर सूरज की रोशनी के कारण उसके कपड़ों के लाल रंग की लालिमा फैली हुई दिखाई थी. मुझे ये समझते देर नहीं लगी कि यह प्रिया है क्योंकि उसने ही लाल रंग की टी-शर्ट पहनी हुई थी. नेहा का मुँह दूसरी तरफ था … इसलिए नेहा को तो इसका अहसास नहीं हुआ, मगर मैं समझ गया था कि यह प्रिया है … जो कि चोरी चोरी खिड़की से हमें देख रही थी.

मैं प्रिया के बारे में सोच ही रहा था कि तभी नेहा ने अपनी चुत को मेरे पूरे चेहरे पर जोरों से दबाकर रगड़ दिया. खिड़की की तरफ ध्यान देने के कारण मैं नेहा की चुत को भूल ही गया था, जिसका अहसास नेहा ने अपनी चुत को मेरे चेहरे पर जोर से रगड़कर करवाया. मैंने भी अपना ध्यान अब फिर से नेहा की चुत को चाटने पर लगाया और अपनी पूरी जीभ निकाल कर उसकी चुत में गहराई तक पेलने लगा. नेहा भी अब मेरे लंड को जोरों से चूम चाट रही थी.

नेहा की चुत को चाटते हुए मैं बीच बीच में अपनी निगाहें खिड़की पर भी ले जा रहा था, प्रिया अब भी खिड़की पर ही थी और चोरी चोरी हमें देख रही थी. इस तरह प्रिया का हमें इस हालत में देखने से मेरी उत्तेजना दोगुनी हो गयी थी. मैं अब जोरों से‌ नेहा की‌ चुत को‌ ऊपर से‌ नीचे तक चाटने‌ लगा, जिससे नेहा की‌ सिसकारियां और भी तेज हो गईं.

वो भी अब मेरे लंड को जोरों से चूमने चाटने लगी. नेहा की चुत से निकलने वाले रस से मेरा मुँह तरबतर हो गया था. उधर नेहा की मुँह की लार और मेरे लंड से निकलने वाला रस नेहा के मुँह से रिसकर मेरे लंड के सहारे अब मेरी भी जांघों पर फैलने लगा था.

धीरे धीरे नेहा की सिसकारियां भी अब बढ़ती जा रही थीं- उऊऊ … अह्ह … हुँहुँहंउ … उऊऊ … ह्हहुँहुँहंउ …’ मादक आवाजें निकालते हुए उसने अब खुद ही अपनी कमर को आगे पीछे करके अपनी मुनिया को मेरे मुँह पर घिसना शुरू कर दिया था, साथ ही मेरे लंड को भी वो अब जोरों से चूसने और चाटने लगी थी. इस वक्त नेहा ने एक हाथ से मेरे लंड को पकड़ लिया था और उसे ऊपर से नीचे तक सहलाते हुए वो जोरों से चूस व चाट रही थी. साथ ही वो अपनी कमर को भी अब हिला हिलाकर अपनी चुत को भी मेरे मुँह पर घिस रही थी.

शायद नेहा चर्मोत्कर्ष के करीब पहुंच गयी थी … इसलिए मेरे लिए उसका ये इशारा था कि मैं भी अब अपनी जुबान की हरकत को तेज कर दूँ, जिसको मैं बखूबी समझ गया और अपनी जुबान की हरकत को और भी तेज कर दिया.

मैं भी अब अपने हाथों को उसके भरे हुए नितम्बों पर ले आया और एक हाथ उसके नितम्बों को मसलते हुए दूसरे हाथ से उसके गुदाद्वार को सहलाने लगा. इससे नेहा की सिसकारियां और भी तेज हो गईं और वो तेजी से अपनी मुनिया को मेरे मुँह पर घिसने लगी.

फिर कुछ ही देर बाद उसकी सिसकारियां कराहों में बदलने लगी. अचानक से उसका बदन अकड़ गया, उसने अपनी दोनों जांघों से मेरे सिर को जोरों से भींच लिया और सुबकियां भरते हुए रह रह के अपनी चुत से मेरे चेहरे पर प्रेमरस की बौछार सी करनी शुरू कर दी, जिससे मेरा सारा चेहरा भीग गया. मैं भी चरमोत्कर्ष के करीब ही था, मगर अपने रस्खलन के कारण नेहा मुझे भूल गयी थी … इसलिए मैं खुद ही अब अपनी कमर को उचका उचका कर अपने लंड को नेहा के मुँह के अन्दर बाहर करने लगा. सुबकियां भरते हुए नेहा का मुँह पूरा खुल और बन्द हो रहा था, इसलिए मेरा करीब एक चौथाई लंड नेहा के मुँह में अन्दर बाहर होने लगा.

मैं सच कह रहा हूँ उस आनन्द की कोई सीमा नहीं थी. मैंने बस पांच छः झटके ही लगाये थे कि मेरे लंड ने भी नेहा के मुँह में अपना लावा उगलना शुरू कर दिया.

मैंने नेहा को जोरों से भींच लिया और चार पांच किस्तों में अपना सारा लावा नेहा के मुँह में ही उगल दिया. वीर्य की धार शायद नेहा के गले तक पहुंच गयी होगी … मगर नेहा अपने ही रस्खलन की बदहवासी में थी इसलिए उसको‌ ध्यान ही नहीं था कि मैं क्या कर रहा हूँ.

नेहा को इस बात का अहसास तब हुआ, जब उसका सार मुँह मेरे वीर्य से भर गया और उसको सांस लेने में दिक्कत होने लगी. अब जैसे ही नेहा ने मेरे लंड को बाहर निकाला ढेर सारा वीर्य नेहा के मुँह से निकलकर मेरी जांघों पर फैल गया.

मेरी जांघों पर जोरों से चपत लगाते हुए बाकी का बचा हुआ वीर्य भी अब नेहा ने मेरी जांघों पर ही थूक कर उगल दिया और फिर मुझ पर से उतरकर मेरी बगल में लेट गयी.

कुछ देर तक तो हम दोनों‌ अब ऐसे ही लेटे रहे. फिर मैंने करवट बदलकर अपना मुँह नेहा की तरफ‌ कर लिया. नेहा अब भी अपना सिर मेरे पैरों की तरफ ही करके लेटी हुई थी, उसकी जांघें खुली हुई थीं, इसलिए उसकी फुली हुई चुत ने अब फिर से मेरा ध्यान अपनी तरफ खींच लिया. उसकी चूत प्रेमरस और मेरे मुँह की लार से गीली होकर चमक सी रही थी. प्रेमरस और मेरे मुँह की लार से उसकी चुत के सारे बाल गीले होकर चुत से चिपक गए थे, इसलिए चुत की गुलाबी फांकें अब अलग ही नजर आ रही थीं.

नेहा की चुत का एक बार मैं रसपान कर चुका था और रस्खलन के बाद मेरा पप्पू भी अब मूर्छित अवस्था में था. मगर उसकी रसभरी चुत से मेरा दिल अब भी भरा नहीं था. उसकी‌ रसभरी चुत को देखकर मुझसे अब रहा नहीं गया इसलिए आगे होकर एक बार फिर से मैंने उसकी चुत को जोर से चूम‌ लिया.

“इईई … श्श्श्शशश … ओय्य्य … अह्ह्हह …” नेहा ने सिसकते हुए कहा और दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़कर अपनी चुत पर से हटा दिया.
“क्या हुआ?” मैंने नेहा की तरफ देखते हुए उससे पूछा.
“बस्स … अब क्या बचा है?” नेहा ने मेरी तरफ देखकर शर्माते हुए कहा और बिस्तर से उठकर खड़ी हो गयी.
“कहां जा रही हो अभी?” मैंने उसका हाथ पकड़कर उसे फिर से बिस्तर पर खींचते हुए कहा.
“बस्स … अब क्या है? प्रिया आ जाएगी …” उसने फिर से बिस्तर पर बैठते हुए कहा.

प्रिया का नाम सुनते ही मेरी नजर अब फिर से खिड़की पर चली गयी … वो अब भी खिड़की पर ही थी मगर अपना नाम सुनकर शायद दीवार के पीछे छुप गयी थी. उसके कपड़ों की लालिमा अब भी खिड़की पर फैली हुई दिखाई दे रही थी.

“नहीं आएगी वो … वो तो अपनी सहेली के घर गयी हुई है …” मैंने खिड़की की तरफ देखते हुए ही कहा.
“और उसको भेजा भी तुमने ही होगा?” नेहा ने अब शरारत से मुस्कुराते हुए कहा.
“क्याआआ?” हैरानी के कारण मेरे मुँह से निकल गया और मैं तुरन्त नेहा की तरफ देखने लगा … वो अब मेरी तरफ देखकर मुस्कुरा रही थी.
“सब पता है मुझे … पिछले दो दिन से देख रही हूँ … वो रोज रात को अपने बिस्तर से गायब रहती है …” नेहा ने बनावटी सा गुस्सा दिखाते हुए कहा.

अब झटका लगने की मेरी बारी थी. मैं फिर से खिड़की की तरफ देखने लगा. प्रिया अब भी खिड़की पर ही थी और शायद उसने भी ये सुन लिया था.

“अच्छा तो ये बात है … इसलिए ही इसने आज मेरा इतना विरोध नहीं किया. पहले शायद वो डरती‌ थी, मगर अब प्रिया के बारे में पता लगने‌ के बाद इसमें हिम्मत आ गयी थी.” मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी नेहा ने मुझे गहरी निगाहों से देखते हुए छुआ.
“क्यों? क्या हुआ? तुम क्या सोच रहे थे कि मुझे कुछ पता नहीं? तुम दोनों के बीच जो कुछ चल रहा है, मुझे सब पता है.” नेहा ने शरारत से मुस्कुराते हुए अपनी आंखों को मटकाते हुए कहा.

नेहा अब पूरी तरह से खुल‌ गयी थी‌ और मुझसे बिना शर्माये अपने नंगे बदन को लहरा लहरा कर बातें कर रही थी. नेहा के गोरे चिकने नंगे बदन को देखकर मुझसे भी अब रहा नहीं गया.

“अच्छा तो तुमको सब पता था?” कहते हुए मैंने नेहा को फिर से बिस्तर पर गिरा लिया.
“ओय्य … नहींईई … नहींईईई.ईई … ईईई …” सिसयाते हुए उसने‌ मुझे रोकने की कोशिश तो की, मगर तब तक मैंने उसको बिस्तर पर गिरा लिया था. नेहा को बिस्तर पर गिराकर मैंने सीधा उसके होंठों को मुँह में भर लिया और उन्हें जोरों से चूसने लगा.

वो “उह … उउऊऊ … उम्म्म …” कराहते हुए कसमसाने लगी. होंठों को चूसते हुए मैं उसके गोरे चिकने नंगे बदन को भी सहला रहा था, जिससे उसकी सांसें अब फिर से भारी होने लगीं.

कुछ देर तक तो वो कसमसाती रही, मगर फिर उसने भी मेरे होंठों को चूसना शुरू कर दिया.

नेहा के होंठों और गालों पर अब भी मेरा वीर्य लगा हुआ था और उसके मुँह से भी मेरे वीर्य की महक आ रही थी. चुत के रस का स्वाद तो मैं काफी बार ले चुका था मगर आज अपने ही वीर्य को स्वाद लेना ये कुछ अजीब सा लग रहा था. फिर मैंने सोचा कि नेहा की चुत का रस भी तो मेरे होंठों पर लगा हुआ है, जिसको वो भी तो चूस रही है, ये सोचकर मैं उसके होंठों को चूसता रहा.

हम दोनों ही एक दूसरे के होंठों को चूसते हुए अब अपने अपने अंगों के रस का स्वाद ले रहे थे, जो कि अजीब तो था मगर काफी उत्तेजक भी लग रहा था.

नेहा के बदन को सहलाते हुए मेरा एक हाथ अब उसके उभारों पर आ गया था. मैंने तुरन्त उसकी चूचियों को दबोच लिया और उसके होंठों का रसपान करते हुए बारी बारी से उसकी दोनों चूचियों को भी मसलने‌ लगा. नेहा ने अब मेरा कोई विरोध नहीं किया, शायद वो अब फिर से उत्तेजित होने लगी थी. उसकी सांसें अब गहरी और तेज होती जा रही थीं.

कुछ देर नेहा की चूचियों से खेलने के बाद मैंने अपना हाथ धीरे से उसकी मुनिया की तरफ बढ़ा दिया. मगर जैसे ही मेरा हाथ उसकी मुनिया के करीब पहुंचा, उसने मेरे होंठों पर अपने दांतों से काट लिया और तुरन्त जांघों को भींच कर अपनी मुनिया को छुपा लिया.

होंठ पर काटने से मैं दर्द से कराह उठा और जल्दी से अपने होंठों को नेहा के मुँह से छुड़वाकर उसके चेहरे की तरफ देखने लगा. वो अब शरारत से हंस रही थी. नेहा को मजा तो आ रहा था मगर वो‌ जानबूझकर मुझे तड़पाना चाह रही थी.

मैं भी नेहा की तरफ देखकर हंस दिया मगर दोबारा से उसके होंठों चूमने की बजाए इस बार मैंने उसकी एक चूची को दबोच लिया. मैंने उसकी एक चूची को पकड़कर उसके निप्पल को मुँह में भर‌ लिया और उसे जोरों से चूसना शुरू कर दिया. इससे नेहा के हाथ अब अपने आप ही मेरे सिर पर आ गए और वो मस्त होकर मुँह से हल्की हल्की सिसकारियां भरने लगी.

नेहा के निप्पल को चूसते हुए मेरा हाथ अब भी उसकी बन्द जांघों पर व उसकी मुनिया के उभार पर ही रेंग रहा था. तभी नेहा की जांघों को खोलने के लिए मुझे भी एक शरारत सूझ गयी. मैंने नेहा की चूची को चूसते हुए उसके निप्पल को दांतों से हल्का सा दबा दिया. जिससे वो ‘ओय्य्य … अआआ … ह्ह्हहह …’ कहकर जोरों से चिहुंक पड़ी. उसने अपने दोनों‌ हाथों‌ से मेरे सिर को पकड़ कर अपनी चूची पर से हटा दिया. इस दौरान उसकी जांघें थोड़ा सा खुल गयी थी … तभी मौका देखकर मैंने अपना हाथ उसकी जांघों के बीच घुसा दिया. जब नेहा ने फिर से अपनी जांघों को भींचा, तो अब मेरा हाथ उसकी जांघों के बीच, उसकी कमसिन मुनिया पर जम गया था.

नेहा ने मेरे हाथ को पकड़ कर खींचने की कोशिश भी की, मगर कामयाब नहीं हो पायी. मेरी इस चालाकी पर नेहा जब और कुछ कर नहीं पायी तो वो मस्त आवाजें निकालने लगी ‘ओय्य्यय … ह्ह्हहह … हुहुँ हूँअ … हूँहऊ …’ वो अपने दूसरे हाथ से मेरी पीठ पर घूंसे बरसाने लगी. खैर मेरा हाथ अब नेहा की जांघों के बीच उसकी मुनिया पर जम गया था.

नेहा ने अपनी जांघें भींच रखी थीं और एक हाथ से वो मेरे हाथ को भी पकड़े हुए थी. मगर मेरे हाथ की उंगलियां स्वतंत्र थीं … जिनसे मैंने अन्दर ही अन्दर धीरे धीरे उसकी मुनिया को मसलना शुरू कर दिया.

अपनी उंगलियों से नेहा की मुनिया को मसलते हुए मैंने फिर से उसकी चूची को मुँह में भर लिया. मगर इस बार मैंने चूची बदल ली थी. मैं अब उसकी दूसरी चूची को चूसने लगा था. तभी मैंने देखा कि उसकी पहली चूची, जिसको मैं अब तक चूस रहा था, उसका निप्पल बिल्कुल लाल हो गया था. उसकी चूचियों के निप्पल गुलाबी थे … मगर जिस निप्पल को मैंने अभी तक चूसा था, वो एकदम लाल और तन कर कठोर हो गया था.

मैं अब ऊपर से नेहा की चूची को चूस रहा था, तो नीचे से मेरी उंगलियां भी उसकी मुनिया को मसल‌ रही थीं. इस दोहरे हमले का जो असर होना था, वही हुआ. कुछ ही देर में उसकी‌ मुनिया ने कामरस का रिसाव करना शुरू कर दिया और उसकी जांघों की‌ पकड़ भी ढीली हो गयी‌.

कामरस से गीली होकर नेहा की मुनिया अब चिकनी हो गयी थी, जिससे मेरी उंगलियां उसकी मुनिया पर अपने आप‌ ही फिसलने लगीं और नेहा के मुँह से हल्की हल्की सिसकारियां फूटनी शुरू हो गईं.

नेहा के हाथ अब अपने आप ही फिर से मेरे सिर पर आ गए और मेरे बालों को सहलाते हुए वो मुँह से हल्की हल्की सिसकारियां निकालने लगी.

नेहा की चूची को चूसते हुए मैं एक हाथ से उसकी मुनिया को भी मसल रहा था जिससे धीरे धीरे अपने आप ही अब उसकी जांघें पूरा फैल गईं और उसकी मुनिया पर मेरे हाथ का अधिकार हो गया. मैं अब खुलकर उसकी मुनिया को सहलाने लगा, मेरी उंगलियां उसकी मुनिया के ऊपरी छोर से लेकर नीचे उसके प्रवेशद्वार और उसके गुदाद्वार तक का सफर करने लगी. इससे नेहा की वासना से भरी सिसकारियां तेज हो गईं. उसकी कमर अपने आप ही हरकत में आ गयी.

नेहा की मुनिया को सहलाते बीच बीच में मैं अपनी उंगली को उसके प्रवेशद्वार में बस गोल‌ गोल फेरे दे रहा था, जिससे वो “इइईई … श्श्श्श्श्श … आआ … ह्हह्ह्ह …” कहते हुए जोरों से सिसक उठती और मेरी उंगली के साथ साथ अपनी कमर को हिलाने लगती. नेहा की तड़प बता रही थी कि वो अब पूरी तरह से उत्तेजित हो गयी‌ है और उसकी चुत अब कुछ मांग रही है. मगर फिर भी उसको तड़पाने के लिए मैं ऐसे ही अपनी उंगली की हरकत करता रहा.

कुछ देर तो नेहा ये सहन करती रही, फिर जब उसकी बर्दाश्त से ये बाहर हो गया … और अबकी बार जैसे ही मैं अपनी उंगली को उसकी चूत के प्रवेशद्वार पर लाया, उसने खुद ही मेरे हाथ को अपनी मुनिया पर जोरों से दबा लिया. इससे मेरी आधी से ज्यादा उंगली उसकी मुनिया में उतर गयी.

इसके साथ ही वो “इइईई … इश्श्श्श … आआह … ह्हहह …” करके जोरों से सिसक उठी. प्रिया की तरह नेहा की मुनिया भी अन्दर से किसी भट्ठी की तरह सुलग रही थी. उसकी मुनिया की अन्दर की गर्मी को महसूस करके मैंने भी अब अपनी पूरी उंगली को उसकी मुनिया में उतार दिया. इससे वो और भी जोरों से सिसक उठी और अपनी कमर को ऊपर हवा में उठाकर मेरी उंगली को अधिक से अधिक अपने अन्दर लेने का प्रयास करने लगी.

इसी मजे के कारण मैंने अब नेहा की चूची को छोड़ दिया और अपनी गर्दन उठा कर उसके चेहरे की तरफ देखने लगा … वो भी मेरी तरफ ही देख रही थी. वो कुछ बोल तो नहीं रही थी मगर उसकी आंखों में उत्तेजना के लाल डोरे साफ‌ दिखाई दे रहे थे.

मैं यह कहूँ कि मुझे नेहा की हालत पर तरस आ गया … या फिर ये कहूँ कि मेरी खुद की हालत खराब हो रही थी, एक ही बात होगी.

मैं अब धीरे से उठकर नेहा के ऊपर आ गया और उसके नंगे बदन से किसी जौंक की तरह चिपक गया. जैसे ही मैं नेहा के ऊपर आया, तो पहले तो वो हल्का सा कसमसाई … मगर फिर उसने खुद ही अपने पैरों को फैलाकर मुझे अपनी जांघों के बीच में ले लिया.

नेहा को‌ मालूम था कि अब आगे क्या होने वाला है. इसलिए उसने खुद ही अपनी जांघों को फैलाकर अपनी चुत को मेरे लिए परोस दिया था. मेरा उत्तेजित लंड अब उसकी कामरस से भीगी हुई मुनिया को छू रहा था, जिससे उसकी मुनिया की तपिश मुझे अब अपने‌ लंड पर महसूस हो‌ने लगी थी.

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कहानी जारी है.