विधवा औरत की प्यास बुझाने की कसक-1

नमस्कार मित्रो, मैं आपको एक सच्ची कहानी सुनाने जा रहा हूँ. मेरा बदला हुआ नाम विजय है और मेरी उम्र अभी 36 साल है. मैं शादीशुदा मर्द हूँ. मैं अन्तर्वासना का नियमित पाठक हूं। बहुत ही रोचक कहानियां यहाँ पढ़ने को मिलती हैं. इसी वजह से मुझे भी अपने जीवन की एक घटना आप सब के साथ साझा करने की इच्छा हुई और अब मैं इसे कहानी के माध्यम से आप सब को बताना चाहता हूं।

बात करीब 3 साल पहले की है जब मेरा तबादला रायपुर से भोपाल हो गया था। बता दूं कि पेशे से मैं एक इंजीनियर हूं और एक प्राइवेट कंपनी में काम करता हूं। मैं उस समय 33 साल का था और मेरी शादी को 2 साल हो चुके थे।

मेरी नौकरी ऐसी है कि मुझे हर दिन कहीं न कहीं दूसरे शहर जाना पड़ता है काम की वजह से। इसी कारण मेरी पत्नी मेरे साथ नहीं रहती बल्कि गाँव में मेरे माता-पिता की सेवा करती है। पत्नी शहरी नहीं है इस वजह से सेक्स में उसे कुछ अलग करने में कोई दिलचस्पी नहीं रहती है और न ही मैं उसके साथ जोर-जबरदस्ती कर सकता हूं क्योंकि अगर बात हम दोनों के बीच से निकल गयी तो मेरे परिवार और उसके घरवालों के बीच बहुत बखेड़ा हो सकता है। इसी वजह से मैं अपनी मर्ज़ी का काम बाहर ही कर लेता हूं।

ऐसी बात सबको बताना सही नहीं लगता किंतु जीवन के कुछ अच्छे पल किसी को बता कर और अधिक मजा आता है यही कारण है कि मैं ये कहानी लिख रहा हूं। उम्मीद करता हूं आप सब को ये कहानी पसंद आएगी।

मैं भोपाल में नया-नया था और मेरी नौकरी की वजह से मुझे ऐसे कमरे की तलाश थी जहाँ मैं जब चाहे आ जा संकू क्योंकि मैं कभी-कभी सुबह जल्दी चला भी जाता था और कभी-कभी देर रात को लौटता था तो मुझे कोई ऐसी जगह चाहिए थी जहाँ कोई रोक टोक न हो।

अकेले होने की वजह से कहीं बढ़िया जगह कमरा कोई देने को तैयार नहीं होता था। एक हफ्ते के बाद आखिरकार मेरे साथ काम करने वाले एक दोस्त की वजह से एक अपार्टमेंट में कमरा मिल गया। मकान मालिक वहाँ नहीं रहता था बल्कि वो पूरी बिल्डिंग किराए के लिए दी हुई थी और आने जाने की पूरी आजादी थी। पूरी बिल्डिंग फैमिली वाली थी लेकिन मैं शादीशुदा था और दोस्त के कहने पर मुझे वहाँ कमरा मिल गया।

अधिकांश समय मैं बाहर ही रहता था और बिल्डिंग में बहुत कम लोग ही मुझे जानते थे। मैं छुट्टी के दिन भी काम पर ही रहता था तो न किसी से जान-पहचान ही थी और न कोई लेना-देना होता था। केवल मेरे दोस्त और उसकी पत्नी से ही कभी-कभार बात होती थी।

बहुत मुश्किल से हफ्ते या दो हफ्ते में एक बार ऑफिस जाना होता था तो थोड़ा आराम मिलता था। मैं अपने कमरे में अकेला मस्त पड़ा रहता था. जब कभी पत्नी से बात होती थी तो अकेले में तो अंदर से कुछ कमी सी महसूस होती थी और फिर उसके फ़ोन रखते ही मोबाइल में ब्लू फिल्म देखने लगता था।

शादीशुदा होने के बाद भी मुझे मुठ मारने की जरूरत पड़ती थी लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा था कि शादी के बाद मैं अपनी पत्नी के अलावा भी किसी दूसरी औरत के साथ संबंध रखूंगा। हालांकि ऐसा नहीं था कि पत्नी से पहले मैंने किसी के साथ सेक्स नहीं किया था। कॉलेज के समय से ही मुझे लड़कियों में बहुत ज्यादा रुचि थी तो इसी तरह बहुत सी लड़कियों के साथ मैंने पहले भी सेक्स किया था.

आज जिस औरत के बारे में बताने जा रहा हूं वो उन सब में से बिल्कुल अगल है। मैंने उससे पहले किसी लड़की या औरत में वैसी बात नहीं देखी थी। मुझे 3 महीने हो चुके थे उस जगह फिर भी केवल इक्का दुक्का लोग ही मुझे पहचानते थे। मेरा ऑफिस करीब पांच किलोमीटर की दूरी पर था और इसी वजह से मैंने एक बाइक ले ली थी.

एक दिन मुझे ऑफिस जाना था, सो मैं 9 बजे तैयार होकर निकल रहा था. मेरा दोस्त सबसे नीचे वाले फ्लोर के कमरे में रहता था. उस दोस्त के बारे में भी कुछ बता देता हूं आपको. वो मुझसे उम्र में बड़ा है और जिस कंपनी में मैं हूँ वो उसमें मुझसे सीनियर पोस्ट पर है. इसलिए मैं उसको भैया ही बुलाता था.
मैंने सोचा कि उससे भी पूछ लेता हूं कि वो भी ऑफिस पर जायेगा या साइट पर जायेगा. इस कारण से मैं उसके कमरे की तरफ गया. उसका कमरा बाउंडरी के बिल्कुल पास था और गेट के पास ही एक औरत खड़ी हुई थी. न चाहते हुए भी पता नहीं क्यों मेरी नजर उस पर जा रही थी.

एक बात बता दूं दोस्तो, भले ही मध्य प्रदेश में गर्मी बहुत पड़ती है मगर यहाँ की औरतें और लड़कियां गोरी बहुत होती हैं।

हल्की गुलाबी रंग की साड़ी, चेहरा साफे से ढका हुआ था धूप से बचने के लिए, केवल माथा और आंखें दिख रही थीं, लंबाई करीब 5 फ़ीट और 3 या 4 इंच होगी। माथे और हाथ देख कर पता लग रहा था कि अंदाजन उम्र करीब 40 के ऊपर होगी, भरा बदन, बड़े गोल दूध, चौड़े चूतड़ और गोरी इतनी कि मानो कोई अंग्रेजन हो।

कंधे पर एक बड़ा बैग लिए वो किसी से बात कर रही थी। थोड़ा आगे बढ़ा तो देखा मेरी दोस्त की पत्नी अपने घर के दरवाजे पर खड़ी थी और उसी से बात कर रही थी।
मैंने भाभी जी से पूछा- क्या भैया घर पर है?
भाभी जी ने कहा- वो तो सुबह 6 बजे ही साइट पर चले गये थे.

मैं भाभी जी की बात सुन कर वापस जाने लगा. तभी भाभी जी ने पीछे से आवाज दी और मुझसे पूछने लगी कि मैं किस रास्त से ऑफिस जाऊंगा तो मैंने उनको अपना रास्ता बता दिया.
फिर भाभी जी ने कहा कि जो औरत सामने गेट पर खड़ी है मैं उसे भी अपने साथ ही लेता चलूं और उसे रास्ते में छोड़ दूं तो मैंने उनकी बात मान ली.

मैंने उसे पीछे बिठा लिया और चलने लगा। कई बार बीच में ठोकर आने की वजह से वो उछल कर मेरे पास ही सरक आई थी. उसका बदन मेरे बदन से सट गया था. जब उसकी चूचियां मेरी पीठ पर स्पर्श होने लगीं तो फिर मेरे अंदर भी हलचल सी मचने लगी.

करीब 7 महीने के बाद किसी औरत के बदन की गर्मी मैंने महसूस की थी। थोड़ी दूर जाते ही उसने मुझसे पूछा कि उसने उस बिल्डिंग में पहले कभी नहीं देखा मुझे तो मैंने अपनी कहानी बता दी. वैसे मैंने भी इतने महीने में पहली बार ही उसे देखा था।
बातों ही बातों में पता चला कि वो एक स्कूल में टीचर है और उसका नाम शालिनी शर्मा है. फिर मैंने भी अपना परिचय दे दिया। इससे ज्यादा उससे कोई बात नहीं हुई और फिर उसका स्कूल आ गया और वो उतर कर जाने लगी.

जब वो उतर कर चलने लगी तो उसने अपने चेहरे के ऊपर से वो साफा हटाया. मैंने उसका चेहरा सामने से तो नहीं देखा लेकिन साइड से देख सकने में कामयाब हो गया. वैसे मैं भी कोई हैंडसम इन्सान नहीं हूं. देखने में आम ही व्यक्ति हूं. मेरा रंग भी सांवला है और मेरी लम्बाई भी पांच फीट और सात इंच है. इस वजह से मैं भी अपनी औकात में ही रहता था. मगर अपनी किस्मत और व्यवहार के कारण कुछ लड़कियों के साथ सेक्स करने में कामयाब हो चुका था.

तो कहानी पर वापस आते हैं. उस दिन फिर शाम को जब मैं अपने कमरे पर वापस जा रहा था. मेरा कमरा दूसरे माले पर आखिर में था. मेरे रूम से पहले चार और कमरे थे. जब मैं वहां से गुजर रहा था तो मैंने देखा कि एक औरत अपने कमरे के बाहर झाड़ू लगा रही थी. वो भीतर जाने ही वाली थी कि मेरी नजर उस पर पड़ गई. मुझे देख कर वो हल्के से मुस्करा दी. मैंने ध्यान दिया तो ये वही औरत थी जिसको मैं सुबह अपनी बाइक पर लेकर गया था. बदले में मैं भी मुस्करा दिया.

यह औरत चेहरे से ज्यादा सुंदर तो नहीं थी लेकिन उसके चेहरे पर एक सादगी थी. चेहरे की बनावट भी जंच रही थी. अगर उत्तेजक शब्दों में कहा जाये तो मेरे हिसाब से उसका चेहरा सेक्सी था. उसने एक ढीली सी नाइटी पहन रखी थी. जिसमें वो बहुत ही सेक्सी लग रही थी.

मैंने अपना ध्यान हटाने की कोशिश की और अपने कमरे में जाने लगा तो उसने मुझे आवाज दी.
मैं मुड़ा तो उसने मुझे चाय पीने के लिए टोका.
मैंने मना कर दिया लेकिन फिर वो रिक्वेस्ट करने लगी. मैं भी उसके कहने पर उसके घर चला गया.

अंदर जाकर देखा तो कुछ खास सामान नहीं था. जो भी था सब कुछ पुराना सी ही लग रहा था. उसका एक बेटा नीचे चटाई पर बैठ कर पढ़ाई कर रहा था. वहीं बगल में प्लास्टिक की कुर्सी व टेबल थी. मैं जाकर वहां पर बैठ गया. मैं लड़के से हाय हैल्लो करने लगा और शालिनी जी मेरे लिए किचन में चाय लेने के लिए चली गई

जब वो वापस आई तो उसके साथ में एक लड़की भी थी.
उन बच्चों के चेहरे से ही पता लग रहा था कि ये इसी के बच्चे हैं. चाय पीने के साथ ही बातें भी शुरू हो गईं. बात करने पर पता चला कि उनके पति का स्वर्गवास हो चुका था. इस घटना को लगभग नौ साल बीत चुके थे. वो लोग पास के ही शहर हरदा के रहने वाले थे. पति के जाने के बाद शालिनी ससुराल वालों से तंग आकर यहां पर रहने लगी थी भोपाल में.

वो स्कूल में टीचर के पद पर काम करते हुए अपने बच्चों को खुद ही पाल रही थी. उसकी दर्द भरी कहानी सुन कर मेरे मन के अंदर से सेक्स जैसी घटिया बातें एकदम से जैसे कहीं उड़न छू हो गईं.

कुछ देर बातें होने पर मैंने भी उनको अपने बारे में बता दिया कि मैं भी शादीशुदा हूं. चाय खत्म होते ही मैंने वहां से जाने का फैसला कर लिया.

वहां आने के बाद मेरे मन में उसके लिए सेक्स जैसा कोई विचार नहीं आ रहा था. मैं अपने काम में व्यस्त रहने लगा. दो हफ्ते बीत गये.

फिर एक दिन उसको लिफ्ट देने का संयोग हुआ. फिर उस दिन भी शाम को उसने पहले की तरह मुझे अपने घर पर बुला कर चाय पिलाई. अब हमारी दोस्ती सी होने लगी थी. मगर उसकी सादगी देख कर मेरे मन में अभी सेक्स के विचार नहीं आ रहे थे. वैसे जहां तक मुझे लगता है कि उसकी सादगी को देख कर शायद ही किसी के मन में उसके साथ सेक्स करने का विचार आता होगा.

वो मुझसे वैसे ही उम्र में बड़ी थी और मैं तो था भी शादीशुदा। इसी तरह थोड़ी बातचीत होती रही. अब मेरे पास उसका व्हाट्स ऐप नम्बर भी आ गया था. पहले एक महीने तो सुबह सवेरे गुड मॉर्निंग या रात को गुड नाइट जैसे मैसेज ही होते थे. फिर दिन में एकाध बार एक-दूसरे का हाल भी पूछने लगे. एक दिन ऐसे उसने मुझे एक डबल मीनिंग मैसेज किया. मैंने भी बदले में वैसा ही मैसेज किया कि शायद उसके मन में कुछ चल रहा होगा.

उधर से कोई जवाब नहीं आया तो मैं डर गया और फिर कोई मेसेज उसे नहीं किया मैंने। दिन भर बेचैनी रही कि आखिर क्या सोचती होगी वो मेरे बारे में। उस रात मैं देरी से घर लौटा था और सुबह जल्दी निकल गया।

बस में वाट्सएप्प खोला तो उसका जवाब केवल हँसी में था। मुझे बड़ी राहत मिली कि उसे बुरा नहीं लगा। पर मेरे मन में एक बात आ गयी कि वो मेरे बारे में क्या सोचती है कम से कम मैं ये तो पता करूं। मैं अब फूंक-फूंक कर कदम रखने लगा, मैं किसी भी हाल में ये पता लगाना चाहता था क्योंकि इसमें मेरा खुद का फायदा था।

दिमाग में ये बात तो थी कि इतने साल से अकेली रह रही है. इसने किसी न किसी के साथ तो सेक्स किया ही होगा. अब मुझे बस यही पता लगाना था कि उसके मन में मेरे लिए भी कुछ चल रहा है क्या. अगर वो ऐसा सोच रही है तो फिर उसने और किसके साथ सेक्स किया होगा. यही सोच कर मैं बात की गहराई तक पहुंचने की कोशिश कर रहा था. अब ये बात तो वही जानती थी. बस मुझे कुछ ऐसा करना था जिससे उसके दिल की बात मुझे पता चल जाये।

इसी बात को लेकर हम करीब एक महीने ऐसे ही दोस्ती और हँसी मजाक के साथ चलते गए। मैंने धीरे-धीरे अपनी पत्नी के साथ सेक्स की बातें उसको बतानी शुरू कर दी और जैसे कि वो मुझसे बड़ी थी तो मैं उससे बीच-बीच में सुझाव भी लेने लगा। लगभग हम बहुत खुल गए थे लेकिन आमने सामने कभी बात नहीं होती थी. केवल फ़ोन या वाट्सएप्प पर ही बात होती थी।

मैं उससे ज्यादा सेक्स की बात भी नहीं करता था ताकि वो मुझे गलत न समझे। फिर एक रात फ़ोन पर बहुत देर बात हुई और फिर सेक्स के बारे में बातें होने लगीं तो उस दिन मैंने उससे पूछ लिया कि पति के जाने के बाद उसने कभी सेक्स किया या नहीं।

उसने मुझे साफ-साफ कह दिया कि उसने न कभी किया और न ही कभी इस तरह से सोचा. केवल अपने बच्चों की चिंता में रही वो पूरे जीवन भर।
मैंने सोचा कि ज्यादा हाथ-पांव मारने से कोई फायदा नहीं। ये औरत उस तरह की नहीं है। फिर मैंने कोशिश ही करनी बंद कर दी।

वो पंद्रह अगस्त का दिन था और मैं छुट्टी वाले दिन आराम से सो रहा था. मैं उस दिन 11 बजे तक सोया रहा. फिर मेरे फोन की रिंग बजी तो देखा कि उसी का कॉल था. पहले तो वो दिन में इस तरह से कॉल नहीं करती थी. फोन उठाने पर उसने पूछा कि अगर आप घर पर ही हो तो आ जाओ, साथ में बैठ कर चाय पीते हैं.

मैंने उससे कह दिया कि मैं सुबह-सुबह चाय नहीं पीता हूं. मैं तो दूध पीता हूं.
पता नहीं उसने क्या समझा और बोली- सुबह-सुबह क्या शरारत सूझी है तुम्हें?
मैंने उससे बोला– हां मैं सुबह-सुबह दूध पीता हूं.

वो बोली- तो ठीक है फिर, आ जाओ दूध पी लो.
यह सुन कर मेरे अंदर का शैतान जाग गया. पहले तो उसकी शरारत वाली बात और फिर उसका दूध पीने के लिए बुलाना. मैं जल्दी से फ्रेश होकर उसके घर पहुंच गया. दरवाजा खुला ही हुआ था. मैंने जाकर उनको आवाज दी.
किचन से आवाज आई- अंदर आ जाओ. दरवाजा बंद करते आना.

मैं आकर कुर्सी पर बैठ गया. अंदर जब वो निकल कर आई तो मेरी आंखें फटी रह गईं. मैं तो सोच में पड़ गया कि ये वही सीधी सादी औरत है या उसकी कोई हमशक्ल? उसको ऐसे रूप में देखने के बारे में मैंने कभी सोचा भी नहीं था.

उसने सफेद पजामा पहना था. ऐडी से लेकर चूतड़ों तक पूरा चिपका हुआ था. हल्के गुलाबी रंग का टॉप था जिसकी बाजू भी नहीं थी. गला भी गहराई तक था. उसकी करीब आधा इंच तक चूचियां दिखाई दे रही थीं. गौर से देखने पर उसकी ब्रा का पता लग रहा था. उसका गोरा बदन अलग ही रंग में नहाया हुआ लग रहा था आज. आज वो हद से ज्यादा ही सेक्सी दिख रही थी और मेरे मन को ललचा रही थी।

मैं उसे एक टक देखता ही रहा तो उसने बोला- क्या हुआ? लो तुम्हारा दूध तैयार है.
मैंने अटकती जबान से कहा- आज तो आप अलग ही लग रही हो.
वो बोली- हां आज बच्चे घूमने के लिए गये हुए हैं. आज मैंने आलस की वजह से रात के कपड़े अभी तक नहीं निकाले हैं.

मैंने खुद पर कंट्रोल रखते हुए कहा- कोई बात नहीं. इस ड्रेस में तो आप कमाल लग रही हो. कमाल क्या सेक्सी कहूं तो ज्यादा सही लग रहा है.
उसे इस बात का जरा भी बुरा नहीं लगा, वो बोली- इस उम्र में सेक्सी?

ये बोल कर वो हंसने लगी. उसकी हंसी देख कर मैं समझ गया कि मेरा रास्ता कुछ हद तक साफ है. मुझे अंदाजा हो गया कि शायद इसी लिए इसने मुझे ऐसे वक्त पर बुलाया है जब बच्चे भी घर पर नहीं हैं. उसके तेवर आज मुझे बदले-बदले से लग रहे थे. मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये वही शालिनी है या कोई और।

उसने ट्रे को टेबल पर रख दिया जिसमें एक गिलास में दूध था और एक कप में चाय थी. वो मेरी बगल में कुर्सी पर बैठ गयी.

मैं धीरे-धीरे दूध पीने लगा और वो चाय पीने लगी. चाय पीते हुए वो मुझसे बातें करने लगी. मेरी नजर बार-बार उसकी मोटी जांघों पर जा रही थी. खासकर उस जगह पर जहां से स्वर्ग के आनंद का रास्ता खुला हुआ था.

मेरे मन में हवस की आग जल उठी थी. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं और क्या नहीं क्योंकि उसकी तरफ से मुझे कोई इशारा भी नहीं मिल रहा था. बस आज उसका अंदाज बदल गया था.

जब वो कप रखने के लिए नीचे झुकी तो उसके चिकने और बड़े चूचों की गहराई देख कर मैं अपना आपा खो बैठा. मैंने झट से गिलास टेबल पर रखा और उसकी जांघ पर हाथ रख दिया.
वो मेरी इस हरकत पर सकपका गई.

उसका ये चेहरा देख कर मैं भी डर सा गया और मैंने हाथ वापस खींच लिया. फिर वो चेहरा नीचे करके उठ गई और कप व गिलास लेकर किचन में चली गई. मैं भी घबरा गया कि हवस के जोश में ये क्या कर बैठा मैं. उसको बिना कुछ कहे ही मैं उठ कर जाने लगा. तभी उसने पीछे से आवाज दी- जा रहे हो क्या?
मैंने बिना उसकी तरफ मुड़े ही दरवाजा खोला और बाहर निकल गया.

कहानी दूसरे भाग में जारी रहेगी. कहानी पर अपनी राय देने के लिए आप नीचे दी गई मेल आई-डी का प्रयोग कर सकते हैं.
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