मस्तीखोर टीचर का हरामीपन-4

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

मस्तीखोर टीचर का हरामीपन-3

मस्तीखोर टीचर का हरामीपन-5

मेरी जवानी की कहानी के तीसरे भाग में आपने पढ़ा कि मैं एग्जामिनर के साथ कमरे में थी, मेरी पक्की सहेली भी मेरे साथ थी. सर मुझे नंगी करने लगे थे.
अब आगे:

“चल … टेबल पर झुक जा … पहले तेरा रस पी लूँ …” सर ने कहते हुए मेरी कमर पर हाथ रख कर आगे दबा दिया और ना चाहते हुए भी मुझे झुकना पड़ा.
मैंने अपनी कोहनियाँ टेबल पर टिका लीं.
“हां … ऐसे … शाबाश … अब टाँग चौड़ी करके अपने चूतड़ पीछे निकाल ले!” सर ने उत्तेजित स्वर में कहा.

उसकी बात समझने में मुझे ज़्यादा परेशानी नहीं हुई. अब पिंकी के सामने मेरी जो मिट्टी पलीद होनी थी वह तो हो ही चुकी थी. मैं अब जल्द से जल्द उनको निपटाने की सोच रही थी. मैंने अपनी कमर को झुकाया और अपनी जांघें खोलते हुए अपने नितम्बों को पीछे धकेल सा दिया, मेरी योनि अब लगभग बाहर की ओर निकल चुकी थी.

“ओये होये … माँ कसम … क्या चूत है तेरी … दिल करता है इसको तो मैं काट कर अपने साथ ही ले जाऊँ!” कहकर उन्होंने सिसकारियाँ भरते हुए मेरे नितम्बों को अपने दोनों हाथों में पकड़ा और अपनी जीभ निकाल कर एक ही बार में योनि को नीचे से उपर तक चाट गये. मेरी सिसकी सी निकल गयी.

“देखा … कितना मज़ा आया ना? इसको भी समझा … ये भी थोड़े मज़े लेना सीख ले मुझसे … जवानी चार दिन की होती है … फिर पछताएगी नहीं तो …” सर ने कहने के बाद एक बार और जीभ लपलपाते हुए मेरी योनि की फांकों में खलबली मचाई और फिर बोले- कह दे ना इसको … दे दे मुझे तो अलग ही मज़ा आएगा … बोल दे इसको … मौज कर दूँगा ससुरी की … मेरिट ना आए तो कहना!

मैं कुछ ना बोली … मैं क्या बोलती? मेरा बुरा हाल हो चुका था. अब लगातार नागिन की तरह मेरी योनि में लहरा रही उसकी जीभ से मैं बेकाबू हो चुकी थी और अपने आपको सिसकारियाँ भरने से भी नहीं रोक पा रही थी,
“आह … सररर … आआआह …”

“पगली … सर की हालत भी तेरी ही तरह हो चुकी है … कुछ मत बोल अब … अब तो मुझे घुसाने दे जल्दी से!” बोल कर वह खड़ा हो गया.
मैं आँखें बंद किए सिसकारियाँ लेती हुई मस्ती में खड़ी थी. अचानक मुझे अपनी योनि की फांकों के बीच उनका लंड गड़ता हुआ महसूस हुआ, समझ में आते ही मैं हड़बड़ा गयी और इसी हड़बड़ाहट में टेबल पर गिर गयी.

“आह … ऐसे मत तड़पा अब … बिल्कुल आराम से अंदर करूँगा … माँ कसम … पता भी नहीं लगने दूँगा तुझे … तेरी तो वैसे भी इतनी चिकनी है कि सर्ररर से जाएगा … आजा अंजलि आ जा आ!” पगलाए हुए से सर ने मुझे कमर से पकड़ कर ज़बरदस्ती फिर से वैसे ही करने की कोशिश की.

पर इस बार मैं अड़ गयी- नहीं सर … ये नहीं!
मैंने एकदम से सीधी खड़ी होकर कहा.
“ये क्यूँ नहीं मेरी जान … ये ही तो लेना है … एक बार थोड़ा सा दर्द होगा और फिर देखना … चल आजा … जल्दी से आजा … टाइम वेस्ट मत कर अब!” सर ने अपने लंड को हाथ में लेकर हिलाते हुए कहा.

“नही सर … अब बहुत हो गया … जाने दो हमें …” मैं अकड़ सी गयी।

“ज़्यादा बकबक की तो साली गांड में लंड घुसेड़ दूँगा. नौ सौ चूहे खाकर अब बिल्ली हज को जाएगी? चुपचाप मान जा वरना अपनी सहेली को बोल कि चूस देगी थोड़ा सा … फिर मैं मान जाऊंगा …” सर ने कहा।

अजीब उलझन में आ फँसी थी मैं. अगर घुसवा लेती तो फिर माँ बनने का डर था. पिंकी को बोलती तो बोलती कैसे? वो पहले ही मुझे कोस रही होगी. अचानक सर मेरी तरफ लपके तो मेरे मुँह से घबराहट में निकल ही गया- पिंकी … प्लीज़!
पिंकी ने मेरी तरफ घूर कर घृणा से देखा और फिर अपना चेहरा दीवार की तरफ कर लिया.

सर अब ज़्यादा मौके देने के मूड में नहीं थे. उन्होंने मुझे पकड़ कर सोफे पर गिरा लिया और मेरी टाँगें पकड़ कर दूर-दूर फैला दीं. इसके साथ ही मेरी योनि की फाँकें अलग-अलग होकर सर को आक्रमण के लिए आमंत्रित करने लगीं.
सर ने जैसे ही घुटने सोफे पर रखे, मैं आगे होने वाले दर्द की सोच से बिलख पड़ी- पिंकी … प्लीज़ … बचा ले मुझे!”

सर ने मेरे आह्वान पर मुड़कर पिंकी को देखा तो मेरी भी नज़र उसी पर चली गयी. मगर वह चुपचाप खड़ी रही।
“ऐसी सहेलियाँ बनाती ही क्यूँ है जो तेरे सामने खड़ी होकर भी तेरी सील टूटते देखती रहें? ये किसी काम की नहीं है. तुझे चुदना ही पड़ेगा आज …” सर ने कहा और मेरी जांघों को फैलाकर फिर से मुझ पर झुकने लगे. मैं बिलख रही थी. पर वो कहाँ सुनते? उन्होंने वापस अपना लंड मेरी योनि पर टिकाया ही था कि अचानक पिंकी की आवाज सुनकर पलट गये.

“क्या करना है सर?” पिंकी आँखें बंद किए उनके पास खड़ी थी.
शाबाश … मेरी पिंकी … आजा … एक बार छू कर तो देख … तुझे भी मज़ा आएगा … आजा, मेरे पास बैठ जा!” सर सिसकारी सी लेकर सोफे पर बैठ गये और उसका हाथ पकड़ कर अपने तने हुए लंड की तरफ खींचने लगे.

पिंकी अपने हाथ को वापस खींचने की कोशिश करते हुए बगैर उनकी तरफ देखे बोली- जाने दो ना सर … प्लीज़ … !”

सर ने मेरा हाथ अपने दूसरे हाथ में पकड़ा और मुझे अपने लंड के नीचे लटक रहे ‘गोले’ पकड़ा दिए … मैंने हल्का सा विरोध भी नहीं किया और उनके गोले अपनी उंगलियों से सहलाने लगी. उनका लंड और ज़्यादा अकड़ कर झटके-से मारने लगा.
सर ने पिंकी को खींच कर सोफे पर बैठा ही लिया- अरे देख तो सही … अंजलि कितने प्यार से कर रही है … तू भी करके देख … तुझे मज़ा नहीं आया तो मैं तुझे छोड़ दूँगा … तेरी कसम.

पिंकी का मुँह दूसरी तरफ था. सर ने उसका हाथ खींच कर अपने लंड पर रख दिया और उसके हाथ को पकड़े हुए अपने लंड को आगे पीछे करने लगे- हां, शाबाश … कुछ देर करके देख … बहुत काम की चीज़ है ये … देख … देख!

कहकर जैसे ही सर ने अपना हाथ वहाँ से हटाया तो पिंकी ने तुरंत अपना हाथ वापस खींच लिया- बस … अब जाने दो सर … हमें देर हो रही है!
“ठहर जा … तू अभी ढंग से गरम नहीं हुई है ना … इसीलिए बोल रही है … वरना तो …” सर ने कहा और उसको अपनी बांहों में लेकर अपनी तरफ खींच लिया.

“कर … ना … तू क्यूँ रुक गयी?” पिंकी की हालत देख कर मैं सर के गोले सहलाना भूल कर उसकी तरफ देखने लगी थी. सर ने गुर्राते हुए मुझे मेरा काम याद दिलाया और पिंकी को सीधी करके अपनी बाँह के सहारे अपनी गोद में झुला सा लिया. अब पिंकी का चेहरा सर के चेहरे के पास था.

मैंने पिंकी की ओर देखते हुए मुझे सौंपा हुआ काम फिर से चालू कर दिया. सर ने अचानक अपना हाथ पिंकी के कमीज़ में डाला और ऊपर चढ़ा लिया. पिंकी तड़प उठी. उसको सर के हाथ मजबूरी में भी अपनी छातियों पर गंवारा नहीं हुए और वह घबराकर अपना पूरा ज़ोर लगा कर उठ बैठी और अगले ही पल खड़ी हो गयी,
“छोड़ो मुझे … मुझसे नहीं होगा ये सब …”

“तो चूतिया क्यूँ बना रही है साली … अभी तो पूछ रही थी कि क्या करना है … अब तुझसे होगा नहीं … तुझे तो मैं कल देख लूँगा …” सर ने कहा और अपनी खीज मुझ पर उतार दी. मुझे मेरे बालों से पकड़ा और उनको खींचते हुए घुटनों के बल ज़मीन पर अपने सामने बैठा लिया
“ले … तू चूस … बता इसको कितना मज़ा आ रहा है तुझे …” कहकर उन्होंने मुझे आगे खींचा और अपने लंड को मेरे होंठों पर रगड़ने लगे.

मैंने एक बार घबरा कर उनको देखा और उनकी आँखों में देखते हुए ही अपने होंठ खोल दिए.
सर ने सिसक कर अपने लंड को एक दो बार मेरे खुले होंठों पर गोल गोल घुमाया और फिर अपना काले टमाटर जैसा सुपारा मेरे मुँह में ठूंस कर बाहर निकालकर कहा- कैसा लगा?
सर ने पूछा।

मैंने सहम कर पिंकी की ओर देखा. वह तिरछी नज़रों से मेरे मुँह की ओर ही घूर रही थी.
बाहर निकाल कर सर ने एक दो बार लंड से मेरे होंठों पर थपकी सी लगाई और मेरे होंठ खोलते ही फिर से वैसा ही किया. इस बार सुपारे से भी कुछ ज़्यादा अंदर करके निकाला था उन्होंने. मुझे लगा जैसे उनके लंड की गर्मी से मेरे होंठ पिघल से गये हों. मेरे मुँह में लार भर गयी.

“बता उसको … कैसा लग रहा है?” सर ने घूर कर पिंकी की ओर देखते हुए कहा और फिर मेरी ओर देखने लगे.
“जी … अच्छा लग रहा है!” मैंने जवाब दिया और फिर से उनके मेरे होंठों पर लंड रखते ही मैंने अपने मुँह को खोल लिया.
“आआआ आआहह … क्या चूसती है तू …” इस बार सर ने अपना लंड मेरे गले तक ठूँस दिया था … जैसे ही उन्होंने बाहर निकाला तो मुझे खाँसी आ गयी और साथ ही आँखों में आँसू भी।

सर का लंड मेरी लार में लिपट कर चिकना और रसीला सा हो गया था. उन्होंने फिर से मेरे होंठों पर लंड को रखा और थोड़ा-थोड़ा अंदर-बाहर करने लगे.
“आह … कितना गर्म मुँह है तेरा। इसको बोल … जितना आज तूने किया है … ये भी करे … वरना मैं तुझे चोद दूँगा आआह्ह्ह!”

कुछ देर बाद उन्होंने मेरे मुँह से लंड निकाल लिया- बोल … क्या कहती है? इसको मनाएगी या अपनी चुदवायेगी?
उन्होंने गुस्सा दिखाते हुए कहा.

मैंने मजबूरी वश पिंकी के चेहरे की ओर देखा तो उसकी नज़रें मेरी नज़रों से मिली मगर उसके हाव-भाव से मुझे लगा कि वह नहीं कर पाएगी.
“मैं कर तो रही हूँ सर!” मैंने डरते-डरते कहा.
“तुझे नहीं पता यार … वो गाना है ना … निगोड़े मर्दों का … कहाँ दिल भरता है? करने को तो मेरी बीवी भी बहुत अच्छे से कर देती है … पर कच्ची कलियों का मज़ा कुछ और ही होता है. समझी? और फिर ‘नया माल नखरे करके मिले तो … उसके तो कहने ही क्या!”

फिर सर बोले- चल खड़ी हो जा।
अब मेरे पास यही आखिरी मौका था सर को मनाने के लिए. मैंने एक बार पिंकी की तरफ देखा वह सर झुका कर दूसरी तरफ देख रही थी।

मैं अपना मुंह धीरे से सर के कानों के पास ले गई और सर से धीरे से बोली- सर प्लीज आज मुझे और मेरी सहेली को जाने दीजिए कल परीक्षा के बीच में मैं आप से मिलूंगी. आपका जो मन करेगा, मेरे साथ कर लेना। प्लीज सर …

सर भी शायद मेरी मज़बूरी समझ गए। वो भी मेरी कुंवारी सील तोड़ना चाहते थे, इसी के लालच में वो भी कुछ शांत हो गए. फिर उन्होंने कहा- ठीक है लेकिन अभी के लिए तो मुझे शान्त कर दो। इतना बोल कर उन्होंने मुझे नीचे बैठा दिया और फिर से मेरे मुंह में अपना लंड डालकर मेरे मुँह को चोदने लगे।

दो-दो कमसिन जवानियों की अमरुद टटोल टटोलकर वह बहुत गर्म हो चुके थे इसलिए वह मेरे मुँह की गर्मी को बर्दाश्त नहीं कर पाए और जल्दी ही उन्होंने अपना जूस मेरे मुंह में छोड़ना शुरू कर दिया। मैं जल्दी-जल्दी उनका रस पी गई ताकि पिंकी को ज्यादा कुछ मालूम न पड़े।

कहानी का अंतिम भाग शेष है.
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