खानदानी चुदक्कड!

मैं रविश, उम्र 21 साल. यह कहानी मैं, मेरा मौसेरा भाई सोमराज और हमारे परिवार की है. सोमराज और मैं हम-उम्र हैं. मेरा जन्मदिन 18 जुन को है, और उसका 21 जुन. कहानी की शुरुआत में हमारे परिवार के बारे में थोड़ा बता दूँ. मेरे पापा रोहन और सोमराज के पिता महेश की दोस्ती कॉलेज से ही

कॉलेज के बाद उन दोनों ने मिलकर उपनगरीय ईलाके में एक दुकान खड़ा किया. धीरे-धीरे व्यवसाय में काफी लाभ भी हुआ. इसी बीच पापा की शादि मेरी मम्मी नीरु से हुई. बारात में महेशजी भी थे. वहीं उनका परिचय मेरी मौसी सिम्मी से हुई, और दोनो में प्यार हो गया. बस, फिर क्या था, मम्मी-पापा के शादी के आठ महिने बाद मेरी मौसी सिम्मी और महेशजी की भी शादि हो गयी.

कुछ साल बाद हमारे दुकान के करीब ही पापा और मौसाजी ने अगल-बगल दो घर ख़रीदे. हमारी परवरीश वहीं हुई. यह हो गयी हमारे इतिहास की बात. अब कहानी पर आते हैं, जो कि तीन साल पुरानी है. मेरी और सोमराज की अठारहवीं साल-गिरह आने वाली थी. जुन का महीना था, हमारा सिनियर सेकंडरी परीक्षा समाप्त हो चुका था.

मैं और सोमराज कहीं घुमने जाना चाहते थे, पर घरवालों ने बता दिया हमारे जनमदिन के बाद पुरा परिवार बगलवाले शहर में दो दिन ख़ुब मस्ती करेंगे. हम उसी ख़ुशी में हमारे जनमदिन तक इंतज़ार करते रहे. हम दोनों की जन्मदिन घर पर ही धुमधाम से मनाई गई, पहले मेरी और दो दिन बाद सोमराज की.

फिर पापा ने हमें बताया कि अगले दिन यानी शुक्रवार को हम शहर जाने वालें हैं. सोमराज और मैं दोनों बहुत ख़ुश हुए. शुक्रवार सुबह हम छह लोग एक गाड़ी में शहर के लिए निकले. दो घंटे के अंदर हम शहर पहुँच गए. मौसाजी ने पहले ही होटल में रूम बुक कर रखा था. हम रुम में दाख़िल हुए. कमरा बहुत बड़ा था और एक ही कमरे में दो किंग-साईज़ बिस्तर थे.

“क्या हम सब एक ही कमरे में रहनेवाले हैं?” मैंने पापा से पुछा.

पापा ने हामी भरी.

“तब तो बहुत मज़ा आएगा!” सोमराज ने कहा.

मौसाजी बोले, “जल्दी सारे नहा कर तैयार हो जाओ. फिर ब्रेकफास्ट करके हम वाटर पार्क जाएंगे.”

यह सुनकर मैं और सोमराज ख़ुशी से झुम उठे. नहाने के बाद हम कमरे में लॉक करके निकल आए और ब्रेकफास्ट किया. फिर सारा दिन वाटर पार्क के पानी में मस्ती की और बहुत सारे राईड्स का आनंद लिया. शाम को जब हम होटल में वापस लौटे तो हम बहुत थक चुके थे. एक-एक करके सबने फ्रेश होकर कपड़े बदल लिए.

इधर पापा ने रूम सर्विस से कॉफी और पिज्जा मंगवाया. हम सब बिस्तर में फैल कर बैठ गए और मोबाईल में दिनभर के खिंचे गए फोटो एक-दुसरे को दिखाने लगे. कुछ ही देर में पीज्ज़ा और कॉफी आ गई. दिनभर के थकान के बाद हम सब ने बड़े चाव से पेट पूजा की.

खाने के बाद मौसाजी ने कहा, “आज का दिन बहुत अच्छा बीता. अब वक्त आ गया है कि जिस काम के लिए हम यहाँ आए हैं, उसकी शुरुआत की जाए. रवीश और सोमराज, तुम दोनों ध्यान से सुनो. इस काम के मुख्य पात्र तुम दोनों ही तो हो.“

मैंने और सोमराज ने एक-दुसरे के तरफ देखा, फिर सोमराज ने पुछा, “कौनसा काम, कैसे पात्र?” मम्मी और मौसी मुँह छुपाकर हँस रहीं थी.

मौसाजी बोल रहे थे, “तुम दोनों अब बड़े हो गये हो, 18 साल की उम्र हो चुकी है. यह स्वाभाविक है कि तुम लोग हमें बताते नहीं हो, पर नारी शरीर के तरफ आकर्षण तो होता ही होगा…”

“नारी शरीर के तरफ आकर्षण, मतलब?” सोमराज बोला.

मम्मी और मौसी अब हँसकर लोट-पोट होने लगे. किसी तरह हँसी सम्भालकर मम्मी ने सोमराज से कहा, “जवान लड़की ताड़ने में मज़ा आता है?” अब सोमराज ने शरमाकर हामी भरी.

“और तुझे?” मौसी ने मुझे हल्का-सा कोह्नी मार कर पुछा. मैंने बड़ी गम्भीरता के साथ कहा, “वो तो स्वाभाविक है न…” मम्मी और मौसी फिर से हँस पड़ीं.

फिर मम्मी बोली, “अच्छा रवि, यह बता, जब लड़कियों देखता है, तब उनके साथ क्या करने का मन करता है?”

मैने मम्मी से नज़र चुराते हुए कहा, “यह कैसा सवाल है, मम्मी…?”

अब सोमराज थोड़ा चिढ़कर बोला, “यह कैसे सवाल कर रहे हैं आपलोग… चल रवि, हम थोड़ा घूमकर आते हैं.“

मौसाजी ने बड़े प्यार से कहा, “अरे सोमु, गुस्सा क्यों होते हो? तुम दोनो अब जवान हो गये हो. इस उम्र में रोहन और मैं भी लड़कियाँ ताड़ते थे. लड़की बहुत सुन्दर हो तो उसे छुने का, चुमने का, यहाँतक कि उसके साथ सैक्स करने का मन भी करता था.“

सैक्स का नाम मौसाजी के मुँह से सुनकर मैं और सोमराज एक-दुसरे का चेहरा ताकने लगे. फिर मम्मी और मौसी बिस्तर से उतरकर कुर्सी खींचकर हमारे सामने बैठ गईं. मौसी बोली, “अच्छा, तुम दोनो ने सैक्स के विडिओज़ तो देखे ही होंगे, है ना ?” मम्मी बोली, “और मुट्ठ भी मारते हो, क्यों सही कहा ना?”

हम दोनो मारे शरम के पानी-पानी हो गये, डर लगा कि कहीं इनलोगों ने हमें विडियो देखते या मुट्ठ मारते देख तो नहीं लिया. मम्मी जैसे मेरे मन के सवाल को पढ़ कर बोली, “डरो मत, हमने यूँही अंदाज़े से यह सारी बातें कही.“ पापा इतने देर से चुप थे, अब वो बोले, “आमतौर पर हर लड़का ऐसे विडियोज़ देखता और मुट्ठ मारता है, कुछ लड़कियाँ भी करती हैं.“

इतने में सोमराज बौख़लाकर बोला, “यह चल क्या रहा है, कोई साफ-साफ बताएगा?” पापा बोले, “बेटा सोमराज, आज रात तुम दोनो को सैक्स की शिक्षा दी जाएगी. हम चारों मिल कर प्रेक्टिकल क्लास करवाके यह समझायेंगे कि सैक्स अय्याशी नही, बल्कि एक कला है.“ हम दोनों हक्के-बक्के रह गए. थोड़ा संभलकर मैने कहा, “आपलोग साथ मिलकर करेंगे. शरम नही आएगी आपलोगों को?”

मम्मी मुस्कुराकर बोली, “नहीं बेटा, हम चारों कई सालों से एक साथ सैक्स कर रहें हैं. यह हमारे लिए आम बात है.“ अब पापा ने कहा, “बेटा, यह तब की बात है जब मेरी शादी नीरु से और महेश की शादी सिम्मी से हुई. महेश और मैं लंगोटिया यार थे. ज़हिर है, हम सारी बातें एक-दुसरे को बताते थे, सैक्स-वाली बातें और इच्छाएँ भी.“

“उनमे से एक इच्छा हमारी यह भी थी कि एक-दुसरे के बीवियों के साथ सोएँ,” मौसाजी बोले. “और आप दोनों मान गये?” मैंने मम्मी और मौसी की तरफ देखकर पुछा. वो एक-दुसरे के तरफ देखकर मुस्कुराई, फिर मौसी बोली, “थोड़ा वक्त लगा,पर अंत में हमें भी लगा कि इसमें मज़ा आएगा. फिर हम राज़ी हो गए.”

“पर, अपने परिवार के लोगों के साथ कोई ऐसा करता है क्या?” सोमराज बोला. “हर्ज़ ही क्या है, अगर सबकी रज़ामंदी हो तो?” मम्मी बोली. सोमराज और मैंने एकबार फिर एक-दुसरे के तरफ देखा. फिर मैं बोला, “पर हमें शरम आएगी.“ मम्मी और मौसी ने फुसफुसाकर आपस में कुछ बात किया. फिर अचानक उन्होनें अपने-अपने कमीज़ उतार लिए.

इससे पहले कि हम समझ पाते कि हो क्या रहा है, उन्होनें एक-दुसरे की ब्रा भी उतार दिए. अपने सामने दो जोड़ी बड़े-बड़े चुँचियाँ देखकर हमारे मुँह खुले के खुले रह गए. मौसी ने जान-बुझकर इठलाते हुए अंगड़ाई लेने का नाटक किया. सोमराज का पता नहीं, पर इस दृष्य ने मेरी लुल्ली में हलचल मचा दी.

अब लगने लगा कि इतने दिनों से जो मम्मी और मौसी की कल्पना करके मुट्ठ मारा करता था, वह कल्पना आज सच होने वाली है. “हाँ, तो शरम के बारे में क्या कह रहा था तू?” मम्मी ने पुछा. “काहेका शरम, दीदी, जिसतरह टकटकी लगाए, मुँह फाड़े ये दोनो हमें देख रहे हैं, इनकी आँखों में तो बस हवस ही दिखाई दे रही है…” मौसी खिलखिलाकर बोली.

अब हमें ध्यान आया, और साथ में शरम भी. हम ने तुरंत अपनी नज़रें झुका ली. उधर पापा और मौसाजी भी अपने-अपने कपड़े उतारने लगे, और जल्द ही सिर्फ चड्डी पहनकर खड़े दिखे. उनको देखकर मौसी बोली, “अरे, यह दोनों तो हमसे आगे निकल गये.“ “चल, इनकी बराबरी करते हैं,” कहकर मम्मी उठी और अपना शलवार उतारने लगी. मौसी ने भी वही किया.

पापा और मौसाजी अपने-अपने बीवीऔं को ले जाकर साथ वाले बिस्तर पर अगल-बगल बैठ गए. मौसाजी ने धीरे से पुछा, “लड़कों का क्या होगा ?” पापा के सामने कार्पेट पर घुटनों के बल बैठकर मम्मी बोली, “बैठकर हमारा खेल देखने दो… चले आयेंगें, जब रहा नहीं जाएगा.“ अब मम्मी नें पापा की और मौसी ने मौसाजी की चड्डी उतार दी.

सोमराज ने नीची आवाज़ में कहा, “यार रवि, यह सब क्या है ? किसे पता था कि हमारी घर की औरतें भी ऐसी हो सकती हैं !” मैंने मुस्कुराकर कहा, “पर सोमु, ऐसा मौका तो किस्मतवालों को ही मिलती है. अब बोल, करना क्या है ?” “बात सही है तेरी. हम वाकई किस्मतवाले हैं. एक बात बता, इनमें से कौन ज्यादा सैक्सी लग रही है?” सोमराज ने पुछा.

मैंने मम्मी और मौसी के तरफ देखा. दोनों औरतें सिर्फ पैंटी पहने कार्पेट पर बैठकर पापा और मौसैजी का लंड चुस रहीं थी. मम्मी की पैंटी लाल और मौसी की पैंटी ज़ैब्रा जैसी सफेद-काली धारियों वाली थी. दोनों के चुत्तड़ फैले दिख रहे थे और क़मर के पास हल्की चरबी के परत भी दिख रही थी, पर दोनों कमाल लग रहीं थी.

“सैक्सी तो दोनों हैं… एक बिरयानी है तो दुसरी चीली-चीकन,” मैने कहा, “चल वक्त बरबाद न करके नाश्ता शुरु करते हैं.“ सोमराज हंसकर अपने शर्ट का बटन खोलने लगा. मैने भी अपने कपड़े उतारना शुरु किया. कुछ ही पलों में हम सिर्फ चड्डी और बनियान में थे. धीर कदमों से हम बगल वाले बिस्तर के तरफ बढ़े.

हमारे आने का आहट सुनकर मम्मी और मौसी लंड चुसना छोड़कर हमारे तरफ मुड़कर मुस्कुराईं. “आ गई अक्ल!” मौसी ने छेड़ते हुए कहा, “थोड़ी देर पहले अक्ल आती तो तुम दोनों की चुम्मी ले कर लंड चुसना शुरु करते. अब ठहरो, हम दोनों मूँह धो कर आते हैं.“ हम शर्मा कर मुस्कुराए. वो दोनों बाथरुम की तरफ चले गए.

सोमराज ने मौसाजी से पुछा, “पापा, आप और मैसाजी को बुरा तो नहीं लगेगा कि हम आपके बीवियों के साथ…” पापा और मौसाजी हँस पड़े. मौसाजी बोले, “नहीं बच्चों, अगर हमें कोई आपत्ति होती तो तुम दोनों को यहाँ लाते ही क्यों?” “और वैसे भी,” पापा बोले, “यह पहली बार नहीं है कि हमारी बीवियाँ हमारे सिवा किसी और से चुदेंगीं.“

“मतलब इससे पहले भी मम्मी और मौसी किसी और से …” मैने आश्चर्यचकित होकर कहा. “हाँ, पर वो सब कहानी बाद में,” बाथरुम से निकलकर मौसी बोली, “अब पास आओ किस्स से शुरुआत करते हैं.“ मम्मी भी उनके पास आ कर खड़ी हो गई और बोली, “आज से तुम दोनों को बच्चों की तरह नहीं, बल्कि पार्टनर की तरह चुमेंगें.“ “”

फिर मम्मी ने मुझे और मौसी ने सोमराज को चुमना शुरु किया. पहले सिर्फ होंठ, फिर जीभ का भी भरपुर इस्तमाल होने लगा. हमारे सीने से उनकी चूँचियाँ बराबर रगड़ी जा रही थी. कुछ देर बाद मौसी मुझे और मम्मी सौमराज को चुमने लगी. मज़ा इतना आया कि हम दोनों के लंड तनकर हमारी चड्डियों को फाड़ने की कोशिश करने लगे.

चुम्मा-चाटी ख़तम होने पर मौसी ने कहा, “दोनो हमारे तरफ पीठ करके खड़े हो जाओ.“ हमने अच्छे बच्चों की तरह वही किया. मौसी मेरे पीछे और मम्मी सोमराज के पीछे घुटने मुड़कर बैठ गई. प्यार से उन्होनें हमारी चड्डियाँ उतारी और हमारी चुत्तड़ों को सहलाने लगीं. हमने अपने चुत्तड़ों पर हल्की थपेड़ें और चुम्बन भी महसूस किया.

हम ने ख़ुद ही अपने-अपने बनियान उतार लिए. “अब तुम दोनो इधर मुड़ो,” मम्मी ने आदेश दिया. हमने भी तुरंत आदेश का पालन किया. दोनों औरतें घुटनो पर हमारे सामने बैठी थीं, और हमारे लंड ठीक उनके चेहरे के सामने थे. पहली बार अपने बेटों का जवान लंड देखने की ख़ुशी उनके चेहरे पर झलक रही थी.

मम्मी ने मेरी और मौसी ने सोमराज का लंड को पहले चुमा, फिर मज़े से चुसने लगी. हाथों से हमारे टट्टों से भी खेलने लगे दोनो. पापा और मौसाजी बिस्तर पर बैठकर यह तमाशा देख रहे थे. दोनो औरतों ने हम दोनो के लंड और टट्टों का स्वाद बारी-बारी से जी भर कर लिया, फिर दोनो उठ खड़ी हुईं. मौसी बोली, “अब तुम दोनो हमारे चूत का स्वाद लोगे.“

दोनो औरतें पीठ के बल बिस्तर पर अगल-बगल लेट गईं और अपनी-अपनी पैंटियाँ उतार लीं. पापा और मौसाजी उन पेंटियों को उठाकर सूंघने लगे. यह मुझे बड़ा अज़ीब लगा, पर इस बारे में सोचने की फुर्सत नहीं थी मेरे पास. सोमराज पहले ही मम्मी की चूत पर अपनी नाक और मूँह रगड़ना शुरु कर चुका था.

मैंने मौसी की चुत की कमान सम्भाली. चूत पहले से ही गीली थी, और मैंने जीभ के सहारे उसे और भी उत्तेजीत कर दिया. मौसी मेरे बालों को मुट्ठी में पकड़कर मेरे चेहरे को अपने चूत पर दबाने लगी और मैं भी कभी उनकी चूत के अंदर, कभी भगांकुर पर अपनी जीभ फैराकर उनको सुख दे रहा था. “”

इतने में सोमराज ने इशारा किया कि हम जगह बदल लें, और तुरंत मैं मम्मी की चूत चाटने लग गया और सोमराज मौसी की. काम वही करना था, पर चूत की बू और स्वाद थोड़े अलग थे. मम्मी मेरे सर को चूत पर दबाने लगी और मैं जोश के साथ उनकी योनी और भगांकुर की सेवा करने लगा.

दोनों औरतों को चूत-चटाई का भरपुर मज़ा लेते देख पापा और मौसाजी भी खेल में शामिल हो गए और अपने-अपने लंड एक दुसरे की बीवियों के मूँह में डाल दिए. यह पहली बार था कि परिवार के सारे सदस्य एक साथ काम-क्रीड़ा में शामिल हुए थे. कुछ समय के लिए वक्त रुक-सा गया – सोमराज और मैं योनी की सेवा में समर्पित थे, और हमारी घर की औरतें लंड की सेवा में.

काफी समय तक मज़ा लेने के बाद मोसी बोली, “चलो, अब दुसरे माले का मज़ा लो.“ यह सुनकर सोमराज मुस्कुराकर ऊपर के तरफ चढ़ गया और मोसी की चुँचियों को चाटने, चुसने और मसलने लगा. “रवि, तुझे भी यही करने का मन कर रहा होगा न?“ मम्मी ने कहा. मैने उनके चूत से मूँह उठाकर हामी भरी. “तो, चला आ न!“ मम्मी ने हँसकर कहा.

मैं भी जल्दी से उनके सीने के पास चला गया और काम शुरु कर दिया. कुछ समय बाद मौसाजी की आवाज़ सुनाई दी, “चलो असली खेल शुरु करते हैं.“ सोमराज और मैं उठ खड़े हुए. हमारे मेहनत का फल दिखने लगा था – दोनो औरतों के निप्पल्स एक दम कड़क हो चुके थे और चूत से रिसते काम-रस की चमक दिख रही थी.

पापा ने दोनों औरतों को घोड़ी बनने का आदेश दिया. मम्मी और मौसी उठ कर अपने घुटनों और हाथों के बल बिस्तर पर डॉगीस्टाइल में तैयार हो गईं. मौसाजी मौसी के पीछे और पापा मम्मी के पीछे घुटने मोड़ कर खड़े हुए. “अब संभोग का कार्यक्रम शुरु होगा,” पापा ने कहा, “ध्यान से देखो बच्चों, और सीखो.“

लगभग एक ही साथ पापा और मौसाजी ने अपने-अपने पत्नियों के चूत में लंड डाल दिया. चुदाई शुरु हुई और कुछ क्षणों में ही मिलन की गति काफी तेज़ हो गई. औरतें अपनी कोह्नी के बल शरीर को सम्भाले हुए थे. मेरा हाथ अनायास ही मेरे लंड को मसलने लगा, पर सोमराज ने आगे बढ़कर अपना लंड मम्मी के मूँह में डाल दिया. “”

उसके द्वारा दिखाई गई राह पर चलकर मैंने भी अपना लंड मौसी के मूँह मे घुसा दिया. बिना कोई आपत्ति के वो दोनो हमारे लंड चुसते-चुसते चुदाई का आनन्द लेने लगे. चार-पाँच मिनट बाद पापा और मौसाजी ने चोदना बंद किया और हमें पास बुलाया. “अब तुम दोनो सम्भोग करोगे,” मौसाजी ने कहा.

पापा ने कहा, “नीरु और सिम्मी, तुम दोनों तय करो कि इनकी पहली चुदाई अपने माँ के साथ होगी, या मौसी के साथ.“ डॉगीस्टाईल पॅज़िशन में रहकर मम्मी और मौसी एक स्वर में बोली, “पहली चुदाई माँ के साथ ही होना चाहिए.“ मैं और सोमराज तुरंत अपने-अपने माताऔं के पीछे घुटने मोड़ कर खड़े हो गए.

मैंने थोड़े हिचकिचाके मम्मी की चूतड़ पर अपना हाथ फेरा. मन मे लड्डु फुटने लगे. काफी समय से मम्मी की चुतड़ को सहलाना चाहता था मैं. सपना साकार होने के इस पल में मुझसे रहा नहीं गया और मैंने जल्दी से मम्मी की चूत में अपना लंड डाल दिया. मैं आँखें बद करके उस पल का मज़ा लेने लगा. ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे जीवन सार्थक हो गया.

“अंदर डाल तो दिया, रवि, अब थोड़ी हरकत भी तो कर!” मम्मी बोली. मम्मी की आवाज़ से मैं वर्तमान में वापस आया और आँखें खोली. मैंने देखा कि सोमराज अपनी माँ को घपा-घप पेल रहा था. उसके झटकों से मौसी आगे-पीछे डोल रही थी. मैंने भी धीरे-धीरे चोदना शुरु किया और सम्भोग का आनंद लेने लगा.

मम्मी की योनी ने जैसे मेरे लंड को अंदर तक घेर रखा था, लंड में एक मुलायम गर्मी महसूस कर रहा था मैं. पर सोमराज जिस गति से मोसी को चोद रहा था उससे प्रतित हो रहा था कि प्रलय बस आने ही वाला है. उसके गति से प्रभावित हो कर मैने भी अपनी गति बढ़ा दी. अब मम्मी भी चुतड़ पीछे कर-कर के खेल में भाग लेने लगी.

मैंने मम्मी की चुतड़ को दोनो गरफ से कसके पकड़ लिया और जोंरदार झटके देने लगा, पर कुछ ही पलों में मेरे लंड के सीरे में एक अजींब सा एहसास हुआ और मेरा वीर्य स्खलीत हो गया. मैंने झटके मारना बंद कर दिया. मम्मी को अपनी योनी में वीर्य का एहसास हो गया होगा, वो मुड़कर पैर फैलाकर बिस्तर पर बैठ गयी.

मैने देखा कि उनके चूत से मेरा सफेद वीर्य रीस कर बाहर आ रहा था. मम्मी ने मुझे पुचकारा, फिर उंगली से वह कामरस मिश्रित वीर्य उठाकर चखा. स्वाद शायद अच्छा लगा, वह मेरी तरफ देखकर मुस्कुराई और एक बार फिर अपनी चूत से वह रस उंगली में उठाकर अपनी चुदती हुई बहन को चखा दिया. मेरा रस चखकर मौसी मेरी तरफ मुड़कर मुस्कुराई.

इतने में सोमराज ने मौसी की योनी में वीर्यपात कर दिया. वह बुरी तरह से हाँफ रहा था. मैंने उसकी पीठ थप-थपाकर बिस्तर पर बैठाया. अब मौसी ने भी मम्मी की भाँति उंगली से वीर्य उठाकर पहले ख़ुद स्वाद लिया, फिर मम्मी को चखाया. दोनों औरतें ख़ुश दिख रही थी. “दोनो लड़कों ने अच्छा प्रदर्शन किया,” सोमराज और मेरा पीठ थपथपाकर पापा बोले.

“अब लड़कों के पापाओं की बारी है,” मम्मी बोली. “तुम दोनो थकी नहीं?” मौसाजी ने पूछा. “थका कर बताओ तो जाने…” इठलाकर मौसी बोली. फिर क्या था, मौसाजी और पापा बिस्तर पर पीठ के बल लेट गए और औरतें अपनी-अपनी पतियों के लंड चुसने लगी. थोड़े ही देर में दोनो लंड तन गए.

अब मम्मी मौसाजी के और मौसी पापा के लौड़े के उपर काउ-गर्ल पॉज़शन में चढ़ कर बैठ गईं. बिस्तर बहुत मजबुत था, फिर भी जब दोनों औरतें कुद-कुदकर चुदाई करवाने लगीं तब हमें लगा कि जैसे भूकम्प आ गया हो. करीब बीस मिनट तक हम दोनों के मम्मी-पापा पॉज़ीशन और पार्टनर बदल-बदलकर चुदाई का खेल खेलते रहे.

जब वह रुके, तो चारों ही बिलकुल थक चुके थे. चारों एक-दुसरे से लिपटकर लेट गए. “तुम दोनों की पहली प्रेक्टिकल क्लास ख़त्म हुई,” मम्मी ने हाँफते हुए कहा, “अब घंटाभर घूम-फिरकर आओ, तब तक हम चारों थोड़ा सो लेते हैं.“ सोमराज और मैंने अपने-अपने कपड़े पहने और निकल गए. मौसाजी ने अंदर से दरवाज़ा लॉक कर दिया.