मेरी रंडी बनने की कहानी-13

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

मेरी रंडी बनने की कहानी-12

मेरी रंडी बनने की कहानी-14

कहानी के पिछले भाग में मैंने बताया कि बड़े वाले सेठ ने मेरी चूत को चोद कर अपने रस से मेरी चूत को भर दिया था.
अभय सेठ ने कहा कि अगर उन दोनों ने काम वर्धक गोली नहीं खाई होती तो वो दस मिनट से ज्यादा मेरी चूत की गर्मी के सामने टिक नहीं पाते.

उसके बाद विवेक ने मेरी गांड को चोदना शुरू कर दिया. अभय एक तरफ जाकर तख्त पर मेरी गांड चुदाई को देखने लगा. मुझे भी मजा आ रहा था कि वो भारी भरकम मर्द मेरी गांड को चुदते हुए देख रहा है.

विवेक ने मेरे दूधों को पकड़ कर जोर मेरी गांड में लंड को पेलना शुरू कर दिया. उसकी इस हरकत से मैं एकदम से पागल सी हो गई.
वो बोला- साली तू इतनी सेक्सी है कि कोई भी मर्द तुझे चोदे बिना नहीं रह सकता है.
मुझे भी गर्मी चढ़ती जा रही थी. मैं फिर से झड़ने के कगार पर पहुंच गई थी.

फिर उसने कस कर मुझे पीठ की तरफ से पकड़ लिया. फिर वो जोर से धक्के देने लगा. अब उसका रस निकलने वाला हो गया. वो बोला- बता मेरे रस को कहां लेगी?
मैं बोली- जहां मर्जी निकालना चाहता है निकाल दे.
वो बोला- मैं तो तेरी गांड को ही भरना चाह रहा था मगर तेरी चूत का टेस्ट भी लेना था. इसलिए बीच में तेरी चूत को चोदने लगा था. अब तू दोबारा से घोड़ी बन जा.

उसके कहने पर मैं फिर से घोड़ी बन गई और उसने एक बार फिर से मेरी गांड को चोदना शुरू कर दिया. उसके बाद उसने मेरी गांड को पांच मिनट तक चोदा. मेरी गांड में दर्द होना शुरू गया था लेकिन वो कमीना रूक नही रहा था. मैं फिर भी उसका साथ देती रही.

उसने मेरी चूत में उंगली करना शुरू कर दिया. वो एक हाथ से मेरी चूत मं उंगली कर रहा था और उसका लंड मेरी गांड में जा रहा था. अब मुझे ज्यादा मजा आने लगा था. उसने कई मिनट तक ऐसे ही किया.

अब मैं दोबारा से झड़ने को हो गई थी. उसने तेजी से मेरी चूत में उंगली करना शुरू कर दिया. वो मेरी चूत को हाथ से चोद रहा था और मेरी गांड अपने लंड से चोद रहा था. मैं भी उसका मजे से साथ दे रही थी.

अचानक ही मेरी चूत में फिर से तूफान उठने लगा और मेरी चूत से मेरा पानी छूटने लगा. पानी निकलते ही मेरी और उसके लंड से वाले घर्षण से मेरी चूत में पच-पच की आवाज होने लगी. वो अभी भी मेरी गांड को पेल रहा था.

कुछ देर तक उसने मेरी गांड को और पेला. मैं अब थकने लगी थी. मेरी सांसें तेजी से चल रही थी. लेकिन वो नहीं थक रहा था. वो अभी भी उतने ही जोर से मेरी गांड में धक्के लगा रहा था. मेरी गांड में जलन होने लगी थी. ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरी गांड में कोई मिर्च वाला डंडा घुसा रहा हो.

अब विवेक ने घुटनों और हथेली के बल पर जिस्म को टिका लिया. उसने कंधे पकड़ कर मेरे बालों की चोटी भी पकड़ ली. वो घोड़ी स्टाईल में आकर पीछे से पूरा लंड मेरी गांड में पेल रहा था. उसने मेरी गांड के सुराग को फैला कर चौड़ा कर दिया था. उसका लंड भी बहुत गीला हो चुका था और आराम से मेरी गांड में जा रहा था.

फिर जोर जोर से मेरी गांड पर तमाचे लगाते हुए मेरी गांड में लंड को घुसाने लगा. इतना मजा मुझे अपनी गांड को चुदवाने में आज तक नहीं आया था. वो तेज गति के साथ मेरी गांड को रौंद रहा था. तीन-चार मिनट तक वो मेरी गांड को इसी वेग के साथ पेलता रहा.

उसके बाद वो अचानक से बोला- बंध्या, साली कुतिया, मेरा रस बाहर आने वाला है … आह्ह … तेरी मस्त गांड को भर दूंगा आज मैं अपने रस से.
मैं बोली- हां मेरे राजा, अपने लंड के रस से मेरी गांड को भर दे.

विवेक ने जोर से तीन-चार जोर के धक्के लगाये और उसका गर्म गर्म लावा मेरी गांड में गिरने लगा. उसके वीर्य की पिचकारी इतनी तेजी से अंदर जा रही थी कि मुझे अपनी गांड में उसका वीर्य गिरता हुआ अलग से ही महूसस हो रहा था.

उसका वीर्य इतना गर्म लग रहा था कि जैसे मेरी गांड को जला ही देगा.
झटके मारते हुए उसने सारा वीर्य मेरी गांड में भर दिया. उसके बाद वो दो-तीन मिनट तक ऐसे ही मुझसे लिपटा रहा. उसके रस से मेरी गांड पूरी तरह से भर गई थी.

फिर उसका लंड भी छोटा होकर सिकुड़ कर बाहर आने लगा. कुछ पल के बाद उसका लंड मेरी गांड में ही सिकुड़ कर इतना छोटा हो गया कि वो खुद ही मेरी गांड से बाहर आ गया. विवेक मुझे छोड़ कर एक तरफ मेरी बगल में तख्त पर निढाल होकर गिर गया.

मैं भी उसकी बगल में थकी हुई निढाल होकर गिर गई. मेरे पूरे बदन में पसीना आ चुका था. मैं बिल्कुल नंगी होकर वैसे ही पड़ी रही.

फिर विवेक उठ कर अपने कपड़े ढूंढने लगा. उसने घड़ी की तरफ टाइम देखा तो रात के एक बज गया था.
वो बोला- बंध्या, तू तो बहुत बेशकीमती है. तेरा कोई जवाब नहीं है. अब हम चलते हैं.

उसकी बात पर मैंने पूछा- मगर तुम दोनों तो यहीं पर सोने वाले थे.
वो बोला- जिस काम के लिए आये थे वो तो अब हो गया है. अब हमें जाना होगा. हमें सुबह बहुत सारा काम है.

इतना कहकर वो दोनों ही अपने कपड़े पहनने लगे.
मैं बोली- सुबह जीजा के साथ चले जाना.
वो बोले- नहीं, अब हम नहीं रुक सकते. हमें जाना होगा. अगर हम सुबह निकलेंगे तो कोई कुछ और समझेगा. इससे बेहतर है कि हम लोग अभी चले जाते हैं.

तभी अभय ने अपने मोबाइल से ड्राइवर को फोन लगाया और बोला- नीचे गाड़ी ले आ.
उसके बाद वो दोनों चलने के लिए रेडी हो गये. उन दोनों ने मुझे भी उठ कर नाइटी पहनने के लिए कहा. मगर मुझसे उठा नहीं जा रहा था.

जब मैं हिम्मत करके उठने लगी तो मुझे अपने पूरे बदन में दर्द महसूस हो रहा था. मगर मैं मजबूरी में उठी और मैंने अपनी नाईटी पहन ली और उठ कर बैठ गई. फिर वो दोनों कुंडी खोल कर बाहर चले गये.

बाहर जाकर उन्होंने जीजा को आवाज दी.
जीजा ने पूछा तो वो बोले कि उनको अभी निकलना है. सुबह उनको किसी काम से जरूर मीटिंग में सतना के लिए जाना है.
मैं जानती थी कि ये सब लोग झूठ बोल रहे हैं.

मां भी कहने लगी- जब काम है तो जाना ही पड़ेगा. मैं चाहती थी कि आप लोग रात को हमारे यहां पर ही रुको. आप लोग हमारे मेहमान हो. हमारे दामाद के साथ रुकते. मगर काम है तो फिर जाना ही होगा.

जाते हुए विवेक ने मेरे हाथ में कुछ पैसे थमा दिये और बोला- चुपचाप इनको रख लो और अपने लिए कुछ अच्छा सामान खरीद लेना.
मैंने विवेक को थैंक्यू कहा.

वो दोनों चलते हुए मां से कहने लगे कि आपको किसी भी चीज की जरूरत हो तो हमें बताइयेगा. हम दोनों आपकी मदद करने के लिए आ आ जायेंगे.
मां यह बात सुन कर खुश हो गई.

उनके साथ जीजा भी चले गये. उनके जाने के बाद मां ने दरवाजा बंद कर दिया. वो टीवी वाले रूम में आई. मुझे देख कर बोली- तू अभी तक जाग रही है?
मैंने लड़खड़ाती हुई जबान से जवाब दिया- मां वो, मैं इन लोगों की बातें सुन कर उठ गई थी.

मां बोली- बहुत रात हो गई है. जा जाकर सो जा.
मां ने जब बिस्तर को ठीक करना शुरू किया तो उनको हाथ में कुछ गीला सा लगा. विवेक और अभय के लंड का रस और मेरी चूत का रस चादर में लगा हुआ था. मैं डर गई कि मां को शायद मेरी करतूत के बारे में पता लग गया है.

मैं खड़ी हुई कांप रही थी.

फिर मां ने उस चिपचिपे पदार्थ को मेरी तरफ करके दिखाया. मैंने हिम्मत करके मां को वो सोने की अंगूठी दिखाई. मां ने उसे देखा और उसको देख कर मुस्कराने लगी. फिर मां उस बेड को ठीक करने लगी तो उनको बेड के पास पड़ी हुई मेरी ब्रा और पैंटी दिख गई.

मैं अब बहुत डर गई. उसके बाद मां को वो खून का निशान दिख गया. मां ने वो चादर उठाई और मुझे दिखाने लगी.
मां को समझते हुए देर नहीं लगी. वो मेरे बालों को पकड़ कर बोली- तो कलमुंही ये है तेरी करतूत.
मैं बोली- मां मैंने कुछ नहीं किया.
मां ने कहा- अरे छिनाल, ये तेरी ही ब्रा और पैंटी है और ये खून का निशान! वो दोनों ठेकेदार रात को यहीं पर सो रहे थे. वो भला फ्री में किसी को सोने की अंगूठी देकर क्यों जायेंगे?

वो कहने लगी- तेरे बारे में सारे मौहल्ले में खबर फैली हुई है. बहुत गर्मी हो गई है तेरे अंदर. अब तक तो मैं सिर्फ यही सोचती थी कि तू आशीष के साथ ही मुंह काला करती रही होगी. मगर अब तूने अब इन बड़े आदमियों को भी फांसना शुरू कर दिया है रंडी. कुतिया इतनी गर्मी हो गई है तेरे अंदर. अब तू ऐसे काम भी किया करेगी.

ऐसा कहते हुए मां ने मुझे गालियां देना शुरू कर दिया.

मैं बोली- नहीं मां, ऐसी बात नहीं.
वो बोली- चुप कर, सब समझ गई हूं मैं. मैं तेरी मां हूं, तू मेरी मां नहीं है. अब तू मुझे पाठ पढ़ाने की कोशिश करने लगी है.

मां का गुस्सा देख कर मैं कांपने लगी थी. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं.

कहानी अंतिम भाग में जारी रहेगी.
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