फैमिली सेक्स देशी स्टोरी-5

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

फैमिली सेक्स देशी स्टोरी-4

फैमिली सेक्स देशी स्टोरी-6


हाई फ्रेंड्स, आज मैं काफी समय के बाद आपके सामने उपस्थित हूं अपनी कहानी का अगला भाग लेकर उम्मीद है हर कहानियों की तरह आपको ये कहानी भी पसंद आएगी।

मेरी सेक्स कहानी के चौथे भाग
फैमिली सेक्स देशी स्टोरी-4
में आपने पढ़ा कि कैसे परिस्थितियों के चलते मेरे और मेरी बहन के बेटे रोहित के साथ शारीरिक संबंध बने।
अब आगे:

रोहित के साथ चुदाई करने के बाद हम लोग तैयार होकर कमरे में बैठकर बाते करने लगे।
मैंने रोहित से पूछा- तूने अपने मम्मी पापा की चुदाई करते हुए देखा है… तो फिर तेरा भी मन होता होगा ना अपनी माँ की चुदाई करने का?
रोहित ने कहा- हाँ होता तो बहुत है… पर मम्मी के साथ ये सब कर पाना नामुमकिन है… तो बस हिला कर ही काम चला लेता हूँ।

हम दोनों बात कर ही रहे थे कि तब तक सब लोग आ गए और फिर हम सब लोग खाना खाकर अपने अपने कमरों में चले गए।
रात को रोहन और अन्नू रूम में आकर मेरे साथ बेड पर लेट गए।

तभी रोहन ने पूछा- मम्मी आपका आज का दिन कैसा रहा? आप तो यहां पर बोर होती रही होंगी और हम लोगों ने तो आज बहुत मस्ती की… मैं तो इतना थक गया था कि चल भी नहीं पा रहा हूं सही से।
अन्नू भी बोली- मम्मा सच में आज तो आपको चलना ही था… आपने मिस कर दिया आज।

मैं उन दोनों के बीच में लेटी हुई थी। मैंने अपने दोनों हाथो से अपने बच्चों के सर को सहलाया और उनसे कहा- तुम लोग अच्छे से एन्जॉय करो। रोहित की तबियत ठीक नहीं थी वरना मैं भी चल देती।
थोड़ी देर तक इधर उधर की बाते करने के बाद अन्नू और रोहन सो गए।

मेरी भी नींद लगने ही वाली थी कि तभी मेरे फोन पर एक मैसेज आया। मैंने फ़ोन उठाकर देखा तो वो मैसेज आलोक का था, उसने मुझे गुड़ नाईट विश किया था। फिर मैंने भी आलोक को मेसेज किया।
आलोक- गुड़ नाईट चाची।
मैं- गुड नाईट।
आलोक- आपको जगा तो नहीं दिया मैंने?
मैं- अभी तो मैं सोई भी नहीं हूं… तो तू जगाएगा कैसे।
आलोक- मुझे भी नींद नहीं आ रही… क्या हम लोग होटल की छत पर चल सकते हैं, थोड़ी फ्रेश हवा भी मिल जाएगी।

मैंने मोबाइल में समय देखते हुए उसे रिप्लाई किया- अभी एक बजने वाला है इतनी रात को ऊपर जाना ठीक नहीं होगा।
आलोक- अरे मैं हूं ना चाची… आप तो बेवजह डर रही हो।

आलोक के मनाने पर मैं मान गयी और अपने बच्चों को देखते हुए धीरे से बेड से उठकर रूम के बाहर आई और दरवाजा बाहर से लॉक कर दिया। आलोक रूम के बाहर खड़ा हुआ मेरा ही इन्तजार कर रहा था।
फिर हम दोनों लिफ्ट से टॉप फ्लोर पर गए, और वहाँ से सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर छत पर पहुँच गए।

होटल सिटी से थोड़ा दूर था और सात फ्लोर का था तो आसपास कोई घर या होटल इतने ऊंचे नहीं थे। छत पर हम दोनों के अलावा कोई नहीं था तो छत पर आते ही आलोक ने एक बार छत का मुआयना लिया और फिर उसने छत के दरवाजे को लॉक कर दिया ताकि कोई ऊपर ना आने पाए।

छत पर बिल्कुल अंधेरा था तो मैं आलोक से साथ ही खड़ी थी। बरसात का सीजन चल रहा तो आसमान में बादल छाए हुए थे जिस वजह से चंद्रमा की रोशनी भी नहीं आ रही थी।
आलोक को गेट बंद करते देख मैंने कहा- आलोक क्या कर रहे हो? अगर किसी को ऊपर आना हुआ हो तो?
आलोक ने कहा- इतनी रात को सब अपनी पत्नी और गर्लफ्रेंड के साथ सेक्स कर रहे होंगे… कोई आएगा तो खोल देंगे।

फिर आलोक मुझे वहाँ से एक कोने में ले आया। वहाँ से नीचे देखने पर आसपास का नज़ारा स्ट्रीटलाइट की पीली रोशनी में बड़ा ही प्यारा लग रहा था।

मैं बॉउंड्री से टिककर बाहर के नजारे देख रही थी, तभी आलोक ने पीछे से आकर मुझे जोर से जकड़ लिया, उसका जकड़ना इतना तेज था कि मेरे मुंह से ‘आआ आआहहह हहह…’ निकल गयी।
आलोक का लंड बिल्कुल खड़ा हो चुका था जो कि मुझे साफ-साफ मेरी गांड की दरार में महसूस हो रहा था, आलोक ने मेरी गर्दन को पीछे से चूमना शुरू कर दिया।

मैंने सिसकारियां भरते हुए उसे कहा- इतना जोर से क्यूँ पकड़ा है मुझे… आआहहह…
आलोक ने कहा- चाची, आप इतने दिनों बाद मुझे मिली हो इसीलिए आज मैं आपको अपनी बांहों में कस कर रखना चाहता हूं.
और इतना बोलते ही उसने अपने दोनों हाथों से मेरे गोल चूचों को मसलना शुरू कर दिया।

मैं उस समय नाईट गाउन पहनी हुई थी जो की बूब्स से लेकर कमर तक चैन के साथ अटैच थी और अंदर केवल पैंटी ही पहनी हुई थी क्योंकि सोने के लिए मैंने अपनी ब्रा निकाल दी थी। आलोक भी टीशर्ट और कैप्री में था।

गर्दन पर चुम्बन की वजह से मैं काफी गर्म हो गयी थी। तभी आलोक ने मेरे गाउन की चैन को खोलकर बूब्स तक नीचे कर दिया और अपने दोनों हाथ मेरे गाउन के अंदर डाल कर मेरे मम्मों का मर्दन करने लगा।
आलोक अपने हाथों से मेरे निप्पल्स को मरोड़ रहा था और मेरी गर्दन को चूम रहा था।

फिर आलोक ने मुझे अपनी तरफ घुमाया और मेरे होंठों को चूमने लगा। मेरे मम्में मेरे गाउन से बाहर निकले हुए थे जो कि अब आलोक की छाती में समा रहे थे। आलोक ने भी अपनी टीशर्ट उतार दी और फिर से मुझे अपनी बांहों में जकड़ कर मेरे होंठों को चूमने लगा।

मुझे आलोक का गठीला बदन अपने मम्मों पर महसूस हो रहा था।

आलोक ने मुझे किस करते हुए अपने हाथों को मेरी कमर पर लपेट लिया और मेरे गाउन को मेरी जांघों के ऊपर की तरफ खींचने लगा। आलोक ने मेरे गाउन को मेरी कमर तक ऊपर उठा दिया औऱ फिर अपने एक हाथ को मेरी पैंटी के अंदर डालकर मेरी गांड की गोलाई और चूत को सहलाना शुरू कर दिया।

आलोक ने फिर आगे से अपने दूसरे हाथ से मेरी पैंटी को नीचे सरका दिया और अपनी सीधे हाथ की दो उंगलियों को मेरी चूत में डालकर अंदर बाहर करना शुरू कर दिया। मेरे जेठ के बेटे आलोक ने मेरे होंठों को छोड़कर अब मेरे मम्मों से रसपान करना शुरू कर दिया। आलोक किसी जानवर की भांति मेरे मम्मों को चूस रहा था और मेरे निप्पल्स भी चबा रहा था।
मैं बस ‘आआहहह… उम्म्ह… अहह… हय… याह… ऊऊह…’ ही कर रही थी क्योंकि अब और कुछ मेरे बस में नहीं था।

तभी आलोक ने अपने दूसरे हाथ से मेरी गांड के छेद को चौड़ाया और अपनी बडी उंगली को मेरी गांड के अंदर डाल दिया जिस वजह से मैं थोड़ा ऊपर की तरफ उछल गयी। मैं काफी उत्तेजित हो गयी थी क्योंकि मेरे दोनो छेद आलोक की उंगलियों द्वारा चोदे जा रहे थे।

थोड़ी देर तक ऐसा करने के बाद उसने मेरी चूत से अपनी उंगलियाँ बाहर निकाल ली पर मेरी गांड को वह अभी थी अपनी उंगली से चोद रहा था। फिर आलोक ने मुझे बाउंड्री वॉल से टिकाया और मेरे उठे हुए गाउन को मेरे हाथों में पकड़ा दिया और खुद घुटनों के बल बैठ कर मेरी चूत को चाटने लगा।

आलोक की जीभ का स्पर्श मेरी चूत के अंदर होते ही मैंने झड़ना शुरू कर दिया और मैंने गाउन को अपने हाथों से छोड़कर आलोक के सिर को पकड़ लिया और अपनी चूत को झटकों के साथ आलोक के मुँह पर रगड़ना शुरू कर दिया।
मैंने सिसकारते हुए अपना सारा पानी आलोक के मुंह पर छोड़ दिया जिसे आलोक ने बिल्कुल चाटकर साफ कर दिया।

आलोक उठ कर खड़ा हो गया और मेरी गांड से अपनी उंगली निकालकर मुझसे बोला- आई लव यू चाची… आपका पानी बड़ा ही स्वादिष्ट है आज बड़े दिनों बाद पीने का मौका मिला।

मैंने भी हँसते हुए उसे कहा- लव यू टू आलोक… अब जो भी करना है जल्दी कर… काफी रात हो गयी है।

मेरी टाँगें और मम्मे अभी भी खुले हुए थे और रात के समय ठंडी हवा लगने के कारण मैं कांपने लगी। आलोक ने बिल्कुल भी देरी ना करते हुए अपनी कैप्री उतार दी। उसने अंदर चड्डी नहीं पहनी थी। कैप्री उतरते ही उसने अपना खड़ा लंड मेरे हाथ में थमा दिया जिसे मैंने सहलाना शरू कर दिया।

मैंने भी आलोक के लंड को गीला करने के लिए नीचे बैठकर उसे चूसना शुरू कर दिया। आलोक के लंड से वीर्य जैसा चिपचिपा पानी निकल रहा था जिसे मैंने अपने मुंह में लेकर सोख लिया। करीब दो मिनट तक लंड चूसने के बाद मैंने उसके लंड को अपने मुंह से निकाल दिया।

मेरी चूत भी पानी छोड़ने की वजह से काफी गीली हो चुकी थी। फिर आलोक ने मुझे दीवाल से टिकाया और मेरे गाउन की पूरी चैन को खोल दिया जिससे मेरा गाउन मेरी टांगों से नीचे गिर गया।
अब मैं पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी और बाहर चल रही ठंडी हवा मेरे रोम रोम को उत्तेजित कर रही थी। मुझे ऐसा करते हुए डर भी लग रहा था क्योंकि खुले में चुदाई करने का ये मेरा पहला अनुभव था… पर जब कामुकता हावी हो जाती है तो क्या सही है और क्या गलत… कुछ समझ नहीं आता है।

आलोक ने मुझे टिकाकर खड़ा किया और फिर मुझसे सटकर ही उसने अपने लंड को मेरी चूत पर रगड़ना शुरू कर दिया और फिर धीरे धीरे उसने अपने लंड का सुपारा मेरी चूत के अंदर कर दिया।
आलोक ने मेरे होंठों को अपने होंठों से बांध लिया और पूरी दम के साथ उसने अगले धक्के में अपना पूरा लंड मेरी चूत में भर दिया। मेरे होंठों को चूमने की वजह से में चीख नहीं पाई लेकिन मेरी घुटी हुई आवाज भी आसपास गूंज गयी और अपने पैर की उंगलियों के बल खड़ी हो गई।

मैं आलोक के होंठों को चूमना छोड़कर दर्द से सिसकार उठी- ऊऊह्ह माँ… उम्म्ह… अहह… हय… आआहह…
मैंने आलोक को हल्की आवाज में डाँटते हुए कहा- पागल हो गया है क्या… अभी मैं चीख पड़ती तो किसी को पता चल जाता।
पर आलोक ने मेरी बातों को अनसुना कर दिया और फिर से मेरे होंठों को चूमना शुरु कर दिया।

आलोक अब जोर जोर के धक्कों के साथ अपने लंड को अंदर बाहर करने लगा, मैं भी अपनी कमर उठा उठा कर आलोक के लंड से चुद रही थी।
हम दोनों के नंगे बदन की गर्मी उस ठंडी हवा में एक दूसरे को साफ महसूस हो रही थी।
थोड़ी देर तक इसी तरह लगातार चोदने के बाद मैं थक गई तो मैंने आलोक से पोजीशन बदलने के लिए कहा।

आलोक ने वैसे ही अपना लंड मेरी चूत में झटके मरते हुए कहा- चाची, छत ज्यादा साफ नहीं है, वरना हम यहीं लेट कर चुदाई करते। पर तुरंत ही उसके मन मैं एक विचार आया और उसने मुझसे बाउंडरी पर हाथ रखकर खड़े होने के लिए कहा।
मैं आलोक की बात मानते हुए अपने दोनों हाथों को सामने बाउंडरी के ऊपर रख कर खड़ी हो गयी। इस वज़ह से मेरी गांड और कमर पीछे की तरफ को उभर आई ऒर सामने से मुझे बाहर का सारा नजारा दिखाई दे रहा था।

अगर ऊँचाई ज्यादा न होती और दिन का समय होता तो सड़क चलते आदमी मेरे नंगे झूलते हुए मम्मों को देख सकता था। पर अभी अंधेरा इतना था कि किसी को कुछ दिखाई नहीं दे सकता था।

इस तरह झुककर खड़े होने की वजह से मैं किसी डॉगी की पोजीशन में थी। अब आलोक ने पीछे से आकर अपने लंड को मेरी चूत पर लगाया और इस बार उसने हल्के हल्के धक्कों के साथ अपने लंड से मेरी चूत को अंदर तक चीर दिया।

आलोक ने अपने धक्कों की गति को बढ़ा दिया… जिस वजह से मेरा शरीर उसके हर धक्कों के साथ आगे पीछे होने लगा और मेरे कसे हुए मम्मे भी मेरे शरीर के साथ झूलने लगे। आलोक ने अपने हाथों को आगे बढ़ाकर मेरे दोनों मम्मों को पकड़ कर मसलना शुरू कर दिया। मेरे मुँह से हल्की हल्की सीत्कार ‘आआहहह… आआऊऊहहह… ओह आलोक… और जोर से चोदो मुझे… फ़क मी हार्डर..’ आसपास के माहौल को और भी गर्म कर रही थी।

काफी देर तक इसी तरह चोदने के बाद मैं अपने चरम पर पहुँच गई और मैंने अपनी चूत से आलोक के लंड पर दबाव बनाते हुए झड़ना शुरू कर दिया। मेरी चूत से निकलता हुआ पानी मेरी टांगों से बहता हुआ नीचे तक पहुँच रहा था। आलोक अभी भी मेरी चूत मार रहा था पर अब चुदाई की आवाज़ें कुछ बढ़ सी गयी थी।

तभी आलोक ने मेरी चूत से अपना लंड निकाला और नीचे झुककर मेरी रिसती हुई चूत को चाटने लगा। उसकी जीभ का स्पर्श मेरी चूत को अलग ही शांति प्रदान कर रहा था। उसने मेरी जांघों को भी चाटकर साफ कर दिया।

आलोक ने अपने मुँह को मेरी चूत से हटाते हुए मेरी गांड के पास लाया और अपने थूक से मेरी गांड को गीला करना शुरू कर दिया।
मैं समझ गयी कि अब आगे क्या होगा।
मैंने पीछे मुड़कर आलोक को मुस्कुराते हुए कहा- आगे से मन नहीं भरा जो अब पीछे की तरफ जा रहे हो?

आलोक ने कहा- चाची… अगर आपकी गांड नहीं चोद पाया तो फिर मेरे इतने दिनों का इन्तजार बेकार ही रह जाएगा।
मैंने उसकी बात पर हँसते हुए कहा- हां कर ले… पर जरा आराम से करना!
और फिर वापस उसी अवस्था में आ गयी।

आलोक ने आगे बढ़ते हुए अपने लंड को मेरी गांड के छेद पर टिकाया और बड़े ही प्यार के साथ उसे अंदर डालने लगा। मेरी गांड के लाल छेद को भेदते वक्त मेरी आँखें बंद हो गईं और मेरे माथे पर दर्द के कारण शिकन आने लगी क्योंकि मैं जब कभी ही अपनी गांड चुदवाया करती थी और आलोक का लंड भी कुछ ज्यादा ही मोटा था।

आलोक ने धीरे धीरे से अपना लंड मेरी गाण्ड में डाल दिया और फिर उसने धक्के देना शरू कर दिये. आलोक का लंड जितनी गति से मेरी गांड के अंदर होता मैं उतना मस्त हो जाती।
उसने काफी देर तक मेरी गांड को उसी अवस्था में चोदा। फिर जब वो झड़ने को हुआ तो उसने अपने धक्कों को दोगुनी रफ्तार के साथ मेरी गांड मारने लगा और अंततः उसने ‘आआहहह… चाची… मैं गया… आपकी… गांड… के… अंदर…’ कहते हुए अपना गर्म वीर्य कई पिचकारियों के साथ मेरी गांड के अंदर त्याग दिया।

झड़ने के बाद आलोक अकड़कर मुझसे वैसे ही लिपट गया। कुछ ही देर बाद उसने अपने लंड को बाहर निकाल लिया। फिर हम दोनों ने अपने कपड़े पहने और खुद को ठीक किया.
आलोक का वीर्य मेरी गांड से रिसकर बाहर आने लगा. पर मैं इतना थक चुकी थी कि खुद को साफ करने की हिम्मत नहीं जुटा पायी।

उसके बाद हम दोनों नीचे आ गए और अपने अपने रूम में आकर सोने लगे। मैं भी धीरे से बेड पर जाकर रोहन और अन्नू के बीच लेट गयी। थोड़ा हलचल होने की वजह से रोहन ने नींद में करवट लेते हुए मुझे खुद से लिपटा लिया और फिर मैं भी वैसे ही सो गई।

उस रात के बाद हम लोगो को चुदाई करने का समय ही नहीं मिल पाया और फिर सफर के खत्म होने के बाद हम लोग वापस अपने घर आ गए। अब बस मैं थी, रोहन था और मेरे पति।

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धन्यवाद।