जीतने के लिए चूत का सहारा-1

हाई फ्रेंड्स, कैसे है आप सब! उम्मीद करती हूँ मजे में ही होंगे. ऐसे ही मजे लेते रहिए और मजे देते रहिए।

मैं सुहानी आप सबके लिए अपनी अगली कॉलेज गर्ल सेक्स स्टोरी लेकर हाजिर हूँ।

उम्मीद है अब तक आप लोगो ने मेरी पिछली कहानियाँ तो पढ़ ही ली होंगी। जो नए पाठक पहली बार मेरी कहानी पढ़ रहे हैं वो मेरे बारे में अधिक जानने के लिए मेरी पिछली कहानियाँ जरूर पढ़ें।

मुझे मेरी पिछली कहानी
सहेली ने बजवाई मेरी चूत और गांड
के लिए बहुत सारे ईमेल आए और मैंने कोशिश की सबको रिप्लाई कर पाऊँ. फिर भी अगर कोई रह गया हो तो मैं उसके लिए क्षमा चाहती हूँ।

मैं आज फिर आप सब के लिए अपनी एक और सेक्सी और सच्ची कहनी ले कर हाजिर हूँ।

अब सेक्स मेरे लिए कोई आश्चर्य की चीज़ नहीं रह गयी थी. मैंने और मेरे बॉयफ्रेंड करन ने कई बार सेक्स किया होगा. पर आज की कहानी करन की नहीं है।
तो चलिये आज की कहानी पे आगे बढ़ते हैं।

हर साल की तरह हमारे कॉलेज ने विश्वविद्यालय स्तर की क्विज़ प्रतियोगिता में भाग लिया था. जिसमें मैं और मेरे साथ कॉलेज के 5 होनहार छात्र भी थे।

मैं इस प्रतियोगिता में सिर्फ इस वजह से थी क्योंकि एक तो टीम में 1 सदस्य कम पड़ रहा था. ऊपर से मैं इतनी खूबसूरत हूँ और सारे मर्द टीचर की पसंदीदा हूँ।
अब वो बेचारे भी क्या करें हैं तो इंसान ही, खूबसूरत और जवान लड़की देख के फिसल जाते हैं।

हमारे कॉलेज में इतने बुद्धिमान छात्र थे. फिर भी हमारा कॉलेज हर साल ये प्रतियोगिता हारता आ रहा था. हर साल सेमीफ़ाइनल में आकर हमारा कॉलेज हार जाता था।

कॉलेज के डाइरेक्टर ने कहा “चाहे इस बार कुछ भी करना पड़े, इस बार हमें ही ये प्रतियोगिता जीतनी है, वरना देख लेना।
टीम का लीडर भी मुझे ही चुना गया क्योंकि बाकी सब पढ़ाकू बच्चे थे. उन्हें लीडर बनने का कोई लालच नहीं था. मुझे मेरे खूबसूरत होने की वजह से ही चुना गया था बस।

इस बार टीम को जिताने की पूरी ज़िम्मेदारी मेरे कंधों पे थी।

हमारी टीम को एक हफ्ते तक चलने वाली इस प्रतियोगिता के लिए दूसरे शहर के कॉलेज जाना था।
हम सब ने अपना समान पैक किया और चल पड़े कॉलेज की गाड़ी से।

जब हम दूसरे कॉलेज पहुंचे तो सभी टीम का अच्छे से रहने खाने का इंतजाम किया हुआ था।
अगले दिन प्रतियोगिता शुरू हुई और हमें शुरू से ही बहुत कठिनाई होने लगी प्रतियोगिता में बने रहने के लिए।

हम लोग जैसे तैसे बने तो रहे. पर हमारे पॉइंट बिल्कुल बाहर होने के करीब थे। हालांकि मेरी टीम बहुत मेहनत कर रही थी पर फिर भी पिछड़ती जा रही थी।

मैं हर दिन की रिपोर्ट अपने कॉलेज के सर को देती थी।
उन्होंने कहा- चाहे कुछ भी हो जाए, कुछ भी करना पड़े. सुहानी इस बार कॉलेज की इज्ज़त तुम और तुम्हारी टीम के हाथ में है।
मैंने कहा- सर, हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे और जीत के रहेंगे. ये मेरा वादा है।

मैंने वादा तो कर लिया था पर मुक़ाबला हर दिन के साथ बहुत मुश्किल होता जा रहा था. हमें अपनी हार दिखने भी लगी थी।

मेरी टीम में 3 लड़के थे और मुझे मिला के 3 लड़कियां थी। प्रतियोगिता दोपहर तक हो जाती थी और शाम को हम उनके कॉलेज कैम्पस में घूम लेते थे थोड़ा बहुत।

मेरी सहेली निधि ने मुझे बताया- सुहानी, दूसरी टीम का कप्तान तुझे पूछ रहा था।
मैंने पूछा- क्यूँ पूछ रहा था, क्या हुआ?

उसने कहा- कैसे बात कर रही है सुहानी चौधरी? तू हमारे कॉलेज की सबसे कॉलेज की सबसे खूबसूरत लड़की है. शायद तुझसे फ्रेंड्शिप करने को ही पूछ रहा होगा।
मैंने कहा- छोड़ ना हमें क्या! कौनसा यहीं बसना है? अगले हफ्ते वापस चले जाना है।

निधि बोली- बात तो कर ले फिर भी! क्या पता कुछ इंपोर्टेंट सवाल या सुझाव ही दे दे।

फिर मैंने सोचा कि मिल ही लेती हूँ. क्या पता कुछ फायदा ही मिल जाये प्रतियोगिता में।

मुझे ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ी और वो सामने से आता हुआ दिख गया।
निधि ने कहा- देख हमारी तरफ ही आ रहा है.
मैंने कहा- हम्म … तू एक काम कर. टीम के पास वापस जा के तैयारी कर. मैं इसे शीशे में उतार के आती हूँ।

निधि के जाते ही वो मेरे पास आ गया और मुझे ‘हाय’ कहा।
मैंने भी उसको ‘हाय’ किया और फिर हम दोनों टहलते हुए बात करने लगे।

उस लड़के का नाम सुनील था। उसने मुझे बधाई दी और कहा- आपकी टीम बहुत अच्छा खेल रही है।
मैंने भी कहा- थैंक यू, पर क्या करें … इतना अच्छा खेलने के बाद भी हम हारते जा रहे हैं आपकी टीम से।
उसने कहा- हाँ, अब क्या करें? जीतेगा तो कोई एक ही। रोज़ एक टीम बाहर होती जा रही है।

मैंने मायूस होते हुए कहा- हाँ शायद कल हमारी टीम भी बाहर हो जाए।
उसने कहा- मतलब कल के बाद आप वापस चले जाओगे?
मैंने मजबूरी सी दिखाते हुए कहा- जाना तो नहीं चाहती. पर हारे तो जाना ही पड़ेगा। कोई बात नहीं, चलो मैं चलती हूँ, कल की तयारी करनी है।

जैसे ही मैं जाने लगी उसने आवाज लगाई- एक मिनट सुनो सुहानी जी!
तो मैं पलटी और कहा- हाँ बोलो?
उसने कहा- एक बात कहूँ, बुरा तो नहीं मानोगी?
मैंने कहा- नहीं बोलो, मैं किसी का बुरा नहीं मानती।

उसने कहा- क्या आप मेरे साथ कॉफी पीने चलोगी?
मुझे समझते हुए देर नहीं लगी कि लड़का मेरी अदाओं पे मर मिटा है।

पर फिर भी मैंने शरीफ लड़कियों वाले बहाने से करते हुए प्यार से मना कर दिया, कहा- आज तो टाइम नहीं है, और कल के बाद मैं नहीं रहूंगी इस कॉलेज में.
और फिर पलट के जाने लगी।

उसने फिर से कहा- और अगर कल आपकी टीम बाहर नहीं हुई तो चलोगी?
मैंने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा- अगर कल मेरी टीम बाहर नहीं हुई तो मैं पिलाऊँगी तुम्हें कॉफी।

सुनील ने कहा- अगर आप चाहो तो कल आप टीम से बाहर नहीं होगी।
मैंने शक से और उत्सुकतावश पूछा- वो कैसे?
सुनील ने जवाब दिया- मैं आपकी हेल्प कर सकता हूँ. बस मेरे इशारे समझते रहना और वही ऑप्शन बोल देना।

मैं कन्फ्यूज हो गयी थी इसलिए कुछ नहीं कहा और फिर अपनी टीम के पास आ गयी।
मैंने रात भर सोचा और सुबह तक उसकी मदद लेने का फैसला ले चुकी थी।

प्रतियोगिता में पहुँचते ही मैंने सुनील को इशारों में हामी भर दी।

वो जैसे जैसे उत्तर बता रहा था, मैं जवाब देती जा रही थी।

हमारी टीम ऊपर उठती चली गयी और बाकी टीम की परफॉर्मेंस कम हो गयी और किसी तरह से हमारी टीम जीत गयी.

उस दिन और दूसरे किसी कॉलेज की टीम बाहर हो गयी।
मेरी टीम के सदस्यों ने पूछा- क्या बात है! आज तो बहुत पढ़ के आयी हो तुम सुहानी?
और उन सब ने मुझे बधाई दी।

सुनील ने भी दूर से अपनी डेस्क से ही मुझे इशारों में बधाई दी।

प्रतियोगिता के बाद वो मेरे पास आया और मेरी टीम को बधाई दी।
हमने उसे शुक्रिया कहा और फिर मैंने निधि को इशारा किया। वो बाकी के सदस्यो को लेकर चली गयी।

सुनील ने कहा- तो कॉफी कहाँ पिला रही हो आप सुहानी जी?
मैं अपने वादे से नहीं मुकर सकती थी. हम दोनों एक कॉफी शॉप में कॉफी पीने चले गए।

वहाँ हम दोनों कॉफी पीते पीते बातें करने लगे।

थोड़ी देर में उसने इधर उधर बातें घुमाते हुए मुझे प्रपोज़ कर दिया गर्लफ्रेंड बनने के लिए।
मैंने प्यार से मना कर दिया और बोला- तुम्हारे ऑफर के लिए थैंक्स! पर मैं इन सब चक्करों में नहीं पड़ना चाहती. इसलिए नहीं बन सकती तुम्हारी गर्लफ्रेंड।

फिर हम प्रतियोगिता की बात करने लगे।
मैंने कहा- तुम तो हर साल जीत जाते हो. इस बार भी हमारी टीम को हरा के जीत जाओगे।
सुनील ने कहा- अगर तुम चाहो तो तुम जीत सकती हो इस बार।

मैंने खुश होते हुए पूछा- कैसे?
सुनील ने बोला- मैं जिताऊंगा तुम्हें।

मैंने आश्चर्य से पूछा- तुम मुझे क्यूँ जिताने लगे?
सुनील ने बोला बिना झिझक बोला- देखो सुहानी चौधरी, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. इतनी खूबसूरत हो कि पहली बार जब देखा तो मेरा दिल धक् से रह गया. मैं फैसला नहीं कर पाया कि मैं होश में हूँ या कोई सपना देख रहा हूँ।

मैं अपनी तारीफ सुन के खुश होती जा रही थी और सुनील बोलता जा रहा था।

फिर आगे वो बोला- देखो फुल टाइम गर्लफ्रेंड तो आपको बनना है नहीं. तो क्यूँ ना आप मेरी मदद कर दो? और मैं आपकी।
मैंने पूछा- कैसे?
उसने कहा- देखो बुरा मत मानना, पर मेरी और मेरे दोस्तो की शर्त लगी है कि मैं आपको पटा के दिखाऊँ। अब मुझे शर्त हारना बिल्कुल बर्दाश्त नहीं है। तो जब तक हम सब यहाँ है तब तक के लिए आप मेरी असली न सही, नकली ही गर्लफ्रेंड बन जाइए. मेरे दोस्तो को दिखाने के लिए प्लीज प्लीज।

मैंने थोड़ा सोचा कि यार अगर मैं इसका इस्तेमाल करूँ और ये मेरा! और नतीजा यह कि हमारा कॉलेज ये प्रतियोगिता जीत जाता है तो इसमें क्या बुराई है।
आखिर मैंने हाँ कर दी और वो खुश हो गया।

हमारी डील हुई कि वो और मैं उसके दोस्तों को दिखाने के लिए गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड बन जाते हैं. इसके बदले में वो मुझे प्रतियोगिता में सही उत्तर बता के हमें जिताएगा।

दिन में प्रतियोगिता होती और शाम को सब घूमते रहते इधर उधर या फिर अगले दिन की तैयारी में लग जाते।

एक दिन शाम को ऐसे ही टहलते हुए सुनील ने मुझसे मेरे बॉयफ्रेंड के बारे में पूछा।
तो मैंने करन के बारे में बता दिया।

फिर ऐसे ही बात करते हुए उसने मुझसे पूछा- क्या तुम दोनों ने कुछ किया है?
उस वक़्त मैंने ये बात किसी तरह टाल दी।

फिर उसने अपनी और पुरानी गर्लफ्रेंड की बातें बताई और बिना झिझक उसके साथ किए सेक्स की बात भी बताई।

मुझे मन में शक होने लगा कि सुनील मेरे साथ सेक्स करना चाहता है। और थोड़ी देर में ही मेरा शक यकीन में बदल गया।
वो मुझे रात को मिलने को बोलने लगा।
मैंने बहाना सा करके टालने की कोशिश की पर मन तो मेरा भी करने सी लगा था।

उसने बोला- यार, मैं तुम्हें प्रतियोगिता जिताऊंगा, तुम मेरे साथ सेक्स कर लो, सेमीफाइनल जीतने के लिए अलग और फ़ाइनल जिताने के लिए अलग।

मेरे तो मानो कान सुन्न हो गए ये सुन के।
मैंने भड़क के कहा- दिमाग खराब है तुम्हारा, क्या बकवास कर रहे हो? अभी तुम्हारी कम्प्लेंट कर दूँगी तो जेल जाओगे सीधा।

आपकी सुहानी चौधरी।
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