प्यार की ख़ामोशी-5

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

प्यार की ख़ामोशी-4

प्यार की ख़ामोशी-6

कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा कि अपने शहर वापस आने के बाद मुझे किस्मत ने फिर से रायपुर मोनी के घर पहुंचा दिया. रायपुर पहुंचने के बाद मैंने मोनी के घर जाने से पहले ही कॉन्डोम का पैकेट ले लिया था और रात को जब सोने का समय हुआ तो …

अब आगे:

मोनी ने सोते समय लाईट बन्द नहीं की थी। पता नहीं वो भूल गयी थी या उसने जान बूझकर लाईट बन्द नहीं की थी. मैं कुछ देर तो टीवी देखता रहा फिर टीवी के साथ-साथ मैने लाईट को भी बन्द कर दिया और धीरे से नीचे मोनी की बगल में जाकर लेट गया।

मोनी अपना मुँह दूसरी तरफ करके सो रही थी इसलिये अपना एक हाथ धीरे से मोनी की कमर पर रखकर मैं आज फिर से उसके पीछे चिपक गया। मेरा तरीका वही पुराना था कि नींद बहाने से मैं मोनी के बदन को छूने की कोशिश करूं. किंतु मोनी को शायद आज नींद नहीं आई थी. इसका अंदाजा मुझे तब हुआ जब मैं उससे चिपकने के बाद हल्का सा कसमसाई और सरक कर आगे की तरफ हो गई. मैं समझ गया कि वह अभी जग रही है.

आज मैंने शराब भी नहीं पी थी इसलिए मैं भी पूरे होश में था और मोनी भी. मुझमें ज्यादा हिम्मत तो नहीं थी कि मैं बेझिझक होकर मोनी के बदन के साथ अपनी हसरतें पूरी कर सकूं मगर मेरी वासना मुझे बार-बार मुझे उसके बदन को छूने के लिए उकसा रही थी. अंतत: मैंने दिल कड़ा करके अपनी वासना के वश होकर अपना एक हाथ मोनी की चूचियों की तरफ बढ़ा ही दिया.

मेरी इस हरकत पर मोनी कुछ नहीं बोली किंतु अपने अंदाज में मुझे आगे बढ़ने से रोकने का प्रयास जरूर कर रही थी. वह शायद पहले से जानती थी कि मैं अगर उसके साथ बिस्तर पर हूँ तो जरूर कुछ न कुछ करूंगा ही इसलिए उसने अपने एक हाथ को आगे ले जाकर अपनी चूचियों को हाथ के नीचे छिपा लिया.

वह अभी तैयार नहीं थी कि मैं उसकी चूचियों को हाथ लगाऊं. हालांकि मेरे लिये इस पल खुद को कंट्रोल करना मुश्किल था लेकिन मैं मोनी के साथ कोई जबरदस्ती भी नहीं करना चाहता था. इसलिए यह सोचकर मैंने खुद को वहीं पर रोकने का फैसला कर लिया और आगे नहीं बढ़ा.

चूचियों को दबाने का इरादा तो मैंने छोड़ दिया मगर अभी इतना कंट्रोल नहीं हो पाया था कि मैं उससे अलग हो जाऊं. मैं तो रायपुर आया ही उसके लिये था. इसलिए चूचियों से हाथ हटा कर मैंने धीरे उसकी कमर पर हाथ को सहलाते हुए मैं हाथ को उसके नितम्बों पर ले गया. उसने सलवार और सूट पहना हुआ था. जब मेरा हाथ उसके नितम्बों पर जाकर रुका तो मुझे पता चला कि मोनी ने आज भी नीचे से पैंटी नहीं पहनी हुई है. अगर उसने पैंटी पहनी होती तो उसकी पट्टी मेरे हाथ से जरूर छू जाती. मगर उसने नीचे कुछ भी नहीं पहना था.

जहाँ तक मेरा अंदाजा था और जितना मैं मोनी को अब तक जान पाया था उससे मुझे पता चलने लग गया था कि शायद मोनी सलवार सूट के नीचे पेंटी पहनती ही नहीं थी. मैं मन में सोच रहा था कि चलो मेरे लिये तो ये अच्छा ही था, कम से कम मुझे अब एक कपड़ा तो कम उतारना पङेगा!

मैंने दिल ही दिल में सोचा और मोनी के नितम्बों को सहलाते हुए अपने हाथ को अब धीरे-धीरे आगे उसकी चूत की तरफ बढ़ाना शुरू कर दिया. लेकिन जितने विश्वास के साथ मैं आगे कदम बढ़ा रहा था मोनी मेरे उस भरोसे को पीछे धकेल देती थी और वह शायद नहीं चाहती थी कि मैं उसकी चूत को भी हाथ लगाऊं. मगर क्या करता, मेरे अंदर तो उसकी चूत को पाने की आग जल उठी थी.

लेकिन मेरे मंसूबों पर पानी फेरने के लिए मोनी ने अपने घुटनों को मोड़ लिया और उसकी चूत तक मेरा हाथ पहुंच ही न पाया. वह ऐसी पोजीशन में आ गयी थी कि जैसे बिल्कुल इकट्ठा सी हो गयी हो. जैसे कोई कछुआ अपने चारों पैरों को अंदर की तरफ समेट लेता है.
हालांकि मोनी ने अपने हाथ पैरों को समेट कर मुझे रोकने का प्रयास किया लेकिन मैं भी हार कहाँ मानने वाला था. मैंने धीरे से उसके पेट को सहलाते हुए उसकी सलवार के नाड़े को खोल ही दिया. मैंने सलवार को निकालने की कोशिश नहीं की बल्कि उसके नाड़े को ढीला करते हुए उसके नितम्बों की तरफ बढ़ने लगा.

चूंकि मोनी ने अपने घुटने मोड़े हुए थे इसलिए मैं आगे की तरफ से उसकी सलवार को नहीं उतार सका. आगे से नाकामी हाथ लगने के बाद मैंने पीछे की तरफ से उसके कूल्हों को नंगा कर दिया.
उसके नर्म मुलायम कूल्हों को पीछे से नंगा करने के बाद मैंने अपनी निक्कर भी उतार दी.

मेरा लंड तो पहले से तना हुआ था और मैंने जल्दी से अपने तने हुए लंड पर कॉन्डोम लगा लिया और मोनी के पीछे चिपक कर उससे सट गया. मेरा लंड जैसे ही उसके कूल्हों से स्पर्श किया तो उसने हल्की सी कसमसाहट के साथ आगे हटने की कोशिश की और वह अपनी कोशिश में कामयाब होते हुए आगे की तरफ सरक गयी.

वासना के आवेश में मैं तो अपने आनंद प्राप्ति के लक्ष्य के पीछे हाथ धोकर लगा हुआ था लेकिन मोनी मुंह से कुछ भी नहीं बोल रही थी जिससे मेरी हिम्मत हर पल बढ़ती ही जा रही थी. आगे से तो उसने अपनी चूत को छिपा लिया मगर पीछे का वह सुनहरा दरवाजा खुला ही हुआ था. इसलिए मैंने भी अपने घुटने वैसे ही मोड़ते हुए उसकी चूत के सुनहर दरवाजे पर जब अपना लंड लगाया तो वह सहम सी गयी.

उसने अपने घुटनों को सीधा करके एक बार तो अपनी चूत को पीछे से भी मेरे चंगुल से छुड़ाने की कोशिश की मगर जैसे उसने अपने पैरों को आगे की तरफ से सीधा किया वैसे ही मैंने आगे की तरफ से उसकी चूत पर हाथ रख दिया. उसने वापस से अपने घुटने वैसे ही मोड़ लिये. ज्यादा जबरदस्ती मैं भी नहीं कर रहा था. मगर इस खेल में मजा बहुत आ रहा था. मुझे नहीं पता मोनी को कैसा लग रहा था. मगर मैं तो उसकी चूत को छूने के लिए जैसे मरा जा रहा था.

उसकी चूत का द्वार मेरी पहुंच के बहुत करीब था जिसको मैं हर हाल में पाना चाहता था इसलिए मैंने अपने लंड को उसकी चूत के मुहाने पर हल्का सा घिसा और फिर अन्दर की तरफ धकेलने लगा तो मेरे लंड का सुपाड़ा उसकी चूत में घुसते समय कहीं जैसे अटक सा गया. वह आगे की तरफ कसमसाती हुई मुझसे छूटने का प्रयास करते हुए सरक गयी.
उसकी कसमसाहट में कोई विरोधाभास नहीं लग रहा था मुझे. लेकिन पता नहीं क्यों शायद नारीसुलभ लाजवश वह मुझे अपनी चूत को भोगने नहीं दे रही थी. मैं कुछ देर रुक कर कुछ सोचने लगा और पीछे से फिर एक और धक्का लगा दिया. अबकी बार का मेरा धक्का थोड़ा तेज था.

इस धक्के के कारण मेरा लंड एक चौथाई से भी ज्यादा अंदर तक उसकी चूत में चला गया था. साथ ही लंड घुसते ही मेरी जांघें मोनी की जांघों से टकरा गईं और एक पट्ट की सी आवाज हो उठी.
लंड अंदर जाने के बाद मोनी अपना मुंह कस कर भींचा हुआ था मगर फिर भी उसके मुंह से एक ऊह्ह् की सी हल्की कराह निकल गई. साथ ही उसका बदन कड़ा होकर तनने लगा और ऐंठता चला गया.

मोनी ने अपना मुँह दूसरी तरफ किया हुआ था और उसने अपनी जांघों को भी जोरों से भींचा हुआ था इसलिये मैं अपने लंड को अब और ज्यादा अन्दर तो कर नहीं सकता था क्योंकि मोनी के नितम्ब अब मेरी जांघों से लग गये थे। मैंने उसकी जांघों को खोलने की भी कोशिश की, मगर वो शायद उन्हें खोलने को तैयार नहीं थी इसलिये मैंने भी ज्यादा जबरदस्ती‌ नहीं की और वैसे ही मेरा जितना लंड मोनी‌ की चूत में घुसा हुआ था. मैंने उतने ही माप के धीरे-धीरे धक्के‌ लगाने शुरू कर दिये जिससे मोनी अब हल्के-हल्के टसकने लगी।

मोनी ने अपना मुँह जोरों से भींचा हुआ था इसलिये उसके मुँह से कराहटें तो नहीं निकल रही थीं मगर कराहटों की जगह हल्की हल्की टसकने की सी आवाज निकलना शुरू हो गयी थी। पता नहीं मोनी ऐसे ही टसक रही थी या‌ सही में उसको तकलीफ हो रहा थी? मैं उस वक्त इस बारे में किसी निर्णय पर पहुंचने में सक्षम नहीं था. उस वक्त तो मुझे बस उसकी चूत का स्वाद चखना था जो मेरा लंड उसकी चूत में जाकर मुझे उपलब्ध करवाने लगा था. हाँ इतना तो मैं कह सकता हूँ कि उसकी चूत मुझे काफी कसी हुई और तँग सी लग रही थी जो कि मेरे लंड को पूरा घर्षण प्रदान कर रही थी।

शायद मोनी ने अपनी चूत को छुपाने के लिये दोनों जाँघों को जोरों से भींचा हुआ था इसलिये उसकी चूत का प्रवेश द्वार भी दोनों जाँघों के बीच भिंच गया था, जिससे मुझे उसकी चूत इतनी कसी हुई लग रही थी.
मेरा लंड भी काफी मोटा और बड़ा है इसलिए मोनी का टसकना स्वाभाविक था. मेरा मूसल‌ लंड जब कोई लड़की पहली बार अपनी चूत में लेती है तो एक बार तो वो ऐसा करती ही है।

मोनी भी अब कुछ देर तो टसकती रही फिर धीरे-धीरे अपने आप ही वो शाँत हो गयी। अब मोनी के शाँत होते ही मैंने भी अपने धक्कों की गति को थोड़ा तेज कर दिया और अपने लंड को मोनी की चूत में और ज्यादा अंदर तक घुसाने की कोशिश करने‌ लगा!
अभी तक बस मेरा एक चौथाई लंड ही मोनी की चूत में था क्योंकि मोनी के नितम्ब मेरी जांघों से लगे हुए थे। अपने लंड को मोनी की चूत में और ज्यादा घुसाने के लिये मैं अब मोनी से अलग हो गया और लेटे लेटे ही खिसक कर बिल्कुल नीचे आ गया।

नीचे होकर मैंने उसके दोनों पैरों को अपने पैरों के बीच में कर लिया और अपने दोनों घुटनों को दीवार के साथ लगाकर अपनी जाँघों और मोनी के नितम्बों के बीच थोड़ा सा फासला बना लिया। मेरी जाँघों और मोनी के नितम्बों के बीच अब इतना फासला हो गया था कि अब जैसे ही मैंने थोड़ा जोर से धक्का लगाया तो मेरा करीब आधा लंड मोनी की चूत में घुस गया और मोनी “ऊऊह्ह्ह्…” कहकर एक बार फिर से कराह उठी।

मेरा लंड मोनी की चूत की गर्मी का मजा लेने में मशगूल हो गया था इसलिए मेरे रुकना तो असंभव सा था. उत्तेजना में मैंने मोनी की कमर को एक हाथ से पकड़ लिया और थोड़ा तेजी के साथ धक्के लगाने लगा.
मोनी मेरे लंड से चुदती हुई अपने हाथ-पैरों को समेटकर बिल्कुल इकट्ठा हो रखी थी. मैं भी नीचे होकर लेटे-लेटे ही अब इस तरह से हो गया था जैसे कि मोनी घोड़ी बनी हुई हो और मैं उसे पीछे से चोद रहा हूं।

मेरी मुंह बोली बहन अब कुछ देर तो कसमसाती रही फिर धीरे-धीरे वो शांत हो गयी और उसका बदन भी ढीला पड़ गया। शायद मोनी को भी अब मजा आने लगा था क्योंकि उसकी चूत की दीवारें गीली होकर अब थोड़ी सी चिकनी हो गयी थीं जिससे कि मेरा लंड अब आसानी से अन्दर बाहर हो‌ रहा था। मैं पहले ही काफी उत्तेजित था और जब उसकी चूत की चिकनाहट का अहसास हुआ तो मेरी हालत और भी खराब हो गयी।

मैं जब मोनी के बारे में सोचने मात्र से ही उत्तेजित हो जाता था तो फिर उसके साथ ये सब करते हुए मेरी क्या हालत हो रही होगी, ये आप खुद अन्दाजा लगा सकते हैं.

वैसे मेरा उसकी चुदाई को रोकने का कोई इरादा नहीं था. मैं तो बस उसकी चूत को चोद कर अपनी प्यास बुझाना चाहता था. मगर साथ ही इस बात का भी ध्यान था कि मोनी को भी तृप्त करना बहुत जरूरी है. इसलिए मैंने अपने धक्कों की गति को थोड़ा सा कम कर दिया. गति कम करने के बाद मैंने अपने एक हाथ को उसकी चूचियों की तरफ बढ़ा दिया.

मोनी ने अब भी अपने उरोजों को छुपाया हुआ था मगर फिर भी मैंने उसके हाथ के नीचे से अपना हाथ घुसा दिया और शर्ट के ऊपर से ही उसकी एक चूची के बेस को पकड़ लिया। सूट के नीचे मोनी ने ब्रा पहनी हुई थी. उसकी चूची इतनी मस्त थी कि ब्रा के होते हुए भी मेरे हाथ में उसकी चूची गुदगुदी सी पैदा कर रही थी. मैने उसकी चूची को नीचे बेस से पकड़ा था मगर धीरे-धीरे करके मैं उसकी चूची के शिखर तक पहुँच गया और उसकी पूरी चूची को ही अपनी हथेली मे भींच लिया।

एक औसत आकार के सन्तरे से बड़ी चूची नहीं थी मोनी की. आकार भले ही कम था परन्तु बिल्कुल ‌कसी हुई और स्पंज के जैसी एकदम गुदाज थी। ऐसा लग रहा था जैसे कि मेरे हाथ में कोई रबड़ की‌ बॉल आ गयी हो जिसको मैंने पहले तो हल्के हल्के सहलाया फिर थोड़ा जोर से मसलना शुरू कर दिया जिससे मोनी अब फिर से कसमसाने लगी।

मोनी की चूची को मसलते हुए मैंने अपने हाथ को अब उसके गले के पास से अन्दर भी घुसाने की कोशिश की किंतु मोनी ने अपने हाथ से गले के पास से सूट को दबा लिया था. इसलिये मैं अपने हाथ को अन्दर नहीं कर सका. फिर भी मैं ऊपर से ही उसकी चूची को धीरे-धीरे मसलता रहा.

उधर नीचे की तरफ मैं अब भी धीरे-धीरे धक्के लगाकर अपने लंड को मोनी की चूत में अन्दर बाहर कर रहा था जो कि अब और भी आसानी से चूत मे अन्दर बाहर होने लगा था। शायद मोनी भी अब चरम के करीब ही थी. इसका अंदाजा मुझे इस अहसास हो गया था कि उसकी चूत की दीवारें कामरस से भीग कर बिल्कुल चिकनी और फिसलन भरी हो चुकी थीं. उसकी चूत में हल्का सा संकुचन भी होने लगा था.

मेरी चुदाई से मोनी के मन का हाल तो नहीं जान पा रहा था मगर मैं अपने आप पर बहुत देर से संयम किये हुए था जो कि मेरी अब बर्दाश्त के बाहर हो गया था। मुझसे अब रुका नहीं जा रहा था इसलिये मैंने मोनी की चूचियों को छोड़ दिया और उसकी कमर को पकड़कर जोरों से धक्के‌ लगाने शुरू कर दिये जिससे वो अब फिर से “ओह्ह … ऊह्ह … ऊ … ऊह्ह …” करके कराहने‌ लगी।

उसकी चूत को चोदते हुए मुझे तो जैसे होश ही नहीं था. मैं उसकी कमर को पकड़कर अब लगातार तेजी से धक्के लगाता रहा जिससे मोनी की कराहटें अब और भी तेज हो गयीं और कुछ ही देर बाद मेरा सँयम टूट गया. मैंने मोनी की कमर को पकड़कर उसे अब जोरों से अपने लंड पर दबा लिया और हल्के-हल्के धक्कों के साथ उसकी चूत में ही उस कॉन्डोम‌ को अपने वीर्य से भरना शुरू कर दिया.
मेरे साथ साथ ही अब मोनी भी चरम पर पहुँच गयी थी क्योंकि अब जैसे ही मेरे लंड से वीर्य की पिचकारियाँ निकलने लगीं तो मोनी की दोनों जाँघें कम्पकपा कर एक दूसरे में उलझ सी गयीं‌ और उसकी चूत की दीवारों ने मेरे लँड को और भी जोरों से कसकर जकड़ लिया।

मोनी ने अपना मुँह जोरों से भींचा हुआ था मगर फिर भी ‘ऊह्ह … उह्ह…’ की हल्की हल्की कराहों के साथ उसका बदन तनता चला गया और उसकी चूत ने जोरों के प्रसार व संकुचन के साथ रह-रह कर मेरे लंड को अन्दर ही अन्दर कामरस से नहलाना शुरू कर दिया।

हम दोनों का स्खलन लगभग एक साथ ही शुरू हुआ था इसलिये अब जितनी देर तक मोनी की चूत में प्रसार व सँकुचन सा होता रहा उतनी ही देर तक मेरे लंड से भी वीर्य की पिचकारियाँ निकलती रहीं और उसकी चूत में ही उस कॉन्डोम को भरती गयी। मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे कि मोनी की चूत अब अपने आप ही मेरे लंड से वीर्य को चूस कर बाहर खींच रही है और मेरा लंड वीर्य उगल कर उसकी चूत की प्यास को बुझा रहा है.

कुछ देर तक ऐसे ही मेरे लंड से सारा वीर्य चूसने के बाद मोनी की कराहें अब हल्की होती चली गयीं और उसका बदन ढीला पड़ गया। तब तक मैंने भी अपना सारा ज्वार उस कॉन्डोम में उगल दिया था इसलिये एक दो धक्के लगाकर अब मैं भी शाँत हो गया और धीरे से अपने लंड को मोनी की चूत से बाहर निकाल लिया।

मेरी खामोशी भरी सेक्सी कहानी अगले भाग में जारी रहेगी.
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