जेठ भाभी के नाजायज रिश्ते सेक्स के लिए

नमस्कार दोस्तो! आज जो कहानी मैं आप लोगों को बताने जा रही हूं, यह मेरे और मेरे जेठ जी के नाजायज संबंध के बारे में है
इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई वह सब मैं इस फॅमिली सेक्स पोर्न कहानी में बताऊंगी.

मेरा नाम विनीता है.
मैं 32 साल की विवाहित महिला हूं और मैं दिल्ली में अपने पति राकेश के साथ रहती हूं.

मेरे पति रेलवे में गुड्स गार्ड की नौकरी करते हैं और हम दोनों की लव मैरिज हुई है.

राकेश और मैं कॉलेज के दिनों से ही एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे और शादी करना चाहते थे.
लेकिन राकेश के पास कोई नौकरी नहीं थी. एक दिन बुरी खबर के साथ अच्छी खबर भी आई.

असल में बुरी खबर यह थी कि राकेश के पिता गुजर गए थे जो कि रेलवे में नौकरी करते थे और उनके गुजरने के बाद वो नौकरी राकेश को मिली क्योंकि उनके बड़े भाई (मेरे जेठ जी) ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे.

तो राकेश के पिता के गुजरने के एक साल बाद हम दोनों शादी के पवित्र बंधन में बंध गए.
उसके बाद से हम शहर में रहने लगे और फिर राकेश मुझे जो चोदता था, मैं बता नहीं सकती.

दिन हो या फिर रात राकेश हर वक्त मूड में रहता था और एक बार राकेश मूड में आ जाता था तो मुझे भी मूड में आने में देर नहीं लगती थी.
राकेश ने मुझे दो साल खूब चोदा था और मेरे दोनों छेदों को खोल दिया था.

मेरी फिगर की साइज शादी से पहले जैसे थी उससे कहीं ज्यादा उभर गई थी और साथ ही मेरी प्यास भी बढ़ गई थी.
लेकिन अब समय के साथ राकेश ठंडा पड़ने लगा था और उसके पीछे की वजह यह थी कि उसका पानी जल्दी निकल जाता था.

अपनी चूत की अधूरी प्यास को फिर मैं अपनी उंगलियों की मदद से पूरी किया करती थी.
इसके अलावा भी मैं कभी बैंगन, कभी ककड़ी, कभी खीरा ऐसी ऐसी चीजों से काम चला रही थी.

कुछ महीनों तक मैं खुद ही अपना मन बहलाती रही और अश्लील वीडियो देखकर अपने आप को संतुष्ट करती रही.

एक दिन जब मैं घर पर खाना बना रही थी तो अचानक से मेरे जेठ जी का कॉल आ गया.
मैंने उनको पहचाना नहीं तो फिर उन्होंने अपना नाम बताया और कहा- राकेश का बड़ा भाई बोल रहा हूं.

वो राकेश के बारे में पूछने लगे तो मैंने बताया- वो काम पर गए हैं.
बातों बातों में फिर वो पूछ बैठे- इस बार दशहरे के त्यौहार पर तो आ रहे हो न?
मैंने कहा- क्या पता जेठ जी, अभी कुछ कह नहीं सकती, दशहरा आने में तीन सप्ताह बाकी हैं, हो सकता है इस बार हम आ जाएं.

जेठ जी- चलो कोई बात नहीं, अगर आओगे तो मुझे बहुत खुशी होगी, चलो अभी कॉल रखता हूं, कुछ काम है.
मैं बोली- ठीक है जेठ जी, अपना ख्याल रखना.

रात को जब राकेश आए तो मैंने उनसे सारी बता कही तो फिर वो कहने लगी कि अजय का कॉल तो मेरे पास आता ही रहता है, वो हर बार गांव आने की बात करता रहता है.

मैं बोली- तो इस दशहरे पर में गांव चलते हैं ना … वैसे भी काफ़ी समय से हम दोनों गांव नहीं गए.
राकेश- अरे यार, अब तुम जानती ही हो रेलवे की नौकरी में छुट्टी कम मिलती है.

मैं- तो एक काम करो, उन्हें कानपुर से दिल्ली कुछ दिनों के लिए बुला लो, कम से कम कुछ दिन साथ तो रहेंगे.
राकेश- हां तुम ठीक कहती हो, मैं कल ही भैया से बात करता हूं.

राकेश ने अगले दिन जेठ जी से बात करने के बाद मुझे कॉल करके बताया कि जेठ जी तीन दिन बाद हमारे घर आ रहे हैं.
और मुझे उनके लिए एक बंद पड़े कमरे को साफ करने के लिए कह दिया.

मैंने जेठ जी के लिए कमरा साफ कर दिया.
फिर वो आ गए. मैंने पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया. फिर उनसे चाय पानी का पूछा.

दोस्तो, मैं आपको बता दूं कि मेरे जेठ जी की शादी हो चुकी थी लेकिन बहुत पहले उनकी बीवी किसी दूसरे मर्द के साथ भाग गई थी.
उसके बाद उन्होंने दूसरी शादी नहीं की.

फिर मैंने जेठ जी को उनका कमरा दिखा दिया. मैंने राकेश को उनके आने की खबर दी और फिर खाना बनाने लगी. इतने में वो नहाने के लिए चले गए.

उस समय शाम के करीब चार बज रहे थे और मैं खाने की टेबल पर उनके लिए खाना लगा रही थी. वो नहाकर आ गए और मैं खाना परोसने लगी.

वो बोले- तुम नहीं खाओगी, सिर्फ मेरे लिए क्यों परोस रही हो?
मैं बोली- मैं नहाने के बाद खाऊंगी. आप खा लो, जो और कुछ चाहिए तो बोल दीजिएगा.
वो बोले- नहीं, तुम नहा लो. मैं खुद से ले लूंगा.

फिर मैं नहाने के लिए चली गई.
वापस आई तो देखा कि वो खाना खा चुके थे और बर्तन धो रहे थे.

मैं जल्दी से उनके पास गई और उनको बर्तन धोने से रोका और कहा- मैं धो लूंगी, आप रहने दो.

वो बोले- कोई बात नहीं, ये तो मेरा रोज का ही काम है.
फिर वो अपने कमरे में जाने लगे.

अंदर जाकर उन्होंने मुझे आवाज दी- अरे विनिता, जरा सुनो … इधर आओ.

फिर मैं रूम में गई तो बोले- ये लो … तुम्हारे लिए कुछ लाया था.
मैंने देखा तो वो दो पायल थीं.

मैं काफी खुश हो गई और बोली- लेकिन आपको क्या जरूरत थी ये सब लाने की?
वो बोले- ये तो हमारा रिवाज है, जेठ बहुरिया को कुछ न कुछ तोहफे में दे.

मैं बोली- ओह, मुझे नहीं पता था. आपको कुछ और चाहिए क्या?
वो बोले- चाहिए तो था … लेकिन मैं राकेश को कह दूंगा. तुम तो जाओ.
मैं- ठीक है जेठ जी!

मैं कमरे से चली गई.
उसके बाद रात में राकेश आया और जेठ जी से मिला.
वो दोनों दारू पीते हुए बात कर रहे थे और मैं उनके लिए चखना और रात का खाना भी बना रही थी.

जब मैं चखना देने पहुंची तो राकेश ने मुझे कहा- खाना बन गया क्या?
मैं- हां, बस दाल बनने में देर है.
राकेश- कोई बात नहीं, मेरे लिए खाना लगा दो, भईया कुछ देर बाद खाएंगे.

मैं- अच्छा, ठीक है … मैं खाना लगा देती हूं.
मैंने राकेश के लिए खाना लगा दिया और फिर राकेश हाथ-मुंह धो कर आया और खाने लगा.

फिर खाना खाकर वो सोने चला गया.
फिर मैंने जेठ जी को खाने के लिए पूछा.
उनके कहने पर मैंने खाना लगा दिया.

जेठ जी खाना खाकर सो गए. मैं बर्तन धोने लगी.

बर्तन धोने के बाद मैंने फ्रिज से ककड़ी निकाल ली जो राकेश सलाद के लिए लाया था. मैंने एक ककड़ी उसमें से बचा ली थी.

मैंने सुबह से एक बार भी चूत में उंगली नहीं की थी. इसलिए मैंने ककड़ी ली और फिर उस पर थूक लगाकर उसे चूत में लेने लगी.
मुझे बहुत सुकून मिल रहा था.

किचन में ही मैं नाइटी उठाकर बैठी थी, मैंने ध्यान नहीं दिया कि घर में आज कोई मेहमान भी है.
मैं तेजी से चूत में ककड़ी को अंदर बाहर कर रही थी.

इतना मजा आ रहा था कि मेरा पेशाब निकलने वाला था.

फिर मैं जल्दी से उठी और बाहर वाली नाली पर जाकर बैठ गई.
जोरदार फव्वारे के साथ मैं पेशाब करने लगी.

मेरा बदन पूरा पसीने से गीला हो चुका था. मैंने पेशाब कर लिया लेकिन चूत की गर्मी अभी भी शांत नहीं हुई थी.
फिर मैंने चूत में उंगली से चोदना शुरू किया.

बेफिक्र होकर मैं अपनी चूत में उंगली किए जा रही थी.
मेरी हल्की सिसकारियां भी निकल रही थीं- ईईईस्स्स … अअअह्ह्ह्ह … ऊह्ह्ह … अम्म … आह्ह करते हुए मैं चूत को मजा देने में लगी थी.

करते करते मेरी चूत से रस का फव्वारा निकला और तब जाकर मुझे राहत मिली.
जब मैं उठकर वापस मुड़ी तो मेरे जेठ जी अपने मूसल जैसे लंड को लुंगी से बाहर निकाले खड़े थे और उनका तना हुआ लौड़ा उनके हाथ में था जिसे वो सहला रहे थे.

उनको देखकर मैं डर गई.
फिर वो मेरी ओर बढ़ने लगे.
मैं वहां जाने लगी तो उन्होंने मुझे हाथ लगाकर रोक लिया और बोले- कहां जा रही हो? पहले धो तो लो? या फिर मैं ही धो दूं?

ये कहते हुए उन्होंने मेरी गांड को पकड़ लिया और मैं जल्दी से बाथरूम में घुस गई और सोचने लगी- ये क्या कर दिया मैंने … कितनी पागल हूं मैं … ध्यान रखना चाहिए था. जेठ जी पता नहीं क्या सोच रहे होंगे मेरे बारे में!

चूत को मैं धो चुकी थी लेकिन कुछ देर अंदर ही रही.
उसके बाद मैं जब बाहर आई तो जेठ जी वहां से जा चुके थे.
फिर मैं भी चुपके से अपने कमरे में जाकर सो गई.

अगली सुबह मैं 4 बजे उठी और फिर नहा धोकर खाना बनाने लगी.
मैं रसोई में थी और ये सोच रही थी कि जेठ जी से कैसे नज़रें मिलाऊंगी.

कुछ देर बाद वो उठ गए थे और बाथरूम में थे.
जब वो बाहर आए तो मेरी तरफ ही आने लगे.
मैं घबराने लगी कि पता नहीं क्यो बोलेंगे.

आते ही उन्होंने मुझे पीछे से दबोच लिया तो मैं बोली- ये क्या कर रहे हैं आप जेठ जी, मुझे छोड़िए आप!

मेरे कान में फुसफुसाते हुए वो अपनी ठरकी आवाज में बोले- तुम्हें चाहिए है न? तो मैं हूं न … तुम्हें मजा देने के लिए!

ये कहकर वो मेरी चूचियों को दबाने लगे.
वो मेरी गांड से ऐसे सटकर खड़े थे कि उनका कठोर लंड मुझे मेरी गांड पर महसूस हो रहा था.
मगर तभी राकेश ने आवाज दे दी और जेठ जी ने मुझे छोड़ दिया.

वो रसोई से चले गए.

तब तक दिन निकल आया था और मैंने उन दोनों को चाय बनाकर दे दी.
फिर सुबह का नाश्ता करते हुए राकेश कहने लगे- आज हम खरीदारी करने जाएँगे.

जेठ जी बोले- आज तुम्हारी छुट्टी है क्या?
राकेश- नहीं, आज मुझे रात की ड्यूटी पर जाना है.
ये सुनकर जेठ जी के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान फैल गयी जिसका मतलब मैं समझ गई थी.

फिर सब ने नाश्ता खत्म किया और हम लोग खरीदारी करने के लिए निकल गए.
वहां पर लगभग आधा दिन लग गया और हम लोग दोपहर को वापस आए.
आने के बाद मैंने थकी हालत में ही दोपहर का खाना बनाया और फिर सब खाना खाकर आराम करने लगे.

2-3 घंटे की नींद निकली तब तक शाम के 5 बज चुके थे.
राकेश अपनी ड्यूटी की तैयारी करने लगे.

6 बजे वो ड्यूटी के लिए निकल गए.

उसके बाद जेठ जी नहाने के लिए चले गए.
जब वो नहाकर निकले तो उन्होंने सफेद धोती लपेट रखी थी जो कि काफी पतली थी.

बदन गीला होने की वजह से जांघों से धोती चपक गई थी और उस झीनी सी धोती में जेठ जी का काला मोटा लम्बा लटकता हुआ लंड मुझे नजर आ रहा था.
वो काफी देर तक मेरे सामने धोती में यहां से वहां घूमते रहे और उनका लंड मेरे सामने झूलता हुआ दिखता रहा.

जेठ जी की मर्दानगी देखकर मेरी चूत में भी चीटियां सी रेगने लगी थीं.
लेकिन मैंने कभी उनके साथ सेक्स संबंध की बात नहीं सोची थी.

फिर उन्होंने बनियान के ऊपर कुर्ता भी पहन लिया.

मैंने उनके लिए खाना लगा दिया.
वो बेड पर बैठकर खाना खाने लगे.

जब मैं उनके लिए रसोई से गर्म रोटियां ला रही थी तो मैंने देखा कि उनकी धोती जांघ पर से हटी हुई थी और थाली के पीछे उनका आधा सोया हुआ सा काला नाग लटक कर बेड की चादर पर आराम कर रहा था.

जेठ जी के लंड को नंगा देखकर मैं तो वहीं सहम सी गई.
हालांकि उनको उस अवस्था में देखना मेरे अंदर रोमांच पैदा कर रहा था.

मेरी नजर वहीं पर अटकी हुई थी कि एकदम से उन्होंने मुझे देखा और मैंने नजर नीचे कर और रोटी लाकर रख दी.

मैंने जाते हुए उनका चेहरा देखा तो वो हल्के से नीचे ही नीचे मुस्करा रहे थे.
उनकी मंशा तो सवेरे के सवेरे ही मैं समझ चुकी थी.

अब मेरी धड़कनें बढ़ी हुई थीं कि आज रात राकेश भी नहीं है, कहीं आज मेरी चूत इनके मूसल की शिकार न हो जाए.

खैर, वो खाना खाकर बर्तन किचन में ले आए और चुपचाप वहां से चले गए और टीवी देखने लगे.
मैंने जब तक बर्तन साफ किए वो सामने से मेरी गांड को घूरते रहे और जांघें खोले बेड पर पड़े रहे.

जब भी मैं नीची नजर से उनको देखने की कोशिश करती तो वो अपने लंड को सहलाकर खुजला देते और मुझे नजर हटानी पड़ती.

बर्तन धोकर मैंने बाकी का काम भी निपटा लिया और फिर उनको पूछा कि किसी चीज की जरूरत तो नहीं.
उन्होंने मना कर दिया और मैं फिर नहाने की तैयारी करने लगी.

मैं बाथरूम में गई और कुंडी लगाकर नहाने लगी.
मैंने अपनी साड़ी उतार ली और ब्लाउज और पेटीकोट खोलकर ब्रा पैंटी में खड़ी होकर बालों को खोलने लगी.

इतने में ही फोन की घंटी की आवाज मुझे सुनाई दी.
फोन जेठ जी का था और उन्होंने ही उठाया.

फिर कुछ पल बाद ही वो बाथरूम का दरवाजा खटखटाते हुए बोले- बहुरिया, राकेश का फोन है, तुमसे बतियाना चाहता है.
मैं बोली- जेठ जी, मैं नहा रही हूं, थोड़ी देर में आती हूं.

वो बोले- उ थोड़ा जल्दी में है, कह रहा है कि अभी बात कराइये.
मैंने बाथरूम का दरवाजा हल्का सा खोला और फोन लेने के लिए हाथ बाहर निकाल दिया.

जेठ जी ने पहले तो मेरे हाथ को पकड़ा और उसे सहला दिया.
मैं नंगी थी और मैं एकदम से सहम गई.

फिर अचानक उन्होंने मेरे हाथ में फोन रख दिया.
मैंने राकेश से बात की तो पता चला कि वो मेरी तबियत के बारे में पूछ रहे थे.
तो मैंने कहा कि मैं तो ठीक हूं.

फिर उन्होंने फोन रख दिया और मैंने हाथ बाहर निकालकर फोन जेठ जी को दे दिया.
मैं थोड़ी हैरान थी कि राकेश ने अचानक ऐसा क्यों पूछा!

अब फोन लेते हुए भी उन्होंने मेरे हाथ को पकड़ कर सहला दिया.
मेरे मन में अब दुविधा सी होने लगी.

एक पराये मर्द के स्पर्श से मेरी चूत में बेचैनी सी हो रही थी.
दूसरी ओर मैं उनके लंड को देखकर डरी सी हुई थी और कभी दूसरे मर्द से चुदी भी नहीं थी.

फिर ये सब सोचना छोड़कर मैं बाथरूम के दरवाजे की कुंडी लगाने लगी लेकिन अब दरवाजा कुंडी पर सटने से पहले ही अटक जा रहा था.
मैंने काफी कोशिश की लेकिन फिर हाकर ऐसे ही नहाने लगी.

दरवाजा चोखट में ही फंसा हुआ था और मैंने सोचा कि पांच मिनट की ही तो बात है.

मैं ब्रा पैंटी उतार कर नंगी हो गई और नहाने लगी.
मेरा बदन पूरा गीला हो गया.
जब मेरा हाथ चूत पर पहुंचा तो मुझे सिहरन सी हुई और मैं चूत को पानी डाल डालकर रगड़ने लगी.

फिर मेरे हाथ मेरी चूचियों पर पहुंच गए और मैं उनको पानी डालकर रगड़ते हुए सहलाने लगी.
मेरी चूचियों में तनाव सा आने लगा.

तभी एकदम से बाथरूम का दरवाजा धक्के के साथ खुल गया.
मैंने सहमते हुए अपनी चूचियों को हाथों से छुपा लिया और दूसरी तरफ घूम गई.

फिर पीछे मुड़कर देखा तो जेठ जी केवल अंडरवियर में अंदर घुस आये थे.
उन्होंने दरवाजा ढालकर चौखट से सटा दिया और मुझे पीछे से आकर दबोच लिया.

घबराते हुए मैं बोली- ये आपने क्या किया? ये गलत कर रहे हैं आप जेठ जी? मैं आपकी बहुरिया हूं.

जेठ जी ने मेरी गांड पर अंडरवियर का उठाव सटाते हुए मुझे दीवार से लगा लिया और मेरे कान को अपने दांतों से काटते हुए बोले- खुद को कब तक तड़पते रहने दोगी विनीता … रात को मैं तुम्हारी प्यास देख चुका हूं. तुम प्यासी और मैं तुम्हारा कुंआ. आओ, हम दोनों एक दूसरे के काम आते हैं.

उन्होंने मुझे पलटकर अपनी तरफ घुमा लिया और अब उनके अंडरवियर में तन चुका उनका लंड सख्त होकर मेरी चूत से सट गया.
मेरे हाथ अभी भी मेरी चूचियों को छुपाए हुए थे.
मैं नजर नीचे ही रखे हुए थी.

उन्होंने मेरे चेहरे को ठुड्डी से ऊपर उठाया और मैंने उनका चेहरा देखा.
उनके चेहरे पर मेरी चुदाई करने की हवस साफ साफ झलक रही थी.
जैसे मैं कोई मुर्गी हूं और अब वो मुझे हलाल करने वाले हैं.

वो बोले- विनीता … मेरी आंखों में देखो!
मैंने उनकी आंखों में देखा.

वो बोले- शर्म छोड़ दो और अपने मन से पूछो कि वो क्या चाहता है.
मैंने फिर से चेहरा नीचे कर लिया.

उन्होंने झटके से मेरे हाथ हटा दिए और मेरी चूचियां उनके सामने नंगी हो गईं.

इसी पल उन्होंने मुझे अपने सीने से सटा लिया.

मेरी मोटी मोटी चूचियां उनकी छाती के निप्पलों से जाकर सट गईं.
मेरे अंदर करंट सा दौड़ गया.
मेरी नाक उनकी छाती के लगभग ऊपर ही थी और एक मर्द के जिस्म की खुशबू मेरी सांसों में घुलने लगी.

इतने में ही उन्होंने नीचे हाथ ले जाकर अपना अंडरवियर नीचे सरका दिया और उनका सख्त गर्म लंड मेरी गीली चूत से टकरा गया.
मैंने पीछे हटने लगी तो उन्होंने मुझे और कसकर पकड़ लिया.

उनका एक हाथ मेरे चूतड़ों पर आकर कस गया और आगे से उनके लंड को टोपा मेरी चूत पर सट गया.
लंड के मोटे टोपे की छुअन से चूत की फांकों में बेचैनी होने लगी.

ऐसा लगा जैसे मेरी चूत की फांकें अब खुलने लगी हों.
चूत चाहती थी कि लंड अंदर आ जाए लेकिन मेरे मन का डर मुझे आगे नहीं बढ़ने दे रहा था.

इतने में ही उन्होंने मुझे दीवार से सटा दिया और मेरी गर्दन को चूमने लगे. नीचे से वो बार बार मेरी चूत पर लंड को रगड़ने लगे.
फिर उन्होंने मेरे होंठों को अपने होंठों से कस लिया और उनको चूसने लगे.

मैं भी कब तक खुद को रोकती, नीचे से चूत पर रगड़ खाता लंड और ऊपर से उनके होंठों की गर्मी … मैंने भी अपने होंठ खोल दिए.

जैसे ही मैंने मुंह खोलकर उनके होंठों को चूसना शुरू किया, नीचे से मेरी चूत ने अपने होंठ खोल दिए और जेठ जी का लंड मेरी चूत में प्रवेश कर गया.
मोटा लंड मेरी चूत में आते ही चूत की बांछें खिल गईं और मैं जेठ जी से लिपट गई.

अब मैंने खुद को जेठ जी के हवाले कर दिया और उनका पूरा लंड मेरी चूत में उतर गया.
उन्होंने मेरी एक टांग उठाकर अपनी गांड पर रखवा ली और वहीं बाथरूम की दीवार से सटाकर मेरी चूत में धक्के मारने लगे.

अब हम दोनों लिपटम लिपटा एक दूसरे चूमने चाटने लगे.
ऐसा लग रहा था जैसे महीनों बाद सुख की बारिश हो रही है और मैं उसमें जमकर भीग रही हूं.

मैंने जेठ जी के होंठों को चूसते हुए अपनी चूत अच्छी तरह से उनके लिए खोल दी.

उनके हर धक्के के साथ मेरी गांड दीवार से टकरा जाती थी जिससे पट-पट की आवाज हो रही थी.
फिर कुछ देर चोदने के बाद उन्होंने मुझे पलटा लिया और दीवार की तरफ झुकाकर पीछे से मेरी चूत में लंड चढ़ा दिया.

अब उनके धक्के मेरी चूत की बखिया उधेड़ने लगे.
वो सालों से प्यासे थे और जोश किसी 21-22 साल के लड़के जैसा था.

मेरी चूत की दीवारें चरमराने लगीं थीं लेकिन सुख ऐसा था कि बस चुदती ही रहूं.

15 मिनट तक उन्होंने मुझे बाथरूम में नंगी को पेला और फिर मेरी चूत में खाली होकर हांफने लगे.
मैं भी दुखती चूत के साथ फिर नहाकर बाहर आ गई.

नहाने के बाद मैंने कपड़े पहने और फिर अपने कमरे में जाकर लेट गई.

रात के 11 बजे के करीब जेठ जी फिर मेरे कमरे में आ गए और मेरी नाइटी उठाकर मेरे ऊपर चढ़ गए.
आधे घंटे तक मेरी टांग उठाकर उन्होंने चूत मारी और फिर मेरे ऊपर लेटकर सो गए.
मैं भी उनके आगोश में लेटी रही और सुख को महसूस करती रही.

फिर बाद में उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने राकेश को फोन करके मेरी तबियत का बहाना बनाया था.
फिर उन्होंने खुद ही बाथरूम के दरवाजे और चौखट के बीच में कपड़ा फंसा दिया था जिससे दरवाजा बंद नहीं हुआ.
मुझे चोदने की ये सब उनकी ही चाल थी.

सुबह राकेश के आने से पहले हम दोनों अलग अलग हो गए.
उस दिन मेरा बदन जैसे फिर से खिल गया था, बहुत दिनों के बाद मैं इतनी तरोताजा महसूस कर रही थी.

जेठ जी के रहने तक मैंने अपनी चूत की सेवा उनको दी और बदले में उनके वीर्य का मेवा भी मेरी चूत को मिलता रहा.

दोस्तो, ये थी मेरी स्टोरी.