अमर प्रेम की सत्यकथा

यह मेरे सच्चे प्यार की कहानी है. हमें पता था हम फिर कभी नहीं मिल पाएंगे इसलिए इसको हमने कल ही अंजाम तक पहुंचाया। यह कहानी 100% सच है, किरदारों के नाम व जगह बदल दी गयी है।

मेरा नाम प्रांजल है और मेरी नायिका का नाम शाहमीन है। हम दोनों की दोस्ती एक कॉमन फ्रेंड के जरिये हुई थी. तब मैं रूड़की उत्तराखण्ड में रहकर पढ़ाई कर रहा था और अपने दोस्त की शादी में उसके घर आया था। हमारी दोस्ती कब प्यार में बदल गयी, ये हम दोनों को ही नहीं पता चला।

उसके घर में इतनी बंदिशें थीं कि उसका घर से निकलना लगभग नामुमकिन ही था. शायद इसीलिए हम लोग किसी तरह फ़ोन पर ही बात कर पाते थे। हम लोग कभी मिल नहीं पाए लेकिन वो कहते हैं न कि ऊपर वाला सब कुछ प्लान करके रखता है।

मेरी नौकरी बैंगलोर की एक बड़ी आईटी कंपनी में लग गयी. मुझे लगा कि अब तो मैं इतनी दूर जा रहा हूँ तो सब कुछ ख़त्म!
किन्तु उसी समय मेरे सिलेक्शन एक बड़े सरकारी अफसर के पद पर हो गया और किस्मत ऐसी कि पोस्टिंग भी उसी के शहर में मिल गयी।

अब मैं उस जिले में सरकारी आवास में रहने लगा। मेरे आवास से उसका घर लगभग साठ किलोमीटर की दूरी पर था। ऐसे ही एक साल और बीत गया.

हमें यह भी पता था कि हम दोनों की शादी नहीं होनी है लेकिन एक बार मिलकर हमें अपनी मुलाकात यादगार बनानी थी।

इसी बीच उसके घर पर मेरे डिपार्टमेंट की रेड पड़ गयी. चूँकि मैं अपने जिले में अपने डिपार्टमेंट के टॉप अफसरों में आता था तो मुझे जैसे ही पता चला, मैंने उसके घर वालों की बेइज्जती होने से बचा लिया और रेड टीम वापस हो गयी।
इस बहाने मेरा उनके घर आना जाना हो गया.

उसके घर के लोग मेरी बहुत इज्जत करते थे। हम दोनों ही नहीं चाहते थे कि उसके घर वालों को हमारे प्यार के बारे में पता चले।

मैं जब भी उसके घर गया तो हमें कभी एकांत नहीं मिला, अगर मिला भी एक या दो मिनट का। उस बीच में हम लोग बस एक दूसरे को गले ही लगा पाए।

अब मेरी इस जिले में पोस्टिंग लगभग चार साल की हो गयी थी। उसकी एक सहेली थी जो हम लोगों के बारे में कुछ कुछ जानती थी।

आखिर वो दिन आ ही गया जिसका हमें बरसों से इंतजार था। उसके अब्बा किसी काम से मुंबई गए और उन्हें दो दिन बाद आना था।
पहले दिन प्लान यह बना कि उसे शहर आना था और वो सहेली की मदद से ही निकल सकती थी। किन्तु उस दिन उसकी सहेली को उसके पापा ने किसी अन्य काम में लगा दिया और वो घर से बाहर नहीं निकल पायी।

अब हमारे पास सिर्फ एक ही दिन था और यह भी पता था कि ज़िंदगी ने बस यही एक मौका दिया है मिलने का, यह हमारी ज़िंदगी की पहली और आखिरी मुलाकात थी. इसलिए इस मुलाकात को हर हाल में होना था और इसे ख़ास भी बनाना था।

अगले दिन शाहमीन अपनी सहेली के साथ बस से शहर आयी, मैंने ऑफिस में अपने बॉस को बता दिया कि मुझे कुछ पर्सनल काम है इसलिए दो बजे के बाद ही ऑफिस आ पाऊँगा।

मैं अपनी कार लेकर नियत समय पर बस अड्डे पहुंच गया। हम दोनों ही अपनी इस पहली मुलाकात के लिए बहुत ही ज्यादा उत्तेजित थे। सबसे पहले उन दोनों को लेकर रेस्टोरेंट गया. चूँकि वो लोग बहुत सुबह निकल गयी थी इसलिए भूख भी लगी था, सबने खाना खाया।

इसके बाद उसकी सहेली को हम लोगों ने एक मार्किट में उतार दिया यह कह कर कि तुम मार्किट में शॉपिंग करो, हम लोग शहर में घूम कर आते हैं।

वहां से मैंने सीधे कार अपने आवास कि तरफ दौड़ा दी. रास्ते में मैंने उसको बोल दिया कि चेहरे और सर से दुपट्टा हटा लो, जैसे नार्मल दुपट्टा पहना जाता है, वैसे ही पहनो जिससे किसी को यह ना लगे कि मैं बाहर से कोई लड़की लाया हूँ।

सामान्य तौर पर ऑफिस ऑवर में आवास पर कोई नहीं आता था। मैंने गाड़ी सीधे आवास के अंदर ले ली।

हम दोनों की ही दिल की धड़कन बहुत बढ़ी हुई थी। आवास के अंदर पहुंच कर हम दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कराये, फिर हम दोनों खूब हँसे।

यह पांच साल का लम्बा इंतज़ार था. हम दोनों इस अगले एक घंटे के हर पल को जीना चाहते थे.

हम दोनों बैडरूम में गए और कुछ देर के लिए अपनी धड़कनों पर काबू पाने की कोशिश करने लगे। ख़ुशी के मारे हम दोनों की ही आँखों में आंसू थे। सामान्य होने के बाद हम लोगों ने एक दूसरे को इत्मीनान से गले लगाया, खूब कस के गले लगाया।

फिर एक दूसरे को चूमना शुरू किया। हम एक दूसरे में खो जाना चाहते थे। मैंने उसके होंठों को अपने होंठों में भर कर स्मूच करना शुरू कर दिया। ना जाने कितनी देर तक ये सब हम दोनों खड़े खड़े ही करते रहे।

इसके बाद हम दोनों ने एक दूसरे के कपड़े निकाल दिए. हमने पहले ही निर्णय लिया था कि उस एक घंटे में किसी के बदन पर कोई कपड़ा नहीं होगा। जब वो सिर्फ ब्रा पैंटी में आ गयी तो मैं उसको निहारने लगा।
वो शरमा के मुझसे कस के गले लग गयी.

मैंने हाथ पीछे ले जाकर उसकी ब्रा का हुक खोल दिया. फिर मैंने उसको अपनी गोद में उठाया और बेड के किनारे लिटा दिया. मैं उसकी चूचियों को निहारते निहारते अपने होंठों में लेकर चूसने लगा। चूँकि ये सब पहली बार हो रहा था, इसलिए उसका मन घबराहट और ख़ुशी के अंतर्द्वंद्व में झूल रहा था।

उसकी चूचियां मेरे चूसने से एकदम लाल हो गयी। फिर मैं उसकी नाभि पर आ गया। फिर अपनी जीभ को खिसकाते खिसकाते उसके सबसे संवेदनशील अंगों की तरफ ले गया। उसकी पैंटी को मैंने निकल कर अलग रख दिया। फिर अपने होंठों को उसकी जाँघों के बीच में पेवस्त कर दिया।

यहाँ से मुझे छुपा हुआ खजाना दिख गया और मैंने अपने होंठ और जीभ के साथ उस खजाने पर हमला कर दिया। मैं बेतहाशा उसकी चूत को चूमने चाटने लगा. इससे उसके शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गयी उम्म्ह… अहह… हय… याह…
उसने अपनी टांगों को पूरा खोल कर मुझे आमंत्रण दिया कि हाँ उसे ये सब बहुत अच्छा लग रहा है.

उसने मेरे सर को अपने हाथों से और दबाना शुरू किया। मैंने उसकी भगनासा को अपनी जीभ और होंठ से चूसना शुरू किया तो वो और तड़पने लगी। उसने दोनों टांगों से मेरे सर को इस तरह दबा दिया था कि मैं अपने चेहरे का मूवमेंट करने में असमर्थ था। मैं सिर्फ अपने होंठ और जीभ ही इस्तेमाल कर पा रहा था।

मैंने लगे हाथ अपने हाथ ऊपर ले जाकर उसकी चूचियों को भी दबोच लिया। इस हालत में उसके लिए अब बर्दाश्त करना मुश्किल था। फिर मैंने उसको बेड से नीचे उतार कर जमीन पर बैठा दिया, और अपना अंडरवियर निकाल कर लंड उसके हाथों में दे दिया

ऐसा कहा जाता है कि जिनके लंड के शिश्न पर तिल होता है वो बहुत ही ज्यादा कामुक होते हैं।
यह बात मैंने शाहमीन को बताई थी तो वो मेरे लंड के उस तिल को देखने के लिए बेताब थी।

तिल को देखते ही उसने अपनी जीभ निकाल कर उसको स्पर्श किया. मुझे बहुत गुदगुदी हुई. फिर उसने मेरे लंड के शिश्न को होंठों में रखा और तिल को जीभ से सहलाने लगी। मैं आनन्द के सागर में गोते लगाने लगा।

धीरे धीरे वो अपने मुँह में जितना लंड ले सकती थी उतना अंदर लेकर अंदर बाहर करने लगी। फिर मैंने उसको उठाकर अपने सीने से लगाया।

एक तरह से ये मेरा उसको धन्यवाद था कि उसने मेरा लंड मुँह में लेकर मुझे कितनी ख़ुशी दी थी।

फिर मैंने उसको बेड पर उल्टा लिटा दिया और उसकी सम्पूर्ण पीठ पर चुम्बन करने लगा. धीरे धीरे मेरे होंठ और जीभ ने उसके नितम्बों पर कब्ज़ा कर लिया. वो गुदगुदी से सिहर उठी और सीधी हो गयी।

इतनी देर का फोरप्ले बहुत था, मैंने अब ज्यादा देर करना ठीक नहीं समझा और तुरंत कंडोम निकाल कर अपने लंड पर चढ़ा लिया।
उसकी चूत पर मैंने सरसों का तेल काफी अंदर तक लगा दिया।

इसके बाद मैं उसके ऊपर आया और लंड को सही जगह सेट करके अंदर डालने लगा। अभी मेरा सिर्फ अग्र भाग ही अंदर गया था कि वो दर्द और घबराहट कि मिलीजुली प्रतिक्रिया के साथ मुझे हटाने की कोशिश करने लगी।

मैं उसी पोजीशन में रुक कर उसको प्यार करने लगा, उसको दुलारने लगा, उसके बालों में हाथ फिराने लगा, उसके कानों में किस करने लगा, उसकी चूचियों को दबाने लगा, उसको भरोसा दिलाने लगा कि मैं उससे कितना प्यार करता हूँ।

इससे उसकी घबराहट कुछ कम हुई.

इसी बीच में मैंने अपने लंड को थोड़ा और अंदर खसका दिया था। लेकिन अब भी लंड आधा ही गया था और हम दोनों ही ठण्ड के मौसम में भी पूरी तरह पसीने पसीने हो गए थे।
वो बार बार यही बोल रही थी- मुझे दर्द हो रहा है, मेरी सहेली मेरा इंतजार कर रही होगी, मुझे घर जल्दी पहुंचना है. कहीं मेरे अब्बू मुझसे पहले घर पहुंच गए तो मेरी शामत आ जाएगी।

मैंने उसको ढांढस बंधाया और इसी बीच आधे घुसे लंड से ही आगे पीछे करता रहा। मैंने उसको कहा कि वो अपनी दोनों टांगों से मेरी कमर को बाँध ले.
उसने ऐसा ही किया।
इससे दो फायदे हुए एक तो उसकी चूत थोड़ा और खुल गयी और मुझे धक्के लगाने में आसानी होने लगी।

सरसों का तेल अंदर तक लगाने से लुब्रिकेंट की कोई कमी नहीं थी। धीरे धीरे मेरा पूरा लंड उसकी चूत में एडजस्ट हो गया।
इस पोजीशन में लगभग दस मिनट हम लोग करते रहे।

हम दोनों पसीने से भीग चुके थे। उसने थोड़ा पानी माँगा। उसके अंदर अब और हिम्मत नहीं हो रही थी किन्तु मेरा अभी शांत नहीं हुआ था।

मैंने उसे पानी पिलाया, वो कपड़े पहनने की ज़िद करने लगी तो मैंने उसे समझाया कि अच्छा ठीक अभी कुछ देर कुछ नहीं करते हैं. लेकिन कपड़े मत पहनो, ऐसे ही थोड़ी देर बैठते हैं।
वो मान गयी।

कभी मैंने उससे वादा लिया था कि जब भी करेंगे तो तुम मेरे ऊपर बैठकर सेक्स करने वाली पोजीशन में जरूर करोगी।
मैंने उसे वो वादा याद दिलाया।
वो मुस्कुराने लगी और कहा- तुम बहुत शरारती हो।

फिर वो मुझे प्यार करने के लिए मेरे ऊपर आयी। हालाँकि इस पोजीशन में दर्द होना स्वाभाविक था, किन्तु मेरे प्यार और वादे के आगे वो सब सह रही थी, ये भी जानती थी कि हम फिर कभी नहीं मिल पाएंगे।

उसने मेरे लंड को पकड़ कर अपनी चूत पर सेट किया और नीचे बैठने लगी, किन्तु वो इतनी आसानी से नहीं जाने वाला था, वही हुआ।
उसने फिर से प्रयास किया तो इस बार थोड़ा सा गया किन्तु उसके हिम्मत और प्यार की दाद देनी पड़ेगी. वो सब कुछ सहते हुए भी सिर्फ मेरे लिए ये सब कर रही थी।

एक बार जब वो नीचे की तरफ दबा रही थी, तभी मैंने उसके नितम्बों को पकड़ कर नीचे से ऊपर धक्का दे दिया और लंड पूरा अंदर … वो दर्द के मारे चीख उठी।
मैंने तुरंत उसे अपने ऊपर लिटा लिया और उसे पागलों की तरह चूमने लगा और साथ ही लंड को अंदर बाहर करने लगा।

इसके बाद मैंने उसको बेड पर बैठा दिया और बैठे बैठे ही मेरी गोद में बैठकर करने के लिए कहा। इस पोजीशन में वो अपनी चूत को मेरे लंड पर सेट करती हुई मेरी गोद में बैठ गयी।
इस पोजीशन का फायदा यह होता है कि लंड एकदम अंदर तक जाता है।

गोद में बैठ कर करते हुए जब वो थक गयी तो मैंने उसे लेट जाने के लिए कहा किन्तु इस तरह कि लंड निकलने न पाए।

वो लेट गयी तो मैं भी पैर पीछे की तरफ ले जाकर उसके ऊपर आ गया और एक बार फिर हमारी ताबड़तोड़ चुदाई शुरू हो गयी।

हल्का दर्द उसको अब भी हो रहा था।

मैंने उसको दिलासा दिया- बाबू बस और पांच मिनट में मेरा हो जायेगा।
मैं अभी तक एक भी बार नहीं झड़ा था। वो अब तक पता नहीं कितनी बार झड़ चुकी थी।

जब मेरा समय नजदीक आया तो मैंने उसकी टांगों को सीधा करा दिया और कस कस के धक्के लगाने शुरू किये।
हम दोनों साथ में झड़े … उसकी दर्द और आनन्द की मिश्रित आवाज निकल पड़ी।

एक घंटा हमारा बीत चुका था, उसकी सहेली के कई फ़ोन भी इस बीच आ चुके थे।
हम दोनों ने कपड़े पहने।
उसकी टांगों में दर्द था।

मैंने उसके लिए एक सोने की अंगूठी ली थी जो उसे सरप्राइज देनी थी। मैंने वो अंगूठी निकाल कर घुटनों के बल बैठ कर उसको वो अंगूठी पहनाई। मैंने उससे कहा कि हम नहीं मिलेंगे लेकिन ये निशानी हमेशा तुम्हारे साथ रहेगी।
उसको वो अंगूठी बहुत पसंद आयी।

फिर मैं उसे कार में बिठा कर उसकी सहेली के पास ले गया, कुछ देर हम लोग पार्क में घूमे। फिर उन दोनों को बस में बैठा कर मैं वापस आवास पर आकर गाड़ी खड़ी की फिर ऑफिस चला गया।

हम दोनों ऊपर वाले के शुक्रगुजार हैं कि उन्होंने हमें ये मौका दिया था, नहीं तो हम लोग कभी भी नहीं मिल पाते।
हम लोग अब कभी नहीं मिल पाएंगे। यहहमारी पहली और आखिरी मुलाकात थी।

आशा है आप लोगों को मेरी यह सच्ची कहानी पसंद आएगी।
अगर कहानी लिखने में कोई त्रुटि हुई हो तो क्षमा कीजियेगा।
आप लोग मेरे ईमेल [email protected] पर फीडबैक दे सकते हैं।