अपनी अन्तर्वासना के लिए बनी सेक्स डॉल-3

अब तक की कहानी
अपनी अन्तर्वासना के लिए बनी सेक्स डॉल-2
में आपने पढ़ा कि मैं सुखबीर के साथ सम्भोग करने के लिए सेक्सी डॉल बनकर चुदने को बेकाबू हो चुकी थी. मैं उत्सुकता से प्रतीक्षा करने लगी कि कब वो मेरी योनि में लिंग प्रवेश कराएगा.
अब आगे:

मेरी योनि में जलन सी होने लगी थी. उसके झुकते ही मुझे मेरे चूतड़ों के बीच कुछ गर्म कठोर चीज महसूस हुआ कि ये उसके सुपारे का स्पर्श था. उसने मेरे कंधों को पीछे से पकड़ा और अपनी कमर नीचे कर लिंग से मेरी योनि टटोलने लगा. वो कभी लिंग दाएं, तो कभी बांए, तो कभी ऊपर, तो कभी नीचे करके मेरे योनि द्वार को ढूंढने लगा.

इधर मेरी व्याकुलता बढ़ती ही जा रही थी सो मैं बोल पड़ी- लंड को हाथ से पकड़ कर चुत में घुसाओ न.
इस पर उसने उत्तर दिया- ऐसे ही घुस जाएगा सारिका जी.
वो पुनः प्रयास करने लगा.

काफी देर प्रयास करने के बाद भी लिंग योनि का मुख स्पर्श करके इधर उधर चला जाता. तब मैंने कहा- देरी मत करिए, थूक लगा कर जल्दी घुसाइये.
उसने मेरी बात मानी और लिंग पर थूक मल कर चिकना किया और फिर पहले की भांति लिंग घुसाने का प्रयास करने लगा.
मैं समझ गयी कि इसे आज ये मौका मिला है, अपनी दिल की इच्छा पूरी कर के रहेगा.

थोड़ा प्रयास करने के बाद आखिरकार उसके लिंग के सुपारे ने मेरी योनि का द्वार भेद ही दिया.
मैं बोल पड़ी- हाँ सुखबीर जी, घुस गया, जल्दी करिए.
मेरी बात सुनते ही वो भी बोल दिया- हाँ सारिका जी, अब हो जाएगा, आप तैयार रहो.

उसने बात खत्म करते ही जोर से धक्का मारा और लिंग मेरी योनि की दीवार फैलता हुआ भीतर चला गया. इस धक्के से जहां उसके लिंग ने मेरी योनि की दीवारें फैला दीं, वहीं मेरी योनि की मांसपेशियों के विरुद्ध उसके लिंग की ऊपर की चमड़ी पीछे की ओर खिंचती चली गई जिससे उसका सुपारे से लेकर लिंग का कुछ हिस्सा खुल गया था और मैं उसकी नसों को अपनी योनि के भीतर महसूस करने लगी थी.

मैं उस धक्के से जोर से कराह उठी और बोल पड़ी- ओह माँ … सरदार जी इतनी जोर न मारो … बच्चेदानी तक जा रहा है.
मेरी बात सुन कर शायद उसे ख़ुशी हुई और उसे भी अपनी मर्दानगी पर गर्व हुआ, वो बोल पड़ा- मजा गया सारिका जी, आप जैसी कामुक औरत मैंने आज तक नहीं देखी, काश प्रीति भी आप जैसी होती!

उसने कुछ देर अपने लिंग को मेरी योनि में टिकाए हुए हल्के हल्के हिलाता रहा और फिर धीरे धीरे उसने धक्के मारने शुरू किए. अब जाकर मेरी जलन शांत होने लगी थी पर अभी तो वासना की आग ने जलना शुरू ही किया था और हम दोनों मध्य तक आ गए थे.
सुखबीर के धक्कों से मैं यह तो समझ गयी थी कि उसे बहुत मजा आ रहा और उसका जोश साफ झलक रहा था. जिस प्रकार से वो ताकत लगा रहा था.

पर उसके मन में मेरा खौफ़ भी था और इस वजह से वो एक आज्ञाकारी दास की भांति संभोग कर रहा था. वो मेरे डर से अपनी मन की नहीं कर पा रहा था, वरना मर्दों के जोश के आगे तो हर औरत झुक जाती है.

मुझे उसका लिंग बहुत सुखदायी लग रहा था और मुझे भीतर से लग रहा था कि उसे अपनी योनि से कस के जकड़ लूँ. मेरी योनि धक्कों के बढ़ते रफ्तार से और अधिक गीली होती जा रही थी. अब तो फच फच जैसी आवाजें मेरी योनि से निकलनी शुरू हो गयी थीं. जैसे जैसे संभोग और धक्कों की अवधि बढ़ती जा रही थी, वैसे वैसे हम दोनों की सांसें तेज़ और जोश आक्रामक रूप लेती जा रही थीं. मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे वो मुझे ऐसे ही धक्के मारता रहे, कभी न रुके.

वो भी शायद यही चाह रहा था कि मैं उसका किसी तरह से कोई विरोध न करूं. उस ठंड में भी अब हम दोनों के पसीने छूटने लगे थे. मुझे उसका लिंग मेरी योनि के भीतर तपता हुआ लोहा महसूस हो रहा था. जिस प्रकार मैं झुकी हुई थी और वो मुझ पर दोनों टांगें फैला कर चढ़ा हुआ था, उससे धक्के बहुत मजेदार लग रहे थे.

जैसे जैसे मेरी चरम सुख की लालसा बढ़ती जा रही थी, वैसे वैसे मैं अपने चूतड़ ऊपर करती जा रही थी. मेरे चूतड़ पीछे से पूरी तरह से उठ जाने की वजह से उसका लिंग अब हर धक्के पे मेरे गर्भाशय तक जाने लगा. मेरी कामोतेजना का अब ठिकाना ही नहीं रहा और मैं कराहने और सिसकने लगी. उत्तेजना में मैंने किसी तरह एक हाथ पीछे ले जाकर उसके चूतड़ को पकड़ना चाहा, पर वहाँ तक मेरा हाथ नहीं पहुंचा. तब भी उसकी जांघ को पकड़ कर मैंने अपने नाखून गड़ा दिए. इससे सरदारजी और उत्तेजित हो उठे और एक जोर का झटका दे मारा.. फिर गुर्राते हुए मुझे पेलने लगे.

मुझे ऐसा लगा जैसे उसके लिंग का सुपारा मेरी बच्चेदानी के मुँह से चिपक गया हो. मैं उस दर्द में भी आनन्द महसूस करते हुए और जोर से चिहुँक उठी और नाखून और चुभा दिया.
एक पल सुखबीर ने लिंग वहीं चिपकाए रखा और फिर से लिंग थोड़ा बाहर खींच कर धक्के मारने लगा. अब सुखबीर हाँफने लगा था और उसने रुक रुक के धक्के देने शुरू कर दिए थे.

कोई 20 मिनट के संभोग के बाद सुखबीर ने मुझसे पूछा- सारिका जी क्या आप झड़ने वाली हैं, अगर हों, तो मुझे बता देना.
मैंने भी उत्तर दिया- हाँ आप तेज़ी से धक्के मारते रहो, रुकना मत.
तब उसने कहा- सारिका जी क्या आप ऊपर आकर धक्के मारोगी? मैं अब थकने लगा हूँ प्लीज.

इतना आज्ञाकारी पुरुष मैंने आज तक नहीं देखा था, शायद वो प्रीति से भी डरता होगा, तभी अपने मन की बात उससे नहीं कह पता होगा. मैंने सोचा कि उनके बीच की बात पता करूँ तो मैंने हाँ कह दी.
सुखबीर मेरे पीछे से उठा और बिस्तर पर चित लेट गया. मैंने देखा वो ऊपर से नीचे तक पसीने पसीने था, यहाँ तक कि उसकी पगड़ी सिर के पास पूरी भीग चुकी थी.

मैं उठकर दोनों टांगें फैला कर सुखबीर के लिंग के ऊपर चढ़ गयी. उसका लिंग एकदम तना हुआ ऊपर की ओर मुँह उठाए हुए था. मैं अपने दोनों हाथ सुखबीर के सीने पर रख घुटने बिस्तर पर टिका लिंग के ऊपर बैठने लगी. मेरी योनि इतनी चिकनाई से भर गई थी कि जैसे ही लिंग का सुपारा मेरी योनि की छेद पर पड़ा, मेरे हल्के से कमर दबाते ही उसका पूरा लिंग सरसराता हुआ मेरे भीतर घुस गया.

एक बार बाहर निकल कर, फिर से लिंग घुसाने का भी अलग आनन्द आता है. यह मुझे महसूस हुआ. इसी वजह से शायद मर्द बार बार उत्तेजना में लिंग बाहर निकाल कर अन्दर घुसाते हैं.
खैर जैसे ही मेरी योनि लाइन में लिंग प्रवेश हुआ, मैंने खुद को संतुलित कर हल्के हल्के कमर हिलाते हुए धक्के देने लगी.
बस 10-12 धक्के लगाने के बाद सुखबीर का चेहरा देखने लायक था, वो पूरे जोश से भर गया था और उसे बहुत मजा आ रहा था. उसकी आँखों में उम्मीद सी थी कि उसे मनचाहे तरीके से संभोग सुख मिल रहा.

उसने लंबी लंबी सांस छोड़नी शुरू कर दी और बीच बीच में सिसकारियाँ भी लेने लगा. थोड़ी देर में उसने अपने हाथों से मेरे स्तनों तथा चूतड़ों को बारी बारी से दबाना, सहलाना और मसलना शुरू कर दिया. उसकी हरकतों से मैं और जोश में आने लगी और आह ऊह उम्म की आवाजें निकालते हुए तेज़ी से धक्के मारने लगी.

हम दोनों मस्ती में पूरी तरह खो चुके थे और हम दोनों को बहुत मजा आ रहा था. जैसे जैसे संभोग की अवधि बढ़ती गयी, वैसे वैसे मैं थकती जा रही थी. मगर वही सुखबीर की मस्ती चरम पर पहुंचने को थी. थकान की वजह से अब मेरे मन में ख्याल आने लगा कि या तो अब वो झड़ जाए या मैं झड़ जाऊं. इसलिए मैं इस हाल में भी अपने जोश और दम को कम नहीं होने दे रही थी और लगातार उसी ताकत और गति से धक्के मार रही थी.

अब तो मेरे पसीने छूटने लगे थे, तभी जोश से भरा सुखबीर उठ बैठा और मुझे चूतड़ से पकड़ लिया. उसने हाथों से मेरे चूतड़ पकड़ कर हवा में उछालना शुरू कर दिया और प्रीति को गाली देता हुआ बोला- बहनचोद प्रीति … तू क्यों नहीं चुदाती ऐसे.
वो मेरे स्तनों को मुँह में भर कर मेरा दूध पीने लगा और चूतड़ पकड़ कर मुझे उछालते हुए संभोग में सहारा देने लगा.

अब मैं थक चुकी थी और मुझसे दम नहीं लग रहा था. तब मैं बोली- सुखबीर जी, अब आप ऊपर आकर करो और जल्दी झड़ जाओ, सुबह होने को है.
तब उसने मुझे छोड़ा और और मैंने बिस्तर पर लेट कर आसन ले लिया.
मैंने एक तकिया अपने चूतड़ के नीचे रख लिया ताकि ज्यादा आसानी हो और अपनी मांसल मोटी जाँघें फैला कर योनि को सुखबीर के सामने कर दिया.

सुखबीर भी बिना देरी के, मेरी जांघों के बीच आकर मेरे ऊपर झुक गया. उसका लिंग पूरे उफान पर था और किसी गुस्सैल नाग की भांति फनफना रहा था. उसने अपनी कमर नीचे की और मैंने अपनी चूतड़ थोड़े उठाए और जैसे ही सुखबीर को मेरी योनि की छेद का स्पर्श हुआ, उसने जोर से लिंग धकेल दिया. उसका लिंग बिना किसी प्रकार के मदद के.. सर्र से मेरी योनि की गहराई में उतरता चला गया.

फिर क्या था, सुखबीर तो वैसे ही बहुत गर्म था. उसने एक सांस में धक्के मारने शुरू कर दिया. मैं बस उसे पकड़ कर कसमसाती हुई अपनी टांगें ऊपर उठा कर कराहने लगी. मैं मस्ती के सागर में पूरी तरह डूब चुकी थी और अब किनारे तक जाना चाहती थी.
मैं बोली- उम्म्ह… अहह… हय… याह… ओह्ह सुखबीर जी और जोर से चोदो मुझे, मैं झड़ने वाली हूँ.

फिर क्या था, मेरी ऐसी बातें उसके कानों में किसी वियाग्रा की गोली की तरह काम कर गयी. उसने फिर जोरदार और अपनी पूरी ताकत से मुझे धक्के मारने शुरू किए. मैं भी धक्कों की मार से बकरी की तरह मिमियाने लगी और फिर मेरी नाभि में झनझनाहट सी शुरू हो गयी.
अभी 5-10 धक्के उसने और मारे कि उस झनझनाहट की लहर मेरी नाभि से उतरता हुआ योनि तक चला गया.

मैं और जोरों से सिसियाने और कराहते हुए अपनी चूतड़ उछालने लगी. मैंने उसे पूरी ताकत से पकड़ लिया और मेरे मुँह से ‘आह ओह्ह इह..’ जैसी आवाजें निकलने लगीं. मेरी योनि से मुझे लगा कुछ तेज़ पिचकारी सी छूटने को है और मेरा बदन मेरे बस में नहीं रहा.
मैं झड़ने लगी और मेरी योनि से पानी की धार तेज़ी से रिसने लगी. मुझे ऐसे देख और मेरी हरकतें और चरम सुख की प्राप्ति की कामुक आवाज सुन सुखबीर भी खुद को ज्यादा देर न रोक सका. वो भी गुर्राते और हाँफते हुए तेजी से चूत की झांटों पे झटके मारता हुआ एक के बाद एक पिचकारी मारने लगा, उसके लिंग से 4 बार तेज़ वीर्य की पिचकारी मैंने मेरी बच्चेदानी में महसूस की जो कि आग की तरह गर्म थी. उसके धक्कों के आगे मैं भी पूरी तरह झड़ कर शांत होने के लिए उसे कस कर पकड़ चिपकी रही.

पर सुखबीर तब तक नहीं रुका जब तक उसने वीर्य की आखिरी बूंद मेरी योनि की गहराई में न उतार दी. उस एक बूंद के गिरते ही वो मेरे स्तनों के ऊपर गिर पड़ा और हाँफते हुए सुस्ताने लगा.
उसने मेरी योनि को अपने वीर्य से लबालब भर दिया था. शायद उसने बहुत दिनों से संभोग नहीं किया था.

उसका लिंग मेरी योनि के भीतर अभी भी था और धीरे धीरे सिकुड़ने लगा था. दोनों एक दूसरे से करीब 5 मिनट चिपके हुए अपनी अपनी साँसों में काबू पाते और सुस्ता कर दोनों के बदन ढीले पड़ने लगे थे.
फिर मैंने सुखबीर से कहा- सुखबीर जी उठिए हो गया न.
सुखबीर बड़ी आलस के भाव से मेरे ऊपर से उठा और पास में रखे एक तौलिए से मेरी योनि से वीर्य साफ करते हुए बोला- काश कि मेरी प्रीति आपकी जैसी होती!
मैंने तब उससे पूछा- क्यों क्या प्रीति आपको करने नहीं देती?
उसने जवाब दिया- देती है … मगर उसके साथ इस तरह का मजा नहीं आता.

मैंने कहा- आप उससे खुल कर बात करिए और फिर वो करिए जो वो चाहती है. फिर देखना आप जो चाहोगे, वो करेगी. आप तो भाग्यशाली हो कि आपको प्रीति जैसी पत्नी मिली. कितनी खूबसूरत है और बदन भी कितना कामुक और आकर्षक है.
सुखबीर बोला- वो तो है सारिका जी, पर ऐसे बदन से क्या फायदा कि अन्दर से किसी प्रकार की कामुकता न दिखे. फिलहाल अभी कुछ महीनों से उसमें बदलाव जरूर आया है, मगर फिर भी ठंडी लगती है.

मैं उससे बोला- मर्द चाहे तो सब हो जाता है. आपको उसे समझना होगा. जीवन केवल एक बार मिलता है, उसे अगर मजे से न जिया तो क्या जिया. मैं प्रीति को समझाऊंगी.
इस पर सुखबीर खुश हो गया और बोला- सारिका जी बस आप उसे अपनी तरह बना दो, मैं आपका हमेशा ग़ुलाम रहूंगा.

उसे क्या पता कि प्रीति में इतना बदलाव मेरी वजह से आया था. पर मुझे डर हो गया था कि कहीं प्रीति को हमारे बारे में पता न चल जाये. क्योंकि वो उतनी खुले विचारों की नहीं थी. क्या पता अपने पति के साथ मेरे रिश्तों के बारे में पता चलने पे क्या महसूस करेगी, कहीं मोहल्ले में शोर न मचा दे? क्योंकि ज्यादातर औरतें अपने पति को दूसरी औरत के साथ बर्दाश्त नहीं करती हैं.
इस वजह से मैंने सुखबीर को कसम खिलाई और फिर उसे जल्दी जाने को कहा.

उसके जाते ही फिर से ठंड लगने लगी और मैं कंबल ढंक सो गई.

आप सबको मेरी कहानी कैसी लगी, जरूर बताएं.
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