चौराहे पर खड़ा दिल-10

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

चौराहे पर खड़ा दिल-9

चौराहे पर खड़ा दिल-11

X स्टोरी इन हिंदी में पढ़ें कि सेक्सी पड़ोसन की चुदाई के बाद मैं अपनी कमसिन कामवाली का इंतजार कर रहा था पर वो नहीं आयी. तो मुझे अपनी ऑफिस वाली लड़की याद आ गयी.

लैला ने कहा कि फिर कभी मौक़ा मिला तो वह इन पलों को एक बार फिर से जरूर दोहराना चाहेगी और पूरी रात मेरे आगोश में ही बिताएगी।
मैंने लैला का एक बार फिर से धन्यवाद किया।
हम दोनों का मन तो अभी भी नहीं भरा था। मेरा मन तो उसे बांहों में भर कर एक गहरी नींद लेने को कर रहा था पर अब घर वापस आने की मजबूरी थी। किसी ने अगर देख लिया तो मुसीबत खड़ी हो सकती थी।
मैं उसका शुक्रिया अदा करते हुए घर लौट आया।

अब आगे की X स्टोरी इन हिंदी:

सुबह के कोई आठ बजे का समय रहा होगा। मोबाइल की घंटी बजने से से मेरी नींद खुली।
ओह … इतनी सुबह कहीं मधुर का फ़ोन तो नहीं आ गया?
मैंने मोबाइल में नंबर देखा। यह तो गौरी का नंबर था। कमाल है इतने दिनों बाद गौरी का फ़ोन आया था।

“हेलो … कैसी हो गौरी? तुमने तो हमें बिल्कुल ही भुला दिया?”
“सल! नमस्ते … मैं सानू बोल रही हूँ.”
“क … कौन सानू?”
“मैं स … सानिया हूँ सल!”
लग गए लौड़े!!

“ओह … अरे … सॉरी … हाँ … बोलो सानू? मैंने पहचाना नहीं मैं नींद में था.” मैंने बात संवारने की कोशिश की।
अब मुझे ध्यान आया यह गौरी वाला मोबाइल तो मैंने सानिया को दे दिया था। भेनचोद ये किस्मत भी कहीं ना कहीं गड़बड़ कर ही देती है।

“मैं आज काम पल नहीं आ सकूंगी.”
“क.. क्यों?”
“वो … वो.. मम्मी अस्पताल जाएगी भाभी और बाबू को लेकर!”
“ओह … पर क्यों?”

“बाबू को टीका लगवाना है.”
“ओह … अच्छा!”
“मैं कल सुबह आ जाऊँगी.”
“ओह … हाँ ठीक है।”

पता नहीं गौरी का नाम सुनकर सानू जान क्या सोच रही होगी? चलो देखते हैं क्या होता है।

आज मेरे दफ्तर पहुंचते ही नताशा नामक विष्फोटक पदार्थ केबिन में आ गई। शायद वह मेरे आने का ही इंतज़ार ही कर रही थी।

उसने भूरे रंग की जीन पेंट और ऊपर छोटा सा डोरी वाला टॉप पहना हुआ था। आज उसके हाथों में चूड़ियाँ गायब थी और एक विशेष बात आज उसने मांग में सिन्दूर भी नहीं लगाया था।
हे लिंग देव! इस जीन पेंट में उसके कसे हुए नितम्ब तो ऐसे लग रहे थे जैसे अभी कहर बरपा देंगे।

पर … पता नहीं क्यों इस छमकछल्लो के चहरे पर तो बैरण उदासी सी छाई हुई थी। उसकी आँखें कुछ लाल-लाल और सूजी हुई सी भी लग रही थी।
आज मैंने उसके चहरे पर ध्यान दिया उसके ऊपरी होंठ पर एक छोटा सा तिल भी है। हे भगवान् ऐसे जातक तो अति कामुक प्रवृति के होते हैं।
मुझे लगता है उसके गुप्तांगों पर भी तिल जरूर होगा। अगर चूत के पपोटों पर नहीं तो कम से कम उसके नितम्बों पर तो जरूर होगा।
आप तो बहुत गुणी हैं जानते ही होंगे ऐसे स्त्रियाँ की कुंडली में गांड मरवाने का भी योग होता है। ऐसा सोच कर ही मेरा लंड तो कसमसाने लगा था।

वह बिना कुछ बोले अपनी मुंडी नीचे झुकाए सामने कुर्सी पर बैठ गई।
“क्या बात है नताशा … आज तुम कुछ परेशान लग रही हो?”
“सर … मैं यह नौकरी छोड़कर कहीं चली जाऊंगी.” उसने रुंधे गले से कहा।
मुझे लगा वह अभी रोने लगेगी।

“अरे … ओह … सॉरी … ऐसा क्या हुआ?” मैंने आश्चर्य से उसके ओर देखा।
“सर! वो … वो.. आप ट्रेनिंग पर कब चलने वाले हैं?”
अजीब सवाल था … मुझे लगा नताशा कुछ छिपा रही है। पता नहीं क्या बात है?

“अरे प्लीज बताओ ना क्या बात हुई? कहीं इंजिनियर साहब से झगड़ा तो नहीं हो गया?”
नताशा कुछ नहीं बोली, उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे थे।
“सर! अब मैं इस आदमी के साथ और ज्यादा नहीं रह सकती।”

लगता है उस कबूतर के साथ आज इसका फिर से झगड़ा हुआ है। एक दो बार इसने पहले भी इस चिड़ीमार का जिक्र किया था। मुझे लगता है इसकी भरपूर जवानी की प्यास बुझाना उस अफलातून के बस में बिल्कुल भी नहीं है।
“ओह … आई एम सॉरी … देखो नताशा मैडम, आप बहुत समझदार हैं। पति-पत्नी में कभी कभार कहा सुनी हो भी जाती है ऐसी बातों को ज्यादा सीरियसली नहीं लेना चाहिए.” मैंने उसे समझाते हुए कहा।
“घर वालों ने मेरी जिन्दगी बर्बाद कर डाली।” उसने सुबकते हुए कहा।

मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था इसे कैसे समझाया जाए।
लैला की भी यही हालत थी उसे तो मैंने पूरी रात अच्छी तरह समझाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी.

पर यहाँ मामला ऑफिस का था। मैं कोई रिस्क नहीं ले सकता था। अगर कोई और जगह होती तो मैं जरूर इसके गालों पर आए आँसू पौंछते हुए इसे दिलाशा देने की कोशिश करता।
आप मेरी इन बातों को पढ़कर जरूर हंस रहे होंगे।

“नताशा आप चिंता ना करें … सब ठीक हो जाएगा। मैं अगले हफ्ते ही बंगलुरु का प्रोग्राम बना रहा हूँ।” मैंने उसको पानी का गिलास पकड़ाते हुए फिर समझाया।
वो कुछ नहीं बोली। बस अपनी मुंडी नीचे किये कुछ सोचे जा रही थी।

“और नौकरी छोड़ने की कोई जरूरत नहीं है। आप बहुत होनहार हैं बहुत बढ़िया फ्यूचर आपके सामने है।”
नताशा ने एक लम्बी सांस ली। लगता है वह कुछ निर्णय लेने का सोच रही है।

“मैं चाय मंगवाता हूँ.” कहते हुए मैंने चपरासी के लिए कॉल बेल दबाई। अब नताशा ने जल्दी से अपने पर्स से रुमाल निकाल कर अपने गालों पर आए आँसू पौंछ लिए।
“वो मैं तुम्हें बताने ही वाला था अगले हफ्ते नया बॉस आ जाएगा तो मैं उसके 2-3 दिन बाद ट्रेनिंग का प्रोग्राम बना लेता हूँ।”
“सच्ची?”
“नताशा एक काम तो हो सकता है?”
“क्या?”

“अगर पॉसिबल हो तो तुम भी इसी हफ्ते बंगलुरु की टिकट बनवा लो।”
“क्यों … आप मुझे साथ नहीं ले जाना चाहते क्या?”
“अरे ऐसा नहीं है … दरअसल नये बॉस के आने के बाद तुम्हारी छुट्टियों में कोई झमेला ना हो जाए इसलिए बोल रहा था।”
“हम्म …”
“क्या ख्याल है?”
“ठीक है … मैं 2-3 दिन बाद का टिकट बुक कर लेती हूँ.”
“गुड गर्ल!”

“आप बंगलुरु में कहाँ ठहरेंगे?”
“एक बार तो 2-4 दिन किसी होटल में ही ठहराना पड़ेगा बाद में हो सकता है कंपनी के गेस्ट हाउस में व्यवस्था हो जाए। पर चिंता की कोई बात नहीं है बेबी … मैं बंगलुरु पहुँच कर तुम्हें बता दूंगा।”

चाय पीने के बाद नताशा तो चली गई पर मैं अपने केबिन में बैठा बहुत कुछ सोचने लगा था। लगता है लौंडिया की उफनती जवानी उसके बस में नहीं है।
जिस प्रकार इसकी नशीली आँखों में मद मस्त जवानी का नशा नज़र आता है; इसे तो रोज रात को 2-3 बार आगे और पीछे दोनों तरफ से ठोका जाए तब जाकर इसे पूर्ण संतुष्टि मिलेगी.
पर बेचारे उस सुकडू में इतनी काबलियत कहाँ है जो इसकी जवानी की प्यास बुझा सके।

मन तो करता है किसी दिन इसे रात को घर पर बुला लिया जाए और फिर तो सारी रात इसकी जवानी का जहर और बुखार उतारा जा सकता है।
पर … ऐसा कैसे मुमकिन हो सकता है? यह तो सिर्फ किस्से कहानियों में ही संभव हो सकता है। असल जिन्दगी में तो बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं।
पर लगता है बंगलुरु हम दोनों के स्वागत सत्कार के लिए जरूर तैयार है।

आज सुबह कोई आठ बजे हमारी सानू जान पूरे 48 घंटों के बाद आ गई थी। उसने पाजामा और कमीज पहन रखी थी जिसपर नीले और काले रंग के फूल-पत्तियाँ (बेल-बूटे) बने थे। शर्ट के ऊपर का बटन खुला हुआ था उसमें उरोजों की घाटी ऐसे लग रही थी जैसे दो पहाड़ियों के बीच बहती नदी का पाट हो।

हे भगवान्! उस पजामे में उसकी पुष्ट जांघें तो बहुत ही कातिलाना लग रही थी और आगे का फूला हुआ भाग देख कर तो लगता है उसने अन्दर पेंटी नहीं पहनी है।

आज मैंने एक ख़ास बात नोट की। आज हमारी रश्के कमर का चेहरा कुछ उदास सा था और आँखें भी कुछ लाल सी नज़र आ रही थी। पता नहीं क्या बात थी।

“अरे सानू … क्या बात है आज तुम बहुत उदास हो?”
“किच्च!” चिरपरिचित अंदाज़ में सानिया ने अपनी मुंडी ना में हिलाते हुए कहा।
“चलो पहले बढ़िया सी चाय बनाओ फिर बात करते हैं।“

सानिया सुस्त कदमों से मेन गेट बंद करके चुपचाप रसोई में चली गई।

थोड़ी देर बाद वह चाय बनाकर ले आई। उसने दो गिलासों में चाय दाल दी और हम दोनों चाय पीने लगे।

सानिया मुंडी नीची किये चाय पी रही थी। इस दौरान कोई बात नहीं हुई। मैं यह सोच रहा था कि बातों का सिलसिला कैसे चालू किया जाये।

“अरे सानू?”
“हओ?” पता नहीं सानिया किन ख्यालों मन डूबी हुयी थी।
“और फिर दो दिनों में क्या-क्या किया?”
“कुछ नहीं … बस घल का काम किया.”

“वो तुम बता रही थी बेबी को टीका लगवाना था? लगवा दिया क्या?”
“हओ … लगवा दिया … पर बाबू बहुत रो रहा था.”
“हाँ बेचारे को बहुत दर्द हुआ होगा?”
“हओ.”

चाय हमने ख़त्म कर ली थी पर सानू जान तो अभी भी चुपचाप ही थी।
“अरे सानू?”
अब उसने अपनी मुंडी मेरी ओर प्रश्न वाचक निगाहों से देखा।
“पता है मैं कल तुम्हारे लिए क्या-क्या लेकर आया था?” मैंने थोड़ा रहस्य बनाते हुए कहा।
“क्या?”
“तुम बैठो मैं अभी आता हूँ?”

और फिर मैं उठकर अपने कमरे में जाकर सानिया के लिए लायी हुई चीजें ले आया। मेरे हाथों में 3-4 पैकेट्स देखकर सानू जान के चहरे पर मुस्कान फिर से लौट आई। अति उत्सुकता वश वह तो उठकर खड़ी हो गई।

“ये देखो तुम्हारे लिए नए शूज … जुराब … क्रीम … बढ़िया है ना?”
“हओ … और इन दूसरे पैकेट्स में क्या है?”
“अच्छा चलो … तुम गेस करो?”
“मुझे क्या पता?” उसने हैरानी से कहा।

उसके चहरे पर आई मुस्कान को देखकर तो यही लगता था वह जानने के लिए बहुत उत्सुक हो रही है।

आपको बताता चलूँ मैं कल शाम को ऑफिस से घर आते समय सानिया के लिए एक क्रीम कलर की जीन पेंट और एक शर्ट और साथ में 4-5 आइसक्रीम के कोण ले आया था। पहले जो चोकलेट्स लाया था वह तो मैंने लैला को दे दिया था तो मैंने एक बढ़िया चोकलेट्स का एक और पैकेट भी साथ में ले लिया था।

“अच्छा चलो तुम मेरे पास आकर बैठो पहले?”
सानू जान अब बड़ी अदा से शर्माते हुए सोफे पर मेरे पास आकर बैठ गई।

मैंने महसूस किया उसकी साँसें तेज हो गई हैं और दिल की धड़कने भी साफ़ सुनी जा सकती थी। मेरा दिल भी जोर-जोर से धड़कने लगा था।

अब मैंने क्रीम वाली ट्यूब अपने हाथ में पकड़कर कहा- अपने पैर दिखाओ जरा?
“क … क्यों? उसे मेरी इन हरकतों से शायद आश्चर्य हो रहा था।
“अरे बाबा क्रीम लगा देता हूँ.”

“ओह … आप मेले पैरों को हाथ लगायेंगे? म … मैं अपने आप लगा लूंगी.”
“अरे … एक तरफ तुम मुझे अपना दोस्त मानती हो. और फिर कहती हो पैरों को हाथ क्यों लगाते हो?”
“नहीं … ऐसा नहीं है … वो … मेले पैर गंदे होंगे? इसलिए बोला.” उसने सकुचाते हुए कहा।

“कोई बात नहीं … तुम बाथरूम में जाकर पहले अपने पैर धो आओ फिर लगा देता हूँ.” मैंने हंसते हुए कहा तो पहले तो सानू जान शर्मा सी गई और फिर बड़ी अदा से मुस्कुराते हुए बाथरूम में हाथ पैर धोने चली गई।

आपको याद होगा परसों जो पेंटी सानू जान ने पहनी थी, उसमें मैंने मुठ्ठ मारते हुए अपना माल गिरा कर बाथरूम में फेंक दिया था। मेरा अंदाज़ा है सानू जान उस पेंटी को जरूर देखेगी।
मेरा तो मन कर रहा मैं अभी उसके पीछे बाथरूम में चला जाऊं और वहीं सानिया मिर्ज़ा को अपनी सानूजान बना डालू। पर लगता है चिड़िया खुद चुग्गा देने को तैयार है तो फिर इतनी जल्दबाजी की क्या जरूरत है।

5-7 मिनट के बाद सानिया अपने पैर धोकर वापस आकर सोफे पर बैठ गई। उसके कुंवारे बदन से आती मदहोश कर देने वाली तीखी गंध ने तो मेरे लंड को जैसे बेकाबू ही बना दिया था। जिस प्रकार उसने अपनी मुंडी नीची कर रखी थी मेरा अंदाज़ा है उसने मेरे वीर्य से रंजित उस पेंटी को जरूर देख लिया होगा।

अब मैंने अपनी अंगुली पर बिवाई वाली क्रीम लगा कर सानिया को अपने पैर ऊपर करने का इशारा किया तो उसने थोड़ा सा पीछे सरकते हुए अपना एक पैर उठाकर मेरी ओर कर दिया।
मैंने उसके पैर को अपने हाथ में पकड़कर अपनी गोद में रख लिया।

उसके पैर को छूते ही मेरा लंड तो किसी सांप की भाँति फुफकारें मारने लगा था।

मैंने पहले तो उसके पंजे को और बाद में उसकी ऐड़ी को सहलाया। इस चक्कर में उसकी ऐड़ी मेरे लंड से जा टकरा गई।
सानिया के शरीर में एक सनसनाहट सी दौड़ गई।

मैंने धीरे-घीरे मसलते हुए उसकी दोनों ऐड़ियों पर क्रीम लगानी चालू कर दी। क्रीम लगाते समय मैं सोच रहा था सानिया आज अगर वही स्कर्ट और कच्छी पहन कर आती तो कितना अच्छा रहता। उसकी बुर का पूरा जोगराफिया दिख जाता।

कुछ भी कहो … इसकी जांघें तो कमाल की हैं। उसकी बुर के निचले भाग की जगह से पायजामा कुछ गीला सा नज़र आ रहा था।
मेरा अंदाज़ा है सानू जान अपनी बुर भी जरूर धोकर आई होगी।
उसकी जांघें और उभरे हुए संधीस्थल का गीलापन देखकर तो मेरा लंड पागल ही हुआ जा रहा था। जैसे कह रहा हो गुरु … लोहा गर्म है मार दो हथोड़ा!

“लो भाई सानू जान अब रोज इसी तरह क्रीम लगवानी होगी तुम्हें!” मैंने हंसते हुए कहा तो सानिया ने झट से अपने पैर नीचे कर लिए।
“अरे रुको तो सही?”
“अब क्या हुआ?”
“एक तो तुम जल्दी बहुत करती हो? अभी जुराब और शूज भी तो पहनाने हैं.”

“वो तो मुझे पहनने आते हैं. ये कोई साड़ी थोड़े ही है.” सानिया तो खिलखिलाकर हंसने लगी थी।
”यार सानू जान, एक तो तुम कंजूस बहुत हो.”
“वो कैसे?” उसने चहकते हुए पूछा।
“अब थोड़ी देर के लिए तुम्हारे इन खूबसूरत पैरों को छूने का और मौक़ा मिल जाता पर तुम हो कि उसके लिए भी मना कर रही हो.”

अब तो लाज के मारे सानू जान तो उमराव जान अदा ही बन चली थी। मुझे लगता है उसे मेरी इन बातों से मेरी मनसा का अंदाजा तो भली भाँति हो ही गया होगा। बस अब तो वह मेरी पहल का इंतज़ार कर रही है।

जुराब और जूते पहनाना तो बस बहाना था मेरा मकसद तो बस उसे यह महसूस करवाना था कि मैं उसका कितना ख्याल रखता हूँ। और जब भी मैं उसे प्रणय निवेदन करूं तो उसे स्वीकारने में ज्यादा संकोच ना हो।

जूते पहनाने के बाद मैंने उसकी जाँघों के ऊपरी हिस्से पर एक धौल लगाते हुए कहा- सानू, अब जरा इन थोड़ी अदा से चलकर तो दिखाओ कि सही साइज के हैं या नहीं?
सानिया ने कहा तो कुछ नहीं पर उसकी रहस्यमयी मुस्कान ने सब कुछ बता दिया था।

वह बड़ी अदा से खड़ी हुई और फिर अपनी कमर और नितम्बों को लचकाते हुए रसोई की तरफ जाने लगी।
हे लिंग देव! उसके थिरकते हुए नितम्बों को देखकर मेरा दिल इतना जोर से धड़कने लगा कि मुझे लगा आज अगर कुछ नहीं किया तो यह जरूर धोखा दे जाएगा। और लंड देव तो उछल-उछल कर किलकारियां ही मारने लगे थे।

“अब आपके लिए नाश्ता बना दूं?” उसने मुस्कुराते हुए पूछा।
“ओहो … अभी क्या जल्दी है तुम ज़रा बैठो तो सही!”
अब सानिया वापस आकर सोफे पर बैठ गई।

“क्यों साइज सही है ना?”
“हओ … मुझे ऐसे ही जूते पसंद थे.” उसने मेरी ओर देखते हुए कहा।
“देखो मुझे तुम्हारी पसंद का कितना ख्याल है.”

सानू जान बेचारी मेरी इस बात का क्या जवाब देती? वह तो ‘हओ’ कहकर बस मुस्कुराती ही रही।

उसकी निगाहें बार-बार उन दूसरे पैकेट्स पर जा रही थी जो पॉलीथिन के लिफ़ाफ़े में पड़े थे।
दोस्तो, मेरी यह X स्टोरी इन हिंदी पढ़ कर आपको अपने साथी की जरूरत महसूस होती होगी ना?
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X स्टोरी इन हिंदी जारी रहेगी.