गुलाब की तीन पंखुड़ियां-27

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

गुलाब की तीन पंखुड़ियां-26

गुलाब की तीन पंखुड़ियां-28

आप सबको तो सेक्स क्रिया का अच्छा अनुभव है. लेकिन मैं आपको एक बात बता देना चाहता हूँ कई बार मिठाई के साथ अगर बीच में नमकीन खा लिया जाए तो आनन्द दुगना नहीं चार गुणा हो जाता है। कुछ लड़कियों और शादीशुदा औरतों को चुदाई के दौरान थोड़ा गंदा बोलना और नितम्बों पर थप्पड़ खाना और अपने प्रेमी या पति द्वारा दांतों से काटना बहुत अच्छा लगता है।

शायद गौरी को भी उसके नितम्बों पर लगाया गया मेरा हल्का थप्पड़ (थपकी) बहुत अच्छा लगा था। मुझे लगता है उसने इन्टरनेट पर पोर्न में जरूर ऐसा देखा होगा! यह भी संभव है उसकी किसी सहेली ने उसे अपनी सुहागरात या अपने किसी प्रेमी के साथ किये सम्भोग के बारे में जरूर बताया होगा फिर किसी घर के सदस्य को उसने चुदाई करते जरूर देखा होगा।

ओह … मैं भी क्या फजूल बातें ले बैठा।

मैंने अब गौरी के दोनों नितम्बों पर बारी-बारी से थप्पड़ लगाने शुरू कर दिए। उसके नितम्बों का रंग अब लाल नज़र आने लगा था। गौरी ने इसके लिए मना नहीं किया वह तो रोमांच में डूबी अपने नितम्बों को और जोर-जोर से आगे पीछे करने लगी थी।

अब तो धक्कों के उसके गांड का गुलाबी छेद भी नज़र आने लगा था। मैंने एक हाथ में थोड़ी से क्रीम ली और अपने अंगूठे पर लगाकर उसली गांड के छेद पर लगा कर अंगूठे को थोड़ा सा छेद पर दबा दिया।

गौरी थोड़ा कसमसाई पर रोमांच और उत्तेजना में उसने कोई विरोध नहीं किया। अब तो गांड का छेद खुलने और बंद होने लगा था। मैं बीच-बीच में उसके उरोजों की घुंडियों घुंडियों को भी मसलता जा रहा था।

अब मैंने अपना एक हाथ नीचे करके उसकी सु-सु को टटोला। उसके चीरे पर अंगुली फिराई और फिर उसकी मदनमणि को चिमटी में पकड़ कर मसलने लगा।
“उईईईई ईईईई माआअ … आह … लुको … आह … ईईईईईई …”

गौरी अपनी चरम उत्तेजना पर पहुँच गई थी। गौरी का शरीर थोड़ा सा अकड़ा और वह झटके से खाने लगी और अपने नितम्बों को जोर-जोर से आगे पीछे करने लगी।

मैंने उसकी कमर को कसकर पकड़ लिया और 4-5 धक्के जो जोर से लगा दिये। मुझे लगा मेरे लंड के चारों ओर एक चिकनाई सी लिपट गई है और अब लंड आराम से अन्दर बाहर होने लगा है। शायद गौरी की बुर ने रतिरस छोड़ दिया था।

गौरी ने लम्बे लम्बे सांस लिए और फिर थोड़ा सीधी हो गई।

मैंने उसे पीठ की तरफ से अपने शरीर से चिपका लिया। मेर लंड अभी भी गौरी की सु-सु में फंसा था। गौरी ने अपने हाथ ऊपर करके मेरे गले में डाल लिए। मैंने एक हाथ से उसकी कमर को पकड़े रखा और दूसरे हाथ से उसकी सु-सु को मसलने लगा।

और साथ ही उसकी कांख पर पहले तो अपने होंठ लगाए और फिर जीभ से उसे चाटने लगा। कौमार्य की एक तीखी गंध मेरे नथुनों में समा गई।

स्त्री का यह भाग बहुत संवेदनशील होता है। अगर गर्दन और कांख को चूमा जाए तो गुदगुदी के साथ-साथ अत्यधिक रोमांच पैदा होता है और स्त्री कामविह्वल हो जाती है।
गौरी की भी यही हालत थी, उसने मेरे लंड को अपनी सु-सु में जोर से भींच लिया; गौरी की मीठी सीत्कार निकल गई “ईईई ईईईईई … ”

मैंने उसके कानों की लोब को मुंह में लेकर चुभलाना शुरू कर दिया। गौरी की सु-सु ने एक बार फिर से संकोचन किया। उसकी साँसें एक बार फिर से तेज़ हो गयी थी उसका शरीर एक बार फिर से थोड़ा अकड़ा। मुझे लगा उसने एक बार फिर से ओर्गस्म प्राप्त कर लिया है।

गौरी की पीठ मेरे सीने से चिपकी हुई थी। अचानक गौरी पलट गई और मेरा लंड उसकी सु-सु से निकल गया। उसने अपना मुंह मेरी ओर करके मेरे सिर को अपने हाथों में पकड़कर चूमना शुरू कर दिया।

मुझे तो एक पल के लिए कुछ समझ ही नहीं आया। इस अप्रत्याशित घटना से मेरा संतुलन थोड़ा बिगड़ गया और मैं गीले फर्श पर फिसल कर नीचे गिर गया। गौरी का नंगा बदन मेरे ऊपर आ गया। गौरी ने मुझे अब भी नहीं छोड़ा और वह मेरे गालों, होंठों और गले पर बेतहाशा चुम्बन लिए ही जा रही थी। अब उसने अपने दोनों पैर मेरी कमर के दोनों और कर लिए और अपनी सु-सु को मेरे लंड पर जैसे घिसने लगी।

मैंने एक हाथ से उसली कमर कमर पकड़ ली और दूसरे हाथ से अपने पप्पू को उसकी सु-सु के छेद पर लगा दिया। जिस प्रकार गौरी ऊपर नीचे होती हुई अपनी सु-सु को मेरे पप्पू पर घिस रही थी पप्पू महाराज एक झटके में फिर से अन्दर घुस गए। गौरी की रोमांच के मारे एक बार फिर से मीठी किलकारी निकल गई।

गौरी अब उकड़ू होकर मेरे ऊपर बैठ गई और जोर-जोर से मेरे लंड पर उछलने लगी। यह उसकी यौन उत्तेजना की पराकाष्ठा थी। उसके बालों का जूड़ा खुल गया था और खुले बाल कभी चहरे पर फ़ैल जाते कभी उड़ने लगते।

मैंने उसकी कमर को पकड़ लिया और उसे सहारा देते हुए ऊपर नीचे होने में मदद करने लगा।
“आह … मेले साजन … आपने तो मेले ऊपर जादू ही कल दिया है … मैं तो इस लोमांच के कालन मल ही जाऊँगी … आह … ईईईईईईइ …” गौरी ने झुककर मेरे होंठों को फिर से चूम लिया और मेरे ऊपर जैसे निढाल सी होकर पसर गई।

ऐसी अवस्था में भले ही पुरुष हो या स्त्री उसका भार बिलकुल नहीं लगता। थोड़ी देर हम इसी अवस्था में एक दूसरे की बांहों में लिपटे नंगे फर्श पर पड़े रहे।
“गौरी मेरी जान … तुम्हें कैसा लग रहा है?” मैंने पूछा।

“मेले साजन तुम तो कोई जादुगल हो … मुझे कील दिया है तुमने … आह … मैं तो इसी तलह आपकी बांहों में यह पूली जिन्दगी बिता देना चाहती हूँ।” कहकर गौरी ने एकबार आँखें खोलकर मुझे देखा और फिर से मेरे होंठों को चूमते हुए मेरे सीने से लग गई।

“हाँ मेरी प्रियतमा … तुमने भी मुझे अपना दीवाना बना लिया है।” कहते हुए मैंने उसे बांहों में पकड़े हुए एक पलटी मारते हुए उसे नीचे कर लिया और मैं ऊपर आ गया। मैंने इस बात का पूरा ध्यान रखा कि मेरा पप्पू उसकी सु-सु में फस रहे बाहर ना निकल पाए।

गौरी ने अब अपनी जांघें जितना हो सकता था चौड़ी कर ली। इससे मेरे लंड को और सुविधा हो गई थी। अब मैंने अपने घुटने मोड़ते हुए जोर-जोर से धक्के लगाने लगा था। गौरी ने अपने दोनों पैर ऊपर करके मेरी कमर पर कस लिए।

अब हर धक्के के साथ उसके नितम्ब पहले तो ऊपर उठते और फिर फर्श पर लगते तो धच्च की आवाज निकलती और साथ ही उसने पैरों में जो पायल पहन रखी थी वो रुनझुन करने लगती।
गौरी ने अपने दोनों पैर ओर जोर से कस लिए।

हम दोनों ही उत्तेजना के उच्चतम स्तर पर पहुँच गए थे। हम दोनों का यह प्रेमयुद्ध और शुद्धि स्नान पिछले आधे घंटे से बिना रुके चल रहा था। अब मुझे लगने लगा था मेरी मंजिल पास आ गई है।
“गौरी मेरी जान एकबार तुम कहो तो डॉगी स्टाइल में करें?”
“हओ … ” बेख्याली में गौरी के मुंह से निकल गया लेकिन बाद में वह फिर से शर्मा गई।

गौरी ने अपने पैरों की कैंची खोल दी और अपने घुटनों के बल हो गई। मैं भी अब घुटनों के बल होकर उसके पीछे आ गया और अपने लंड को पीछे से उसकी सु-सु में उतार दिया। जैसे ही मैंने धक्का लगाया गौरी की मीठी आह … निकल गई।
हालांकि नंगे फर्श पर घुटनों के बल होकर सेक्स करना थोड़ा कठिन होता है पर रोमांच के इन पलों में यह तकलीफ ज्यादा नहीं लगती। मैंने गौरी के नितम्बों पर 3-4 थप्पड़ से लगाए और फिर कसकर उसकी कमर पकड़ कर धक्के लगाने शुरू कर दिए।

“गौरी मेरी जान … अब असली बारिश होने वाली है … क्या तुम भीगने के लिए तैयार हो?”
“हाँ मेले साजन मैं तो तब की प्यासी हूँ आज मुझे अपने वील्य से सींच दो … आह … ईईईईईइ …” गौरी की सु-सु ने संकोचन शुरू कर दिया।
और फिर मैंने भी एक हुंकार लेते हुए उसकी सु-सु में फुहारें छोड़नी शुरू कर दी।

हम दोनों का स्खलन एक साथ हो गया। मैं झुककर गौरी की पीठ से चिपक गया। गौरी ने अपने पैर थोड़े पीछे करते हुए पसार से दिए। गौरी के सु-सु अब भी संकोचन कर रही थी जैसे मेरे वीर्य का एक-एक करता चूस लेना चाहती हो।

थोड़ी देर बाद मेरा लंड फिसल कर बाहर आ गया। अब मैं उसके ऊपर से उठ खडा हुआ और गौरी भी उकड़ू होकर बैठ गई। मैं पास बैठकर उसकी सु-सु को देखने लगा। उसकी सु-सु के पपोटे रक्त संचार बढ़ने से फूल से गए थे और उसका चीरा भी थोड़ा खुल सा गया था। अन्दर का लाल सुर्ख खजाना साफ़ नज़र आने लगा था। उसमें से धीरे-धीरे मेरा वीर्य और गौरी के रति रस का मिलाजुला तरल मिश्रण बाहर निकलने लगा था।

मुझे अपनी सु-सु की ओर देखता पाकर गौरी शर्मा सी गई और उसने अपनी जांघें भींच ली- आप इधल मत देखो; मुझे शल्म आती है!
“गौरी प्लीज … मुझे आज किसी बात के लिए मत रोको … बहुत खूबसूरत लग रही है तुम्हारी सु-सु … मेरा तो मन कर रहा है इसे चूम लूं!”
“हट!” गौरी ने ‘हट’ तो जरूर कहा था पर आज इसके माने सच वाला ‘हट’ नहीं था अलबत्ता रूपगर्विता और पूर्ण संतुष्टि वाला ‘हट’ था।

“गौरी प्लीज अपनी जांघें थोड़ी सी चौड़ी कर लो ना प्लीज … इसमें से निकलते हुए कामरस की बूंदें अमृत की बूंदों जैसी लग रही है … और अब तुम्हारा सु-सु भी निकलने वाला होगा … मैं उसकी लम्बी पतली और छर्ररर … करती हुई धार देखना चाहता हूँ … प्लीज …”

गौरी ने पहले तो तिरछी नज़रों से मेरी ओर देखा और फिर शर्माते हुए अपनी आँखों पर हाथ रख लिया और फिर हौले से अपनी जांघों के पट खोल दिए।

कितना नयनाभिराम दृश्य था आप अंदाज़ा लगा सकते हैं। हल्के-हल्के रोयें जैसे रेशमी बालों ढकी उसकी गुलाबी बुर और गुलाब की पत्तियों जैसी कलिकाएं उफ्फ्फ्फ़ … ! आपको याद होगा एक बार लिंग देव के दर्शन करके लौटते समय मैंने मिक्की को इसी प्रकार सु-सु करते हुए देखा था। (याद करें तीन चुम्बन)

थोड़ी देर कामरस बहाने के बाद पेशाब की एक पतली धार गौरी की सु-सु से निकलने लगी। पहले तो उसकी 2-4 बूँदें निकल कर उसकी गांड के छेद से होती नीचे गिरी और फिर एक तेज़ छर्ररर की आवाज के साथ पतली धार निकल कर फर्श पर फ़ैलने लगी। मेरा अंदाज़ा है सु-सु की वह धार एक डेढ़ फुट ऊंची तो जरूर रही होगी और कम से कम 2 फुट दूर तक जाकर गिर रही थी।

मेरा मन तो कर रहा था मैं अपने मुंह नहीं तो कम से कम अपनी अँगुलियों को इस धार के बीच में लगा कर महसूस करके देखूं। पर इससे पहले मैं कुछ कर पाता गौरी के सु-सु की धार कुछ मंदी पड़ती चली गई और फिर एक अंतिम पिचकारी छर्ररर … फिच्च सी ईईईईई … की आवाज के साथ निकली और फिर कुछ बूँदें उसके चीरे से निकलती हुई उसके गुलाबी गांड के छेद से होती हुए नीचे फर्श पर दम तोड़ने लगी।

गौरी अब खड़ी हो गई। मैं तो अपने होंठों पर जीभ फिराता ही रह गया।
“गौरी लाओ मैं इसे धो देता हूँ.”
“हटो पले गंदे कहीं ते!” गौरी ने शर्मा कर अपनी सु-सु को अपने हाथों से ढक लिया और फिर से शॉवर के नीचे अपनी मुंडी लगा दी।

मैंने उसे एक बार फिर से अपनी बांहों में भर लिया। मेरा मन अभी भरा नहीं था। मेरा मन तो कर रहा था आज इसकी महारानी (गांड) की मुंह दिखाई की रस्म पूरी कर दूं।

“गौरी मेरा तो मन ही नहीं भरा तुम्हारे इस रूप और यौवन की कशिश ही इतनी है कि बार-बार तुम्हें प्रेम करने का मन करता है।”
“मेले साजन … मैं तो हर पल आपकी बांहों में ही बिताना चाहती हूँ पर आज अब और नहीं। दो दिन से मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मेली सु-सु में चीरा लगा दिया है मेले से तो ठीक से चला भी नहीं जा लहा। अगर दीदी को कोई शक हो गया तो मुसीबत हो जायेगी।

गौरी का सोचना और उसकी आशंका सही थी। हम दोनों नहाकर कर बाथरूम से बाहर आ गए।

अथ श्री गौरी शुद्धि स्नान सोपान इति!!!
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