बेटी की कमसिन जवानी-4

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

बेटी की कमसिन जवानी-3

बेटी की कमसिन जवानी-5

अब तक की सेक्स स्टोरी में आपने पढ़ा कि बापू अपनी जवान बेटी के बदन से खेल रहा था और उसकी मिन्नत कर रहा था.
बापू घुटनों पर ही था और सर ऊपर उठाकर पद्मिनी से कहा- बस अपना यह स्कर्ट ऊपर उठाकर बापू को अन्दर की जाँघ और अपनी पेंटी दिखा दे, मैं बहुत खुश हो जाऊँगा.
पद्मिनी शरम और हल्के से गुस्से से लाल पीली होते हुए बोली- क्या??
अब आगे…

तब तक बापू उसकी स्कर्ट को उठाने की कोशिश में था और पद्मिनी झुक कर अपनी स्कर्ट पर दोनों हाथों को रखते हुए कहने लगी- आज आप क्यों टीचर की तरह बर्ताव कर रहे हैं बापू?
तब बापू ने अचानक कहा- अरे हाँ, तुमने तो अभी तक मुझको कहा ही नहीं, जो बातें की जा रही है तेरे और टीचर के बीच?
पद्मिनी ने कहा- आपको आज सब कुछ स्कूल से आने के बाद आज पक्का बताऊँगी… ठीक है बापू?

फिर बापू ने उसकी जांघों को छूते हुए कहा- मगर जाने से पहले मेरी गुड़िया यह तो दिखा दे… क्या तू अपने बापू को प्यार नहीं करती!
तब पद्मिनी को जैसे बापू पर कुछ तरस आया और कहा- अच्छा सिर्फ एक बार ठीक है? फिर मैं निकालती हूँ.
बापू ने ख़ुशी से अपने लंड पर लुंगी के नीचे हाथ डालते हुए कहा- हाँ ठीक है मगर धीरे धीरे, हौले हौले स्कर्ट को उठाना और मेरे हाथों को थोड़ा सा छूने भी देना.

पद्मिनी ने मुस्कुराते हुए सर को हाँ में हिलाया और अपने दोनों हाथों की उंगलियों से अपनी स्कर्ट की नीचे वाले हिस्से को थाम कर उठाना शुरू किया.
बापू वहीं ठीक उसके सामने घुटनों पर पड़ा था. ज्यूँ ज्यूँ स्कर्ट उठता गया, त्यों त्यों बापू की आँखों को पद्मिनी की गोरी जाँघें और भी गोरी दिखाई देने लगीं. स्कर्ट के नीचे वाले हिस्से… कहीं पर गुलाबी रंग तो कहीं सफ़ेद रंग की जांघों को देखते हुए बापू अपने लंड को एक हाथ में थामे कुछ कुछ उसको हिलाने लगा. लुंगी के नीचे लंड था तो पद्मिनी को नज़र तो नहीं आ रहा था. मगर उसको खूब पता था कि बापू उसकी जांघों को देखकर मुठ मार रहा है.

उसका स्कर्ट और ऊपर उठता गया… और ऊपर और थोड़ा सा ऊपर… पद्मिनी अपने बापू को खुश करने के लिए स्कर्ट उठाती गयी और बापू ज़ोरों से अपना हाथ अपने लंड पर लुंगी के नीचे मारते गया… जैसे ही पद्मिनी की सफ़ेद पेंटी थोड़ा सा नज़र आयी, बापू ने अपना मुँह जल्दी से उस मुलायम पेंटी पर रख दिया और चाटने लगा. एक हाथ से मुठ मारते और एक हाथ से पद्मिनी की चूतड़ों को थाम कर अपने लंड को शांत करने लगा.

पद्मिनी ने ‘आह इस्स्स्स… उह्ह्सस…’ की धीमी सी आवाज़ दी, जब उसने अपने बापू की जीभ को अपनी पेंटी पर महसूस किया. पद्मिनी ने एक लम्बी सिसकारी छोड़ी. जब बापू का जीभ वहां से हट कर उसकी जांघों को चाटने लगा.
तभी अचानक बापू ने कराहना शुरू किया- आह… आआअह्ह…

पद्मिनी ने देखा कि बाप की लुंगी उसके झड़ने से भीग गयी. लंड की मुठ मार कर बापू सिर्फ पद्मिनी की जाँघ और पेंटी देख कर और छूकर ही खुश हो गया था.

अपने होंठों को पद्मिनी ने दांतों में दबाते हुए धीरे से बापू के कानों में झुक कर कहा- अब मैं चलती हूँ… आपको तो मज़ा आ गया ना बापू मेरे?
पद्मिनी अपने बापू के दोनों गालों पर ज़ोर से चुम्बन देकर घर से दौड़ते हुए निकल गयी.
बापू ने ज़ोर से चिल्ला कर कहा- भूलना मत कि आज शाम को तुम मुझको टीचर के बारे में सब बताओगी.
पद्मिनी जाते हुए बाहर से चिल्ला कर जवाब दिया- हाँ बापू आज वापस आने के बाद ज़रूर बताऊँगी… बाय बाय बापू…

पद्मिनी बापू को एक फ्लाइंग किस हवा में उछालते हुए हंस दी. उसके इस फ्लाईंग किस को बापू ने हवा में से लपक लिया और अपने होंठों को चूमकर कहा- लो मेरी एक नयी जीवन अर्धांगिनी मिल गयी मुझको…

फिर आसमान को देखते हुए बापू ने कहा- हे पुष्पा… तुमने पद्मिनी के रूप में फिर से जन्म ले लिया, उसमें तुम रूबरू बसी हो, क्या तुम सच में आ गयी हो क्या अपनी पद्मिनी में? मुझे उसके जिस्म से तुम्हारी खुशबू आती है, उसकी बाज़ुओं के नीचे की महक, बिल्कुल तेरी महक है… जो मुझे बहुत पसंद था… मुझे माफ़ करना पुष्पा… अगर मैं ग़लत कर रहा होऊं तो… मगर तू उसमें बसी है तो मैं तुमको कैसे छोड़ सकता हूँ? कभी नहीं छोड़ूँगा… उसको हमेशा अपने साथ ही रखूँगा. अपनी पद्मिनी को अपनी जीवन साथी बना लूँगा. मुझको तो लगता है ये सब तुमने ही किया था, तुमको पता था कि तू चली जाएगी, इसलिए तुम उसको मेरे लिए छोड़ गयी हो… है ना पुष्पा?

पुष्पा पद्मिनी की माँ का नाम था.

बापू कुछ देर बाद सभी पुष्पा की तस्वीरों को निकाल कर देखने लगा और उसकी और पद्मिनी की तस्वीरों को मिलाकर दोनों के बीच का फर्क देख रहा था. फर्क था ही नहीं… बिल्कुल जैसे कि पुष्पा ही की तस्वीर थी, जब वह जवान थी तब जैसी ही छवि थी. बापू को एक अजीब सा मज़ा आ रहा था. यह सब सोच सोच कर कि उसको चोदने के लिए दुबारा से एक कुँवारी चूत मिल गई. उसको इतनी खूबसूरत जवान लड़की मिलेगी, ये उसने सपने में भी नहीं सोचा था.

उसने याद किया कि किस तरह से पद्मिनी ने अपनी स्कर्ट ऊपर उठाकर अपनी जाँघ और पेंटी उसको दिखाई और जब कि वह अपनी जवान बेटी के सामने मुठ मार रहा था… तो क्या मजा आ रहा था. वो सब याद कर कर के वह तस्वीरों को देखते हुए फिर से मुठ मारने लगा. वो लंड हिलाते समय पद्मिनी की जांघों को याद करता और उस सीन को याद करता, जिस तरह से पद्मिनी खड़ी थी… उसके बिल्कुल सामने… धीरे धीरे अपनी स्कर्ट को ऊपर उठाते हुए और उसको अपनी खूबसूरत जांघों को दिखाते हुए… बस ये सीन याद किया तो लंड फिर से खड़ा होकर मजा देने लगा.

स्कूल में पद्मिनी दिन भर बापू के बारे में सोचती रही और मुस्कराये जा रही थी. दोस्तों ने कई बार उसको टोका भी कि क्या पागल हो गयी है, किसके ख्यालों में इतना खोई हुई है, कोई मिल गया क्या?
अपने चेहरे पर लाली लिए पद्मिनी अपने बापू को दिमाग़ में सोचती हुई दोस्तो से बोली- हाँ मिल गया है कोई… जो मेरा इंतज़ार करेगा आज शाम को…

तो हाल यह था कि पद्मिनी अपने बापू से प्यार करने लगी थी. अब यह कैसा प्यार था, किसको पता. जब से उसकी माँ गुज़री है, तब से वो अपने बापू के बहुत ज़्यादा क़रीब हो गयी थी और उस के साथ सोने से और ज़्यादा करीब हो गयी थी. जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ती गयी और जिस्म में अलग किस्म की चाह बढ़ती गयी, तो कोई और मर्द के न होते हुए उसकी ज़िन्दगी में उसने अपना सारा प्यार बापू पर ही न्यौछावर कर दिया, मगर कब से वह बापू से वैसे लगाव से वंचित थी? क्या आज बापू ने पहल किया था या पद्मिनी खुद यह चाहती थी.

चलें देखते हैं…

क्लास में पद्मिनी बापू के साथ वाली सवेरे वाला दृश्य को फ़्लैश बैक में देख रही थी. खुद सोच रही थी कि किस तरह उसने बिना झिझक अपनी स्कर्ट को धीरे धीरे ऊपर उठाया था, बापू को अपनी जाँघ और पेंटी दिखाने के लिए… और किस जोश से बापू ने उसको वहां पकड़ के चूमा और चाटा था… और किस तरह उसने अपने बाप को उसके सामने मुठ मारते देखा था. लुंगी के नीचे कितने ज़ोरों से बापू हाथ चला रहा था और अचानक उसकी लुंगी भीग गयी थी. सब नज़ारे पद्मिनी के आँखों के सामने नाच रहे थे. यह सब सोचते हुए एक बार फिर से क्लास में ही पद्मिनी की पेंटी भीग गयी और वह जल्दी से अपने आप को साफ़ करने टॉयलेट चली गयी और वहां टॉयलेट में उसने अपने होंठों को दांतों में दबा कर खुद एक उंगली भी चुत में की.

आखिर शाम को पद्मिनी वापस घर आयी. उसको पता था कि बापू बेताबी से उसका इंतज़ार कर रहा होगा. जैसे ही अन्दर दाखिल हुई, बापू ने बेसब्री से उसको अपनी बांहों में ज़ोर से जकड़ा और चूमने लगा. उसके गालों पर, मुँह पर, गले पर, उसके पूरे जिस्म को सहलाते हुए चूमने लगा.
पद्मिनी ने थोड़ा बहुत नखरे दिखलाते हुए कहा- ओफ्फो बापू, क्या हो गया… मुझे चाय पीनी है, खाना पकाना है, सब घर के काम करने हैं… छोड़ो ना…

बापू जैसे दीवाना हो गया था, कुछ नहीं समझ रहा था. वो पद्मिनी को चूमता जा रहा था, जहाँ भी उसका मुँह पड़ता था. आखिर में उसका हाथ पद्मिनी की स्कर्ट के नीचे पहुँचा और उसने उसकी गर्दन को चूमते हुए उसकी जाँघ सहलाना शुरू किया.

तब तक पद्मिनी के दोनों हाथ बापू को अपने आप से अलग करने में लगी हुई थी, पर जब उसने अपने बापू के हाथ को अपने स्कर्ट के नीचे पेंटी पर महसूस किया. तो उसका पूरा जिस्म काँप उठा और पद्मिनी ने खुद अपने बदन को बापू के जिस्म से चिपका लिया. उसने अपने हाथों को बापू के गले का हार बना दिया. तब पद्मिनी ने भी हौले से बापू के गाल पर एक चुम्बन दिया.

ये बापू को बहुत अच्छा लगा और तड़पते हुए स्वर में बापू ने कहा- और और चुम्बन कर न मुझको मेरी रानी… देख मैं कितना चूम रहा हूँ तुझको… और ज़रा सा चूम न, अपने हाथों को ऐसे मेरी पीठ पर सहलाती जा… और इधर चूमती जा…

पद्मिनी अपने बाप को उस तरह से एक छोटे बच्चे की तरह उससे विनती करते हुए देख कर थोड़ा मुस्कुरा रही थी. फिर उसने अपने बापू को निराश न करने के लिए बहुत प्यार से उसके गालों पर फिर गले पर फिर मुँह पर चुम्बन दिए. उसी दौरान बापू की पीठ पर अपनी कोमल मुलायम हाथों को फेरती गयी. बापू का लंड एकदम खड़ा पद्मिनी की स्कर्ट के नीचे रगड़ रहा था. तब पद्मिनी ने अपने बाँहों से बापू के गले को ज़ोर से जकड़ते हुए आँखें बंद कर लीं और बापू को वह सब करने दिया, जो वह कर रहा था. वे बस धीमी आवाज़ में छोटी छोटी सिसकारियां छोड़ती गयी.

बापू तो उस वक़्त अपने लंड को पेंट की ज़िप खोल कर बाहर निकाल रहा था. वह देख कर पद्मिनी का जिस्म काँप उठा. उसने बापू के गले को चूमते हुए एक लम्बा किस किया और अपनी चूचियों को बापू की छाती पर दबाते हुए चिपक गयी.

बापू उस वक़्त जब वो पेंट से अपना लंड निकाल रहा था, तब ऊपर पद्मिनी को चूमते और चाटते जा रहा था. उसने पद्मिनी के ब्लाउज के सभी बटन खोल दिए थे और पद्मिनी की ब्रा पर अपनी जीभ चला रहा था, जिससे पद्मिनी कसमसा रही थी.

पद्मिनी ने अचानक बापू को धीरे करने के लिए कहा और बोली- तो अब आप टीचर वाली बात को नहीं सुनना चाहते बापू?
यह सुनकर बापू रुक गया और पद्मिनी जैसे कि उसकी बांहों में थी, तो बापू ने पद्मिनी के मस्त चूतड़ों पर अपने हाथों को फेरते हुए कहा- हम्म मैं तो भूल गया था, अच्छा चल बिस्तर पर… वहां सब सुनाना…

फिर बापू ने अपनी पद्मिनी को गोद में ऐसे उठाया, जैसे किसी छोटे बच्चे को उठा लेते हैं. बापू वैसे ही पद्मिनी को लेकर बिस्तर पर पहुँचा. उसने पद्मिनी को बिस्तर पर लिटा दिया और उसके पैरों के तरफ बैठ कर उसकी स्कर्ट को उठाते हुए जाँघ पर अपना जीभ को फेर कर कहा- चल बोल… क्या मामला है तेरा टीचर के साथ?

पद्मिनी ने देखा कि उसके बापू की नजर उसकी स्कर्ट के नीचे उसकी पेंटी पर ही टिकी है, तो उसने हाथों से अपनी स्कर्ट को नीचे करके जांघों को ढक दिया.
इस पर बापू ने कहा- अरी पगली, इतनी खूबसूरत जाँघें हैं तेरी, तेरी माँ से भी ज़्यादा खूबसूरत और सेक्सी हैं, देखने दे न… मुझको तो इनको खा जाने को मन करता है.
पद्मिनी बोली- पहले मुझे सुन लीजिए जो मुझे टीचर के बारे में कहना है, फिर देखना वहां… और जो मन में आए कर लेना.
बापू ने कहा- ठीक है बोल.

पद्मिनी ने कहा- बापू टीचर के साथ कुछ ख़ास नहीं है… वह मुझको क्लास में बहुत देखता रहता था. फिर एक दिन मेरी सहेली नहीं आयी थी, तो मेरे पास वाली जगह खाली थी. इस वजह से टीचर मेरे पास बैठने आ गया. मुझसे थोड़ी देर बात करने के बाद उसने अपने हाथों को मेरी जाँघों पर रख दिया. आप देख ही रहे हो कि मेरी स्कर्ट यहाँ तक ही आती है. जब मैं बैठती हूँ, तो ये और ज़्यादा ऊपर को हो जाती है और जाँघ ज़्यादा दिखती है. मैंने उसका हाथ हटाते हुए कहा कि सर आप क्या कर रहे हैं? तो उसने धीरे से मेरे कानों में कहा कि तुम बहुत खूबसूरत और सेक्सी हो… क्या तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड है?
बापू बीच में उचक पड़ा- तो तूने क्या कहा?
पद्मिनी ने कहा कि मैंने उससे कह दिया कि नहीं सर, मेरा कोई बॉय फ्रेंड नहीं है. तो टीचर ने जवाब दिया कि जब कोई नहीं है, तो फिर मैं तुम्हारा बॉयफ्रेंड बन जाता हूँ.

बापू ने उसकी बात सुनकर आँखें फैलाईं.

पद्मिनी- सर की बात सुनकर मैं बहुत शर्मायी और मैं अभी चारों तरफ देख ही रही थी कि मैंने देखा कि दूसरे स्टूडेंट्स हम दोनों की बातें सुन रहे थे.
“फिर…?”
“बस फिर कुछ नहीं. उस दिन के बाद हर रोज़ उसकी नज़र सिर्फ मुझ पर और मेरे स्कर्ट पर रहती थी… और जब भी मैं फ्री होती तो वह मुझसे बातें करने लगता. फिर धीरे धीरे मौका देख कर वह मुझको छूने लगा. मैं इन्कार करती, तब भी वह बहुत ज़िद्दी था और मुझको बिल्कुल अकेली नहीं छोड़ता था. वह सच में जैसे मेरा बॉयफ्रेंड बन गया था. वो ब्रेक में जब क्लास में सभी स्टूडेंट्स बाहर होते, तो मुझको अपने पास बुलाता.”

“फिर…?”
“फिर एक दिन वैसे ही मैं उसके साथ क्लास में बिल्कुल अकेली थी, तो उसने मुझको किस किया था और मेरे जिस्म पर अपने हाथों को फेरा था. मैं डर रही थी, मगर पता नहीं क्यों वह मुझे अच्छा लगता था. उस दिन के बाद जब भी उसे मौका मिलता वह मुझको किस करता. अक्सर मुझको अपने गोद में बिठा लेता और नीचे से धक्का देता और मेरे ब्लाउज खोल कर मेरी चूचियों को चूसता और यहाँ वहां चूमता भी था.”

बापू ने अपनी बेटी के चुचों को घूर कर देखा और पूछा- फिर?
“फिर दो महीने तक वो मेरे साथ वैसे ही करता रहा. फिर दूसरे स्टूडेंट्स को पता चल गया और एक एक करके पूरे स्कूल में बात फैल गयी. अब स्कूल से फ्री होने के बाद भी वह मेरे साथ चलने लगा था. इस दौरान एकाध बार मुझको अपने साथ उस जंगल वाले रास्ते में ले जाता और वहां मेरे साथ ऐसा ही करता, जैसे आप करते हो. बस टीचर के साथ यही हुआ है… इससे कुछ ज़्यादा नहीं हुआ बापू.”

जितनी देर पद्मिनी बापू को टीचर के बारे में बोल रही थी, बापू तब तक पद्मिनी को कभी चूतड़ों पर मसल रहा था, तो कभी उसको सुनते हुए उसकी चूचियों दबा रहा था, तो कभी किस किए जा रहा था.

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कहानी जारी है.