गुलाब की तीन पंखुड़ियां-30

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

गुलाब की तीन पंखुड़ियां-29

गुलाब की तीन पंखुड़ियां-31

गौरी की कसी खूबसूरत गुलाबी गांड मारने के लिए मैं मरा जा रहा हूँ। चूत का उदघाटन तो आराम से हो गया था पर उसे गांड के लिए तैयार करना जरा मुश्किल लग रहा है।

आइए अब शुरू करते हैं अगला सोपान
‘ये गांड मुझे दे दे गौरी!’

कामकला (सेक्स) विशेषज्ञों का मानना है कि गौरी गांड और काली चूत बहुत मजेदार होती है।

आप तो जानते ही हैं मधुर ने तो शादी के बाद 3 साल तक मुझे गांड देने के लिए तरसाया था। कल रात को मधुर की गांड (सॉरी महारानी) मारने का मेरा बहुत मन कर रहा था और कल तो मौक़ा भी था और दस्तूर भी था पर पता नहीं मधुर तो आजकल सेक्स में ज्यादा रूचि दिखाती ही नहीं है। अब गांड के लिए तो उसे मनाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा लगता है।

आप तो जानते ही हैं उसने तो इस सम्बन्ध में पहले से ही फतवा जारी कर रखा है कि जब तक वह गर्भवती नहीं हो जाती गांडबाज़ी बिलकुल बंद। अब उसके फरमान और फतवे के आगे मेरी क्या मजाल कि मैं कोई जोर जबरदस्ती करूँ?

जब से गौरी आई है उसकी कसी हुई खरबूजे जैसी खूबसूरत गुलाबी गांड मारने के लिए तो मैं जैसे मरा ही जा रहा हूँ। चूत रानी का उदघाटन तो थोड़ी मान-मनौव्वल से हो गया था पर उसे गांड देने के लिए तैयार करना जरा मुश्किल काम लग रहा है।

शारीरिक रूप से तो वह मेरा लंड पूरा अपनी गांड में लेने के लिए सक्षम है पर अभी मानसिक रूप से भी उसे पहले से तैयार करना बहुत जरूरी है।
और एक बार अगर उसने अपने आप को इसके लिए तैयार कर लिया तो बस उसके बाद तो वह खुद कहेगी ‘मेरे साजन इस महारानी की मुंह दिखाई और सेवा की रस्म भी पूरी कर दो ताकि मैं आपकी पूर्ण समर्पिता बन जाऊं।’

मुझे लगता है गौरी ने इन्टरनेट पर जरूर कामुक फ़िल्में देखी होंगी जिनमें तीनों छेदों का स्वाद बड़े खूबसूरत अंदाज़ में दिखाया जाता है।
जिस प्रकार गौरी ने हमारे प्रथम सम्भोग (गौरी प्रेम मिलन में) के समय संतुलित और सुन्दर शब्दों और भाषा का प्रयोग किया था, लगता है मधुर की बताई बातें उसे बहुत ही पसंद आई हैं और वह भी उन लम्हों को ठीक उसी प्रकार भोगना चाहती थी जैसे मधुर ने उसे अपनी आपबीती में बताया होगा।

और यह भी संभव है कि मधुर ने अपनी सुहागरात के साथ-साथ दूसरी सुहागरात (गांड देने) के बारे में भी जरूर बताया होगा कि उसने कितनी मिन्नतों के बाद मुझे अपनी गांड मारने दी थी।

मेरा लंड तो जैसे कह रहा है कि गुरु आज ही ठोक दो साली को। जितने सलीके से उसने चूत का उदघाटन करवाया है गांड के लिए भी राजी हो जाएगी तुम कोशिश तो करो।

हाँ यह बात तो सही है पर मेरा अनुभव कहता है अधिकतर महिलायें उतावलापन पसंद नहीं करती वे हर काम तसल्ली से करना पसंद करती है। चाहे प्रेम सम्बन्ध हों या कोई और काम। अब गांड के लिए उसे तैयार करने में थोड़ा समय तो जरूर लगेगा।
अब इंतज़ार के सिवा और क्या किया जा सकता है?
आज से ‘ये गांड मुझे दे दे गौरी’ अभियान गंभीरता पूर्वक शुरू करते हैं।

कंजूस पाठको! ‘आमीन’ तो बोल दो।

रात को इतने खूबसूरत प्रेमयुद्ध के बाद कितनी मजेदार गहरी नींद आती है आप तो जानते ही हैं। सुबह जब मैं बाथरूम से फ्रेश होकर आया तब तक सानिया चाय बनाकर ले आई थी। गौरी शायद नहा रही थी।

मैं और मधुर चाय पीने लगे। लगता है मधुर ने आज भी स्कूल से छुट्टी ले रखी है। पता नहीं मधुर आजकल किन चक्करों में लगी रहती है। पहले तो वह जरूरी काम होने या बीमार होने के बावजूद भी एक भी दिन स्कूल मिस नहीं किया करती थी पर आजकल पता नहीं वह स्कूल की तरफ से इतनी लापरवाह कैसे हो गई है?

“प्रेम वो ताईजी का फ़ोन आया था.”
“क … कौन ताईजी?”
“ओहो … मैं तुम्हारी मुंबई वाली मौसीजी की बात कर रही हूँ.” मेरे पुराने पाठक जानते हैं मधुर के ताऊजी मेरे भी मौसा लगते हैं और मुंबई में रहते हैं। मीनल उनकी बेटी है जो आजकल कनाडा में रह रही है।

“ओह … हाँ … अच्छा? फोन कब आया था? सब ठीक है ना?”
“वो ताऊ जी की तबियत आजकल खराब चल रही है। उनको हार्ट की दिक्कत हो गई है और ताईजी के भी घुटनों में दर्द रहता है। मैं सोच रही हूँ एक बार हम भी मिल आयें!”
“भई मेरे लिए तो अभी ऑफिस से छुट्टी लेना संभव नहीं हो पायेगा पर तुम हो आओ। मैं टिकट की व्यवस्था कर देता हूँ।”

“हम्म … आपको अकेले में 5-7 दिन दिक्कत तो होगी पर गौरी दिन में खाना और साफ़ सफाई आदि कर जाया करेगी।” मधुर कुछ सोचने लगी थी।
“हाँ … ठीक है।”
मैंने ‘ठीक है’ कह तो दिया था पर अब तो मुझे संदेह नहीं पूरा यकीन सा होने लगा है कि सब कुछ ठीक नहीं है। मधुर के दिमाग में कोई ना कोई तो खुराफात तो जरूर चल रही है। बेचारी गौरी का भगवान भला करे।

इतने में गौरी नहाकर बाथरूम से बाहर आई। उसके खुले भीगे बालों से पानी बूंदे टपक रही थी ऐसा लग रहा था जैसे शबनम (ओस) की बूँदें मोती बनकर टपक रही हों। आज उसने पजामा और हाफ बाजू की कमीज पहनी थी।
मुझे लगा इन 4-5 दिनों में उसके नितम्ब और भी ज्यादा खूबसूरत हो गए हैं।

“अरे गौरी! सानिया को साथ लगाकर काम ज़रा जल्दी निपटा ले हमें आज 2-3 काम करवाने हैं.”
“हओ” कहते हुए गौरी स्टडी रूम में चली गई। मैं तो उसके थिरकते नितम्बों और बल खाती कमर को ही देखता रह गया।
आज तो सुबह निराशा भरी ही रही थी।

शाम को जब मैं घर आया तो सानिया वापस चली गई थी। मैं और मधुर टीवी देख रहे थे। गौरी रसोई में खाना बना रही थी।
“प्रेम! यह सानिया है ना?”
“हम्म!”
“पता है क्या बोल रही थी?” मधुर ने हंसते हुए मेरी ओर देखा।

जब भी मधुर इस प्रकार रहस्यमई ढंग से बात करती है मुझे लगता है जरूर कोई बम फोड़ने वाली है। हे लिंग देव! कहीं लौड़े तो नहीं लगाने वाले हो?
“क … क्या?”
“बेचारी बहुत मासूम है.” कहकर मधुर कुछ पलों के लिए चुप हो गई।

मुझे मधुर की इस बात पर कई बार बहुत गुस्सा आता है वह एक बार में कभी पूरी बात नहीं बताती।

बाद में उसने बताया कि जब वह और गौरी बाज़ार से आये तो वह पहले तो दौड़ कर पानी लाई और फिर चाय का बनाने का पूछा। मैंने कहा कि चाय थोड़ी देर रुक कर पियेंगे। मैं थक गई हूँ पहले थोड़ा सुस्ता लेती हूँ। तो वह बोली आप थके हैं तो मैं आपके पैर दबा देती हूँ. कह कर मधुर हंसने लगी।

मुझे कुछ समझ नहीं आया। पता नहीं मधुर क्या बताना चाह रही है।

“फिर पता है सानिया ने क्या बोला?”
“क्या?”
वह बोली- दीदी … आप मुझे भी अपने पास यही रख लो। मैं रोज घर का सारा काम भी कर दूँगी और रात को आपके पैर भी दबा दिया करुँगी. फिर उसने बड़ी आशा भरी नज़रों से मेरी ओर देखा।

“फिर तुमने क्या जवाब दिया?” मैंने पूछा।
“मुझे उस पर दया सी भी आई। ये गरीब की बेटियाँ भी घर में कितने अभावों में पलकर बड़ी होती हैं। ज़रा सा प्यार मिल जाए तो अपनी जान भी कुर्बान कर देती हैं।”
“हाँ … सही कहा तुमने … पुरुष घर में निकम्मे बने बैठे रहते हैं। ये बेचारी दूसरों के घरों में जाकर मजदूरी करती हैं, घर का खर्च भी चलाती हैं, उन्हें दारु के पैसे भी देती हैं और उनकी मार भी खाती हैं।”

“मैंने उसे दिलासा दी कि जब भी तुम्हारा मन करे यहाँ आ जाया करो और जो भी चीज तुम्हें चाहिए या खाने का मन करे बता दिया करो।”
“हम्म … ठीक किया!”
“उसने एक और बात बोली.”
“क्या?”
उसने बोला कि ‘आप तोते दीदी को यह बात मत बताना?’ कह कर मधुर हंसने लगी।

मैं सोच रहा था यह साली गौरी तो अपने आप को पटरानी ही समझने लगी है। कोई बात नहीं पटरानी जी! जल्दी ही मेरा लैंडर-रोवर तुम्हारे ऑर्बिटर में प्रवेश करने ही वाला है।

इतने में गौरी रसोई से बाहर आकर बोली- दीदी! खाना तैयार है लगा दूं क्या?
“हाँ लगा दो।”

डिनर के बाद मधुर सोने जाने लगी तो गौरी रसोई के दरवाजे के पास खड़ी हुई थी।
उसने गौरी की ओर देखते हुए कहा- प्रेम! ये गौरी तो आजकल पढ़ाई लिखाई में बिलकुल ध्यान नहीं देती। बहुत मस्ती मार ली इसने, आज से इसकी नियमित पढ़ाई फिर से चालू करो।

गौरी तो बेचारी सकपका कर ही रह गई। वह अपनी किताबें आदि लेकर मेरे सामने आकर बैठ गई। उसने मुंह सा फुला लिया था। मेरी तोतापरी तो अब प्रेमग्रन्थ पढ़ने लगी है तो इसका मन अब इन किताबों में कहाँ लगेगा?

“गौरी आज बाज़ार से क्या-क्या खरीदा?”
“खरीदा कुछ नहीं बस वो मेला आधार काल्ड बनवाना था औल राशन काल्ड में नाम ठीक कलवाना था.”
“हो गया?”
“हओ”
“कहाँ है?”
“वो दीदी के पास है।”
पता नहीं यह आधार कार्ड और नाम का क्या चक्कर है।

“ओके … वो … गौरी अब तुम्हारे मुंहासों के क्या हाल हैं?
“ठीक हैं …”
“इन दिनों में तो तुमने ना तो वो दवाई पीयी ना लगाई?”
“हट! … आपने इन मुहासों के चक्कर में मुझ भोली-भाली लड़की को फंसा लिया.”
“वाह जी एक तो मुहासे ठीक करने की दवा दी और फिर हमें ही दोष दे रही हो?”
“और क्या?”
“गौरी प्लीज … पास आओ ना इतनी दूर क्यों बैठी हो?” मैंने मस्का लगाने की कोशिश की तो गौरी बोलो- आज पढ़ाना नहीं है क्या?
“अरे पढ़ाई लिखाई तो चलती रहेगी … थोड़ी देर बात करते हैं फिर पढ़ाई भी कर लेना.”
“बोलो?”

“गौरी तुमने कल तो कमाल का डांस किया … बहुत खूबसूरत डांस करती हो. कहाँ से सीखा?” मैं तो मर ही मिटा तुम्हारी कमर और नितम्बों के लटके झटकों पर!”
गौरी ने अविश्वास के साथ मेरी ओर ताका।
“सच्ची … तुम तो किसी प्रोफेशनल डांसर की तरह डांस करती हो।”

गौरी ने गर्वीली मुस्कान के साथ मेरी ओर देखा। मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने पास सोफे पर बैठा लिया। और उसे बांहों में भर कर उसके होंठों पर एक चुम्बन ले लिया।
गौरी अपने होंठों को पौंछते हुए थोड़ा सा हट कर बैठ गई।
“क्या हुआ?” मैंने पूछा।
“नहीं यह सब गलत है.”
“इसमें गलत क्या है?”
“अगल दीदी तो पता चल गया तो?”
“उसे बिना हमारे बताये कैसे पता चलेगा?”
“उन्हें पता चले या ना चले लेकिन यह सब गलत तो है ही ना? दीदी मेले ऊपर तित्ता विस्वास तलती है?”

भेनचोद अब यह क्या नया नाटक शुरू कर दिया गौरी ने। कल तक तो सब कुछ ठीक-ठाक था। सुबह अगर मधुर स्कूल चली जाती तो बस सुबह-सुबह ही इस तोतापरी को प्रेम का अंतिम सोपान सिखा देता पर लगता है अब तो हाथ आई मछली फिसलने ही वाली है। किसी तरह अब स्थिति को संभालना ही होगा।

“पर मधुर तो खुद कहती है कि वह तुम्हें हमेशा के लिए यहीं रखने वाली है.”
“हाँ वो कहती तो जलूल हैं पल क्या यह सब संभव हो पायेगा?”

“गौरी तुम अगर चाहो तो यह सब हो सकता है?”
“तैसे?”
“देखो तुम्हारे यहाँ रहने से ना तो मधुर को कोई ऐतराज़ नहीं है और ना ही मुझे। तुम तो जानती हो ट्रेनिंग के बाद मेरा ट्रान्सफर दूसरी जगह होने वाला है। हम तीनो ही यहाँ से किसी दूसरी जगह चले जायेंगे वहाँ हमें ज्यादा जानने वाले लोग नहीं होंगे और फिर आराम से सारी जिन्दगी हंसते खेलते हुए बिता देंगे.”
“सल! यह सब किसी हसीं ख्वाब (खूबसूरत सपने) जैसा लगता है। पर मेरी ऐसी तिस्मत तहां? एक ना एक दिन तो मुझे यहाँ से जाना ही होगा.”

हालांकि मैंने गौरी को पूरी तसल्ली दी थी पर गौरी की आशंका निर्मूल नहीं थी। जो कुछ गौरी ने कहा वह कठोर सत्य था।

पर मुझे अभी स्थिति संभालनी थी तो मैंने कहा- गौरी, तुम ऐसा क्यों सोचती हो? तुम बहुत भाग्यशाली हो और किस्मत को दोष तो निकम्मे लोग देते हैं। आदमी अपनी किस्मत खुद बनाता है।
“नहीं सल! हकीकत तो हकीकत ही लहेगी उसे झुठलाया नहीं जा सकता। मैं तो बस आपके और मधुर दीदी के साथ अपनी जिन्दगी के जो सुनहरे पल बिताएं हैं उसकी याद जिन्दगी भर संजोये रखना चाहती हूँ।”

लगता है आज गौरी का मूड ठीक नहीं है। चलो कल सुबह बात करते हैं। और फिर मैंने गौरी को 1 घंटे तक अंग्रेजी और मैथ पढ़ाया। सोने के लिए जाते समय मैंने गौरी को अपनी बांहों में लेकर गुड नाईट किस किया। गौरी ने कोई विरोध नहीं किया।

कहानी जारी रहेगी.
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