मन पर जोर कहाँ किसी का

कैसे हैं आप सब दोस्तों? आज बहुत दिनों बाद मन किया कि कुछ लिखूँ… वही सब कुछ जिसका तस्सव्वुर दिल में है… मन और मन में उठती इच्छाएँ पर कोई महावत नहीं होता… इच्छाएँ स्वयं सारथी होती है जो अपनी गति अपने ही हिसाब से नियंत्रित करती हैं.
कभी कभी ऐसा लगता है कि हम अपनी ही इच्छाओं के हाथों की कठपुतलियाँ हैं… गुलाम हैं… उठती इच्छाएँ हम से वो सब करवा लेती हैं जो वे चाहती हैं, हमारे विवेक को ज्ञानशून्य बना देती हैं… और हम अपनी ही इच्छाओं के हाथों के खिलौने बन कर रह जाते हैं… इन इच्छाओं की पूर्ति में साधन बनता है हमारा शरीर, और उसके अंग-अंग में इच्छाएँ अपनी चाहत का बीज बो देती हैं.

यही बीज उत्तेजना का पौधा बन अपनी निर्माता इच्छाओं को जैसे आमंत्रित करता है, और इच्छाएँ उस पर सवार हो उसे वासना का फलता-फूलता वृक्ष बना देती हैं जिस पर बैठ वह स्वयं इतराती हैं… इठलाती हैं और अपनी ही जैसी अन्य इच्छाओं से आलिंगनमय होती हैं और लहराती, इठलाती, इतराती ये इच्छाएँ एक बहकते-दहकते तूफ़ान का रूप जब ले लेती है जब एक बदन दूसरे के साथ एकाकार होने की मुरव्वत को तहे दिल से पूर्ण कर लेना चाहता है.

मेरी व्यक्तिगत इच्छाएँ जब मुझ पर हावी हुई, तो मैंने हाथ बढ़ा कर मेरी इच्छाओं की पूर्ति का इज़हार तुमसे किया… क्योंकि में उस वक्त पूरी तरह से अपनी ही अनियंत्रित इच्छाओं की गिरफ्त में था और किसी भी तरीके उनको नियंत्रित करना चाहता था.
तुमने मेरे इज़हार के साथ मेरी महत्वाकांक्षाओं को भी सम्मान दिया क्योंकि तुम तो पावक थी पर अपनी ही दाहक इच्छाओं की गुलाम थी और तुम भी उन पर अपना नियंत्रण पा लेना चाहती थी.

इसे नियंत्रण में लेने के लिए हम कई बार अप्राकृतिक संसाधनों का उपयोग एवं अपने ही बदन के प्रत्यंगों की उत्तेजनाओं से खेलते हैं परन्तु इतना साहस नहीं जुटा पाते कि हम किसी ऐसे हमसफ़र को तलाशें जो हमारी इन अनियंत्रित भावनाओं के तूफ़ान को अपने में समेट ले.

शर्मो हया के चलते हम स्वयं अपनी ही उत्तेजना से लड़ते रहते हैं और ना जाने कितनी बिमारियों के, डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं जबकि इलाज हमें मालूम है पर मर्यादा आड़े आ जाती है.

तुमको जब मैंने अपने लबों से पहली बार लबबद्ध किया, तो तुमने अपने लबों के चुम्बन से मुझे मेरी ही जैसी तुम्हारी हसरतों का अहसास करवाया.
तुम्हें बाँहों में लेकर जब मैंने तुम्हें नख से शीश तक अपने चुम्बनों से सराबोर किया तो तुम्हारी वो अनियंत्रित हसरतें तुम्हारे लबों पर जैसे सिसक उठी, ऐसा लगा कि तुम्हारे ये प्यासे लब एक अरसे से तड़प-तरस रहे थे.
तुम्हें जैसे अपनी तमाम आरजुओं मेरे साथ सम्पूर्ण करने का अहसास हो चला था क्योंकि मेरी बाँहों की जकड़न एवं तुम्हारे तरसते लबों को चूमते हुए मेरे अहसास, मेरी अनियंत्रित इच्छाओं की व्यथा को तुमने महसूस कर लिया था, तुम्हारी आँखों में अपने बदन को सम्पूर्णता देने का निवेदन जैसे मेरे मन ने पढ़ लिया था.

तुम्हारे दुग्ध कलशों के मुख पर उत्तेजित चूचुकों को जब मैंने अपने बदन को छुआया, जैसे उन्हें एक सशक्त स्पर्श की आस थी… जैसे वे स्वयं पर मेरी उंगलियों का दबाव पाना चाहते थे… तुम्हारी ब्रा और उस पर तुम्हारी कुर्ती के बावजूद भी उनका उभार मुझे उन्हें छू लेने को बाध्य कर रहा था.

जब मैंने तुम्हारी कुर्ती से तुम्हारे बदन को आज़ाद किया तो उस काली ब्रा में छुपे तुम्हारे गोरे गोरे उरोज की आरजुओं को मैंने अपने ओठों में कैद कर लिया… तुम्हारी ब्रा के हुक को जब मैंने अपने ओठों में भींचकर उचकाया, तो ब्रा को तुम्हारे उरोजों ने जैसे एकदम उचका सा दिया… शायद कई वर्षों से वे तुम्हारी ब्रा में कैद होकर कसमसा रहे थे… जब उन उभारों को स्पर्श मिलना चाहिए था, तुमने जैसे उनकी आरजुओं को कैद कर लिया था… अब तुम्हारे वे स्वतंत्र हुए उरोज मेरे स्पर्श को बेताब थे.
मैंने तुम्हारे उन इठलाते चूचुकों को अपने ओठों से बहुत-बहुत चूसा… उरोजों की गोलाइयों को में अपने मुख में लेकर चूसता चला गया, तुम्हारे उरोज जैसे बरसों से चुम्बनों को तरस रहे थे… तुम्हारा एक उरोज मेरी हथेलियों के दबाव से मदमस्त था एवं उसके शीश पर कड़क चूचुक मेरी उंगलियो में खेल रहा था, दूसरा उरोज मेरे मुखमर्दन का भरपूर आनन्द उठा रहा था.

आज वर्षों बाद जैसे उन्होंने तुम्हारे बदन पर होने के अपने महत्व को महसूस किया था… तुमने बहुत कोशिश की लेकिन तुम्हारे स्पर्श की सम्पूर्णता पा लेने की हसरत को लेकर मैं अनजान नहीं था… अपनी ही उत्तेजना के वशीभूत हो तुमने अपनी पतली उँगलियों को मेरी पैंट की ज़िप के ऊपर से फिराकर उत्तेजित लण्ड के कड़कपन को महसूस किया.

मुझे याद है, ऐसे वक्त तुम्हारे तन-बदन को मेरे स्पर्श की ज्वलंत दरकार महसूस होती है और उसका अहसास तुम धीरे-धीरे से जिप को नीचे खिसकाते हुए मेरे लण्ड को पैंट से आज़ाद करने की कोशिश करती हो. लेकिन यकायक नहीं…

मेरे चुम्बनों की बरसात तुम्हारे उरोजों से होते हुए तुम्हारे कमसिन बदन के जर्रे जर्रे पर जैसे ही बरसती है… तुम्हारे हाथों का स्पर्श मेरे कड़क हो चुके फनफनाते लण्ड को कपड़ों से आज़ाद कर देता है…
तुम्हारी चूचियों को चूसते चूसते और अपनी हथेलियों से दबा-दबाकर जब मैं तुम्हारी आँखों में देखता हूँ तो उनमें तुम्हारे बदन में झूम-झूम कर बरस रही वासना की पावक ज्वाला को शांत कर देने का जैसे निवेदन सा पाता हूँ, और उसकी के वशीभूत हो, मेरी उंगलियाँ तुम्हारी पेंटी में प्रविष्ट हो तुम्हारी मखमली चूत पर जैसे मृदंग बजाती हैं.

चूत की गहन उत्तेजना को मैं अपने जेहन में महसूस करता हूँ और विभोर होकर तुम्हारे तन-बदन को सम्पूर्ण कपड़ों से आज़ाद कर उसे पूर्णतः नग्न कर चूत की ज्वाला को अपने चुम्बनों से शांत करने की असीम चेष्टा करता हूँ, पर तुम्हारा मन मयूर का नृत्य जब तुम्हारी उँगलियों से उतर कर मेरे लण्ड से खेलने लगता है, तो तन में तुम्हारे नग्न बदन के कोर कोर पर अपने चुम्बनों का रस बरसाने का मन करता है…

मेरे नग्न बदन पर विभिन्न मुद्राओं में अठखेलियाँ करता मेरा लण्ड तुम्हें कितना रिझाता है ना… और तुम उसे नीचे से ऊपर तक अपनी आरजुओं के वशीभूत हो निहारटी चली जाती हो… उसे बांसुरी की तरह अपनी उँगलियों से सहला-सहलाकर मेरे ओठों पर उत्तेजना के स्वर का स्पंदन महसूस करती हो… और यही स्पंदन तुम्हारे ओठों पर खेलने लगता है, जब मेरे ओंठ तुम्हारी चूत पर अपनी चूषण की मिठास का तुम्हें अहसास कराते हैं…

तुम्हारा तन उस वक्त पूरी तरह अपनी ही अँगड़ाइयों की गिरफ्त में होकर तुम्हें तुम्हारे नितम्बों पर उछल-उछल लेने को मजबूर कर देता है… तुम्हारे ऊपर लेटे मेरे बदन का गर्म स्पर्श एवं तुम्हारी चूत पर टकराता मेरा लण्ड तुम्हें चुदासी बनाकर मदहोश कर देता है…
मेरे लण्ड को अपने लबों का स्पर्श देकर तुम उसे उत्तेजना की पराकष्ठा पर लिए चली जाती हो… जैसे उसे तुम अत्यधिक लम्बा एवं कड़क बनाकर अपनी चुदासी चूत की अंतहीन हसरत पूरी कर देना चाहती हो…
मेरे लण्ड का शिखर जब तुम्हारी चूत के अग्र भाग से टकराता है, तो तुम्हारे लबों से खूब-खूब चुद लेने की हसरतों से नवाजे शब्द लण्ड को तुम्हारे उरोज… तुम्हारे चूचुक और-और स्पर्श कर उन्हें उत्तेजना की पराकाष्ठा तक ले जाने को प्रेरित करते हैं… तुम्हारे बदन पर ऊपर से नीचे तक फिसलता यह लण्ड… तुम्हारे नितम्बों के बीच से फिसलकर तुम्हारी पनियाली हो चुकी चूत से टकरा कर उसे सहलाता मेरा ये लण्ड… जब तुम उसे खूब चूस चूसकर उसके नीचे के भाग को अपने ओठों से चूस चूसकर जैसे ये जता देना चाहती हो कि:

ए मेरी चाहत और मेरे प्रेम के प्रतीक… मेरे प्यारे-दुलारे लण्ड… मैं तुम्हें इतना मुखमर्दन कर कड़क बना बनाकर तुमसे यह चाहत रखती हूँ कि तुम मेरे उरोजों पर इठलाते चूचुकों को छू कर, मेरे नितम्बों से होकर मेरी चूत के अग्रभाग को सहलाते हुए उसमे लहराते हुए घुस जाओ… मेरी चूत को चोद-चोद कर इतना पानी-पानी कर दो कि उसकी ज्वलनशील चुदास और खूब-खूब चुदने की हसरतें हर वक्त तुमसे चुदने के लिए कायम रहें…
ए लण्ड… तुम अपनी ही सहभागिनी अपनी चूत को अपना आलिंगन देकर उसके मुख में स्वयं को पेल-पेलकर इतनी चुदासी बनाये रखो कि चूत का मन मयूर और मेरी हसरतें हमेशा तुमसे चुदने को बेताब रहे!
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