गीत की कमसिन जवानी-3

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

गीत की कमसिन जवानी-2

गीत की कमसिन जवानी-4

इस गर्म सेक्स स्टोरी में अब तक आपने पढ़ा कि संदीप ने मेरे दोनों पर्वतों का बराबर मर्दन करते हुए सम्मान दिया और कुछ देर तक वहां अपनी जिह्वा का करतब दिखाने के बाद वापस चूत की ओर लौटने लगा.
इतने में मैं छटपटाने लगी और मैंने अपने ही होंठों को जोर से काट लिया. उसी के साथ एक बार फिर से मेरी चूत ने कामरस बहा दिया. लेकिन बेचैनी ज्यों की त्यों बनी रही.

अब आगे..

संदीप का धैर्य भी उसके प्रथम स्खलन की वजह से ही था. अब संदीप मुझे चाटते हुए चूत तक पहुंच गया, पर मैं उसे स्खलन की वजह से कुछ देर चूत से दूर रखना चाहती थी. इस पर संदीप वापस मेरे गुलाबी चूचुकों पर आकर हावी हो गया. उस वक्त मेरे निप्पल का घेराव छोटा सा ही था, जिस पर संदीप ने अपनी सारी कला का प्रदर्शन कर दिया.

शायद अब संदीप की बेचैनी भी बढ़ने लगी थी, इसलिए उसने जल्दी से 69 में पल्टी मार कर चूत पर मुँह धर दिया. उसके ऐसा करने से उसका लंड मेरे मुँह के पास आ गया था. मेरे लिए इतना ही इशारा काफी था, तो मैं उसे एक बार फिर मजे से चूसने लगी. इस बार तो मैंने संदीप के लंड की गोलियों को भी बीच बीच में मुँह में भर कर मजा लिया.

उधर संदीप ने पेंटी को किनारे करके जैसे ही चूत पर अपनी जीभ फिराई, मैं एकदम से सिहर और तड़प उठी. मैंने अपनी गोरी चूत को आज चुदाई की संभावना से ही चिकना कर लिया था. इस वक्त वासना से लबरेज होकर मेरी चुत और भी ज्यादा फूलकर कुछ बड़ी सी हो गई थी.

मेरी इस कातिलाना चूत पर संदीप की मेहरबानी ने गजब ढा दिया, शायद संदीप ने चूत को बहुत जोरों से सूंघा भी था. वो अपनी जीभ को नोकदार बना कर चूत के अन्दर घुसाने का प्रयत्न करने लगा. उसने मेरी चूत के होंठों को भी बार-बार चूसा और मुझे हर तरीके से निढाल कर दिया.

हमारे बीच चुसम-चुसाई की एक प्रतियोगिता सी होने लगी. फिर संदीप मेरी चूत के सामने आकर पोजीशन लेने लगा. इस दौरान मैंने ब्रा खुद निकाल दी और पेंटी संदीप ने निकाल फेंकी.

अब समय आ गया था कि चूत से एक वास्तविक लंड का मिलन हो, पर मेरे मन में एक भय था. मुझे ये नहीं पता था कि संदीप ने चूत चाटते वक्त मुझे चुदी चुदाई समझा, या कुंवारी समझा. लेकिन मैं उसे चुदाई के समय कौमार्य भंग का सुख देना चाहती थी क्योंकि मैं उससे प्यार भी करती थी.

वैसे तो संदीप का लंड हमारे डिल्डो से बड़ा था, इसलिए भेद खुलने का चांस कम ही था, फिर भी मैं संदीप के मन में किसी तरह की शंका को जन्म नहीं देना चाहती थी. इसके लिए मैंने पहले से कुछ सोच रखा था.

संदीप ने मेरे दोनों पैरों को अपने कंधे पर रख लिए. चुत का कौमार्य भेदन के लिए यह उत्तम आसन होता है, पर मैंने इसके लिए संदीप को मना कर दिया.

मैं पैर सिकोड़ कर सीधे लेट गई, ये पारंपरिक चुदाई वाली पोजीशन है. संदीप ने मेरी कमर के दोनों ओर पैर डाल लिए और मेरे उरोजों को मुँह में भर कर चुदाई की पोजीशन बना ली.

उसने एक हाथ से लंड पकड़ कर चूत में डालने की कोशिश की, पर इस आसन में चूत का द्वार आसानी से नहीं मिलता, जिस वजह से लंड चूत में घुसने की बजाय छिटक गया.

संदीप की ऐसी तीन कोशिशें नाकाम हुईं … क्योंकि इसमें मेरी भी शैतानी थी. मैंने पैर को जानबूझ कर ज्यादा चिपका लिया था और सांसों को पूरी ताकत से अन्दर खींच कर चूत को सिकोड़ने का पूरा प्रयत्न किया था. इसी के साथ ही चूत को पौंछ कर मैंने सूखा कर दिया था.

मैं अपनी कामयाबी पर अन्दर ही अन्दर प्रसन्न भी थी और मुझे संदीप पर तरस भी आ रहा था. फिर मैंने चूत को सिकोड़े ही रखा, लेकिन लंड को अपने हाथों में थाम लिया. अपने पैरों के बीच थोड़ी जगह बना कर मैंने लंड का मार्गदर्शन किया.

मैंने मन ही मन प्लानिंग कर रखी थी कि लंड घुसते वक्त मैं जोरों से चिल्लाऊंगी … ताकि उसे मेरी चुत चुदाई का पूरा मजा आए.

चूंकि संदीप अपनी तीन नाकामयाबियों से बौखला गया था. इसलिए उसके लंड को रास्ता मिलते ही उसने अपनी पूरी ताकत लगा दी और मेरी झूठी चीख वाली नौटंकी असल हो गई.

सूखी चूत में सांस खींच कर लंड डलवाने का परिणाम इतना भयानक होगा, इसकी तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी.
मैं सचमुच के दर्द से बिलबिला उठी.
मेरी वास्तविक चीख निकल पड़ी और आंखों से आंसू निकल कर मेरे कपोलों को भिगोने लगे. पर अब संदीप बेरहम हो चुका था, उसने अपने विशाल लंड को वापस खींचा और फिर जोरों से जड़ तक पेल दिया. इस बार मैंने सांस को छोड़ दिया था, चूत को भी सामान्य रहने दिया और पैरों को भी थोड़ा खोल लिया था.

मैंने इतना सब किया, तब जाकर कहीं लंड के लिए थोड़ी जगह बनी. लेकिन अभी भी लंड अन्दर बाहर होते हुए मेरी चूत के भगनासा की चमड़ी को साथ में चिपका कर लाता ले जाता रहा. मैं अभी भी दर्द से कराह रही थी.

करीबन दस धक्के लगने के बाद अब चूत में थोड़ी चिकनाई आ गई थी. इससे दर्द में मजे भरी सिसकियों का मिश्रण होने लगा था.

हमारी चुदाई पारंपरिक तरीके से लेट कर हो रही थी, इसलिए संदीप चुदाई के वक्त भी मेरी जीभ चुभला रहा था. फिर उसने मेरे चूचुकों को भी मन भर चूसा.

उसकी ये सारी हरकतें मुझे चरम सुख प्राप्त करा रही थीं. अब तो मैं खुद भी नीचे से कमर हिलाने लगी थी. हम दोनों ही पहले भी झड़ चुके थे, इसलिए जल्दी मंजिल नहीं मिल रही थी और हमारे लिए ये अच्छा भी था.

कुछ पल यूं ही चोदने के बाद संदीप मुझ पर से हट गया और उसने मुझे घोड़ी बनने को कहा.

चुदाई की शुरुआत मेरे हिसाब से हो गई थी, इसलिए अब किसी भी तरह की चुदाई से मुझे कोई परहेज नहीं था.

संदीप ने मुझे बिस्तर के किनारे लाकर घोड़ी बनाया और खुद बिस्तर से उतर गया. वो नीचे खड़े होकर मेरी चुदाई करना चाह रहा था.

मैं उसके इस तरीके के लिए पहले ही रोमांचित हो रही थी, इसलिए मैं झट से कुतिया सी बन कर गांड हिलाने लगी.

मेरे इस तरह होने के ठीक बाद संदीप ने मेरी पूरी पीठ पर हाथ फिराया. मेरी गोरी पीठ और बहुत सुंदर कूल्हों को देखकर बावला हुआ जा रहा था. संदीप ने पहले पीठ सहलाई फिर मेरे कूल्हों पर जोर की चपत लगाई.

इससे मैं समझ चुकी थी कि मेरा बालम अनाड़ी नहीं है, बल्कि अनुभवी खिलाड़ी है. ये जानकर मन में थोड़ा दुख हुआ, पर उससे ज्यादा खुशी इस बात की हुई कि मुझे एक अनुभवी चोदने वाला मिला है. नहीं तो किसी अनाड़ी से चूत का उद्घाटन करवाने में मुझे शांति ही नहीं मिल पाती.

मैं अपनी गांड हिलाते हुए उसके लंड का इंतजार करने लगी. तभी उसने लंड का सुपारा चूत में फंसा दिया और फिर एक लय में लंड चूत में समाता चला गया.

इस पोजीशन में लंड पूरे अन्दर तक जाकर चुदाई करता है. मैंने भी संदीप के विशाल लंड को अपनी बच्चेदानी तक महसूस किया. मैं चुदाई में सब कुछ भूल कर लंड का मजा लेने लगी. संदीप की स्पीड कुछ पल कम हुई, तो मैंने खुद अपनी कमर को पीछे की ओर धकेलना शुरू कर दिया.

संदीप ने ऐसी पोजीशन में मेरी कमर को थाम रखा था और वो कभी-कभी मेरे रसीले मम्मों को दबा देता था. पर अब संदीप चुदाई के दौरान कुछ और भी करने लगा था. शायद वो पास वाली मेज से कुछ उठा रहा था. छोटा सा तो कमरा था, उसने कुछ उठाया, फिर रख दिया और चुदाई करने लगा.

उसकी स्पीड एक बार फिर कम हुई, मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये कर क्या रहा है. लेकिन तभी उसने मेरी गांड के छेद को छुआ … और छुआ क्या … उसमें क्रीम लगाने लगा.

मैंने तुरंत चौंक कर कहा- नहीं संदीप … वहां नहीं!
तो संदीप ने कहा- डरो नहीं … मैं आराम से करूंगा.

पर मैंने मना ही कर दिया, तो उसने भी जिद छोड़ दी.
फिर मैंने कहा- गांड मारने का बहुत मन है क्या?

इस पर उसने कहा- लाजवाब खूबसूरत गोरी गदराई नंगी गांड सामने हो, तो गांड मारने का मन तो करेगा ही, तुम्हारी उछलती गांड देखकर ना जाने मैंने कितनी बार मुठ मारी है. अब आज मौका है, तो तुम मना कर रही हो.

मैं उसकी बात पर पिघल गई और उसे कहा- ठीक है … तुम्हारी यही मर्जी है, तो कर लेना … मैं तुम्हारे लिए हर दर्द सह लूंगी. पर तुम्हें मेरी गांड इतनी पसंद है ये मैंने आज ही जाना.
इस पर उसने झुककर मेरा चुंबन किया और कहा- सिर्फ गांड नहीं जान. मुझे तो पूरी गीत पसंद है … अब बाकी सब तो पा लिया … लेकिन तुम्हें पूरा पाने के लिए गांड को पाना भी जरूरी है.

मैंने कुछ नहीं कहा … अभी तो संदीप का लंड मेरी चूत में ही था. मैं ओर तेज धक्के देने लगी.

संदीप ने कुछ तेज गति के धक्के लगाने शुरू कर दिए. मैं असीम आनन्द के भंवर में गोते लगाने लगी. मेरे पैर भी दुखने लगे थे.

संदीप ने मेरी हालत को भांप लिया और मुझे मंजिल दिलाने के लिए पूरा जोर लगा दिया. मैं अकड़ने लगी, बड़बड़ाने लगी. मेरी कामुक सिसकारियों और उम्म्ह… अहह… हय… याह… की आवाजें तेज होने लगीं.

संदीप की मस्त चुदाई से मैं निढाल हो गई थी. मेरी चूत ने रस बहा दिया, तो मैं अपना वजन बिस्तर पर रखते हुए लुढ़क गई. मैंने तो जन्नत को पा लिया था, पर अभी संदीप की तृप्ति बाकी थी. उसका लंड अभी भी खड़ा था.

संदीप ने मुझे कुछ पल का ही आराम दिया और फिर बिस्तर के कोने पर लिटा दिया. उसने मेरे दोनों पैरों को उठाकर आसमान की ओर कर दिया. मुझे अपने पैरों को ऐसे ही रखने के लिए अपने हाथों से थामने पड़े. इस अवस्था में मेरी गांड का छेद संदीप के सामने स्पष्ट खुल गया.

इसके बाद संदीप ने फिर से बहुत सारी क्रीम मेरी गांड के छेद में लगानी शुरू कर दी. उसने धीरे-धीरे अपनी एक उंगली को मेरी गांड की जड़ तक उतार दिया. ऐसा करते वक्त उसकी नजर मुझ पर ही रहती थी. मेरे चेहरे के आव-भाव से उसे मजे या दर्द का भाव पता चल रहा था. उसने ऐसा करते-करते दो उंगलियों को मेरी गांड के छेद में डालना शुरू कर दिया.

उसके बाद उसने अपने लंड में भी बहुत सारी क्रीम पोत ली और मेरी गांड पर लंड का सुपारा सैट कर दिया. होने वाले दर्द के बारे में सोचकर ही मेरा मन डर गया था, पर अब तक के उपक्रम ने मुझे भी गांड चुदाई के लिए तैयार कर दिया था. संदीप का लंड भी अब तक ज्यों का त्यों अकड़ रहा था.

मैंने उसका थोड़ा साथ दिया और संदीप ने भी मेरा ख्याल रखा. उसने हल्का सा जोर लगाते हुए अपने लंड का टोपा गांड में घुसेड़ दिया. लंड के सुपारे की मोटाई से मेरी कोमल गांड का फूल चिर सा गया और मैं चीख पड़ी. शायद मैं तैयार ना होती, तो मर ही जाती.

संदीप ने लंड को स्थिर रखा, जिससे मुझे थोड़ी राहत मिली. मैं कुछ पलों में सामान्य होने लगी, तो संदीप ने फिर से लंड आगे सरका दिया. ऐसे ही उसने दो तीन बार रूक कर लंड को आधा प्रवेश करा दिया और आधे लंड से ही गांड चोदने लगा.

मैं कुछ देर दर्द में कराहती रही … फिर मजे लेना शुरू कर दिया. संदीप ने मुझे मजे लेते देख कर अपना पूरा जोर लंड पर डाल दिया और उसका विशाल लंड मेरी गांड फाड़ता हुआ जड़ तक समा गया.

पूरा लंड क्या घुसा, मेरी आंखों के आगे अंधेरा छा गया … मुझे मृत्यु निकट नजर आने लगी. बेहोशी की हालत भी लगभग हो ही गई. मैं तो अब छटपटाने की हालत में भी नहीं थी. मेरी गांड की भूरी सुरंग संदीप के लंड पर पूरी तरह चिपक गई थी. लंड भी ऐसा फंस सा गया था कि टस से मस नहीं हो सकता था.

संदीप को कुछ देर रुकना पड़ा. फिर गांड ने ही संकेत दे दिया कि अब मैं बजने के लिए तैयार हूँ. फिर तो मेरी गांड की जो चुदाई हुई कि मेरी रूह कांप गई.

फचाफच, घचाघच. … लंड गांड में आ जा रहा था. ‘उउईई माँ … आहहह मईया री. … ओहहह आहहह उहह..’ की मेरी आवाजों से कमरा गूंज रहा था.

संदीप का लंड झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था, मैं अब पूरी तरह थक चुकी थी और सिर्फ संदीप के झड़ने की प्रतीक्षा करने लगी.

संदीप ने नियमित गति से दस मिनट और गांड चोदी और कसी हुई गांड के कारण वो भी झड़ने पर मजबूर हो गया.
वो झड़ने के पहले ही बड़बड़ाने लगा- ओहह गीत … आई लव यू गीत … तुमने तो जन्नत की सैर करा दी … मेरा जीवन सफल कर दिया.

वो ना जाने क्या क्या बड़बड़ा रहा था. उसने ऐसा कहते-कहते अचानक लंड बाहर निकाल लिया और चूत के ऊपर ही झड़ने लगा.

उसकी अमृतधार की पहुंच मेरी चूत के ऊपर से होते हुए सपाट पेट और लाल हो चुके मम्मों तक थी. कुछ बूंदें तो चेहरे तक भी आ पहुंची. मैं तो बहुत खुश थी और उससे भी ज्यादा संदीप ने खुश होकर आंखें मूंद लीं और मुझसे लिपट कर लेट गया.

हम ऐसे कुछ देर ही लेटे रहे. तभी बाहर से आवाज आई- संदीप, गीत … हम आ गए हैं.

ये आवाज मनु की थी, हम दोनों कपड़े नहीं पहने थे. मैंने आवाज लगाई- हां … दो मिनट रूक.

हम दोनों ने जल्दी से कपड़े पहने. संदीप का मुझ पर पड़ा वीर्य अभी भी पूरा सूखा नहीं था, इसलिए मुझे कपड़ों के भीतर भी चिपचिपा लग रहा था.

मेरी पहली पहली चुदाई की कहानी जारी रहेगी.

इस गर्म सेक्स स्टोरी में आपको मजा आ रहा है या नहीं? मुझे निम्न इमेल आईडी पर मेल करें.
[email protected]